1.4 - किताबें - Kitabein - Class 9 - Lokbharati.
- Oct 7
- 12 min read
Updated: Oct 9

पाठ का प्रकार: पद्य
पाठ का शीर्षक: किताबें
लेखक/कवि का नाम: गुलजार
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: यह कविता किताबों के साथ मनुष्य के बदलते रिश्तों का मार्मिक चित्रण करती है। कवि गुलजार कहते हैं कि कंप्यूटर के आने के बाद से किताबें अलमारियों में बंद हो गई हैं और बड़ी हसरत से हमें देखती हैं। अब महीनों तक उनसे मुलाकात नहीं होती। जो शामें पहले किताबों के साथ बीता करती थीं, वे अब कंप्यूटर की स्क्रीन पर गुजर जाती हैं। इस अकेलेपन और उपेक्षा के कारण किताबें बेचैन रहती हैं और उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है। वे जिन मूल्यों और इंसानी रिश्तों की बातें करती थीं, वे अब घरों में नजर नहीं आते। पन्ने पलटने पर जो एक सिसकी निकलती है, वह उनके दर्द को बयां करती है। शब्दों के अर्थ गिर गए हैं और वे बेजान लगते हैं। उँगली से पन्ना पलटने का जो स्वाद था, वह अब माउस के एक 'क्लिक' में खो गया है। किताबों को सीने पर रखकर लेटने, गोद में लेने और घुटनों को रिहल बनाकर पढ़ने का जो सुकून था, वह अब नहीं रहा। कवि को इस बात का दुःख है कि किताबों के बहाने जो रिश्ते बनते थे और उनमें जो सूखी यादें (फूल, रुक्के) मिलती थीं, वे शायद अब कभी नहीं मिलेंगे।
English: This poem poignantly portrays the changing relationship between humans and books. The poet, Gulzar, states that since the advent of computers, books have been locked away in cupboards, looking out longingly. Months go by without any interaction with them. The evenings that were once spent in the company of books are now spent on computer screens. Due to this loneliness and neglect, the books have become restless and have developed a habit of sleepwalking. The values and human relationships they used to talk about are no longer seen in homes. A sob escapes when a page is turned, expressing their pain. The meanings of words have fallen, and they seem lifeless. The distinct pleasure of turning a page with a finger is now lost in a single 'click' of the mouse. The comfort of lying down with a book on one's chest, holding it in the lap, or using one's knees as a bookstand is gone. The poet laments that the relationships that were formed on the pretext of books and the dried memories (flowers, letters) found within them will probably never be found again.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: कविता का केंद्रीय भाव कंप्यूटर युग में किताबों के प्रति बढ़ती अरुचि और उससे उत्पन्न दर्द को व्यक्त करना है। कवि ने पुस्तकों और मनुष्यों के बीच बढ़ती दूरी को बड़ी संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है। यह कविता किताबों के साथ हमारे पुराने, आत्मीय और भौतिक जुड़ाव को याद करती है और डिजिटल दुनिया के कारण उस जुड़ाव के टूटने पर गहरा दुःख व्यक्त करती है। यह केवल किताबों के बारे में नहीं, बल्कि उन मानवीय मूल्यों, रिश्तों और यादों के खो जाने का भी दर्द है जो किताबों से जुड़ी हुई थीं।
English: The central idea of the poem is to express the growing disinterest towards books in the computer age and the pain arising from it. The poet has presented the increasing distance between books and humans with great sensitivity. The poem reminisces about our old, intimate, and physical connection with books and expresses deep sorrow over the breaking of that bond due to the digital world. It is not just about books, but also about the pain of losing the human values, relationships, and memories that were associated with them.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
हसरत | कामना, इच्छा | निराशा, नाउम्मीदी |
सोहबत | संगत, साथ | अकेलापन, वियोग |
कदरें | मूल्य, मायने | अवमूल्यन |
राब्ता | संपर्क, संबंध | विच्छेद, अलगाव |
इल्म | ज्ञान, विद्या | अज्ञान |
जायका | स्वाद, लज्जत | बेस्वाद, फीकापन |
बेचैन | व्याकुल, अशांत | शांत, स्थिर |
मुलाकात | भेंट, मिलना | विदाई, बिछड़ना |
रिश्ता | संबंध, नाता | दुश्मनी, शत्रुता |
सूखा | शुष्क, नीरस | गीला, आर्द्र |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. किताबें झाँकती हैं... जो रिश्ते वो सुनाती थीं ।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि कंप्यूटर के आने के बाद किताबों की उपेक्षित अवस्था का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि किताबें बंद अलमारी के शीशों से बड़ी उम्मीद और इच्छा के साथ झाँकती हैं। वे उदास हैं क्योंकि अब महीनों तक उनसे कोई मिलने नहीं आता। जो शामें पहले उनकी संगत में बीता करती थीं, वे अब अक्सर कंप्यूटर के पर्दे पर ही गुजर जाती हैं। इस वजह से किताबें बहुत बेचैन रहती हैं और उन्हें अब नींद में चलने की आदत सी हो गई है। वे जिन मानवीय मूल्यों और रिश्तों की कहानियाँ सुनाती थीं, वे सब अब घर में दिखाई नहीं देते।
२. वह सारे उधड़े-उधड़े हैं,... कोई मानी नहीं उगते।
परिचय: यहाँ कवि किताबों की भावनात्मक और शाब्दिक दुर्दशा का चित्रण कर रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि किताबें जो रिश्ते-नातों की बात करती थीं, वे सभी अब बिखरे-बिखरे और टूटे हुए से हैं। अब अगर कोई किताब का एक पन्ना भी पलटता है तो पन्नों के गले से एक सिसकी सी निकल पड़ती है, मानो वे रो रही हों। कई शब्दों के अर्थ गिर चुके हैं, यानी वे अब महत्वहीन हो गए हैं। वे सारे शब्द बिना पत्तों वाले सूखे ठूँठ जैसे लगते हैं, जिन पर अब कोई नए अर्थ नहीं उगते।
३. जुबां पर जो जायका आता था... कट गया है।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि किताब पढ़ने के भौतिक अनुभव और कंप्यूटर के अनुभव की तुलना करते हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि पहले जब जीभ से लगाकर पन्ने पलटे जाते थे, तो उसका एक अलग ही स्वाद और अहसास होता था। अब तो बस उँगली से माउस 'क्लिक' करने भर से पलक झपकते ही पन्ना बदल जाता है। कंप्यूटर की स्क्रीन पर एक के बाद एक बहुत सारी चीजें परत-दर-परत खुलती चली जाती हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में किताबों के साथ जो हमारा एक गहरा और आत्मीय संपर्क था, वह अब पूरी तरह से खत्म हो गया है।
४. कभी सीने पे रख के लेट जाते थे... वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी।
परिचय: इस अंश में कवि किताबों के साथ बिताए आत्मीय पलों को याद कर रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि कभी हम किताबों को अपने सीने पर रखकर लेट जाया करते थे, तो कभी उन्हें अपनी गोद में ले लेते थे। कभी-कभी अपने घुटनों को किताब रखने वाले स्टैंड (रिहल) की तरह बनाकर, आधे झुके हुए सजदे की मुद्रा में पढ़ा करते थे और श्रद्धा से उसे माथे से छूते थे। कवि स्वीकार करते हैं कि वह सारा ज्ञान तो भविष्य में भी मिलता रहेगा (शायद डिजिटल माध्यम से)।
५. मगर वो जो किताबों में मिला करते थे... वो शायद अब नहीं होंगे !!
परिचय:अंतिम पंक्तियों में कवि उन चीजों के खो जाने का दुःख व्यक्त करते हैं जो सिर्फ किताबों से ही जुड़ी थीं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि ज्ञान तो भविष्य में भी मिलता रहेगा, लेकिन उन सूखी यादों का क्या होगा, जैसे किताबों के पन्नों में रखे सूखे फूल और किसी के द्वारा भेजे गए महकते हुए पत्र (रुक्के)। किताबों के गिरने और उठाने के बहाने जो नए-नए रिश्ते बन जाया करते थे, उनका क्या होगा? कवि आशंका व्यक्त करते हैं कि शायद वे अनमोल चीजें और वे खूबसूरत रिश्ते अब भविष्य में कभी नहीं होंगे।
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: शामें अब किताबों की सोहबत में कटती हैं।
उत्तर: गलत। कारण, कविता के अनुसार शामें अब 'कंप्यूटर के पर्दों पर' गुजर जाती हैं।
कथन २: किताबों को अब नींद में चलने की आदत हो गई है।
उत्तर: सही। कारण, कवि ने स्पष्ट रूप से कहा है, "उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है"।
कथन ३: किताबों से मनुष्य का संपर्क अब पहले से अधिक गहरा हो गया है।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है"।
कथन ४: कवि के अनुसार भविष्य में ज्ञान प्राप्त करना असंभव हो जाएगा।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी", अर्थात ज्ञान भविष्य में भी मिलता रहेगा।
कथन ५: किताबें गिरने-उठाने के बहाने नए रिश्ते बनते थे।
उत्तर: सही। कारण, कविता में उल्लेख है, "किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे"।
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: गुलजार
रचना का प्रकार: नई कविता (आधुनिक संवेदना को नए शिल्प में अभिव्यक्त करने वाली काव्यधारा)
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से। | इस पंक्ति में किताबों का मानवीकरण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है, जो उनकी बेबसी और अकेलेपन को दर्शाता है। | हमें अपनी भौतिक वस्तुओं, विशेषकर ज्ञान के स्रोतों का सम्मान करना चाहिए। |
गुजर जाती हैं 'कंप्यूटर के पर्दों पर'। | यह पंक्ति आज के डिजिटल युग की सच्चाई को सीधे और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है कि कैसे तकनीक ने हमारी आदतें बदल दी हैं। | तकनीक का उपयोग संतुलित होना चाहिए, ताकि वह हमारे जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर हावी न हो। |
कोई सफा पलटता तो इक सिसकी निकलती है। | यहाँ 'सिसकी' शब्द किताबों के दर्द को एक जीवंत और मार्मिक अनुभव बना देता है। यह दिखाता है कि उपेक्षा कितनी पीड़ादायक होती है। | हमें अपने पुराने साथियों (जैसे किताबें) को भूलना नहीं चाहिए, क्योंकि उनमें भावनाएँ और यादें बसी होती हैं। |
किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है। | यह पंक्ति सीधे तौर पर उस भावनात्मक और भौतिक संबंध के टूटने की घोषणा करती है जो पाठक का किताब से होता था। | डिजिटल संपर्क, भौतिक और आत्मीय संपर्क की जगह नहीं ले सकता। |
किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे। | जीवन में छोटी-छोटी और अनियोजित घटनाएँ भी खूबसूरत रिश्तों को जन्म दे सकती हैं, जिन्हें हमें खोना नहीं चाहिए। |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'ग्रंथ हमारे गुरु' इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: यह कथन बिल्कुल सत्य है कि 'ग्रंथ हमारे गुरु' हैं। जिस प्रकार एक गुरु हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है, उसी प्रकार ग्रंथ या किताबें भी हमारा मार्गदर्शन करती हैं। वे हमें इतिहास, विज्ञान, संस्कृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती हैं। किताबें बिना किसी भेदभाव के अपना ज्ञान सभी को प्रदान करती हैं। वे हमारी सबसे अच्छी मित्र होती हैं जो मुश्किल समय में हमें प्रेरणा और सही रास्ता दिखाती हैं। महान पुरुषों की जीवनियाँ हमें संघर्ष करने और सफल होने की प्रेरणा देती हैं। एक गुरु की तरह ही किताबें हमारे चरित्र का निर्माण करती हैं और हमें एक बेहतर इंसान बनाती हैं। इसलिए, हमें हमेशा किताबों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: ज्ञान, मार्गदर्शन, प्रेरणा, चरित्र-निर्माण, मित्र, संस्कृति, विज्ञान, अंधकार, प्रकाश, सम्मान।
प्रश्न २: कंप्यूटर के इस युग में किताबों को बचाने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
उत्तर: कंप्यूटर के युग में किताबों को बचाने के लिए मैं कई स्तरों पर प्रयास करूँगा। सबसे पहले, मैं स्वयं नियमित रूप से किताबें पढ़ने की आदत डालूँगा और अपने मित्रों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करूँगा। मैं अपने जन्मदिन पर उपहार के रूप में किताबें देने और लेने की परंपरा शुरू करूँगा। सोशल मीडिया पर मैं पढ़ी हुई किताबों के बारे में रोचक जानकारी और समीक्षाएं साझा करूँगा, ताकि अन्य लोगों में भी जिज्ञासा जगे। हम अपने क्षेत्र में एक छोटा 'बुक क्लब' या पुस्तकालय शुरू कर सकते हैं, जहाँ लोग आकर किताबें पढ़ सकें और उन पर चर्चा कर सकें। इसके अतिरिक्त, ई-बुक्स के साथ-साथ भौतिक किताबों के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा सकता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आदत, प्रोत्साहन, उपहार, बुक क्लब, पुस्तकालय, जागरूकता, समीक्षा, सोशल मीडिया, परंपरा, जिज्ञासा।
प्रश्न ३: क्या डिजिटल माध्यम (ई-बुक्स) कभी पारंपरिक किताबों की जगह पूरी तरह ले सकते हैं?
उत्तर: मेरे विचार में, डिजिटल माध्यम कभी भी पारंपरिक किताबों की जगह पूरी तरह से नहीं ले सकते। यद्यपि ई-बुक्स सुविधाजनक हैं, उन्हें कहीं भी ले जाना और स्टोर करना आसान है, लेकिन वे पारंपरिक किताबों से जुड़ा भावनात्मक और भौतिक अनुभव नहीं दे सकतीं। पन्नों को पलटने की अनुभूति, कागज की गंध, और किताब को हाथ में पकड़ने का सुकून एक अनूठा अहसास है। पारंपरिक किताबें आँखों के लिए भी कम तनावपूर्ण होती हैं। इसके अलावा, किताबों में रखे सूखे फूल या किसी के हाथ से लिखे नोट्स जैसी व्यक्तिगत यादें ई-बुक्स में संभव नहीं हैं। इसलिए, भले ही डिजिटल माध्यम लोकप्रिय हो जाए, पारंपरिक किताबें हमेशा अपना विशेष स्थान बनाए रखेंगी।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: भावनात्मक अनुभव, भौतिक सुकून, पन्नों की गंध, आँखों पर तनाव, व्यक्तिगत यादें, सुविधा, पारंपरिक, डिजिटल, अनूठा अहसास।
प्रश्न ४: कविता में वर्णित किताबों का दर्द आपको क्यों मार्मिक लगता है?
उत्तर: कविता में वर्णित किताबों का दर्द मुझे इसलिए मार्मिक लगता है क्योंकि कवि ने किताबों का मानवीकरण करके उन्हें एक जीवित प्राणी के रूप में प्रस्तुत किया है जो उपेक्षा और अकेलेपन का शिकार है। उनका अलमारी से हसरत से झाँकना, बेचैन रहना, और नींद में चलना यह सब दर्शाता है कि वे कितनी अकेली हो गई हैं। 'सफा पलटने पर सिसकी निकलना' यह कल्पना उनके गहरे दुःख को व्यक्त करती है। यह दर्द केवल किताबों का नहीं है, बल्कि उस पूरी संस्कृति और उन मानवीय संबंधों के खोने का दर्द है जो किताबों के इर्द-गिर्द पनपते थे। यह हमें याद दिलाता है कि हमने तकनीक की दौड़ में कितनी कीमती और भावनात्मक चीजें पीछे छोड़ दी हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानवीकरण, अकेलापन, उपेक्षा, बेचैनी, सिसकी, मानवीय संबंध, संस्कृति, भावनात्मक जुड़ाव, तकनीक, दर्द।
प्रश्न ५: आपके जीवन में आपकी सबसे प्रिय पुस्तक कौन-सी है और क्यों?
उत्तर: मेरे जीवन में मेरी सबसे प्रिय पुस्तक मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित 'गोदान' है। यह पुस्तक मुझे इसलिए प्रिय है क्योंकि यह केवल एक कहानी नहीं, बल्कि भारतीय किसान के जीवन का एक जीवंत दस्तावेज है। इसमें होरी नामक किसान के संघर्ष, उसकी इच्छाओं और समाज की कठोर सच्चाइयों का इतना यथार्थवादी चित्रण है कि यह मन को छू जाता है। इस पुस्तक ने मुझे सिखाया कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, हमें मानवीय मूल्यों और ईमानदारी को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इसने मुझे ग्रामीण भारत के समाज और उसकी समस्याओं को गहराई से समझने में मदद की। इस किताब के पात्र आज भी मेरे लिए जीवित हैं और समय-समय पर मुझे प्रेरणा देते हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: यथार्थवादी चित्रण, संघर्ष, मानवीय मूल्य, ईमानदारी, प्रेरणा, ग्रामीण समाज, जीवंत दस्तावेज, कठिनाइयाँ, पात्र।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: कविता के आधार पर किताबों की वर्तमान और अतीत की स्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर: कविता के अनुसार, किताबों की अतीत और वर्तमान स्थिति में बहुत बड़ा अंतर आ गया है।
अतीत की स्थिति: पहले शामें किताबों की संगत में कटती थीं। लोग किताबों को सीने पर रखकर, गोद में लेकर या घुटनों पर रखकर बड़े चाव से पढ़ते थे। किताबों के पन्ने पलटने का एक अलग ही अहसास और स्वाद था। किताबों के बहाने नए-नए रिश्ते बनते थे और उनमें यादगार चीजें (सूखे फूल, पत्र) सँजोकर रखी जाती थीं।
वर्तमान स्थिति: अब कंप्यूटर के कारण किताबें बंद अलमारियों में कैद हो गई हैं और महीनों तक उन्हें कोई नहीं छूता। शामें कंप्यूटर की स्क्रीन पर बीतती हैं। वे उपेक्षित, बेचैन और अकेली हैं। उनके शब्द अर्थहीन और सूखे ठूँठ जैसे लगते हैं और उनके साथ का भावनात्मक रिश्ता (राब्ता) लगभग टूट गया है।
प्रश्न २: 'किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि कंप्यूटर और डिजिटल तकनीक के आने से मनुष्य का किताबों के साथ जो व्यक्तिगत, गहरा और आत्मीय संबंध था, वह अब समाप्त हो गया है। 'राब्ता' एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है 'संपर्क' या 'संबंध'। यह केवल भौतिक संपर्क नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव को भी दर्शाता है। पहले पाठक किताबों को छूते थे, उनके पन्नों की सुगंध महसूस करते थे और उन्हें अपने शरीर के करीब रखते थे। यह एक बहुत ही निजी और सुकून देने वाला अनुभव था। अब जानकारी तो कंप्यूटर पर एक क्लिक से मिल जाती है, लेकिन वह गहरा और आत्मीय रिश्ता खत्म हो गया है, जिससे एक खालीपन आ गया है।
प्रश्न ३: कवि के अनुसार वे कौन-सी चीजें हैं जो ज्ञान के अलावा किताबों से मिलती थीं और अब शायद नहीं मिलेंगी?
उत्तर: कवि के अनुसार, ज्ञान तो भविष्य में भी अन्य माध्यमों से मिलता रहेगा, लेकिन किताबों से कुछ ऐसी अनमोल चीजें मिलती थीं जो अब शायद नहीं मिलेंगी। वे चीजें हैं:
सूखे फूल और महके हुए रुक्के: लोग अक्सर याद के तौर पर किताबों के पन्नों में फूल या किसी प्रिय का पत्र (रुक्का) रख देते थे, जो बाद में एक खूबसूरत याद बन जाते थे।
बनते हुए रिश्ते: कभी-कभी अनजाने में किताबें गिरने और फिर उन्हें उठाने-देने के बहाने लोगों के बीच एक नया रिश्ता या परिचय बन जाता था।
शारीरिक और भावनात्मक सुकून: किताबों को सीने पर या गोद में रखकर पढ़ने का जो शारीरिक और भावनात्मक सुकून था, वह अब खो गया है।
प्रश्न ४: कवि ने किताबों की तुलना 'बिना पत्तों के सूखे-टुंड' से क्यों की है?
उत्तर: कवि ने किताबों में लिखे शब्दों (अल्फाज) की तुलना 'बिना पत्तों के सूखे-टुंड' (सूखे ठूँठ) से की है क्योंकि अब उनके अर्थ महत्वहीन हो गए हैं। जिस प्रकार एक सूखा ठूँठ बेजान और निर्जीव होता है, जिस पर नए पत्ते या फल नहीं उगते, उसी प्रकार आज के डिजिटल युग में किताबों के शब्द भी लोगों के लिए बेजान और प्रभावहीन हो गए हैं। कंप्यूटर पर जानकारी इतनी तेजी से आती-जाती है कि लोग शब्दों के गहरे अर्थ पर मनन नहीं करते। इस उपेक्षा के कारण शब्दों ने अपना जीवंत अर्थ खो दिया है और वे बस एक निर्जीव ठूँठ की तरह प्रतीत होते हैं, जिनसे अब कोई नई भावना या विचार उत्पन्न नहीं होता।
प्रश्न ५: कविता में वर्णित उन क्रियाओं का उल्लेख कीजिए जिनसे किताबों के प्रति आत्मीयता प्रकट होती है।
उत्तर: कविता में निम्नलिखित क्रियाओं का उल्लेख है जिनसे किताबों के प्रति आत्मीयता प्रकट होती है:
किताबों को सीने पर रखकर लेटना।
किताबों को अपनी गोद में लेना।
अपने घुटनों को रिहल (किताब रखने का स्टैंड) की तरह बनाकर पढ़ना।
आधे सजदे में झुककर किताब को पढ़ना और उसे श्रद्धा से माथे से छूना।
जुबान से पन्ने पलटने का स्वाद लेना।
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