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    3. कबीर - Kabir - Class 9 - Class 9 - Lokbharati

    Updated: 2 days ago

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    पाठ का प्रकार:  गद्य

    पाठ का शीर्षक: कबीर

    लेखक/कवि का नाम : हजारी प्रसाद द्विवेदी


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: प्रस्तुत पाठ में, लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने संत कबीर के व्यक्तित्व की अद्वितीयता पर प्रकाश डाला है । उन्होंने कबीर की तुलना तुलसीदास से करते हुए बताया है कि स्वभाव, संस्कार और दृष्टिकोण में दोनों बिल्कुल भिन्न थे । कबीर एक मस्त-मौला, फक्कड़ और निर्भीक व्यक्ति थे, जो किसी भी बात को बिना लाग-लपेट के कहते थे । वे सत्य के खोजी थे और सांसारिक मोह-माया से पूरी तरह मुक्त थे । उनका मानना था कि ईश्वर को पाने के लिए सबसे बड़ा बलिदान अपने अहंकार का करना पड़ता है । उनका आत्मविश्वास अटूट था और वे अपने ज्ञान तथा साधना पर कभी संदेह नहीं करते थे । लेखक के अनुसार, कबीर का यही अखंड आत्मविश्वास, फक्कड़पन और दृढ़ता उन्हें युग-प्रवर्तक बनाती है ।


    English: In this lesson, author Hazari Prasad Dwivedi highlights the unique personality of Saint Kabir. He compares Kabir to Tulsidas, stating that they were completely different in nature, upbringing, and perspective. Kabir was a carefree, unattached, and fearless individual who spoke his mind without any hesitation. He was a seeker of truth and was completely free from worldly attachments. He believed that the greatest sacrifice required to attain God is the sacrifice of one's ego. His self-confidence was unbreakable, and he never doubted his knowledge or his spiritual practices. According to the author, it was this unwavering self-confidence, carefree nature, and firmness that made Kabir an epoch-maker.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस पाठ का केंद्रीय भाव संत कबीर के विद्रोही, फक्कड़ और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व को प्रस्तुत करना है। लेखक यह स्पष्ट करते हैं कि कबीर केवल एक भक्त या संत नहीं थे, बल्कि वे हिंदी साहित्य के एक ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व थे जिनका अनुकरण करना असंभव है । पाठ का मूल संदेश यह है कि सच्ची भक्ति बाहरी आडंबरों या योग की जटिल क्रियाओं में नहीं, बल्कि आंतरिक ज्ञान, सत्य की खोज और अहंकार के त्याग में निहित है। कबीर का जीवन और उनकी वाणी इस बात का प्रमाण है कि अटूट आत्मविश्वास और निर्भीकता के साथ ही समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है ।


    English: The central idea of this lesson is to present Saint Kabir's rebellious, carefree, and self-confident personality. The author clarifies that Kabir was not just a devotee or a saint, but a unique personality in Hindi literature who is impossible to imitate. The core message of the text is that true devotion lies not in external pretenses or complex yogic practices, but in inner knowledge, the search for truth, and the renunciation of ego. Kabir's life and his teachings are proof that social change can be brought about only with unwavering self-confidence and fearlessness.


    पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)


    कबीर:

    हिन्दी:

    • अद्वितीय व्यक्तित्व: कबीर का व्यक्तित्व हिंदी साहित्य में अद्वितीय माना गया है, जिनकी तुलना केवल तुलसीदास से की जा सकती है, पर वे उनसे स्वभाव में भिन्न थे ।


    • मस्त-मौला और फक्कड़: वे सिर से पैर तक मस्त-मौला थे, जो पुराने कर्मों का हिसाब नहीं रखते और दुनिया की होशियारी की परवाह नहीं करते थे ।


    • निर्भीक और स्पष्टवादी: वे अपनी बात को बिना किसी झिझक या संकोच के, साफ-साफ कह देते थे ।


    • सत्य के जिज्ञासु: वे सत्य के खोजी थे और कोई भी मोह-ममता उन्हें उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी ।


    • अखंड आत्मविश्वास: उन्हें अपने ज्ञान, गुरु और साधना पर अटूट विश्वास था और वे कभी भी संदेह नहीं करते थे ।


    • युग-प्रवर्तक: उनमें युगावतारी शक्ति और युग-प्रवर्तक की दृढ़ता थी, जिसके कारण वे समाज में परिवर्तन ला सके ।


    English:

    • Unique Personality: Kabir's personality is considered unique in Hindi literature, comparable only to Tulsidas, yet different from him in nature.


    • Carefree and Unattached: He was carefree from head to toe, someone who didn't keep track of past deeds and didn't care for worldly cleverness.


    • Fearless and Outspoken: He would state his point clearly, without any hesitation or reservation.


    • Seeker of Truth: He was a seeker of truth, and no affection or attachment could distract him from his path.


    • Unwavering Self-Confidence: He had unbreakable faith in his knowledge, his guru, and his spiritual practices, and he never harbored any doubts.


    • Epoch-Maker: He possessed the power of an epoch-making avatar and the firmness of a trendsetter, which enabled him to bring about change in society.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    फक्कड़

    मस्त, बेपरवाह

    दुनियादार, चिंतित

    प्रतिद्वंद्वी

    विपक्षी, शत्रु

    मित्र, सहयोगी

    अद्वितीय

    अनूठा, बेजोड़

    साधारण, आम

    अक्खड़ता

    उग्रता, कठोरता

    विनम्रता, कोमलता

    जिज्ञासु

    उत्सुक, खोजी

    उदासीन, विरक्त

    क्रांतदर्शी

    दूरदर्शी, भविष्यद्रष्टा

    अदूरदर्शी

    विश्वास

    यकीन, आस्था

    अविश्वास, संदेह

    साधना

    तपस्या, अभ्यास

    विलास, निष्क्रियता

    वीर

    शूरवीर, साहसी

    कायर, डरपोक

    कोमल

    मृदु, नरम

    कठोर, कड़ा


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: लेखक के अनुसार महिमा में कबीर के एकमात्र प्रतिद्वंद्वी तुलसीदास थे। उत्तर: सही। कारण, पाठ में स्पष्ट लिखा है, "महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वंद्वी जानता है, तुलसीदास" ।


    कथन २: कबीर को मोह-ममता अपने सत्य के मार्ग से आसानी से विचलित कर देती थी। उत्तर: गलत। कारण, पाठ के अनुसार, "कोई मोह-ममता उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी" ।


    कथन ३: कबीर के अनुसार प्रेम खेतों में उपजता है और बाजार में बिकता है। उत्तर: गलत। कारण, कबीर कहते हैं, "यह प्रेम किसी खेत में नहीं उपजता, किसी हाट में नहीं बिकता" ।


    कथन ४: कबीर का मानना था कि यदि कोई गलती होती है, तो वह प्रक्रिया या मार्ग में होती है, स्वयं उनमें नहीं। उत्तर: सही। कारण, पाठ में उल्लेख है, "उनके मत से गलती बराबर प्रक्रिया में होती थी, मार्ग में होती थी, साधन में होती थी" ।


    कथन ५: अक्खड़ता कबीरदास का सर्वप्रधान गुण था। उत्तर: गलत। कारण, लेखक स्पष्ट रूप से कहते हैं, "अक्खड़ता कबीरदास का सर्वप्रधान गुण नहीं हैं" ।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'कबीर संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे', इस विषय पर अपने विचार लिखिए। उत्तर: मेरे विचार में, कबीर निश्चित रूप से एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने केवल भक्ति और ज्ञान का उपदेश नहीं दिया, बल्कि समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास, जाति-पाँति और धार्मिक भेदभाव पर भी कठोर प्रहार किया। वे बिना किसी डर के हिंदू और मुसलमान दोनों के आडंबरों की आलोचना करते थे। उन्होंने 'ऊँच-नीच भावना' को मजाक और आक्रमण का विषय बनाया । उनका 'घर फूँकने' का दर्शन  सांसारिक मोह और सामाजिक कुरीतियों को त्यागकर एक नए, समतावादी समाज की स्थापना का प्रतीक है। इस प्रकार, उन्होंने लोगों को केवल मोक्ष का मार्ग नहीं दिखाया, बल्कि एक बेहतर समाज बनाने के लिए भी प्रेरित किया।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: समाज सुधारक, पाखंड, अंधविश्वास, जाति-भेद, निर्भीक आलोचक, समतावादी समाज, आडंबर, कुरीतियाँ।

    प्रश्न २: कबीर के 'मस्त-मौला' स्वभाव से आज के युवा क्या प्रेरणा ले सकते हैं? उत्तर: कबीर का 'मस्त-मौला' स्वभाव आज के युवाओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। इसका अर्थ दुनिया से लापरवाह होना नहीं, बल्कि व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त होना है। आज के युवा अक्सर सामाजिक दबाव, अतीत की असफलताओं और भविष्य की अनिश्चितता के बोझ तले दबे रहते हैं। कबीर का व्यक्तित्व सिखाता है कि जो अतीत का चिट्ठा खोले रहता है, वह भविष्य का द्रष्टा नहीं बन सकता । युवाओं को कबीर की तरह अपने लक्ष्य पर दृढ़ रहना चाहिए और दुनिया की नकारात्मक टिप्पणियों की परवाह नहीं करनी चाहिए । सकारात्मक सोच के साथ, बिना डरे अपने सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ना ही 'मस्त-मौला' होने का सही अर्थ है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रेरणा, सामाजिक दबाव, चिंता-मुक्त, लक्ष्य पर दृढ़, सकारात्मक सोच, आत्मनिर्भरता, निर्भीकता।

    प्रश्न ३: "सिर देकर सौदा किया जा सकता था" - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि ईश्वर-प्रेम में अहंकार का त्याग क्यों आवश्यक है? उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि ईश्वर को पाना कोई आसान सौदा नहीं है; इसके लिए सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, जो है 'सिर देना' अर्थात अपने अहंकार और 'मैं' के भाव का पूरी तरह से त्याग कर देना । ईश्वर-प्रेम में अहंकार का त्याग इसलिए आवश्यक है क्योंकि अहंकार व्यक्ति को स्वयं तक सीमित कर देता है। जब तक व्यक्ति में 'मैं' का भाव रहता है, तब तक वह सर्वव्यापी ईश्वर से एकाकार नहीं हो सकता। अहंकार एक दीवार की तरह है जो भक्त और भगवान के बीच खड़ी रहती है। कबीर के अनुसार, जब व्यक्ति अपना सिर उतारकर धरती पर रख देता है, यानी अहंकार शून्य हो जाता है, तभी वह उस अखंड प्रेम को पाने का अधिकारी बनता है ।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अहंकार का त्याग, सर्वस्व समर्पण, आत्म-बलिदान, 'मैं' का भाव, एकाकार होना, प्रेम की शर्त, आध्यात्मिक उन्नति।

    प्रश्न ४: लेखक ने कबीर और तुलसीदास के व्यक्तित्व में क्या अंतर बताया है? उत्तर: लेखक के अनुसार, यद्यपि कबीर और तुलसीदास दोनों ही भक्त थे, परंतु उनके स्वभाव, संस्कार और दृष्टिकोण में बड़ा अंतर था । पाठ में उत्तर भारत के हठयोगियों और दक्षिण के भक्तों के माध्यम से इस अंतर को समझाया गया है। एक (कबीर की तरह) वह था जो टूट जाता था पर झुकता नहीं था, जिसके लिए समाज की ऊँच-नीच की भावना मजाक और आक्रमण का विषय थी । दूसरा (तुलसीदास की तरह) वह था जो झुक जाता था पर टूटता नहीं था, जिसके लिए सामाजिक मर्यादा महत्वपूर्ण थी । कबीर का व्यक्तित्व फक्कड़, अक्खड़ और हर बंधन को तोड़कर आगे बढ़ने वाला था, जबकि तुलसीदास का व्यक्तित्व अधिक मर्यादित और समन्वयवादी था।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: स्वभाव में भिन्न, दृष्टिकोण, संस्कार, हठयोगी, भक्त, टूटता पर झुकता नहीं, मर्यादा, फक्कड़पन।

    प्रश्न ५: 'बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है' - कबीर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? उत्तर: मैं कबीर के इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ। कबीर का मानना था कि केवल शारीरिक व्यायाम और मानसिक क्रियाएँ, जैसे कि हठयोग, चरम सत्य नहीं हो सकतीं । यदि इन क्रियाओं के पीछे तत्व का ज्ञान नहीं है, तो वे केवल एक 'मानसिक कवायद' बनकर रह जाती हैं । ज्ञान हमें सही और गलत का भेद बताता है और साधना का उद्देश्य स्पष्ट करता है। बिना ज्ञान के योग एक दिशाहीन नाव की तरह है, जो कहीं भी नहीं पहुँचती। ज्ञान वह प्रकाश है जो योग के मार्ग को आलोकित करता है और साधक को भ्रम से बचाकर परम सत्य तक ले जाता है। इसलिए, कबीर ने स्पष्ट कहा कि क्रिया बाह्य है, असली चीज़ ज्ञान है ।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: ज्ञान, योग, शारीरिक व्यायाम, मानसिक कवायद, चरम सत्य, दिशाहीन, भ्रम, तत्व-ज्ञान, आंतरिक साधना।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: पाठ के आधार पर मस्त-मौला के लक्षण लिखिए। उत्तर: पाठ के आधार पर मस्त-मौला के निम्नलिखित लक्षण हैं:

    • वह पुराने कर्मों और कृत्यों का हिसाब नहीं रखता है ।


    • वह वर्तमान के कर्मों को ही सब कुछ नहीं समझता ।


    • वह भविष्य में सब कुछ झाड़-फटकार कर आगे निकल जाता है ।


    • वह दुनियादारों की तरह किए-कराए का लेखा-जोखा नहीं रखता ।


    • वह दुनिया के माप-जोख से अपनी सफलता का हिसाब नहीं करता ।


    प्रश्न २: कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति क्यों कहा गया है? उत्तर: लेखक ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति कहा है क्योंकि हिंदी साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में उनके जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई दूसरा लेखक उत्पन्न नहीं हुआ । उनकी मस्ती, फक्कड़ाना स्वभाव और सब कुछ झाड़-फटकारकर चल देने वाले तेज ने उन्हें सबसे अलग बना दिया है । उनकी वाणी में उनका सर्वजयी व्यक्तित्व विराजता है, जिसके कारण उनकी वाणी का अनुकरण करना भी संभव नहीं है । इसी अनूठे और बेपरवाह व्यक्तित्व के कारण वे अद्वितीय हैं।


    प्रश्न ३: कबीर ने संसार में भटकते हुए जीवों के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनाया? उत्तर: कबीर ने संसार में भटकते हुए जीवों को देखकर उन पर करुणा के आँसू नहीं बहाए । इसके विपरीत, वे और भी कठोर होकर उन्हें फटकार बताते थे ताकि वे सही मार्ग पर आ सकें । वे संसार में भ्रम में पड़े लोगों पर दया करने को उचित नहीं समझते थे । उनका मानना था कि मुक्ति के मार्ग पर चलने वालों को आराम नहीं करना चाहिए और कर्म की रेखा को मिटाने वाला ही सच्चा संत होता है । वे उन्हें सुरत और विरत का उपदेश देते थे ।


    प्रश्न ४: कबीर के अखंड आत्मविश्वास को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कबीर का आत्मविश्वास अखंड और अटूट था। यह आत्मविश्वास उनकी घर-फूँक मस्ती और फक्कड़पन का परिणाम था । उन्होंने अपने ज्ञान, अपने गुरु और अपनी साधना को कभी भी संदेह की दृष्टि से नहीं देखा । उनका अपने प्रति विश्वास कभी डिगा नहीं । यदि कभी कोई गलती महसूस भी हुई, तो उन्होंने इसका कारण स्वयं को नहीं माना, बल्कि उनका मत था कि गलती प्रक्रिया में, मार्ग में या साधन में होती है । इसी अखंड आत्मविश्वास के बल पर वे एक वीर साधक बन सके ।


    प्रश्न ५: प्रेम को पाने के लिए कबीर ने क्या शर्त बताई है? उत्तर: कबीर के अनुसार, प्रेम न तो किसी खेत में उपजता है और न ही किसी बाजार में बिकता है । इसे पाने की एक ही शर्त है, और वह शर्त राजा और प्रजा सबके लिए समान है। वह शर्त है- अपने 'सिर' को उतारकर धरती पर रख देना । यहाँ 'सिर देने' का अर्थ है अपने अहंकार, गर्व और स्वार्थ का पूरी तरह से त्याग कर देना। कबीर का मानना था कि जिसमें यह साहस नहीं है, उस कायर को हरि-प्रेम प्राप्त नहीं हो सकता । ईश्वर से प्रेम का सौदा सिर देकर ही किया जा सकता है ।

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