8-वाख (Vakh) - Class 9 - Kshitij 1
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वाख (Vakh)
Class 9 - Hindi (Kshitij - 1) Poetess: ललद्यद (Laldyad)
1. पाठ का सार (Quick Revision Summary)
जीवन की नश्वरता: कवयित्री मानती हैं कि यह जीवन कच्चे धागे की रस्सी जैसा नश्वर है, जिसके सहारे वे शरीर रूपी नाव को खींच रही हैं। वे ईश्वर से मिलने के लिए व्याकुल हैं, लेकिन उनके सारे प्रयास कच्चे सकोरे (मिट्टी के बर्तन) से पानी टपकने की तरह व्यर्थ हो रहे हैं।
English: The poetess believes that this life is mortal like a rope of raw thread, with which she is pulling the boat of the body. She is anxious to meet God, but all her efforts are going in vain like water leaking from an unbaked clay pot.
मध्यम मार्ग और समानता: भोग-विलास में लिप्त रहने से ईश्वर नहीं मिलते, और त्याग/तपस्या करने से मन में अहंकार आ जाता है। इसलिए कवयित्री 'सम' (इंद्रियों का शमन/संतुलन) होने की सलाह देती हैं, जिससे चेतना व्यापक होगी और अज्ञान का द्वार खुलेगा।
English: God is not found by indulging in worldly pleasures, and renunciation/penance leads to ego. Therefore, the poetess advises to be 'Sam' (balanced/controlling senses), which will expand consciousness and open the door of ignorance.
आत्मलोचन और पश्चाताप: जीवन के अंतिम समय में कवयित्री को एहसास होता है कि उन्होंने हठयोग और व्यर्थ के कर्मों में जीवन बिता दिया। जब वे अपनी 'जेब टटोलती' हैं (आत्म-विश्लेषण करती हैं), तो उनके पास ईश्वर (मांझी) को देने के लिए सत्कर्म रूपी 'उतराई' (किराया) नहीं है।
English: At the end of life, the poetess realizes that she spent her life in Hatha Yoga and useless actions. When she 'searches her pocket' (self-analysis), she has no good deeds as 'fare' to pay God (the boatman).
ईश्वर की सर्वव्यापकता: ईश्वर (शिव) कण-कण में बसता है। हमें हिंदू और मुसलमान का भेद नहीं करना चाहिए। सच्चा ज्ञानी वही है जो 'स्वयं को पहचानता' है, क्योंकि आत्म-ज्ञान से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है।
English: God (Shiva) resides in every particle. We should not discriminate between Hindu and Muslim. A truly wise person is one who 'knows himself', because self-knowledge leads to the realization of God.
2. शब्द-संपदा (Vocabulary)
शब्द (Word) | अर्थ (Hindi Meaning) | English Meaning |
वाख | वाणी / कश्मीरी शैली की कविता | Speech / A style of Kashmiri poetry |
कच्चे सकोरे | स्वाभाविक रूप से कमजोर (मिट्टी का बर्तन) | Fragile / Unbaked clay pot (Symbol of weak body) |
रस्सी | साँस / प्राण (जीवन का सहारा) | Breath / Rope (Support of life) |
सम | अंतःकरण और इंद्रियों का निग्रह (संतुलन) | Control of senses / Equanimity |
साँकल | कुंडी / जंजीर | Door latch / Chain |
सुषुम-सेतु | सुषुम्ना नाड़ी (हठयोग का एक अंग) | Sushumna Nadi (Bridge in Hatha Yoga) |
टटोली | खोजी / देखी | Searched / Checked |
माझी | नाविक (यहाँ ईश्वर/गुरु) | Boatman (Here God/Guru) |
उतराई | मेहनताना / सत्कर्म | Fare / Wages (Good deeds) |
थल-थल | कण-कण / सर्वत्र | Everywhere / Every particle |
शिव | ईश्वर / परमात्मा | God / Shiva |
3. महत्वपूर्ण विचार बिंदु (Key Concepts)
ललद्यद का दर्शन (Philosophy of Laldyad)
समन्वयवाद (Synthesis): ललद्यद ने शैव धर्म (कश्मीर शैव मत) और सूफी मत का समन्वय किया है। वे धार्मिक कट्टरता से ऊपर उठकर मानव मात्र की एकता में विश्वास करती हैं।
English: Laldyad has synthesized Shaivism (Kashmir Shaivism) and Sufism. She believes in the unity of humanity, rising above religious bigotry.
हठयोग का विरोध (Opposition to Hatha Yoga): उन्होंने 'सुषुम-सेतु' (नाड़ी साधना) जैसे जटिल हठयोग के बजाय सहज प्रेम और भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताया।
English: Instead of complex Hatha Yoga like 'Sushum-Setu' (channel practice), she described simple love and devotion as the path to attain God.
आत्म-ज्ञान (Self-Knowledge): उनके अनुसार, "ज्ञानी है तो स्वयं को जान" - अर्थात अपनी आत्मा को पहचानना ही परमात्मा को पहचानने का एकमात्र रास्ता है।
English: According to her, "If you are wise, know yourself" - meaning recognizing one's own soul is the only way to recognize God.
4. योग्यता-आधारित प्रश्न (Competency-Based Questions)
A. अभिकथन और तर्क (Assertion & Reasoning)
प्रश्न 1:
अभिकथन (A): कवयित्री ने जीवन को 'कच्चे धागे की रस्सी' कहा है।
तर्क (R): जीवन नश्वर और क्षणभंगुर है, वह कभी भी टूट सकता है।
उत्तर: (क) अभिकथन और तर्क दोनों सही हैं और तर्क, अभिकथन की सही व्याख्या करता है।
प्रश्न 2:
अभिकथन (A): कवयित्री कहती हैं कि न खाकर (व्रत करके) व्यक्ति अहंकारी बनता है।
तर्क (R): व्रत और तपस्या करने से व्यक्ति स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ और महात्मा समझने लगता है।
उत्तर: (क) अभिकथन और तर्क दोनों सही हैं और तर्क, अभिकथन की सही व्याख्या करता है।
B. स्थिति-आधारित विश्लेषण (Situation Analysis)
स्थिति (Situation): एक व्यक्ति मंदिर और मस्जिद में भेद करता है और ईश्वर को केवल अपने धर्मस्थान में मानता है।
प्रश्न: ललद्यद की शिक्षाओं के आधार पर उसे क्या संदेश दिया जा सकता है?
उत्तर: ललद्यद के अनुसार "थल-थल में बसता है शिव ही"। ईश्वर सर्वव्यापी है, उसे मंदिर-मस्जिद की सीमाओं में नहीं बांधना चाहिए। उसे "भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां" का संदेश देकर समझाया जाएगा कि ईश्वर एक है और वह सबके भीतर है।
C. आशय स्पष्टीकरण (Intent/Inference)
प्रश्न 1: "जेब टटोली, कौड़ी न पाई।"
उत्तर: इसका आशय है कि जीवन भर कवयित्री ने हठयोग और सांसारिक मोह-माया में समय बिता दिया। अंत समय में जब उन्होंने अपने कर्मों का हिसाब (जेब टटोली) किया, तो उनके पास ईश्वर को मुंह दिखाने लायक कोई सत्कर्म (कौड़ी) नहीं था। यह जीवन की व्यर्थता का पश्चाताप है।
प्रश्न 2: "खुलेगी साँकल बंद द्वार की।"
उत्तर: इसका अर्थ है कि जब मनुष्य भोग और त्याग के बीच संतुलन (सम) बना लेगा, तो उसके मन से अज्ञान और मोह का पर्दा हट जाएगा। उसकी चेतना व्यापक हो जाएगी और उसे ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी (बंद दरवाजा खुल जाएगा)।
5. प्रश्न-उत्तर (Subjective Q&A)
A. लघु उत्तरीय (Short Answer Questions - 30-40 Words)
प्रश्न 1: 'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर: 'रस्सी' यहाँ मनुष्य की 'साँस' या 'प्राण' के लिए प्रयुक्त हुआ है। यह 'कच्चे धागे' की बनी है, अर्थात अत्यंत कमजोर और नाशवान है, जो कभी भी टूट सकती है।
प्रश्न 2: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर: क्योंकि उनका जीवन (कच्चा सकोरा) बीतता जा रहा है और मृत्यु समीप आ रही है, लेकिन अभी तक उन्हें प्रभु मिलन नहीं हुआ। सांसारिक मोह-माया और अपरिपक्वता के कारण उनकी साधना सफल नहीं हो पा रही है।
प्रश्न 3: कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: 'घर जाने की चाह' का तात्पर्य 'परमात्मा की शरण' में जाने या मोक्ष प्राप्ति से है। आत्मा इस संसार को पराया देश मानती है और अपने असली घर (ईश्वर के पास) लौटना चाहती है।
प्रश्न 4: 'ज्ञानी' से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर: कवयित्री के अनुसार सच्चा 'ज्ञानी' वह नहीं है जो केवल शास्त्रों का ज्ञान रखता हो, बल्कि वह है जो 'स्वयं को जानता' है (आत्म-ज्ञानी)। जो आत्मा और परमात्मा के अद्वैत (एक होने) को पहचानता है, वही असली ज्ञानी है।
प्रश्न 5: 'खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं' - इस पंक्ति में 'खाने' का क्या अर्थ है?
उत्तर: यहाँ 'खाने' का अर्थ केवल भोजन करना नहीं, बल्कि सांसारिक सुख-सुविधाओं और भोग-विलास में लिप्त रहना है। कवयित्री कहती हैं कि भोगों में डूबने से ईश्वर प्राप्ति नहीं होती।
B. दीर्घ उत्तरीय/मूल्यपरक (Long/Value-Based Questions - 100 Words)
प्रश्न 1: "जेब टटोली कौड़ी न पाई" - इस पंक्ति का भाव जीवन के किस सत्य को उजागर करता है?
उत्तर: यह पंक्ति जीवन की सबसे बड़ी विडंबना को उजागर करती है। मनुष्य पूरा जीवन सांसारिक उपलब्धियों, धन-दौलत या दिखावटी धर्म-कर्म (हठयोग) में गँवा देता है। वह सच्चे प्रेम और परोपकार को भूल जाता है। मृत्यु के समय, जब उसे ईश्वर (माझी) को अपने कर्मों का हिसाब देना होता है, तो उसे एहसास होता है कि उसने "सत्कर्म" रूपी असली धन तो कमाया ही नहीं। उसकी आध्यात्मिक झोली खाली है। यह पंक्ति हमें समय रहते अच्छे कर्म करने की चेतावनी देती है।
प्रश्न 2: ललद्यद ने ईश्वर प्राप्ति के लिए सहज भक्ति मार्ग को श्रेष्ठ क्यों बताया है?
उत्तर: ललद्यद ने अपने अनुभवों से सीखा कि 'सुषुम-सेतु' जैसी कठिन हठयोग साधना या व्रत-उपवास जैसे बाह्य आडंबरों से ईश्वर नहीं मिलते। हठयोग से शरीर कष्ट पाता है और व्रत से अहंकार बढ़ता है। इसके विपरीत, सहज भक्ति (प्रेम और संतुलन) से मन शुद्ध होता है। जब मनुष्य अहंकार त्यागकर और भेदभाव भुलाकर ईश्वर को अपने भीतर खोजता है, तभी 'बंद द्वार की साँकल' खुलती है। ईश्वर प्रेम का भूखा है, कठिन तपस्या का नहीं।
6. व्याकरण (Integrated Grammar)
प्रश्न 1: रूपक अलंकार (Metaphor) के दो उदाहरण पाठ से छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
कच्चे सकोरे (शरीर/जीवन के लिए रूपक)।
सुषुम-सेतु (सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल)।
भवसागर (संसार रूपी सागर)।
प्रश्न 2: निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखिए:
नाव: नौका, तरिणी।
द्वार: दरवाजा, कपाट।
पानी: जल, नीर।
प्रश्न 3: "भोग और त्याग के बीच संतुलन" के लिए कवयित्री ने किस शब्द का प्रयोग किया है?
उत्तर: 'सम' (Sum/Sham)।
7. सामान्य त्रुटियाँ (Common Student Errors)
'माझी' का अर्थ:
त्रुटि: छात्र इसे 'पति' या 'नाव चलाने वाला' समझ लेते हैं।
सुधार: यहाँ 'माझी' का आध्यात्मिक अर्थ ईश्वर या गुरु है जो संसार सागर से पार उतारता है।
'खाना' का अर्थ:
त्रुटि: इसे केवल 'भोजन' (Food) समझना।
सुधार: यहाँ 'खाना' एक प्रतीक है जिसका अर्थ है सांसारिक भोग-विलास (Worldly pleasures/Materialism)।
'कच्चे सकोरे' का प्रतीकात्मक अर्थ:
त्रुटि: मिट्टी का बर्तन समझना।
सुधार: यह नश्वर शरीर (Mortal body) और अपरिपक्व प्रयास (Immature efforts) का प्रतीक है।
कवयित्री का धर्म:
त्रुटि: उन्हें सिर्फ हिंदू या मुस्लिम मान लेना।
सुधार: वे एक संत कवयित्री थीं जो धर्मों की सीमाओं से ऊपर थीं और शैव दर्शन (Shaivism) से प्रभावित थीं, लेकिन उनकी शिक्षाएं सार्वभौमिक हैं।
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