7.आत्मत्राण- (Aatmatran) - Class 10 - Sparsh Bhag 2
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Updated: 14 hours ago
आत्मत्राण (Aatmatran)
Class 10 - Hindi Course B (Sparsh Bhag 2) | Author: रवींद्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Tagore)
1. पाठ का सार (Quick Revision Summary)
ईश्वर से शक्ति की याचना: कवि ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं करते कि वे उन्हें विपत्तियों (मुसीबतों) से बचाएं, बल्कि वे यह चाहते हैं कि ईश्वर उन्हें विपत्तियों का सामना करने की शक्ति और निर्भयता प्रदान करें।
English: Plea for Strength from God: The poet does not pray to God to save him from calamities (troubles), but he wants God to grant him the strength and fearlessness to face the calamities.
दुख सहने की क्षमता: कवि कहते हैं कि यदि उनके दुखी मन को सांत्वना न मिले तो भी कोई बात नहीं, लेकिन वे अपने दुखों पर विजय पाने की शक्ति चाहते हैं। वे ईश्वर से दुख दूर करने की नहीं, बल्कि दुख सहने की शक्ति माँगते हैं।
English: Ability to Bear Suffering: The poet says it doesn't matter if his grieving heart doesn't receive consolation, but he wants the strength to overcome his sorrows. He asks God not to remove the sorrow, but for the strength to bear it.
आत्मविश्वास और पौरुष: यदि कोई मददगार न मिले, तो भी कवि का अपना बल और पौरुष (हिम्मत) कम नहीं होना चाहिए। अगर संसार में केवल हानि ही उठानी पड़े और धोखा ही मिले, तब भी मन में निराशा (क्षय) नहीं होनी चाहिए।
English: Self-confidence and Courage: Even if no helper is found, the poet's own strength and courage should not diminish. Even if he has to face only losses and deception in the world, there should still be no despair in his mind.
भार वहन करने की शक्ति: कवि ईश्वर से अपना बोझ (दुख/कष्ट) कम करने की प्रार्थना नहीं करते, बल्कि उस बोझ को निर्भय होकर उठाने की ताकत माँगते हैं। वे संघर्षों से भागना नहीं, बल्कि उनसे लड़ना चाहते हैं।
English: Strength to Bear the Burden: The poet does not pray to God to reduce his burden (sorrow/suffering), but asks for the strength to carry that burden fearlessly. He does not want to run away from struggles but wants to fight them.
सुख और दुख में ईश्वर स्मरण: कवि चाहते हैं कि सुख के दिनों में वे सिर झुकाकर ईश्वर को हर पल याद रखें। और दुख की रात में जब पूरी दुनिया उन्हें धोखा दे, तब भी उनके मन में ईश्वर के प्रति कोई संदेह (शक) उत्पन्न न हो।
English: Remembering God in Joy and Sorrow: The poet wants to remember God every moment with a bowed head in days of happiness. And in the night of sorrow, when the whole world deceives him, even then no doubt should arise in his mind towards God.
2. शब्द-संपदा (Vocabulary)
शब्द (Word) | अर्थ (Hindi Meaning) | English Meaning |
विपदा | मुसीबत / संकट | Calamity / Trouble |
करुणामय | दयालु (ईश्वर) | Compassionate (God) |
त्राण | रक्षा / भय से छुटकारा | Protection / Salvation from fear |
व्यथित | दुखी / पीड़ित | Distressed / Pained |
वंचना | धोखा / ठगा जाना | Deception / Fraud |
पौरुष | शक्ति / पराक्रम | Valour / Strength |
क्षय | नाश / कमी / निराशा | Decay / Loss / Despair |
अनामय | रोगरहित / स्वस्थ | Healthy / Disease-free |
अनुनय | विनती / प्रार्थना | Entreaty / Request |
निखिल | संपूर्ण / सारा | Entire / Whole |
संशय | शक / संदेह | Doubt |
3. चरित्र चित्रण (Character Sketches)
कवि (The Poet - A Devotee)
स्वाभिमानी और कर्मठ (Self-respecting & Hardworking): कवि ईश्वर पर पूरी तरह निर्भर होकर निष्क्रिय नहीं बैठना चाहते। वे संघर्षों का सामना स्वयं करना चाहते हैं, न कि ईश्वर से चमत्कार की उम्मीद करते हैं।
English: The poet does not want to sit idly by depending entirely on God. He wants to face struggles himself, rather than expecting miracles from God.
अटूट विश्वासी (Unwavering Believer): दुख और धोखे की स्थिति में भी कवि ईश्वर पर संदेह नहीं करना चाहते। उनका विश्वास सुख और दुख दोनों में समान रहता है।
English: Even in situations of sorrow and deception, the poet does not want to doubt God. His faith remains the same in both happiness and sorrow.
4. योग्यता-आधारित प्रश्न (Competency-Based Questions)
A. अभिकथन और तर्क (Assertion & Reasoning)
प्रश्न 1: अभिकथन (A): कवि ईश्वर से विपत्तियों को दूर करने की प्रार्थना नहीं करता। तर्क (R): कवि को ईश्वर की शक्ति पर भरोसा नहीं है और उन्हें लगता है कि ईश्वर उनकी मदद नहीं करेंगे।
उत्तर: (ग) A सही है, R गलत है। (कवि को ईश्वर पर पूरा भरोसा है, लेकिन वे आत्म-निर्भर बनना चाहते हैं और आत्म-बल माँगते हैं, न कि दया)।
प्रश्न 2: अभिकथन (A): 'आत्मत्राण' कविता अन्य प्रार्थना गीतों से अलग है। तर्क (R): अन्य गीतों में भक्त ईश्वर से दुख दूर करने की विनती करते हैं, जबकि इसमें कवि दुख सहने और संघर्ष करने की शक्ति माँग रहे हैं। उत्तर: (क) A और R दोनों सही हैं, तथा R, A की सही व्याख्या करता है।
B. स्थिति-आधारित विश्लेषण (Situation Analysis) स्थिति (Situation): एक छात्र परीक्षा में कठिन प्रश्नपत्र देखकर घबरा जाता है और भगवान से प्रार्थना करता है कि काश पेपर आसान हो जाए या रद्द हो जाए। प्रश्न (Question): 'आत्मत्राण' कविता के संदेश के अनुसार उस छात्र को क्या प्रार्थना करनी चाहिए?
उत्तर (Answer): उस छात्र को यह प्रार्थना करनी चाहिए कि "हे ईश्वर! मुझे इस कठिन प्रश्नपत्र का सामना करने का साहस और बुद्धि दो। मैं घबराऊँ नहीं, बल्कि अपनी मेहनत और ज्ञान से इसे हल कर सकूँ।" उसे चुनौतियों से बचने की नहीं, उनसे लड़ने की शक्ति मांगनी चाहिए।
C. आशय स्पष्टीकरण (Intent/Inference)
प्रश्न 1: "हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही, तो भी मन में ना मानूँ क्षय।"
उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि यदि जीवन के संघर्ष में कवि को केवल नुकसान ही उठाना पड़े और लाभ के बदले धोखा ही मिले, तब भी वे निराश न हों। उनका मनोबल न टूटे और वे हार मानकर दुखी न हों। वे हर स्थिति में सकारात्मक बने रहना चाहते हैं।
प्रश्न 2: "नत शिर होकर सुख के दिन में, तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।"
उत्तर: कवि कहना चाहते हैं कि सुख के दिनों में अक्सर लोग ईश्वर को भूल जाते हैं और अहंकारी हो जाते हैं। इसलिए वे प्रार्थना करते हैं कि सुख के समय भी वे विनम्र (नत शिर) रहें और हर पल ईश्वर की कृपा को पहचानते रहें। सुख में भी ईश्वर का स्मरण बना रहे।
5. प्रश्न-उत्तर (Subjective Q&A)
A. लघु उत्तरीय (Short Answer - 30-40 Words)
प्रश्न 1: 'आत्मत्राण' का क्या अर्थ है? कविता के संदर्भ में इसकी सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 'आत्मत्राण' का अर्थ है - 'आत्मा की रक्षा' या 'स्वयं का बचाव'। कविता में कवि ईश्वर से यह नहीं कहते कि तुम मेरी रक्षा करो, बल्कि वे स्वयं अपनी रक्षा करने की शक्ति माँगते हैं। इसलिए यह शीर्षक पूर्णतः सार्थक है।
प्रश्न 2: "सहायक न मिले तो अपना बल पौरुष न हिले" - कवि ऐसा क्यों कहते हैं?
उत्तर: कवि आत्म-निर्भरता में विश्वास रखते हैं। वे चाहते हैं कि मुसीबत के समय यदि कोई मदद करने वाला न भी हो, तो भी उनका अपना आत्मविश्वास और हिम्मत डगमगाए नहीं। वे अपनी लड़ाई खुद लड़ने में सक्षम होना चाहते हैं।
प्रश्न 3: "मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही" - पंक्ति का भाव क्या है?
उत्तर: कवि कहते हैं कि हे ईश्वर! आप मेरे कष्टों के भार को कम न करें और न ही मुझे झूठी तसल्ली दें। मुझे बस इतनी शक्ति दें कि मैं उस भार को निर्भय होकर उठा सकूँ और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकूँ।
प्रश्न 4: कवि 'दुख-ताप' से व्यथित चित्त के लिए क्या कामना करते हैं?
उत्तर: कवि कामना करते हैं कि दुखों की पीड़ा से परेशान उनके मन को भले ही ईश्वर सांत्वना न दें, लेकिन उन्हें इतनी आंतरिक शक्ति अवश्य दें कि वे उन दुखों पर विजय प्राप्त कर सकें (दुख को मैं कर सकूँ सदा जय)।
प्रश्न 5: सुख और दुख में कवि का ईश्वर के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर: सुख में कवि विनम्र बनकर ईश्वर को याद रखना चाहते हैं ताकि अहंकार न आए। दुख में वे ईश्वर से शक्ति माँगते हैं और चाहते हैं कि दुनिया के धोखे के बावजूद उनके मन में ईश्वर के प्रति कोई संदेह पैदा न हो।
B. दीर्घ उत्तरीय/मूल्यपरक (Long/Value-Based - 100 Words)
प्रश्न 1: रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रार्थना 'आत्मत्राण' पारंपरिक भक्ति भावना से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए। उत्तर: पारंपरिक भक्ति भावना में भक्त स्वयं को ईश्वर पर पूरी तरह छोड़ देता है और उनसे अपने कष्टों को दूर करने, सुख-समृद्धि देने और पापों से मुक्ति की भीख माँगता है। भक्त ईश्वर को 'तारनहार' मानता है जो सब कुछ ठीक कर देंगे। इसके विपरीत, 'आत्मत्राण' में कवि ईश्वर को एक 'सहयोगी' या 'शक्ति का स्रोत' मानते हैं। वे "विपदाओं से मुझे बचाओ" नहीं कहते, बल्कि "विपदा में पाऊँ न भय" कहते हैं। यह प्रार्थना दैन्य भाव की नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान, साहस और कर्मठता की है। यह मनुष्य को संघर्षशील और आत्म-निर्भर बनाती है, न कि भाग्यवादी।
प्रश्न 2: "दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही, उस दिन ऐसा हो करुणामय, तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।" - इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर: यह पंक्ति मनुष्य की आस्था की असली परीक्षा को दर्शाती है। अक्सर जब मनुष्य पर भारी विपत्ति आती है या पूरी दुनिया उसे धोखा देती है, तो उसका विश्वास डगमगा जाता है और वह ईश्वर को कोसने लगता है कि "मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?"। कवि संदेश देते हैं कि घोर निराशा और अकेलेपन के क्षणों में भी हमारी आस्था अडिग रहनी चाहिए। परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, हमें ईश्वर के न्याय और करुणा पर संदेह नहीं करना चाहिए। यही सच्ची भक्ति और आत्म-बल की पहचान है।
6. व्याकरण (Integrated Grammar)
(Based on Class 10 Hindi Course B - Sparsh Pattern)
प्रश्न 1: पदबंध पहचानिए: "दुख-ताप से व्यथित चित्त को सांत्वना दो।" (रेखांकित: दुख-ताप से व्यथित)
उत्तर: विशेषण पदबंध (यह 'चित्त' की विशेषता बता रहा है)।
प्रश्न 2: समास विग्रह और भेद बताइए: "करुणामय"
उत्तर: करुणा से मय (युक्त) - तत्पुरुष समास (करण तत्पुरुष)।
प्रश्न 3: संधि विच्छेद कीजिए: "आत्मत्राण"
उत्तर: आत्म + त्राण = आत्मत्राण (दीर्घ संधि)।
7. सामान्य त्रुटियाँ (Common Student Errors)
कविता का मुख्य भाव:
त्रुटि: छात्र लिखते हैं कि कवि ईश्वर से मदद माँग रहे हैं।
सुधार: कवि ईश्वर से 'मदद' (समस्या हल करने की) नहीं, बल्कि 'शक्ति' (खुद समस्या हल करने की) माँग रहे हैं।
'त्राण' शब्द का अर्थ:
त्रुटि: कुछ छात्र 'त्राण' का अर्थ 'प्राण' या 'जीवन' समझ लेते हैं।
सुधार: 'त्राण' का अर्थ है 'रक्षा' या 'भय से मुक्ति'। आत्मत्राण मतलब 'अपनी रक्षा करने की शक्ति'।
ईश्वर पर संशय:
त्रुटि: छात्र प्रश्न का उत्तर देते समय 'नहीं' शब्द भूल जाते हैं और लिखते हैं कि कवि ईश्वर पर संशय करते हैं।
सुधार: कवि कहते हैं कि वे ईश्वर पर "संशय नहीं" करना चाहते।
End
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