1.5 - सुनो और गुनो - Suno aur Guno - Class 8 - Sugambharati
- Sep 23
- 10 min read
Updated: Sep 24

पाठ का प्रकार: पद्य (आधुनिक दोहे) पाठ का शीर्षक: सुनो और गुनो लेखक/कवि का नाम: गोपालदास सक्सेना 'नीरज'
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: प्रस्तुत पाठ में कवि नीरज जी ने आधुनिक दोहों के माध्यम से जीवन के विभिन्न मूल्यों और आदर्शों पर प्रकाश डाला है। वे परोपकार, सत्संगति, विनम्रता, कृतज्ञता और कर्मनिष्ठा जैसे गुणों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं। कवि कहते हैं कि जीवन की लंबाई नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। वे अहंकार और प्रेम को एक साथ असंभव बताते हैं, जैसे संध्या और प्रभात। वे फूल का उदाहरण देकर क्षमाशीलता का संदेश देते हैं और सूरदास का उदाहरण देकर सच्ची भक्ति को दर्शाते हैं। इसके अलावा, वे दूरदर्शन और दूरभाष जैसे आधुनिक साधनों के सामाजिक प्रभाव पर भी टिप्पणी करते हैं और प्रकृति (वृक्ष) के प्रति मनुष्य की कृतघ्नता पर चिंता व्यक्त करते हैं। ये दोहे जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
English: In the present text, the poet Neeraj ji, through modern couplets (dohas), sheds light on various life values and ideals. He inspires us to adopt virtues like benevolence, good company, humility, gratitude, and dedication to work. The poet says that the quality of life is more important than its length. He describes ego and love as being impossible to coexist, just like dusk and dawn. He gives the message of forgiveness using the example of a flower and depicts true devotion through the example of Surdas. Furthermore, he also comments on the social impact of modern tools like television and the telephone and expresses concern over man's ingratitude towards nature (the tree). These couplets teach the art of living.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इन दोहों का केंद्रीय भाव पाठकों को विविध मानवीय मूल्यों से परिचित कराकर एक श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है। कवि ने लोगों की भलाई करने, प्रेम से रहने, कृतज्ञ बनने तथा अभिमान को त्यागने जैसे नैतिक मूल्यों पर बल दिया है। वे आधुनिक जीवन की विसंगतियों, जैसे संस्कृति पर टीवी का प्रभाव और संचार साधनों के कारण पारंपरिक पत्रों का लुप्त होना, पर भी चिंतन करते हैं। इन दोहों का मूल उद्देश्य सरल और सहज भाषा में जीवन के गहरे सत्यों को समझाना और पाठकों को एक बेहतर इंसान बनने की दिशा दिखाना है।
English: The central theme of these couplets is to inspire readers to live a noble life by acquainting them with various human values. The poet has emphasized moral values like doing good to people, living with love, being grateful, and abandoning arrogance. He also reflects on the paradoxes of modern life, such as the impact of TV on culture and the disappearance of traditional letters due to communication devices. The core purpose of these couplets is to explain the deep truths of life in a simple and effortless language and to show readers the path to becoming better human beings.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
मँझधार | धारा के बीच | किनारा, तट |
पतवार | चप्पू | - |
खद्योत | जुगनू | - |
सत्कार | सम्मान, आदर | तिरस्कार, अनादर |
दुर्जन | दुष्ट व्यक्ति | सज्जन, भला आदमी |
निवास | रहना, वास | प्रवास |
मसलो | कुचलना | - |
व्यवसाय | पेशा, काम | - |
अमरत्व | अमरता, अनश्वरता | नश्वरता, मृत्यु |
मूढ़ | मूर्ख, अज्ञानी | ज्ञानी, विद्वान |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. गो मैं हूँ मँझधार में...मैंने सागर पार।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि परोपकार के महत्व को बता रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि भले ही आज मैं स्वयं नदी की धारा के बीच में बिना पतवार के फँसा हूँ (अर्थात मुश्किल में हूँ), लेकिन मैंने अपने जीवन में अनगिनत लोगों को सागर पार कराया है (अर्थात उनकी मुश्किलों से बाहर निकलने में मदद की है)।
२. जब हो चारों ही तरफ...पाते हैं सत्कार।
परिचय: कवि यहाँ छोटी चीजों के महत्व को समझा रहे हैं। सरल अर्थ: जब चारों ओर घना अँधेरा छाया हो, तो ऐसे कठिन समय में एक छोटा-सा जुगनू भी बहुत सम्मान पाता है, क्योंकि वह थोड़ा ही सही, पर प्रकाश तो देता है।
३. टी. वी. ने हमपर किया...बिना तीर-तलवार।
परिचय: कवि यहाँ दूरदर्शन के सांस्कृतिक प्रभाव पर टिप्पणी कर रहे हैं। सरल अर्थ: टेलीविजन ने हम पर इस तरह छिप-छिपकर हमला किया है कि बिना किसी तीर या तलवार के ही हमारी पूरी संस्कृति घायल हो गई है।
४. दूरभाष का देश में...चिट्ठी-पत्री-तार।
परिचय: कवि यहाँ दूरभाष के आने से पारंपरिक संचार माध्यमों पर पड़े प्रभाव को बता रहे हैं। सरल अर्थ: जब से देश में टेलीफोन का प्रचार-प्रसार हुआ है, तब से घरों में पत्र और तार आने बंद हो गए हैं।
५. ज्ञानी हो फिर भी...मणि हो उसके पास।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि बुरी संगत से बचने की सलाह दे रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि तुम भले ही कितने ज्ञानी क्यों न हो, कभी भी दुष्ट व्यक्ति के साथ मत रहो। क्योंकि साँप तो साँप ही होता है, भले ही उसके पास कीमती मणि क्यों न हो; वह कभी भी डस सकता है।
६. भक्तों में कोई नहीं...देख लिए घनश्याम।
परिचय: कवि यहाँ सच्ची भक्ति की शक्ति को सूरदास के उदाहरण से बता रहे हैं। सरल अर्थ: भक्तों में सूरदास से बड़ा नाम किसी का नहीं है, क्योंकि उन्होंने आँखों के बिना ही (अपने मन की आँखों से) भगवान कृष्ण (घनश्याम) के दर्शन कर लिए थे।
७. तोड़ो, मसलो या कि तुम...खुशबू ही दे फूल।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि क्षमा और परोपकार का संदेश दे रहे हैं। सरल अर्थ: तुम चाहे फूल को तोड़ो, उसे मसलो या उस पर धूल डालो, वह बदले में तुम्हें केवल खुशबू ही देगा। हमें भी फूल की तरह बनना चाहिए।
८. पूजा के सम पूज्य है...जल में दूध समाय।
परिचय: कवि यहाँ कर्मनिष्ठा और हर काम के सम्मान की बात कर रहे हैं। सरल अर्थ: तुम्हारा पेशा चाहे जो भी हो, वह पूजा के समान ही पवित्र और पूजनीय है। तुम्हें अपने काम में उसी तरह पूरी तरह से रम जाना चाहिए जैसे पानी में दूध मिलकर एक हो जाता है।
९. हम कितना जीवित रहे...यही तत्त्व अमरत्व।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि जीवन की गुणवत्ता के महत्व को बता रहे हैं। सरल अर्थ: हम कितने साल जिए, इस बात का कोई महत्व नहीं है। महत्व इस बात का है कि हम कैसे जिए। एक सार्थक और अच्छा जीवन जीना ही अमरता का मूल तत्व है।
१०. जीने को हमको मिले...हर दिन बनें हजार।
परिचय: कवि यहाँ एक सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा दे रहे हैं। सरल अर्थ: भले ही हमें जीने के लिए दो-चार दिन ही मिलें, लेकिन हमें अपना जीवन इस तरह से जीना चाहिए कि हमारा हर एक दिन हजार दिनों के बराबर सार्थक और यादगार बन जाए।
११. अहंकार और प्रेम का...संध्या और प्रभात।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि अहंकार और प्रेम के परस्पर विरोधी स्वभाव को बता रहे हैं। सरल अर्थ: अहंकार और प्रेम का साथ कभी नहीं निभ सकता, वे कभी एक साथ नहीं रह सकते। ठीक वैसे ही जैसे शाम और सुबह कभी एक साथ नहीं होते।
१२. मात्र वंदना में नहीं...चढ़ते शीश अपार।
परिचय: कवि यहाँ देश के प्रति सर्वोच्च बलिदान की बात कर रहे हैं। सरल अर्थ: मातृभूमि की वंदना में केवल दो-चार फूल ही नहीं चढ़ाए जाते, बल्कि उसके चरणों में तो हमेशा अनगिनत शीश (बलिदान) चढ़ाए जाते हैं।
१३. दिए तुझे माँगे बिना...उसी वृक्ष की बाँह। परिचय: इन पंक्तियों में कवि कृतघ्नता पर प्रहार कर रहे हैं। सरल अर्थ: हे मूर्ख मनुष्य! जिस वृक्ष ने तुम्हें बिना माँगे ही फल और छाया दी, तुम उसी वृक्ष की डालियों को काट रहे हो! यह तुम्हारी कृतघ्नता है।
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: कवि के अनुसार अहंकार और प्रेम एक साथ रह सकते हैं।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "अहंकार और प्रेम का, कभी न निभता साथ।"
कथन २: फूल को मसलने पर वह बदले में काँटे देता है।
उत्तर: गलत। कारण, दोहे में कहा गया है, "बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल।"
कथन ३: दूरभाष के प्रचार के बाद चिट्ठियों का आना बढ़ गया।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "तब से घर आते नहीं चिट्ठी-पत्री-तार।"
कथन ४: ज्ञानी व्यक्ति को दुर्जन के साथ रहने में कोई खतरा नहीं है।
उत्तर: गलत। कारण, कवि सलाह देते हैं, "ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास।"
कथन ५: कवि के अनुसार, जीवन की गुणवत्ता से अधिक उसकी लंबाई महत्वपूर्ण है। उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "हम कितना जीवित रहे इसका नहीं महत्त्व, हम कैसे जीवित रहे यही तत्त्व अमरत्व।"
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: गोपालदास सक्सेना 'नीरज' रचना का प्रकार: आधुनिक दोहे
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार। | यह पंक्ति आज के समय की एक बहुत बड़ी सच्चाई को उजागर करती है। यह बताती है कि सांस्कृतिक हमले कितने सूक्ष्म और गहरे हो सकते हैं। | हमें आधुनिक माध्यमों का उपयोग करते समय अपनी संस्कृति की रक्षा के प्रति सचेत रहना चाहिए। |
सर्प-सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास। | यह बुरी संगत के खतरे को समझाने के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली और यादगार रूपक है, जो कभी भुलाया नहीं जा सकता। | व्यक्ति के बाहरी गुणों से धोखा नहीं खाना चाहिए, उसका मूल स्वभाव देखना चाहिए। |
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल। | यह पंक्ति क्षमा और अच्छाई की पराकाष्ठा को दर्शाती है। यह हमें सिखाती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपना सद्गुण नहीं छोड़ना चाहिए। | हमें बुराई का जवाब भी अच्छाई से देना चाहिए। |
हम कैसे जीवित रहे यही तत्त्व अमरत्व। | यह पंक्ति जीवन के उद्देश्य पर एक गहरा दार्शनिक विचार प्रस्तुत करती है। यह हमें एक लंबा जीवन जीने की बजाय एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। | जीवन की सार्थकता उसके वर्षों में नहीं, बल्कि उसके कर्मों में निहित है। |
काट रहा है मूढ़ तू, उसी वृक्ष की बाँह। | यह पंक्ति प्रकृति के प्रति मनुष्य की कृतघ्नता पर एक मार्मिक प्रहार है। यह पर्यावरण संरक्षण का एक बहुत ही प्रभावी संदेश देती है। | हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जो हमारा भला करते हैं, चाहे वे मनुष्य हों या प्रकृति। |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'चरित्र निर्माण में सत्संगति आवश्यक होती है', इस विषय पर अपने विचार लिखो।
उत्तर: मेरे विचार में, चरित्र निर्माण में सत्संगति का बहुत बड़ा योगदान होता है। हम जैसे लोगों के साथ रहते हैं, हमारी सोच और आदतें वैसी ही बन जाती हैं। कवि नीरज जी का दोहा, "ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवास, सर्प-सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास," इसी सत्य को दर्शाता है। अच्छी संगति हमें अच्छे गुणों, जैसे ईमानदारी, परिश्रम और दया, को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। वहीं, बुरी संगति ज्ञानी व्यक्ति को भी पथभ्रष्ट कर सकती है। इसलिए, एक उत्तम चरित्र के निर्माण के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम हमेशा अच्छे और गुणी लोगों की संगति में रहें।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सत्संगति, चरित्र निर्माण, आदतें, प्रेरणा, पथभ्रष्ट, उत्तम चरित्र, गुण।
प्रश्न २: कवि के अनुसार दूरदर्शन (टी.वी.) ने हमारी संस्कृति को कैसे घायल किया है?
उत्तर: कवि के अनुसार, दूरदर्शन ने बिना किसी हथियार के छिपकर हमारी संस्कृति पर हमला किया है। इसका अर्थ है कि दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कई कार्यक्रम और विज्ञापन हमारी पारंपरिक जीवनशैली, मूल्यों और विचारों के विपरीत होते हैं। वे विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण और भौतिकवाद को बढ़ावा देते हैं, जिससे हमारे सामाजिक और पारिवारिक संबंध कमजोर हो रहे हैं। यह एक ऐसा हमला है जो शारीरिक चोट नहीं देता, बल्कि हमारी सोच और संस्कारों को धीरे-धीरे बदलकर हमारी संस्कृति की आत्मा को घायल कर देता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सांस्कृतिक हमला, जीवनशैली, मूल्य, अंधानुकरण, भौतिकवाद, पारिवारिक संबंध, संस्कार, आत्मा।
प्रश्न ३: "पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय।" - इस पंक्ति का आपके लिए क्या अर्थ है?
उत्तर: इस पंक्ति का मेरे लिए यह अर्थ है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हर वह काम जो ईमानदारी और लगन से किया जाए, वह पूजा की तरह ही पवित्र और सम्माननीय है। चाहे कोई डॉक्टर हो, शिक्षक हो, किसान हो या सफाई कर्मचारी, यदि वह अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहा है, तो वह समाज के लिए उतना ही महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है जितना एक पुजारी मंदिर में पूजा करके देता है। हमें हर व्यवसाय का सम्मान करना चाहिए और अपने काम को भी पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ करना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: कर्म ही पूजा है, काम का सम्मान, ईमानदारी, लगन, निष्ठा, समर्पण, छोटा-बड़ा नहीं।
प्रश्न ४: भक्त सूरदास आँखों के बिना भी 'बड़ा' भक्त कैसे कहलाए?
उत्तर: भक्त सूरदास आँखों के बिना भी 'बड़ा' भक्त इसलिए कहलाए क्योंकि उनकी भक्ति बाहरी आँखों पर निर्भर नहीं थी। उन्होंने अपने मन की आँखों और गहरी आस्था से भगवान कृष्ण के उस रूप के दर्शन किए, जिसे शायद आँखों वाले भी नहीं देख पाते। उनकी भक्ति इतनी सच्ची और तीव्र थी कि उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का इतना जीवंत वर्णन किया, मानो वे सब कुछ अपनी आँखों से देख रहे हों। यह दर्शाता है कि सच्ची भक्ति और ईश्वर का अनुभव करने के लिए शारीरिक इंद्रियों से अधिक आंतरिक श्रद्धा और प्रेम की आवश्यकता होती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सच्ची भक्ति, मन की आँखें, गहरी आस्था, आंतरिक श्रद्धा, प्रेम, जीवंत वर्णन, अनुभव।
प्रश्न ५: वृक्ष के प्रति मनुष्य की कृतघ्नता को कवि ने किस प्रकार दर्शाया है? उत्तर: कवि ने वृक्ष के प्रति मनुष्य की कृतघ्नता को एक बहुत ही मार्मिक चित्र द्वारा दर्शाया है। वे कहते हैं कि वृक्ष मनुष्य को बिना माँगे ही जीवनदायी फल और शीतल छाया देता है। वह मनुष्य का নিঃस्वार्थ भाव से पालन-पोषण करता है। लेकिन मूर्ख मनुष्य (मूढ़) उसी उपकारी वृक्ष की डालियों (बाँह) को काट रहा है। जिस तरह किसी की मदद करने वाले हाथ को ही काट देना घोर कृतघनता है, उसी प्रकार अपने जीवनदाता वृक्ष को काटना भी मनुष्य की सबसे बड़ी कृतघ्नता है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: कृतघ्नता, उपकारी वृक्ष, फल और छाया, निःस्वार्थ, जीवनदाता, मूर्ख मनुष्य, पर्यावरण विनाश।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: परिणाम लिखो:
(क) दूरदर्शन के आने का: हमारी संस्कृति घायल हुई है।
(ख) दूरभाष के प्रचार का: घर में चिट्ठी-पत्री-तार आने बंद हो गए हैं।
प्रश्न २: कवि ने ज्ञानी व्यक्ति को किसके साथ न रहने की सलाह दी है और क्यों?
उत्तर: कवि ने ज्ञानी व्यक्ति को दुर्जन (दुष्ट व्यक्ति) के साथ न रहने की सलाह दी है, क्योंकि दुर्जन का स्वभाव साँप की तरह होता है। जिस प्रकार मणि होते हुए भी साँप अपने डसने का स्वभाव नहीं छोड़ता, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता कभी नहीं छोड़ता और वह कभी भी नुकसान पहुँचा सकता है।
प्रश्न ३: कवि के अनुसार जीवन की अमरता किस बात में है?
उत्तर: कवि के अनुसार, जीवन की अमरता (अमरत्व) इस बात में नहीं है कि हम कितना लंबा जिए, बल्कि इस बात में है कि हम अपना जीवन कैसे जिए। एक सार्थक, गुणी और परोपकारी जीवन जीना ही अमरता का मूल तत्व है।
प्रश्न ४: उचित जोड़ियाँ मिलाओ:
उत्तर: | अ | आ |
| :--- | :--- |
| १. सर्प | मणि |
| २. घनश्याम | सूरदास |
| ३. फूल | खुशबू |
| ४. वृक्ष | छाँह |
प्रश्न ५: कवि ने अपने व्यवसाय के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखने के लिए कहा है? उत्तर: कवि ने अपने व्यवसाय के प्रति पूजा के समान पूज्य दृष्टिकोण रखने के लिए कहा है। उन्होंने कहा है कि व्यक्ति को अपने काम में उसी तरह पूरी तरह से रम जाना चाहिए जैसे पानी में दूध मिलकर एक हो जाता है।
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