1.4 - श्रद्धा और प्रयास - Shraddha aur Prayas - Class 8 - Sugambharati
- Sep 22
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पाठ का प्रकार: गद्य (पत्र) पाठ का शीर्षक: श्रद्धा और प्रयास लेखक/कवि का नाम: काका कालेलकर
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: प्रस्तुत पाठ काका कालेलकर द्वारा अपनी पुत्री शांति को लिखा गया एक पत्र है। इस पत्र में वे जीवन में श्रद्धा (faith) और प्रयास (effort) के संतुलन पर अपने विचार प्रकट करते हैं। वे महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि गांधीजी के हर काम के पीछे स्पष्ट विचार, चिंतन और सिद्धांत होता था, फिर भी वे सिद्धांतों से अँधे नहीं होते थे। कालेलकर जी समझाते हैं कि जीवन में उन्नति के लिए हमें बुद्धि से परे जाना पड़ता है, लेकिन वहाँ जाने के लिए अनुमति बुद्धि से ही लेनी चाहिए। अर्थात, जिसे बुद्धि गलत बताए, उस रास्ते को तुरंत छोड़ देना चाहिए। जहाँ बुद्धि की पहुँच खत्म होती है, वहाँ श्रद्धा का काम शुरू होता है। लेकिन केवल श्रद्धा से कुछ नहीं मिलता; ज्ञान प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास, प्रयोग और सत्य की कसौटी पर कसने की तत्परता आवश्यक है। वे अतिश्रद्धा या अंधविश्वास को प्रगति के लिए घातक बताते हैं और सत्यनिष्ठा, आत्मनिष्ठा तथा अनुभव पर आधारित जीवन को ही श्रेष्ठ मानते हैं।
English: The present text is a letter written by Kaka Kalelkar to his daughter, Shanti. In this letter, he expresses his views on the balance between faith (shraddha) and effort (prayas) in life. Citing the example of Mahatma Gandhi, he explains that behind Gandhi's every action, there was clear thought, contemplation, and principle, yet he was not blinded by his principles. Kalelkar explains that for progress in life, we must go beyond intellect, but the permission to do so must come from the intellect itself. This means, a path that the intellect deems wrong should be immediately abandoned. The role of faith begins where the reach of intellect ends. However, nothing can be achieved by faith alone; constant effort, experimentation, and the readiness to test things on the touchstone of truth are necessary for gaining knowledge. He describes excessive faith or superstition as fatal to progress and considers a life based on truthfulness, self-commitment, and experience to be the best.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस पत्र का केंद्रीय भाव जीवन में श्रद्धा और बुद्धि (तर्क/प्रयास) के बीच सामंजस्य स्थापित करने की सीख देना है। लेखक का मानना है कि जीवन की सफलता के लिए न तो केवल अंधी श्रद्धा काफी है और न ही केवल शुष्क तर्क। सच्चा मार्ग इन दोनों के समन्वय से बनता है। हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग सही-गलत का निर्णय करने के लिए करना चाहिए और जब बुद्धि किसी क्षेत्र में अनभिज्ञ हो, तब श्रेष्ठ लोगों के मार्गदर्शन और अपनी अंतरात्मा की आवाज पर श्रद्धा रखकर प्रयास करना चाहिए। यह प्रयास भी निर्भयता, आत्म-नियंत्रण और सत्य के प्रति निष्ठा के साथ होना चाहिए। इस प्रकार, लेखक एक विचारशील, प्रयत्नशील और संतुलित जीवन-दृष्टि को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
English: The central theme of this letter is to impart the lesson of establishing harmony between faith (shraddha) and intellect (reason/effort) in life. The author believes that for success in life, neither blind faith alone nor dry reasoning is sufficient. The true path is formed by the coordination of both. We should use our intellect to decide right from wrong, and when the intellect is ignorant in a certain area, we should make efforts with faith in the guidance of great people and our own conscience. This effort must also be accompanied by fearlessness, self-control, and a commitment to truth. Thus, the author inspires us to adopt a thoughtful, diligent, and balanced approach to life.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
नसीहत | सीख, सलाह | - |
सिद्धांतनिष्ठा | सिद्धांतों पर टिके रहना | सिद्धांतहीनता |
कौतुक | आश्चर्य, तमाशा | - |
प्रश्नार्थक | प्रश्नसूचक | उत्तरार्थक |
सामंजस्य | तालमेल, संतुलन | असामंजस्य, असंतुलन |
समन्वय | मेल, संयोग | विरोध, अलगाव |
त्याज्य | त्यागने योग्य, छोड़ने योग्य | ग्राह्य, स्वीकार्य |
गूढ़ | गहरा, रहस्यपूर्ण | प्रकट, स्पष्ट |
तत्परता | तैयारी, मुस्तैदी | आलस्य, शिथिलता |
मारक | विनाशकारी, घातक | रक्षक, जीवनदायी |
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: लेखक के अनुसार गांधीजी अपने सिद्धांतों के कारण अँधे बन गए थे।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं, "उनके सिद्धांत उनको अंध नहीं बनाते थे।"
कथन २: जिस रास्ते को बुद्धि गलत बताए, उसे भी आजमाकर देखना चाहिए।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक का मानना है, "बुद्धि ने जिस रास्ते को हीन, गलत और त्याज्य बताया, उस रास्ते को तो तुरंत छोड़ ही देना चाहिए।"
कथन ३: लेखक के अनुसार, ज्ञान केवल श्रद्धा रखने मात्र से प्राप्त हो सकता है।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं, "श्रद्धा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होगा और केवल श्रद्धा से भी नहीं होगा।"
कथन ४: लेखक अतिश्रद्धा को प्रगति के लिए मारक मानते हैं। उत्तर: सही। कारण, वे लिखते हैं, "इसमें अलं बुद्धि आती है जो प्रगति के लिए मारक है।"
कथन ५: लेखक के अनुसार, जीवन का सच्चा व्याकरण सामंजस्य और समन्वय है। उत्तर: सही। कारण, पाठ में स्पष्ट लिखा है, "सामंजस्य और समन्वय ही जीवन का सच्चा व्याकरण है।"
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'उन्नत जीवन के लिए मनुष्य को बुद्धि के आगे जाना है।' - इस कथन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: इस कथन से मैं यह समझता हूँ कि जीवन की समग्र उन्नति केवल तार्किक बुद्धि से संभव नहीं है। बुद्धि हमें भौतिक दुनिया को समझने, विश्लेषण करने और निर्णय लेने में मदद करती है, लेकिन प्रेम, करुणा, कला, आध्यात्मिकता और विश्वास जैसे जीवन के कई पहलू बुद्धि की पहुँच से परे हैं। इन गहराइयों में उतरने के लिए हमें अपनी अंतरात्मा और श्रद्धा का सहारा लेना पड़ता है। इसलिए, एक संतुलित और उन्नत जीवन जीने के लिए हमें तार्किक बुद्धि की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, श्रद्धा और अनुभव के माध्यम से उससे आगे जाने का साहस करना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: उन्नत जीवन, तार्किक बुद्धि, सीमाएँ, प्रेम, करुणा, आध्यात्मिकता, श्रद्धा, अंतरात्मा, संतुलन।
प्रश्न २: गांधीजी के व्यक्तित्व की कौन-सी बातें आपको प्रभावित करती हैं?
उत्तर: गांधीजी के व्यक्तित्व की जो बातें मुझे सबसे अधिक प्रभावित करती हैं, वे हैं उनके हर काम के पीछे स्पष्ट विचार और चिंतन का होना, तथा उनकी तुरंत और सटीक निर्णय लेने की क्षमता। वे केवल भावनाओं में बहकर कोई काम नहीं करते थे, बल्कि हर कदम के पीछे एक मजबूत सैद्धांतिक आधार होता था। इसके बावजूद, वे अपने सिद्धांतों से बँधे नहीं थे और तर्क के लिए हमेशा तैयार रहते थे। अनेक लोगों के घंटों तक चर्चा करने के बाद भी जब कोई हल नहीं निकलता था, तब गांधीजी तुरंत सबको संतोष देने वाला समाधान दे देते थे। यह उनके असाधारण और संतुलित व्यक्तित्व को दर्शाता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: स्पष्ट विचार, चिंतन, सटीक निर्णय, सिद्धांतनिष्ठा, संतुलित व्यक्तित्व, समाधान, असाधारण।
प्रश्न ३: "श्रद्धा रखो तो बेड़ा पार है।" - लेखक इस विचार को प्रगति के लिए घातक क्यों मानते हैं?
उत्तर: लेखक इस विचार को प्रगति के लिए घातक इसलिए मानते हैं क्योंकि यह व्यक्ति को अकर्मण्य और आलसी बनाता है। यह विचार कहता है कि सफलता के लिए केवल विश्वास रखना काफी है, प्रयास करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इससे व्यक्ति की तार्किक और विश्लेषण करने की क्षमता कुंद हो जाती है (अलं बुद्धि आती है)। वह बिना सोचे-समझे किसी बात को मान लेता है और स्वयं प्रयोग करके सत्य को जानने का कष्ट नहीं करता। जबकि सच्ची प्रगति निरंतर प्रयास, प्रयोग, साहस और सत्य की खोज से ही संभव है। केवल श्रद्धा पर निर्भर रहना व्यक्ति और समाज, दोनों को ठहराव की ओर ले जाता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: घातक, प्रगति, अकर्मण्य, आलसी, प्रयास की आवश्यकता, तार्किक क्षमता, सत्य की खोज, ठहराव।
प्रश्न ४: ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रद्धा के अलावा और क्या-क्या आवश्यक है? उत्तर: ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रद्धा एक आवश्यक पहला कदम हो सकता है, लेकिन केवल श्रद्धा काफी नहीं है। लेखक के अनुसार, श्रद्धा के अलावा ज्ञान प्राप्ति के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं:
प्रयत्न: निरंतर प्रयास करने की इच्छा।
प्रयोग: सुनी-सुनाई बातों को स्वयं करके देखने का साहस।
कसौटी: प्राप्त ज्ञान को सत्य की कसौटी पर कसने की तत्परता। इन कार्यों को करने के लिए व्यक्ति का निर्भय, प्राणवान और संयतेंद्रिय (जिसकी इंद्रियाँ नियंत्रण में हों) होना भी जरूरी है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रयत्न, प्रयोग, कसौटी, तत्परता, निर्भय, प्राणवान, संयतेंद्रिय, आत्म-नियंत्रण।
प्रश्न ५: जीवन में 'सामंजस्य और समन्वय' का क्या महत्व है? उत्तर: जीवन में 'सामंजस्य और समन्वय' का वही महत्व है जो एक भाषा में व्याकरण का होता है। यह हमारे जीवन को एक सुव्यवस्थित और अर्थपूर्ण ढाँचा प्रदान करता है। हमारे जीवन में बुद्धि, श्रद्धा, अनुभव, कल्पना जैसे कई अलग-अलग तत्व होते हैं। यदि इनमें सामंजस्य न हो तो जीवन में अंतर्द्वंद्व और भटकाव पैदा होता है। सामंजस्य हमें इन सभी तत्वों को एक साथ लेकर चलने की कला सिखाता है, जिससे हम संतुलित निर्णय ले पाते हैं और एक शांत तथा उद्देश्यपूर्ण जीवन जी पाते हैं। यही कारण है कि लेखक ने इसे 'जीवन का सच्चा व्याकरण' कहा है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सामंजस्य, समन्वय, व्याकरण, संतुलन, सुव्यवस्थित, अर्थपूर्ण, अंतर्द्वंद्व, उद्देश्यपूर्ण जीवन।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: पंडित मदनमोहन मालवीय जी के अनुसार गांधीजी की निर्णय-शक्ति की क्या विशेषता थी?
उत्तर: पंडित मदनमोहन मालवीय जी के अनुसार, गांधीजी की निर्णय-शक्ति की यह विशेषता थी कि जब अनेक लोग मिलकर भी किसी विषय पर निर्णय नहीं कर पाते थे, तब गांधीजी न केवल सबको संतोष हो ऐसा निर्णय देते थे, बल्कि बहुत ही जल्दी और तुरंत निर्णय देते थे।
प्रश्न २: लेखक के अनुसार किस रास्ते को तुरंत छोड़ देना चाहिए?
उत्तर: लेखक के अनुसार, जिस रास्ते को हमारी बुद्धि हीन, गलत और त्यागने योग्य बताए, उस रास्ते को तुरंत छोड़ देना चाहिए।
प्रश्न ३: 'जीवन का व्याकरण' किसे कहा गया है?
उत्तर: लेखक ने 'सामंजस्य और समन्वय' को जीवन का सच्चा व्याकरण कहा है।
प्रश्न ४: ज्ञान प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर: ज्ञान प्राप्ति के लिए केवल श्रद्धा ही नहीं, बल्कि प्रयत्न, प्रयोग और सत्य की कसौटी पर चीजों को परखने की तत्परता भी आवश्यक है।
प्रश्न ५: कृति पूर्ण कीजिए: लेखक द्वारा बताई गई मुख्य बातें: उत्तर:
सत्यनिष्ठा
आत्मनिष्ठा
अनुभवमूलक जीवननिष्ठा
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