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    1.6 - और प्रेमचंद जी चले गए - Aur Premchand Ji Chale Gaye - Class 8 - Sugambharati

    • Sep 24
    • 8 min read

    Updated: Sep 26

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    पाठ का प्रकार: गद्य (संस्मरण) पाठ का शीर्षक: और प्रेमचंद जी चले गए लेखक/कवि का नाम: डॉ. रामकुमार वर्मा



    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: यह पाठ लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद जी के साथ बिताए कुछ दिनों का एक मार्मिक संस्मरण है। लेखक बताते हैं कि सन् १९३५ में उनकी भेंट प्रेमचंद जी से प्रयाग स्टेशन पर हुई। प्रेमचंद जी की सादगी से प्रभावित होकर लेखक उन्हें अपने घर ले आए। लेखक ने प्रेमचंद जी के सरल, सौम्य और आडंबरहीन व्यक्तित्व का सुंदर चित्रण किया है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार प्रेमचंद जी ने लेखक का काव्य-संग्रह 'रूपराशि' प्रकाशित करने की जिम्मेदारी स्वयं ले ली। संस्मरण का अंत एक बहुत ही मार्मिक घटना से होता है, जहाँ प्रेमचंद जी लेखक की पत्नी द्वारा बनाई गई खीर, जो गर्मी के कारण फट गई थी, केवल इसलिए खा लेते हैं ताकि मेजबान का दिल न दुखे। अगली सुबह वे किसी को बताए बिना, एक प्यारा सा पत्र छोड़कर चले जाते हैं।

    English: This lesson is a poignant memoir by the author Dr. Ramkumar Verma about the few days he spent with the famous novelist Premchand. The author narrates how he met Premchand at Prayag station in 1935. Impressed by Premchand's simplicity, the author brought him to his home. The author has beautifully depicted Premchand's simple, gentle, and unpretentious personality. He describes how Premchand himself took the responsibility of publishing the author's poetry collection, 'Rooprashi'. The memoir ends with a very touching incident where Premchand eats the kheer (a sweet dish) prepared by the author's wife, which had spoiled due to the heat, just so that the hostess's feelings are not hurt. The next morning, he leaves without informing anyone, leaving behind a lovely note.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)

    हिन्दी: इस संस्मरण का केंद्रीय भाव महान साहित्यकार प्रेमचंद के सहज, सरल और मानवीय व्यक्तित्व को उजागर करना है। लेखक का उद्देश्य यह दिखाना है कि अपनी प्रसिद्धि के शिखर पर होने के बावजूद, प्रेमचंद जी कितने विनम्र, सादगीपूर्ण और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले व्यक्ति थे। तीसरे दर्जे में यात्रा करना, अपना बिस्तर खुद उठाना, और मेजबान का दिल रखने के लिए फटी हुई खीर खा लेना जैसी घटनाएँ उनके महान चरित्र को दर्शाती हैं। यह पाठ हमें सिखाता है कि सच्ची महानता आडंबर में नहीं, बल्कि सादगी और गहरी मानवीय संवेदनाओं में निहित होती है।

    English: The central theme of this memoir is to highlight the simple, effortless, and humane personality of the great litterateur Premchand. The author's aim is to show how, despite being at the peak of his fame, Premchand was an incredibly humble, simple person who respected others' feelings. Incidents like traveling in the third class, carrying his own luggage, and eating spoiled kheer to preserve the host's feelings showcase his great character. This lesson teaches us that true greatness lies not in pretension but in simplicity and deep human sensitivities.


    पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)


    प्रेमचंद:

    हिन्दी:

    • सादगीपूर्ण: वे एक विश्वविख्यात लेखक होते हुए भी तीसरे दर्जे में सफर करते थे और अपना बिस्तर स्वयं उठाते थे।

    • विनम्र और सौम्य: वे बिना किसी तकल्लुफ के लेखक के साथ उनके घर पैदल चले गए।

    • संवेदनशील: वे मेजबान (बहूरानी) का दिल दुखाने के डर से फटी हुई खीर भी खा लेते हैं।

    • प्रोत्साहित करने वाले: वे एक युवा लेखक (रामकुमार वर्मा) की कविताओं को प्रकाशित करने की जिम्मेदारी स्वयं ले लेते हैं।

    • खुशमिजाज: उनका ठहाका (अट्टहास) इतना जोरदार था कि पूरा स्टेशन गूँज उठता था।

    English:

    • Simple: Despite being a world-famous writer, he traveled in the third class and carried his own luggage.

    • Humble and Gentle: He walked to the author's house without any formality.

    • Sensitive: He ate spoiled kheer out of fear of hurting the hostess's ("bahurani's") feelings.

    • Encouraging: He himself took the responsibility of publishing the poems of a young writer (Ramkumar Verma).

    • Jovial: His hearty laugh (atthas) was so loud that it would resonate throughout the station.

    लेखक (डॉ. रामकुमार वर्मा):

    हिन्दी:

    • साहित्य प्रेमी: वे बचपन से ही रेलवे स्टेशन पर जाना पसंद करते थे और हिंदी के साहित्यकारों का सम्मान करते थे।

    • अच्छे मेजबान: उन्होंने प्रेमचंद जी का अपने घर पर स्वागत किया और उनकी सुविधा का ध्यान रखा।

    • संवेदनशील: वे प्रेमचंद जी के सरल व्यक्तित्व और महानता से बहुत प्रभावित हुए।

    • कृतज्ञ: वे प्रेमचंद द्वारा अपने काव्य-संग्रह को प्रकाशित किए जाने के उपकार को सम्मान से याद करते हैं।

    English:

    • Literature Lover: He liked visiting the railway station since childhood and respected Hindi litterateurs.

    • A Good Host: He welcomed Premchand to his home and took care of his comfort.

    • Sensitive: He was deeply impressed by Premchand's simple personality and greatness.

    • Grateful: He respectfully remembers the favor of Premchand publishing his poetry collection.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    तकल्लुफ

    औपचारिकता, शिष्टाचार

    अनौपचारिकता, बेतकल्लुफी

    अट्टहास

    ठहाका, जोर की हँसी

    मुस्कान, मंदहास

    सौम्य

    शांत, सरल

    उग्र, कठोर

    विषाद

    दुख, उदासी

    हर्ष, आनंद

    अधिवेशन

    सम्मेलन, सभा

    -

    खंदक

    खाई, गड्ढा

    टीला, ऊँचाई

    गुजारा

    निर्वाह, जीविका

    -

    संग्रह

    संकलन

    बिखराव, फैलाव

    प्रतीक्षा

    इंतजार

    -

    निहायत

    बहुत, अत्यंत

    कम, थोड़ा


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: लेखक की मुलाकात प्रेमचंद जी से ट्रेन के पहले दर्जे के डिब्बे में हुई। उत्तर: गलत। कारण, लेखक ने देखा कि प्रेमचंद जी "तीसरे दर्जे के डिब्बे से" उतर रहे थे।

    कथन २: प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था। उत्तर: सही। कारण, उन्होंने अपने भाषण में कहा, "पिता ने मेरा नाम धनपत राय रखा" और पत्र के अंत में भी यही नाम लिखा।

    कथन ३: प्रेमचंद जी लेखक के घर रुकने से हिचकिचा रहे थे। उत्तर: गलत। कारण, लेखक के पूछने पर उन्होंने तुरंत उत्तर दिया "चलो" और "बिना किसी तकल्लुफ के वे मेरे साथ पैदल मेरे घर चले आए।"

    कथन ४: लेखक का काव्य संग्रह 'रूपराशि' साहित्य भवन, प्रयाग से प्रकाशित हुआ। उत्तर: गलत। कारण, वह संग्रह प्रेमचंद जी के "सरस्वती प्रेस बनारस से प्रकाशित हुआ।"

    कथन ५: प्रेमचंद जी ने खीर इसलिए नहीं खाई क्योंकि वह गर्मी में फट गई थी। उत्तर: गलत। कारण, उन्होंने अपने पत्र में लिखा, "लेकिन खीर तो मैंने खा ही ली। इस डर से कि फटे हुए दूध की खीर छोड़ देने से कहीं बहूरानी का दिल मेरी ओर से फट न जाए।"


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: प्रेमचंद जी इतने बड़े साहित्यकार होकर भी सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। महानता और सादगी का क्या संबंध है? उत्तर: मेरे विचार में, महानता और सादगी का बहुत गहरा संबंध है। सच्चा महान व्यक्ति वही होता है जिसे अपनी महानता का अहंकार नहीं होता। प्रेमचंद जी का जीवन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वे चाहते तो बड़े आराम से रह सकते थे, लेकिन उन्होंने हमेशा आम आदमी का जीवन जिया। उनकी यही सादगी उन्हें लोगों से जोड़ती थी और इसी कारण वे उनकी पीड़ा को इतनी गहराई से समझकर लिख पाते थे। जो व्यक्ति वास्तव में अपने ज्ञान या कर्म से महान होता है, उसे बाहरी दिखावे की जरूरत नहीं पड़ती; उसकी महानता उसके सरल व्यवहार से ही झलकती है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: महानता, सादगी, अहंकार, आम आदमी, जुड़ाव, बाहरी दिखावा, सरल व्यवहार।

    प्रश्न २: फटी हुई खीर खाने की घटना प्रेमचंद जी के चरित्र की किस विशेषता को उजागर करती है? उत्तर: फटी हुई खीर खाने की घटना प्रेमचंद जी के चरित्र की अत्यंत संवेदनशीलता और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने की विशेषता को उजागर करती है। वे जानते थे कि लेखक की पत्नी (बहूरानी) ने बड़े प्रेम से उनके लिए खीर बनाई होगी। यदि वे उसे छोड़ देते तो मेजबान का दिल दुखता। अपने मेजबान की खुशी और सम्मान को उन्होंने अपने स्वास्थ्य और स्वाद से ऊपर रखा। यह छोटी सी घटना उनके विशाल हृदय और दूसरों के प्रति उनके गहरे सम्मान को दर्शाती है। यह दिखाता है कि वे केवल अपनी कहानियों में ही नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन में भी मानवीय भावनाओं को सर्वोपरि मानते थे। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: संवेदनशीलता, सम्मान, मेजबान का आदर, विशाल हृदय, मानवीय भावनाएँ, परवाह।

    प्रश्न ३: "आप मुझे देखिए और पढ़िए-सुनिए मत।" - प्रेमचंद जी के इस कथन का क्या आशय हो सकता है? उत्तर: प्रेमचंद जी के इस कथन का गहरा आशय है। वे कहना चाहते थे कि किसी व्यक्ति को उसके भाषणों या कही-सुनी बातों से नहीं, बल्कि उसके जीवन और उसके कर्मों से समझना चाहिए। 'देखिए' का अर्थ है मेरे सादे रहन-सहन और मेरे जीवन के संघर्षों को देखिए। 'पढ़िए' का अर्थ है मेरे साहित्य को पढ़िए, जिसमें मैंने समाज की सच्चाई को उतारा है। वे यह संदेश दे रहे थे कि उनका जीवन एक खुली किताब है और उनकी असली पहचान उनके शब्दों में नहीं, बल्कि उनके जीवन जीने के तरीके और उनके लेखन में है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आशय, कर्म, जीवन, संघर्ष, साहित्य, सच्चाई, खुली किताब, असली पहचान।

    प्रश्न ४: आज के लेखकों और साहित्यकारों की तुलना जब आप प्रेमचंद जी से करते हैं, तो क्या अंतर पाते हैं? उत्तर: आज के कई लेखकों और प्रेमचंद जी में सबसे बड़ा अंतर सादगी और सामाजिक जुड़ाव का है। प्रेमचंद जी जमीन से जुड़े साहित्यकार थे, जो आम आदमी के बीच रहते थे और उन्हीं के बारे में लिखते थे। उनका जीवन और लेखन एक समान था। आज के युग में, कई लेखक प्रसिद्धि मिलने के बाद आम जीवन से कट जाते हैं। उनमें औपचारिकता और दिखावा अधिक दिखाई देता है। प्रेमचंद जी का साहित्य समाज का दर्पण था, जबकि आज का बहुत-सा साहित्य केवल मनोरंजन या व्यक्तिगत भावनाओं तक सीमित रह गया है। प्रेमचंद जी जैसा निस्वार्थ भाव और सामाजिक प्रतिबद्धता आज के लेखकों में कम देखने को मिलती है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सादगी, सामाजिक जुड़ाव, औपचारिकता, दिखावा, सामाजिक दर्पण, निस्वार्थ भाव, प्रतिबद्धता।

    प्रश्न ५: प्रेमचंद जी ने लेखक की पत्नी को 'बहूरानी' कहकर संबोधित किया और उन्हें 'बहुत-बहुत आशीर्वाद' दिया। इससे उनके स्वभाव के बारे में क्या पता चलता है? उत्तर: इन शब्दों से प्रेमचंद जी के स्नेहपूर्ण और बड़प्पन भरे स्वभाव का पता चलता है। 'बहूरानी' एक बहुत ही आत्मीय और पारंपरिक संबोधन है, जो घर की बहू को दिया जाता है। एक महान लेखक होते हुए भी उन्होंने लेखक के परिवार को अपना समझा और उनकी पत्नी को अपनी बहू जैसा स्नेह दिया। 'बहुत-बहुत आशीर्वाद' देना उनके बड़े-बुजुर्ग वाले स्वभाव को दर्शाता है, जो हमेशा छोटों को अपना स्नेह और शुभकामनाएं देते हैं। यह घटना दिखाती है कि वे रिश्तों को कितना महत्व देते थे और उनका हृदय कितना विशाल और प्रेम से भरा था। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: स्नेहपूर्ण, बड़प्पन, आत्मीयता, पारंपरिक, आशीर्वाद, रिश्तों का महत्व, विशाल हृदय।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: लेखक और प्रेमचंद जी की पहली मुलाकात कहाँ और कैसे हुई? उत्तर: लेखक और प्रेमचंद जी की पहली मुलाकात सन् १९३५ में प्रयाग स्टेशन पर हुई। लेखक शाम को टहलने के लिए स्टेशन गए थे, तभी उन्होंने प्रेमचंद जी को तीसरे दर्जे के डिब्बे से उतरते और अपना बिस्तर स्वयं बगल में दबाए हुए जाते देखा। लेखक ने आगे बढ़कर उन्हें पहचाना और उनसे बात की।

    प्रश्न २: प्रेमचंद जी प्रयाग क्यों आए थे? उत्तर: प्रेमचंद जी 'हिंदुस्तानी एकेडेमी' के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए प्रयाग आए हुए थे।

    प्रश्न ३: लेखक का काव्य संग्रह किस नाम से और कहाँ से प्रकाशित हुआ? उत्तर: लेखक का काव्य संग्रह 'रूपराशि' नाम से प्रेमचंद जी के सरस्वती प्रेस, बनारस से प्रकाशित हुआ।

    प्रश्न ४: प्रेमचंद जी ने लेखक की पत्नी द्वारा परोसी गई फटी हुई खीर क्यों खा ली थी? उत्तर: इलाहाबाद की गर्मी में सुबह की बनी हुई खीर फट गई थी। प्रेमचंद जी ने वह फटी हुई खीर इसलिए खा ली क्योंकि उन्हें डर था कि यदि वे उसे छोड़ देंगे तो कहीं मेजबान (बहूरानी) का दिल उनकी ओर से फट न जाए, अर्थात वे दुखी न हो जाएँ।

    प्रश्न ५: प्रवाह तालिका पूर्ण कीजिए: प्रेमचंद जी की विशेषताएँ उत्तर:

    • अत्यंत सरल और सौम्य स्वभाव

    • सादगीपूर्ण जीवन (तीसरे दर्जे में यात्रा)

    • बिना किसी तकल्लुफ के व्यवहार

    • दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने वाले

    • (अन्य उत्तर: खुशमिजाज, युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने वाले)




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