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    दिव्यांग छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा हेतु किए जाने वाले प्रयास - शिल्पी प्रकाश, भाषालॅब


    समावेशी शिक्षा का अर्थ ही होता है सामान्य छात्रों के साथ दिव्यांग छात्र एक ही पाठशाला में शिक्षा ग्रहण करे तथा दोनों प्रकार के छात्र अधिक से अधिक समय एक साथ व्यतीत करें यानी सामान्य छात्र और दिव्यांग छात्र दोनों का समावेशन ही समावेशी शिक्षा है। सामान्य छात्र, दिव्यांग छात्रों के साथ रहकर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। अर्थात् दोनों को एक दूसरे से सीखने - समझने का अवसर प्राप्त होता है।


    नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भारत सरकार की ये पहल अत्यंत ही प्रशंसनीय है। दिव्यांग छात्रों के शिक्षा के लिए हर पाठशालाओं और महाविद्यालयों में शिक्षकों को प्रशिक्षण दी जा रही है, ताकि वैसे छात्रों को सामान्य छात्रों के साथ पढ़ाने में वो सक्षम हो सके। जैसे शिक्षकों को ब्रेल लिपि एवं संकेत भाषा की प्रशिक्षण दी जा रही है जिससे शिक्षक दिव्यांग छात्रों के व्यवहारिक समस्याओं को समझ कर उनकी भाषाओं में छात्रों को व्यवहार कुशल बना  सके। नई शिक्षा नीति के अतंर्गत दृष्टिहीन छात्रों के लिए शिक्षण उपकरण जैसे - अंकगणितीय फ्रेम, एबाकस, ज्यामितिय किट्स्, और ब्रेल एजूकेशनल किट्स, तथा श्रवण बाधित छात्रों के लिए विभिन्न प्रकार के श्रवण-सहायक यंत्र, और शैक्षणिक किट, प्रत्येक पाठशालाओं में उपलब्ध कराया जा रहा है जिसका उपयोग कर के दृष्टिहीन छात्र और श्रवण बाधित छात्र शिक्षा प्राप्त कर सके।


    दिव्यांगता के अंतर्गत अन्य और तरह की विकलांगता आती है, जैसे विशिष्ट अधिगम विकलांगता वाले छात्र जो अलग-अलग आईक्यू लेवल के होते हैं या अलग-अलग बौद्धिक क्षमता वाले होते हैं, वैसे छात्रों के लिए अलग तरह के पाठशालाओं की व्यवस्था होती है। विशिष्ट अधिगम विकलांगता छात्रों को शिक्षित करने के लिए फिजियोथैरेपिस्ट और मल्टी-सेन्सरी ऐजूकेशन होते हैं, जिससे विशिष्ट अधिगम विकलांगता वाले छात्रों की आईक्यू लेवल या बौद्धिक क्षमता के हिसाब से उन्हें शिक्षित किया जाता है।


    शारीरिक दिव्यांगता भी अनेक तरह की होती है। जिसमें छात्र की कुछ दिव्यांगता स्थाई होती है और कुछ अस्थाई होती है। शारीरिक दिव्यांगता वाले छात्रों के लिए कुछ अलग तरह की पाठशालाएं नहीं होती हैं। वह सामान्य छात्रों के साथ पढ़ने के क्रम में समय-समय पर उनकों शिक्षकों और मित्रों के द्वारा उनके मनोबल को बढ़ावा देने की आवश्यकता होती है। दिव्यांग छात्रों को आधुनिक उपकरणों से जोड़ने के कारण उनके जीवन में परिवर्तन आता है। शारीरीक दिव्यांग छात्रों के जीवन को आसान बनाने के लिए अनेक तरह के गतिशीलता सहायक यंत्र उपलब्ध हैं जैसे - ट्रईसाइकिल, व्हीलचेयर, सी.पी.चेयर, क्रचेय, वाकिंग स्टीक, और वाकिंग फ्रेमध्रोलेटर्स आदि।


    दिव्यांगता को समाज के लिए या अपने घर के लिए बोझ समझा जाता था लेकिन अब एैसा नहीं है। अब वो भी अपने आत्मसम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सकते हैं। दिव्यांग  छात्रों को अच्छे माहौल और भावनात्मक लगाव मिलने से ऐसे छात्र अधिक तेजी से शिक्षा ग्रहण करते हैं। सरकार की तरफ से दिव्यांग छात्र को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास सराहनीय है। लेकिन अभी और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं को भी समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए ताकि दिव्यांग छात्रों के लिए शिक्षा की व्यवस्था और बेहत्तर हो सके। इसके लिए हर तरह के योगदान की आवश्यकता है, क्योंकि सभी माता-पिता दिव्यांग बच्चों को आधुनिक उपकरण देने में समर्थवान नहीं होते हैं।  इसलिए वैसे बच्चों की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्था को भी लेनी चाहिए, ताकि वैसे बच्चें आत्मनिर्भर बन सके। एैसे छात्रों को ऐसा अनुभव नहीं होना चाहिए कि उनका विकास सिर्फ पाठशाला या महाविद्यालय तक ही सीमीत है अपितु उनका विकास समग्र क्षेत्र में हो सकता है, और वह भी आत्मसम्मान से अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं। 


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