2.3 - आत्मनिर्भरता - Aatmanirbharta - Class 8 - Sugambharati
- Sep 29
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Updated: Oct 5

पाठ का प्रकार: गद्य (निबंध) पाठ का शीर्षक: आत्मनिर्भरता लेखक/कवि का नाम: आचार्य रामचंद्र शुक्ल
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: प्रस्तुत निबंध में, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने आत्मनिर्भरता के गुण को मर्यादित जीवन के लिए अनिवार्य बताया है। वे युवाओं को सलाह देते हैं कि बड़ों का सम्मान करें, परंतु अपने जीवन के निर्णय स्वयं लें और अपने विचारों की स्वतंत्रता को बनाए रखें। वे कहते हैं कि व्यक्ति को अपने उद्देश्य ऊँचे रखने चाहिए, क्योंकि जिसका लक्ष्य ऊँचा होता है, उसी का तीर ऊपर जाता है। लेखक ने अपने मत को सिद्ध करने के लिए इतिहास और पुराणों से अनेक उदाहरण दिए हैं, जैसे- सत्य के लिए राजा हरिश्चंद्र का त्याग, अपनी मर्यादा के लिए महाराणा प्रताप का संघर्ष, आत्मनिर्भरता के कारण तुलसीदास की कीर्ति, राम-लक्ष्मण और हनुमान का पराक्रम, तथा एकलव्य का बिना गुरु के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनना। अंत में वे यह निष्कर्ष देते हैं कि आत्मनिर्भरता की यही भावना मनुष्य को सामान्य से उच्च बनाती है और उसके जीवन को सार्थक करती है।
English: In this essay, Acharya Ramchandra Shukla describes the virtue of self-reliance as essential for a dignified life. He advises the youth to respect their elders but to make their own life decisions and maintain their freedom of thought. He says that one must keep their objectives high because the one whose aim is high, their arrow goes high. To prove his point, the author gives many examples from history and mythology, such as King Harishchandra's sacrifice for truth, Maharana Pratap's struggle for his dignity, Tulsidas's fame due to his self-reliance, the valor of Ram-Lakshman and Hanuman, and Ekalavya's journey to becoming the best archer without a guru. In the end, he concludes that it is this very spirit of self-reliance that elevates a person from the ordinary to the extraordinary and makes their life meaningful.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस निबंध का केंद्रीय भाव आत्मनिर्भरता, मानसिक स्वतंत्रता और स्वावलंबन के महत्व को प्रतिपादित करना है। लेखक का मानना है कि मनुष्य का भाग्य उसके अपने ही हाथों में होता है और सच्ची उन्नति दूसरों पर निर्भर रहकर नहीं, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होकर ही प्राप्त की जा सकती है। यह निबंध युवाओं को प्रेरित करता है कि वे दूसरों के अंधभक्त बनने के बजाय स्वयं विचार करें, अपनी सम्मति स्वयं स्थिर करें और दृढ़ निश्चय के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ें। लेखक के अनुसार, यही वह 'चित्तवृत्ति' (मन की अवस्था) है जो महान सफलताओं और एक उद्देश्यपूर्ण जीवन का आधार है।
English: The central theme of this essay is to propound the importance of self-reliance, mental freedom, and self-support. The author believes that a person's destiny is in their own hands and that true progress cannot be achieved by depending on others, but only by standing on one's own feet. This essay inspires the youth to think for themselves, form their own opinions, and move towards their goals with firm determination instead of becoming blind followers of others. According to the author, this is the very 'chittavritti' (state of mind) that is the foundation of great successes and a purposeful life.
पात्रों का चरित्र-चित्रण (Character Sketch)
(इस निबंध में वास्तविक पात्र नहीं हैं, पर लेखक ने कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियों का उदाहरण दिया है।)
महाराणा प्रताप: हिन्दी:
स्वाभिमानी: उन्होंने अधीनतापूर्वक जीने की सलाह को ठुकरा दिया।
दृढ़ निश्चयी: वे जंगल-जंगल भटके और परिवार को भूखा देखा, पर अपने निश्चय से नहीं हटे।
आत्मनिर्भर: वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिंता जितनी स्वयं को हो सकती है, उतनी किसी और को नहीं।
English:
Self-respecting: He rejected the advice to live in subservience.
Determined: He wandered in forests and saw his family starve, but did not waver from his resolve.
Self-reliant: He knew that one cares for one's own dignity more than anyone else can.
एकलव्य:
हिन्दी:
अध्यवसायी: वे बिना किसी गुरु या संगी-साथी के जंगल में अकेले ही अभ्यास करते रहे।
आत्मनिर्भर: उन्होंने किसी बाहरी सहायता के बिना स्वयं को एक महान धनुर्धर बनाया।
लक्ष्य के प्रति समर्पित: उनकी चित्तवृत्ति ने उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद की।
English:
Perseverant: He practiced alone in the forest without any teacher or companion.
Self-reliant: He made himself a great archer without any external help.
Dedicated to his goal: His state of mind helped him achieve his aim.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
मर्यादापूर्वक | सम्मान के साथ, प्रतिष्ठा से | अमर्यादित, असम्मानजनक |
आकांक्षाएँ | इच्छाएँ, अभिलाषाएँ | - |
पतन | गिरावट, अवनति | उत्थान, उन्नति |
उच्चाशय | ऊँचे विचारों वाला | नीचाशय, क्षुद्र |
दृढ़चित्त | दृढ़ निश्चय वाला | चंचल, अस्थिर मन वाला |
सम्मति | सलाह, राय | - |
निर्ध्वद्वता | द्वंद्व या संघर्ष रहित अवस्था | द्वंद्व, संघर्ष |
अध्यवसायी | परिश्रमी, उद्यमी | आलसी, अकर्मण्य |
आलंबन | सहारा, आधार | निरालंब, बेसहारा |
सार्थक | अर्थपूर्ण | निरर्थक |
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: लेखक युवाओं को दूसरों पर पूरी तरह निर्भर रहने की सलाह देते हैं।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं कि जो युवा दूसरों का सहारा चाहते हैं, वे "आत्मसंस्कार के कार्य में उन्नति नहीं कर सकते।"
कथन २: राजा हरिश्चंद्र ने मुसीबतें आने पर सत्य का मार्ग छोड़ दिया था।
उत्तर: गलत। कारण, पाठ में लिखा है, "राजा हरिश्चंद्र पर इतनी इतनी विपत्तियाँ आईं, पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा।"
कथन ३: तुलसीदास जी की प्रसिद्धि का कारण उनकी आत्मनिर्भरता और मानसिक स्वतंत्रता थी।
उत्तर: सही। कारण, लेखक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उनकी सर्वप्रियता "सब इसी मानसिक स्वतंत्रता, निर्ध्वद्वता और आत्मनिर्भरता के कारण" थी।
कथन ४: लेखक के अनुसार, जिसका लक्ष्य नीचा होता है, उसका तीर ऊपर जाता है।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं, "जितना ही जो मनुष्य अपना लक्ष्य ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।"
कथन ५: शिवाजी महाराज ने औरंगजेब पर बहुत बड़ी सेना के साथ छापा मारा था।
उत्तर: गलत। कारण, उन्होंने "थोड़े वीर मराठा सिपाहियों को लेकर" औरंगजेब की बड़ी भारी सेना पर छापा मारा था।
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'प्रत्येक मनुष्य का भाग्य उसके हाथ में है।' - इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर: मैं इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ। यद्यपि परिस्थितियाँ और अवसर हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं, लेकिन अंततः हमारा भविष्य हमारे निर्णयों, परिश्रम और दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है। यदि हम आत्मनिर्भरता और दृढ़ निश्चय के साथ प्रयास करें, तो हम मुश्किल परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में मोड़ सकते हैं। एकलव्य का उदाहरण यही सिद्ध करता है कि गुरु न होने पर भी उसने अपने पुरुषार्थ से भाग्य का निर्माण किया। इसलिए, हमें भाग्य के भरोसे बैठने के बजाय अपने कर्मों से अपना भाग्य स्वयं लिखना चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सहमत, भाग्य, कर्म, परिश्रम, निर्णय, दृष्टिकोण, आत्मनिर्भरता, पुरुषार्थ।
प्रश्न २: लेखक ने 'व्यवहार में कोमल और उद्देश्यों में उच्च' होने की सलाह क्यों दी है?
उत्तर: लेखक ने यह सलाह इसलिए दी है क्योंकि सफलता और सम्मान पाने के लिए इन दोनों गुणों का संतुलन आवश्यक है। यदि हमारा उद्देश्य बहुत ऊँचा है, लेकिन हमारा व्यवहार दूसरों के प्रति कठोर और घमंड से भरा है, तो कोई हमारा साथ नहीं देगा और हम अकेले पड़ जाएँगे। वहीं, यदि हमारा व्यवहार तो बहुत कोमल है, लेकिन हमारे जीवन का कोई ऊँचा उद्देश्य ही नहीं है, तो हम कभी प्रगति नहीं कर पाएँगे। अतः, विनम्र व्यवहार हमें लोगों से जोड़ता है और ऊँचे उद्देश्य हमें जीवन में आगे बढ़ाते हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: संतुलन, कोमल व्यवहार, उच्च उद्देश्य, विनम्रता, प्रगति, सफलता, सम्मान।
प्रश्न ३: निबंध में दिए गए उदाहरणों में से आत्मनिर्भरता का कौन-सा उदाहरण आपको सबसे अधिक प्रेरित करता है और क्यों?
उत्तर: निबंध में दिए गए उदाहरणों में से मुझे एकलव्य का उदाहरण सबसे अधिक प्रेरित करता है। इसका कारण यह है कि एकलव्य के पास न तो कोई गुरु था, न संगी-साथी और न ही कोई साधन। उसके सामने सामाजिक बाधाएँ भी थीं। इसके बावजूद, केवल अपनी आत्मनिर्भरता, लगन और दृढ़ चित्तवृत्ति के सहारे उसने स्वयं को जंगल के बीच में एक महान धनुर्धर बना लिया। यह उदाहरण दिखाता है कि यदि व्यक्ति में सीखने की सच्ची लगन और आत्मनिर्भरता हो, तो वह किसी भी परिस्थिति में, बिना किसी बाहरी सहारे के भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रेरणा, एकलव्य, आत्मनिर्भरता, लगन, दृढ़ निश्चय, बिना सहारे के, लक्ष्य प्राप्ति, बाधाएँ।
प्रश्न ४: दूसरों की सलाह मानने और अंधभक्त होने में क्या अंतर है?
उत्तर: दूसरों की सलाह मानने और अंधभक्त होने में बहुत बड़ा अंतर है। दूसरों की सलाह मानने का अर्थ है अनुभवी और बुद्धिमान लोगों के विचारों को सम्मानपूर्वक सुनना, उन पर विचार करना और फिर अपनी बुद्धि का प्रयोग करके यह निर्णय लेना कि वह सलाह हमारे लिए उचित है या नहीं। इसके विपरीत, अंधभक्त होने का अर्थ है किसी व्यक्ति की बात को बिना सोचे-समझे, बिना कोई प्रश्न किए, आँख मूँदकर मान लेना। लेखक हमें सलाह मानने के लिए तो कहते हैं, लेकिन वे अंधभक्त होने से मना करते हैं ताकि हमारी अपनी विचार और निर्णय की स्वतंत्रता बनी रहे।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अंतर, सलाह मानना, विचार करना, अपनी बुद्धि का प्रयोग, अंधभक्त, आँख मूँदकर मानना, निर्णय की स्वतंत्रता।
प्रश्न ५: 'मैं राह ढूँढूँगा या राह निकालूँगा।' - यह दृष्टिकोण जीवन में सफलता के लिए क्यों आवश्यक है? उत्तर: यह दृष्टिकोण जीवन में सफलता के लिए इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह अटूट आत्मविश्वास, सकारात्मकता और पुरुषार्थ को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति पहले से बने-बनाए रास्तों पर निर्भर नहीं है। यदि उसे अपने लक्ष्य तक जाने का कोई रास्ता नहीं मिलता, तो वह निराश होकर बैठ नहीं जाता, बल्कि अपनी क्षमता और रचनात्मकता से नया रास्ता बनाने का साहस रखता है। यह 'problem-solver' वाली मानसिकता है। यही वह चित्तवृत्ति है जो मनुष्य को बाधाओं पर विजय प्राप्त करने और असंभव को संभव बनाने की शक्ति देती है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आत्मविश्वास, सकारात्मकता, पुरुषार्थ, नया रास्ता बनाना, रचनात्मकता, साहस, बाधाओं पर विजय।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: आत्ममर्यादा के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं?
उत्तर: लेखक के अनुसार, आत्ममर्यादा के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने से बड़ों का सम्मान करे तथा छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करे।
प्रश्न २: संजाल पूर्ण कीजिए: तुलसीदास जी को सर्वप्रियता और कीर्ति प्राप्त होने के कारण उत्तर:
मानसिक स्वतंत्रता
निर्ध्वद्वता
आत्मनिर्भरता
प्रश्न ३: अमेरिका महाद्वीप ढूँढ़ने वाले और सत्य की टेक न छोड़ने वाले का नाम लिखिए। उत्तर:
अमेरिका महाद्वीप ढूँढ़ने वाला: कोलंबस
सत्य की टेक न छोड़ने वाला: राजा हरिश्चंद्र
प्रश्न ४: महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने की सलाह क्यों नहीं मानी?
उत्तर: महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करने की सलाह इसलिए नहीं मानी क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा और सम्मान की चिंता जितनी व्यक्ति को स्वयं हो सकती है, उतनी चिंता कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता।
प्रश्न ५: लेखक के अनुसार, कौन-सी चित्तवृत्ति मनुष्य को सामान्य जनों से उच्च बनाती है? उत्तर: लेखक के अनुसार, आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और 'मैं राह ढूँढूँगा या राह निकालूँगा' वाली दृढ़ चित्तवृत्ति ही मनुष्य को सामान्य जनों से उच्च बनाती है, उसके जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण करती है।
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