2.7 - सम्मेलन अंगों का - Sammelan Angon ka - Class 8 - Sugambharati
- Oct 3
- 8 min read
Updated: Oct 9

पाठ का प्रकार: गद्य (एकांकी) पाठ का शीर्षक: सम्मेलन अंगों का लेखक/कवि का नाम: श्रीप्रसाद
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: 'सम्मेलन अंगों का' एक मनोरंजक एकांकी है, जिसमें शरीर के विभिन्न अंग—हाथ, पैर, आँख, कान, नाक, जीभ, पेट और चेहरा—एक सम्मेलन आयोजित करते हैं। इस सम्मेलन का उद्देश्य यह तय करना है कि उनमें से सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कौन है। हर अंग मंच पर आकर अपने-अपने कार्यों का बखान करता है और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करता है। हाथ दुनिया बनाने का दावा करता है, तो पैर मनुष्य को हर जगह पहुँचाने का। आँख सुंदरता दिखाने का श्रेय लेती है, तो कान संगीत सुनाने का। यह आपसी बड़ाई जल्द ही एक झगड़े का रूप ले लेती है, जहाँ हर कोई "मैं बड़ा हूँ" का नारा लगाने लगता है। अंत में, सूत्रधार आकर इस विवाद को शांत करता है और यह महत्वपूर्ण संदेश देता है कि अंगों में कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है; उनका बड़प्पन आपसी सहयोग में ही निहित है, क्योंकि सबके मिलकर काम करने से ही शरीर सुचारु रूप से चलता है।
English: 'Sammelan Angon ka' is an entertaining one-act play in which various parts of the body—Hand, Foot, Eye, Ear, Nose, Tongue, Stomach, and Face—organize a conference. The purpose of this conference is to decide who among them is the greatest and most important. Each organ comes forward to boast about its functions and tries to prove itself the best. The Hand claims to have created the world, while the Foot takes credit for taking man everywhere. The Eye takes credit for showing beauty, and the Ear for making music heard. This self-praise soon turns into a quarrel, where everyone starts shouting, "I am the greatest." In the end, the narrator intervenes, resolves the dispute, and gives the important message that no organ is big or small; their greatness lies in their mutual cooperation, as the body functions smoothly only when they all work together.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस एकांकी का केंद्रीय भाव आपसी सहयोग और सामंजस्य के महत्व को समझाना है। लेखक ने शरीर के अंगों के रूपक का प्रयोग करके यह संदेश दिया है कि किसी भी संगठन या समाज की सफलता उसके अलग-अलग सदस्यों की व्यक्तिगत श्रेष्ठता पर नहीं, बल्कि उनके एकजुट होकर काम करने पर निर्भर करती है। जिस प्रकार शरीर का कोई भी अंग अकेले महत्वपूर्ण नहीं हो सकता, उसी प्रकार समाज का कोई भी वर्ग या व्यक्ति अकेले समाज को नहीं चला सकता। कहानी का निहितार्थ यह है कि समाज की उन्नति सभी वर्गों के आपसी सहयोग से ही संभव है, और हमें किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए।
English: The central theme of this one-act play is to explain the importance of mutual cooperation and harmony. Using the metaphor of body parts, the author gives the message that the success of any organization or society depends not on the individual greatness of its members, but on their ability to work together as a unit. Just as no single organ of the body can be important on its own, no single class or individual can run a society alone. The implied meaning of the story is that the progress of society is possible only through the mutual cooperation of all its sections, and we should not consider anyone big or small.
पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)
हाथ, पैर, आँख, कान, नाक, जीभ, पेट, चेहरा (सभी अंग):
हिन्दी:
अहंकारी: हर अंग को लगता है कि वह सबसे महत्वपूर्ण है और वह स्वयं अपनी प्रशंसा करता है (अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनता है)।
अपने काम में निपुण: सभी अंग अपने-अपने कार्यों का सटीक वर्णन करते हैं, जो उनके महत्व को दर्शाता है।
स्वार्थी: शुरुआत में वे केवल अपने महत्व को स्थापित करना चाहते हैं और दूसरों के योगदान को नजरअंदाज करते हैं।
English:
Arrogant: Every organ feels that it is the most important and indulges in self-praise.
Skilled in their work: All organs accurately describe their functions, which shows their importance.
Selfish: Initially, they only want to establish their own importance and ignore the contributions of others.
सूत्रधार (Narrator):
हिन्दी:
बुद्धिमान और निष्पक्ष: वह अंगों के विवाद को देखता है और अंत में एक निष्पक्ष और बुद्धिमानी भरा समाधान प्रस्तुत करता है।
मार्गदर्शक: वह कहानी का सार समझाता है और आपसी सहयोग का महत्वपूर्ण संदेश देता है।
English:
Wise and Impartial: He observes the dispute among the organs and, in the end, presents an impartial and wise solution.
A Guide: He explains the moral of the story and gives the important message of mutual cooperation.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
सम्मेलन | सभा, अधिवेशन | - |
बेढंग | अव्यवस्थित, कुरूप | सुव्यवस्थित, सुंदर |
बखान | वर्णन, प्रशंसा | निंदा, बुराई |
श्रेष्ठ | उत्तम, सर्वोपरि | निम्न, अधम |
दुलारे | प्यारे, प्रिय | - |
आनाकानी | टालमटोल, हीला-हवाली | स्वीकृति |
रागिनी | गीत, धुन | - |
तौलना | नापना, मूल्यांकन करना | - |
बुद्धराम | मूर्ख, बेवकूफ | बुद्धिमान, चतुर |
सहयोग | साथ देना, मदद | असहयोग |
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: अंगों के सम्मेलन में पेट को अध्यक्ष बनाया गया।
उत्तर: गलत। कारण, हाथ ने कहा, "अध्यक्ष कोई नहीं होगा। कौन है बड़ा जो अध्यक्ष बने?"
कथन २: पैर ने दावा किया कि उसी ने सुंदर दुनिया बनाई है।
उत्तर: गलत। कारण, यह दावा हाथ ने किया था: "यह सुंदर-सी सारी दुनिया किसने कहो बनाई?"
कथन ३: नाक का काम खुशबू और बदबू में भेद करना है।
उत्तर: सही। कारण, नाक कहती है, "मैं ही खुशबू और बदबू का भेद करती हूँ।"
कथन ४: पेट ने तर्क दिया कि उसी के कारण शरीर को बल मिलता है।
उत्तर: सही। कारण, पेट कहता है, "उसे पचाने से शरीर को बल मिलता है और उसी बल पर...सब उछलते हैं।"
कथन ५: अंत में, जीभ को सबसे बड़ा अंग माना गया। उत्तर: गलत। कारण, अंत में सूत्रधार ने बताया कि "अंगों में बड़ा-छोटा कोई नहीं है...बड़प्पन आपसी सहयोग में है।"
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: सूत्रधार के अनुसार, अंगों का बड़प्पन आपसी सहयोग में है। इस सिद्धांत को आप अपने कक्षा के संदर्भ में कैसे लागू करेंगे?
उत्तर: इस सिद्धांत को हम अपनी कक्षा में पूरी तरह लागू कर सकते हैं। कक्षा भी एक शरीर की तरह है और हम विद्यार्थी उसके अंग हैं। कोई पढ़ाई में अच्छा है, कोई खेल में, कोई चित्रकला में, तो कोई अनुशासन बनाए रखने में। यदि हम सब अपनी-अपनी श्रेष्ठता साबित करने में लग जाएँगे, तो कक्षा का माहौल खराब हो जाएगा। लेकिन यदि हम एक-दूसरे का सहयोग करें—एक होशियार विद्यार्थी कमजोर की मदद करे, एक अच्छा खिलाड़ी दूसरों को प्रेरित करे—तो पूरी कक्षा एक साथ प्रगति करेगी। कक्षा की सफलता किसी एक विद्यार्थी से नहीं, बल्कि हम सबके आपसी सहयोग से ही संभव है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आपसी सहयोग, कक्षा, प्रगति, टीम वर्क, मदद, एक-दूसरे का सम्मान, सामूहिक सफलता।
प्रश्न २: हर अंग 'अपने मुँह मियाँ मिट्ठू' बन रहा था। स्वयं अपनी प्रशंसा करने की आदत अच्छी क्यों नहीं है? उत्तर: स्वयं अपनी प्रशंसा करने की आदत अच्छी नहीं है क्योंकि इससे व्यक्ति अहंकारी और आत्म-केंद्रित हो जाता है। जब हम अपनी ही बड़ाई करते रहते हैं, तो हम दूसरों के योगदान को देखना बंद कर देते हैं और अपनी कमियों को भी नहीं पहचान पाते। सच्ची प्रशंसा वह होती है जो दूसरे हमारे काम को देखकर करें। यदि हमारे काम में वास्तव में गुणवत्ता है, तो लोगों का ध्यान उस पर अपने आप जाएगा और हमें अपनी प्रशंसा करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अपनी प्रशंसा स्वयं करना 'अंधों में काना राजा' बनने जैसा है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अहंकार, आत्म-केंद्रित, दूसरों का योगदान, कमियों को पहचानना, सच्ची प्रशंसा, गुणवत्ता।
प्रश्न ३: यह एकांकी एक रूपक है। शरीर के अंगों के माध्यम से समाज के किन लोगों की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर: यह एकांकी एक सुंदर रूपक है। इसमें शरीर के अंगों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों और पेशों के लोगों की ओर संकेत किया गया है। जैसे हाथ-पैर श्रमिक वर्ग के प्रतीक हैं जो निर्माण और गति का कार्य करते हैं। आँखें और कान बुद्धिजीवी और कलाकार वर्ग के प्रतीक हैं जो समाज को दिशा और सौंदर्य बोध देते हैं। पेट उत्पादक वर्ग (किसान, उद्योगपति) का प्रतीक है जो सबको ऊर्जा प्रदान करता है। जीभ नेताओं और वक्ताओं का प्रतीक है। कहानी यह संदेश देती है कि समाज तभी सुचारु रूप से चल सकता है जब ये सभी वर्ग अहंकार छोड़कर एक-दूसरे का सम्मान करें और सहयोग करें।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: रूपक, समाज के वर्ग, श्रमिक, बुद्धिजीवी, उत्पादक, नेता, सहयोग, सम्मान, सामाजिक समरसता।
प्रश्न ४: पेट ने कहा, "एक दिन मैं खाना न पचाऊँ, तो सब टें बोल जाएँ।" इस कथन का क्या महत्व है?
उत्तर: इस कथन का बहुत महत्व है क्योंकि यह शरीर के सभी अंगों की एक-दूसरे पर निर्भरता को दर्शाता है। पेट यह बताना चाहता है कि भले ही हाथ, पैर, आँखें और अन्य अंग कितने भी महत्वपूर्ण क्यों न लगें, लेकिन उन सबको काम करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो भोजन पचाने के बाद ही मिलती है। यदि पेट अपना काम बंद कर दे, तो बाकी सभी अंग निष्क्रिय हो जाएँगे। यह हमें सिखाता है कि किसी भी संगठन में कुछ कार्य पर्दे के पीछे होते हैं लेकिन वे उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितने सामने दिखने वाले कार्य। हमें सभी के योगदान का सम्मान करना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: निर्भरता, ऊर्जा, निष्क्रिय, पर्दे के पीछे का कार्य, महत्वपूर्ण योगदान, सम्मान।
प्रश्न ५: यदि इस सम्मेलन में 'मस्तिष्क' को भी बुलाया जाता, तो वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए क्या तर्क देता? उत्तर: यदि इस सम्मेलन में 'मस्तिष्क' को भी बुलाया जाता, तो वह शायद कहता, "मित्रो, आप सब अपने-अपने कार्यों का बखान कर रहे हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है कि इन सभी कार्यों को करने का निर्देश और सोचने-समझने की शक्ति कौन देता है? हाथ क्या बनाएगा, पैर कहाँ चलेगा, आँखें क्या देखेंगी और जीभ क्या बोलेगी, इस सब का निर्णय मैं ही करता हूँ। मैं ही शरीर का संचालक और नियंत्रक हूँ। मेरे बिना आप सब दिशाहीन और निष्क्रिय हैं। इसलिए, सबसे बड़ा मैं ही हूँ।" हालांकि, कहानी के अंत के अनुसार, मस्तिष्क को भी यह समझना पड़ता कि वह भी पेट से मिलने वाली ऊर्जा और अन्य अंगों के सहयोग के बिना कुछ नहीं कर सकता। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मस्तिष्क, निर्देश, सोचने-समझने की शक्ति, निर्णय, संचालक, नियंत्रक, दिशाहीन, सहयोग।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: लिखो, किसने कहा है:
(क) "अध्यक्ष कोई नहीं होगा।": हाथ ने
(ख) "पर यह सम्मेलन हो क्यों रहा है?": पेट ने
(ग) "चुप रहिए, आप बड़े नहीं हैं।": पैर ने
(घ) "क्या मेरी बात कोई नहीं सुनेगा?": कान ने
प्रश्न २: अंगों का सम्मेलन क्यों हो रहा था?
उत्तर: अंगों का सम्मेलन इसलिए हो रहा था ताकि वे सब अपने-अपने कामों का बखान कर सकें और यह तय कर सकें कि जिसका काम सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण होगा, वही सबसे बड़ा माना जाएगा।
प्रश्न ३: पेट ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए क्या तर्क दिया?
उत्तर: पेट ने यह तर्क दिया कि सारा खाना उसी में पहुँचता है जिसे पचाकर वह पूरे शरीर को बल देता है। उसी बल पर हाथ, पैर, नाक, कान सब उछलते हैं। यदि वह एक दिन भी खाना न पचाए, तो सभी अंग बेकाम हो जाएँगे।
प्रश्न ४: अंत में सूत्रधार ने क्या निर्णय दिया?
उत्तर: अंत में सूत्रधार ने यह निर्णय दिया कि अंगों में कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है। अंगों का बड़प्पन उनके आपसी सहयोग में ही है।
प्रश्न ५: सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखो: दुनिया की सुंदरता सारी, सुंदर ______ किरणें प्यारी। उत्तर: दुनिया की सुंदरता सारी, सुंदर सूरज किरणें प्यारी।
About BhashaLab
BhashaLab is a dynamic platform dedicated to the exploration and mastery of languages - operating both online and offline. Aligned with the National Education Policy (NEP) 2020 and the National Credit Framework (NCrF), we offer language education that emphasizes measurable learning outcomes and recognized, transferable credits.
We offer:
1. NEP alligned offline language courses for degree colleges - English, Sanskrit, Marathi and Hindi
2. NEP alligned offline language courses for schools - English, Sanskrit, Marathi and Hindi
3. Std VIII, IX and X - English and Sanskrit Curriculum Tuitions - All boards
4. International English Olympiad Tuitions - All classes
5. Basic and Advanced English Grammar - Offline and Online - Class 3 and above
6. English Communication Skills for working professionals, adults and students - Offline and Online
Contact: +91 86577 20901, +91 97021 12044
Mail: info@bhashalab.com
Website: www.bhashalab.com
Found any mistakes or suggestions? Click here to send us your feedback!




Comments