2.1 - पंपासर - Pampasar - Class 8 - Sugambharati
- Sep 28
- 9 min read
Updated: Oct 5

पाठ का प्रकार: पद्य (खंडकाव्य का अंश) पाठ का शीर्षक: पंपासर लेखक/कवि का नाम: नरेश मेहता
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: प्रस्तुत पद्यांश कवि नरेश मेहता के खंडकाव्य 'शबरी' से लिया गया है। इसमें शबरी द्वारा पंपा सरोवर के पास देखे गए प्रातःकाल के दृश्य का अत्यंत मनोरम वर्णन है। शबरी देखती है कि पंपासर के पास ऋषि-मुनियों के आश्रम हैं, जहाँ सुबह होते ही सभी स्नान-ध्यान और यज्ञ की तैयारी में लगे हैं। छोटे-छोटे बटुक जन हवन के लिए लकड़ियाँ बीन रहे हैं, तो कोई क्यारियों की देखभाल कर रहा है। गीले आँगन में हरिणों के खुरों के निशान हैं और आम की डालों पर तोते चीख रहे हैं। ऋषिकन्याएँ सरोवर से जल भर रही हैं। यज्ञ की वेदियाँ सुलग चुकी हैं और वेदपाठ की ध्वनि गूँज रही है। चारों ओर हरियाली, विशाल वट वृक्ष, नाचता हुआ मोर और खिले हुए फूल प्रकृति की शोभा बढ़ा रहे हैं। यह संपूर्ण दृश्य अत्यंत दिव्य, भव्य और शांतिपूर्ण है।
English: This poetic excerpt is taken from the poet Naresh Mehta's khandakavya (a long narrative poem) 'Shabari'. It contains a very picturesque description of the morning scene near the Pampa lake as witnessed by Shabari. Shabari sees that there are ashrams of sages near Pampasar, where at the break of dawn, everyone is engaged in bathing, meditation, and preparations for the yajna (sacrificial ritual). Young students (batuk jan) are gathering firewood for the ritual, while others are tending to the flowerbeds. The marks of deer hooves are visible in the wet courtyard, and parrots are chirping on the mango branches. The daughters of the sages are fetching water from the lake. The sacrificial altars are lit, and the sound of Vedic chants is echoing. The surrounding greenery, a giant banyan tree, a dancing peacock, and blooming flowers enhance the beauty of nature. The entire scene is extremely divine, grand, and peaceful.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव प्राचीन भारतीय आश्रम-जीवन और प्रकृति के सामंजस्यपूर्ण सौंदर्य का चित्रण करना है। कवि एक ऐसे पवित्र और शांत वातावरण का सजीव चित्र प्रस्तुत करना चाहते हैं, जहाँ मनुष्य, पशु-पक्षी और प्रकृति, सभी एक लय में बंधे हुए हैं। यज्ञ, वेदपाठ जैसी आध्यात्मिक क्रियाओं के साथ-साथ गायों का रँभाना, मोरों का नाचना और फूलों का खिलना, यह सब मिलकर एक दिव्य और भव्य दृश्य का निर्माण करते हैं। यह कविता हमें प्रकृति के करीब एक सात्विक, शांत और आध्यात्मिक जीवन की सुंदरता का एहसास कराती है।
English: The central theme of this poem is to depict the harmonious beauty of ancient Indian ashram life and nature. The poet aims to present a vivid picture of a sacred and peaceful environment where humans, animals, birds, and nature are all bound in a single rhythm. Spiritual activities like yajna and Vedic chanting, along with the lowing of cows, the dancing of peacocks, and the blooming of flowers, together create a divine and grand scene. This poem makes us realize the beauty of a pious, serene, and spiritual life lived close to nature.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
बटुक जन | छोटे बच्चे, ब्रह्मचारी | वृद्ध, वयस्क |
रत | व्यस्त, लीन | निवृत्त, खाली |
रँभाना | गाय का बोलना | - |
कलशी | छोटा कलश, गगरी | - |
दिव्य | अलौकिक, दैवीय | लौकिक, सांसारिक |
हरीतिमा | हरियाली | सूखा, मरुभूमि |
विराट | विशाल, बहुत बड़ा | लघु, छोटा |
विजन | निर्जन, एकांत | कोलाहलपूर्ण, भीड़-भाड़ |
तन्मय | मग्न, लीन | विचलित, অমনোযোগী |
भ्रमर | भौंरा, मधुप | - |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. शाल और सागौन वनों को...तीर्थरूप हैं आश्रम।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि शबरी की पंपासर तक की यात्रा और वहाँ के आश्रमों का परिचय दे रहे हैं। सरल अर्थ: शाल और सागौन के वनों को पार करके शबरी उस स्थान पर पहुँची, जिसका नाम उसने सुन रखा था - पंपासर। पंपा सरोवर के पास बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के आश्रम हैं, जो ज्ञान, ध्यान, तप और आराधना के कारण तीर्थस्थलों के समान पवित्र हैं।
२. प्रातःकाल हुआ ही था...रँभा रही थीं कोई।
परिचय: कवि यहाँ सुबह-सुबह आश्रम में होने वाली गतिविधियों का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: सुबह का समय था और सभी लोग स्नान और ध्यान में व्यस्त थे। छोटे-छोटे ब्रह्मचारी यज्ञ के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा कर रहे थे। कोई आश्रम की क्यारियों को ठीक कर रहा था, तो कोई उनमें पानी डाल रहा था। सभी गायें दुही जा चुकी थीं और कुछ गायें रँभा रही थीं।
३. गीले आँगन में हरिणों के...धुले चरण घर चलतीं।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि आश्रम के आँगन और सरोवर के पास के दृश्य का चित्रण कर रहे हैं। सरल अर्थ: आश्रम के गीले आँगन में हरिणों के खुरों के निशान बने हुए थे और आम के पेड़ की डाल पर बैठकर तोते शोर मचा रहे थे। ऋषि-मुनियों की कन्याएँ पानी के घड़े लेकर तालाब पर आ-जा रही थीं और भीगे हुए एक वस्त्र में अपने धुले हुए पैरों से घर की ओर चल रही थीं।
४. यज्ञ वेदियाँ सुलग चुकी थीं...फैलाए वृद्ध जटाएँ।
परिचय: कवि यहाँ आश्रम के आध्यात्मिक और प्राकृतिक वातावरण का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: यज्ञ की वेदियाँ जल चुकी थीं और वेद-मंत्रों का पाठ जारी था। यहाँ की शांति बहुत ही दिव्य और भव्य थी। चारों ओर विशाल हरियाली फैली हुई थी और रास्ते सुंदर लग रहे थे। एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ अपनी बूढ़ी जटाओं को फैलाए हुए खड़ा था।
५. दूर किसी एकांत विजन में...सभी रस भूले। परिचय: इन अंतिम पंक्तियों में कवि प्रकृति के अन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: दूर किसी शांत और निर्जन स्थान पर एक मोरनी तन्मय होकर अपने प्रिय मोर के सुंदर और रसमय नृत्य को देख रही थी। हरसिंगार, चंपा, कनेर और केले के पेड़ों पर फूल खिले हुए थे, और भौंरे रस पीने के लिए अपनी सुध-बुध भूलकर कमलों पर टूट पड़ रहे थे।
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: पंपासर में ऋषि-मुनियों के आश्रम थे। उत्तर: सही। कारण, कविता में कहा गया है, "पंपासर में बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के हैं आश्रम।"
कथन २: बटुक जन यज्ञ के लिए फल बीन रहे थे।
उत्तर: गलत। कारण, वे "यज्ञ आदि के लिए...लकड़ी बीन रहे थे।"
कथन ३: आश्रम का वातावरण बहुत कोलाहलपूर्ण और अशांत था।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "कितनी दिव्य और भव्य थी, शांति यहाँ की सारी।"
कथन ४: ऋषिकन्याएँ सरोवर से दूध लेकर आ रही थीं।
उत्तर: गलत। कारण, वे "जलकलशी ले ऋषिकन्याएँ, पोखर आतीं जातीं," अर्थात वे जल लेकर आ रही थीं।
कथन ५: भ्रमर रस पीने के लिए हरसिंगार के फूलों पर टूट पड़ रहे थे। उत्तर: गलत। कारण, कविता के अनुसार, "कमलों पर टूटे पड़ते थे भ्रमर सभी रस भूले।"
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: नरेश मेहता रचना का प्रकार: खंडकाव्य का अंश
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
ज्ञान-व्यान, तप-आराधन के तीर्थरूप हैं आश्रम। | यह पंक्ति आश्रम के महत्व को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि सच्चा तीर्थ बाहरी आडंबर में नहीं, बल्कि ज्ञान और तप में है। | हमें ज्ञान और साधना को तीर्थ यात्रा के समान महत्व देना चाहिए। |
गीले आँगन में हरिणों के, खुर उभरे पड़ते थे। | यह पंक्ति एक बहुत ही शांत और सुरम्य सुबह का चित्र आँखों के सामने ला देती है। यह दिखाती है कि आश्रम में मनुष्य और पशु कितने करीब थे। | मनुष्य को प्रकृति और अन्य जीवों के साथ सामंजस्य बनाकर रहना चाहिए। |
यज्ञ वेदियाँ सुलग चुकी थीं, वेदपाठ था जारी। | यह पंक्ति कानों में वेद-मंत्रों की ध्वनि और आँखों के सामने यज्ञ की पवित्र अग्नि का दृश्य जीवंत कर देती है, जिससे मन में श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है। | आध्यात्मिक क्रियाएँ वातावरण को पवित्र और शांत बनाती हैं। |
था विराट वट वृक्ष खड़ा, फैलाए वृद्ध जटाएँ। | यह पंक्ति एक विशाल बरगद के पेड़ का मानवीकरण करती है, उसे एक बूढ़े तपस्वी की तरह प्रस्तुत करती है। यह प्रकृति की महानता को दर्शाती है। | प्रकृति के पुराने और विशाल वृक्ष पूजनीय और सम्मान के योग्य हैं। |
कमलों पर टूटे पड़ते थे भ्रमर सभी रस भूले। | 'रस भूले' वाक्यांश बहुत सुंदर है। यह दिखाता है कि भौंरे कमल के रस में इतने मग्न थे कि उन्हें बाकी दुनिया की सुध ही नहीं रही। | हमें अपने काम में पूरी लगन और तन्मयता से डूब जाना चाहिए। |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'वृक्ष महान दाता हैं', स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह कथन पूर्णतया सत्य है कि वृक्ष महान दाता हैं। वे हमें बिना किसी भेदभाव के अपना सब कुछ दान कर देते हैं। वे हमें जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन, खाने के लिए स्वादिष्ट फल, जलाने के लिए लकड़ी, फर्नीचर के लिए इमारती लकड़ी और गर्मी में शीतल छाया देते हैं। वे पक्षियों को घर और थके हुए राहगीरों को विश्राम स्थल प्रदान करते हैं। वे बदले में हमसे कुछ भी नहीं माँगते। उनका पूरा जीवन परोपकार के लिए ही होता है। इसलिए, वृक्षों को महान दाता कहना बिल्कुल उचित है और हमें उनका संरक्षण करना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: महान दाता, ऑक्सीजन, फल, लकड़ी, छाया, परोपकार, संरक्षण, निस्वार्थ सेवा।
प्रश्न २: कविता में वर्णित आश्रम के प्रातःकाल का दृश्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: कविता में वर्णित आश्रम का प्रातःकाल का दृश्य बहुत ही शांत, पवित्र और सुंदर है। सुबह होते ही ऋषि-मुनि और उनके शिष्य स्नान-ध्यान में लग जाते हैं। ब्रह्मचारी यज्ञ के लिए लकड़ियाँ ला रहे हैं। आश्रम की वाटिका में कोई क्यारी बना रहा है, कोई पौधों को सींच रहा है। गायें दुही जा चुकी हैं। गीले आँगन में हिरणों के पैरों के निशान हैं। ऋषिकन्याएँ तालाब से पानी के घड़े भर कर ला रही हैं। चारों ओर से वेद-मंत्रों की मधुर ध्वनि आ रही है और यज्ञ की पवित्र अग्नि जल रही है। यह दृश्य मन को शांति और आनंद से भर देता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: शांत, पवित्र, सुंदर, स्नान-ध्यान, यज्ञ, वेद-मंत्र, हरियाली, शांति, आनंद।
प्रश्न ३: कविता में आपको प्रकृति का कौन-सा दृश्य सबसे अधिक आकर्षित करता है और क्यों?
उत्तर: कविता में मुझे उस मयूरी का दृश्य सबसे अधिक आकर्षित करता है जो एकांत में तन्मय होकर अपने प्रिय मोर के रसमय नृत्य को देख रही है। यह दृश्य प्रकृति के प्रेम और सौंदर्य को बहुत ही काव्यात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है। यह दिखाता है कि प्रेम और आनंद की अनुभूति केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पशु-पक्षी भी इसे उतनी ही गहराई से महसूस करते हैं। यह एक बहुत ही शांत, निजी और सुंदर क्षण है जो प्रकृति के रोमांटिक पहलू को उजागर करता है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आकर्षित, मयूरी, मोर नृत्य, प्रेम, सौंदर्य, काव्यात्मक, आनंद, रोमांटिक।
प्रश्न ४: 'तालाब की आत्मकथा' विषय पर निबंध लिखिए।
उत्तर: मैं एक पुराना तालाब हूँ। मेरा जन्म गाँव के लोगों ने मिलकर किया था ताकि उनकी पानी की जरूरतें पूरी हो सकें। मेरे किनारे पर बच्चे खेलते थे, महिलाएँ कपड़े धोती थीं और अपने सुख-दुख की बातें करती थीं। पशु-पक्षी मेरे जल से अपनी प्यास बुझाते थे। गर्मियों में मेरा जल स्तर कम हो जाता था, लेकिन बारिश आते ही मैं फिर से लबालब भर जाता था। मेरे अंदर कमल खिलते थे और मछलियाँ तैरती थीं। मैं पूरे गाँव के जीवन का केंद्र था। लेकिन अब समय बदल गया है। गाँव में नल लग गए हैं और लोग मेरे पास कम आते हैं। वे मुझमें कूड़ा-कचरा फेंक देते हैं, जिससे मेरा जल प्रदूषित हो गया है। मैं आज भी उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब लोग फिर से मेरे महत्व को समझेंगे और मुझे साफ करके मेरा पुराना गौरव लौटाएँगे।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आत्मकथा, तालाब, जीवन का केंद्र, जरूरतें, प्रदूषण, पुराना गौरव, प्रतीक्षा, महत्व।
प्रश्न ५: कविता में 'तीर्थरूप हैं आश्रम' क्यों कहा गया है? उत्तर: कविता में आश्रमों को 'तीर्थरूप' इसलिए कहा गया है क्योंकि वे ज्ञान, ध्यान, तप और आराधना के केंद्र हैं। जिस प्रकार लोग तीर्थस्थलों पर जाकर आध्यात्मिक शांति और पुण्य प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार इन आश्रमों में रहकर ऋषि-मुनि और उनके शिष्य ज्ञान और तपस्या के माध्यम से आत्मिक उन्नति और ईश्वर की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। ये आश्रम केवल रहने के स्थान नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता और उच्च ज्ञान के पवित्र स्थल हैं, जहाँ का वातावरण ही तीर्थ के समान पवित्र और शांतिदायक है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: तीर्थरूप, ज्ञान, ध्यान, तप, आराधना, आध्यात्मिक शांति, आत्मिक उन्नति, पवित्र स्थल।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: पद्य में प्रयुक्त वृक्षों और पुष्पों के नाम लिखिए। उत्तर:
वृक्ष: शाल, सागौन, आम, वट वृक्ष, कदली (केला)
पुष्प: हरसिंगार, चंपा, कनेर, कमल
प्रश्न २: पंपासर में प्रातःकाल कौन क्या कर रहा था? उत्तर: पंपासर में प्रातःकाल:
सभी लोग: स्नान-ध्यान में व्यस्त थे।
बटुक जन: यज्ञ के लिए लकड़ी बीन रहे थे।
कोई: क्यारी छाँट रहा था, तो कोई जल सींच रहा था।
ऋषिकन्याएँ: पोखर से जलकलशी ले जा रही थीं।
प्रश्न ३: एक शब्द में उत्तर लिखो:
१. पंपा सरोवर का नाम जिसने सुना है - शबरी
२. जलकलशी ले जाने वाली - ऋषिकन्याएँ
प्रश्न ४: कविता की किन्हीं चार पंक्तियों का भावार्थ लिखो।
पंक्तियाँ: "यज्ञ वेदियाँ सुलग चुकी थीं, वेदपाठ था जारी, कितनी दिव्य और भव्य थी, शांति यहाँ की सारी। थी विशाल कितनी हरीतिमा, शोभित थीं पगवाटें, था विराट वट वृक्ष खड़ा, फैलाए वृद्ध जटाएँ।"
भावार्थ: कवि कहते हैं कि आश्रम में यज्ञ की वेदियाँ जल चुकी थीं और वेद-मंत्रों का पाठ निरंतर चल रहा था। वहाँ का शांत वातावरण अत्यंत दिव्य और भव्य लग रहा था। चारों ओर विशाल हरियाली फैली हुई थी, जिससे पगडंडियाँ भी सुशोभित हो रही थीं। वहाँ एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ अपनी बूढ़ी जटाओं को फैलाए हुए किसी तपस्वी की भाँति खड़ा था।
प्रश्न ५: आश्रम के वातावरण को 'दिव्य और भव्य' क्यों कहा गया है? उत्तर: आश्रम के वातावरण को 'दिव्य और भव्य' इसलिए कहा गया है क्योंकि वहाँ का पूरा माहौल आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण था। एक ओर यज्ञ की वेदियों से उठता धुआँ और वेदपाठ की पवित्र ध्वनियाँ वातावरण को 'दिव्य' बना रही थीं, तो दूसरी ओर विशाल हरियाली, सुंदर पगडंडियाँ और विराट वट वृक्ष उसे 'भव्य' रूप प्रदान कर रहे थे। यह मनुष्य और प्रकृति के पवित्र मिलन का दृश्य था।
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