1.11. कृषक गान - Krishak Gaan - Class 10 - Lokbharati
- Nov 6
- 10 min read
Updated: Nov 13

पाठ का प्रकार: पद्य (गीत)
पाठ का शीर्षक: कृषक गान
लेखक/कवि का नाम: दिनेश भारद्वाज
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: यह कविता किसान (कृषक) के जीवन को समर्पित है। कवि कहते हैं कि किसान संतोष को अपनी तलवार बनाकर जी रहा है। दुनिया में भले ही वसंत (मधुमास) हो, पर उसके जीवन में हमेशा पतझड़ ही रहता है। वह अपनी गरीबी को ही अपना अभिमान समझता है। यह संसार किसान का ही श्रम-रक्त चूसकर अपने लिए मिठास (मधुरस) बनाता है। वह दुनिया का पालक है, लेकिन विडंबना यह है कि वह अपने ही पाले हुए लोगों द्वारा कुचला जा रहा है। वह अपने कमजोर शरीर को पत्तियों से पालता है और अपनी मेहनत (खून) से बंजर (ऊसर) जमीन को उपजाऊ (उर्वरा) बनाता है। वह एक मशीन की तरह बस जीवित है, जबकि मानवता अपनी जीत में भी हारी हुई सी रो रही है। कवि ऐसे महान किसान का गान (प्रशंसा) करना चाहते हैं।
English: This poem is dedicated to the life of the farmer (Krishak). The poet says that the farmer lives by making contentment his sword. While the world may enjoy spring (Madhumas), the farmer's life is always in autumn (Patjhar). He considers his poverty his pride. This world sucks the farmer's sweat and blood to create sweetness (Madhuras) for itself. He is the sustainer of the world, but the irony is that he is being crushed by the very people he feeds. He sustains his weak body with leaves and makes barren (Usar) land fertile (Urvara) with his hard work (blood). He is living like a machine, while humanity is weeping despite its victories. The poet wishes to sing the praises (gaan) of such a great farmer.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: प्रस्तुत गीत अन्नदाता किसान के जीवन पर आधारित है। इस कविता का केंद्रीय भाव किसान की दयनीय दुर्दशा का वर्णन करना और समाज में उसके महत्व को पुनः स्थापित करना है। कवि यह दर्शाना चाहते हैं कि जो किसान पूरी दुनिया का पालक है, वह खुद अभावों में और शोषित होकर जी रहा है। कवि का उद्देश्य है कि हम सभी देवी-देवताओं से पहले उस किसान का सम्मान करें और उसके अधिकारों के लिए एक नई सृष्टि का निर्माण करें।
English: This song is based on the life of the farmer, the provider of food. The central theme of this poem is to describe the pitiful plight of the farmer and to re-establish his importance in society. The poet aims to show that the farmer who sustains the entire world is himself living a life of deprivation and exploitation. The poet's objective is that we should honor the farmer before all gods and demons and build a new world that respects his rights.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
मधुमास | वसंत ऋतु | पतझर |
पतझर | पतझड़ | मधुमास, वसंत |
दीनता | गरीबी, निर्धनता | संपन्नता, अमीरी |
सृजक | निर्माता, रचनाकार | संहारक |
मनुजता | मनुष्यता, मानवता | दानवता |
पालित | पाला हुआ | पालक |
पद दलित | कुचला हुआ | सम्मानित |
क्षीण | कमजोर, दुर्बल | सबल, बलवान |
ऊसर | बंजर, अनुपजाऊ | उर्वरा, उपजाऊ |
उर्वरा | उपजाऊ | ऊसर, बंजर |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है,
जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है,
दीनता अभिमान जिसका, आज उसपर मान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि किसान के स्वाभिमानी स्वभाव का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जो संतोष को ही अपनी तलवार मानकर जी रहा है। भले ही दुनिया में वसंत ऋतु छाई हो, लेकिन उस किसान के जीवन में हमेशा पतझड़ (अभाव) ही रहता है। वह अपनी गरीबी को ही अपना अभिमान समझता है, मैं आज ऐसे किसान पर गर्व करना चाहता हूँ।
२. चूसकर श्रम रक्त जिसका, जगत में मधुरस बनाया,
एक-सी जिसको बनाई, सृजक ने भी धूप-छाया,
मनुजता के ध्वज तले, आह्वान उसका आज कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि संसार द्वारा किसान के शोषण का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जिसके खून-पसीने (श्रम रक्त) को चूसकर इस संसार ने अपने लिए मिठास (मधुरस) का निर्माण किया है। उस किसान के लिए तो निर्माता (सृजक) ने भी धूप और छाँव को एक जैसा बना दिया है (अर्थात वह हर मौसम में काम करता है)। मैं आज मानवता के झंडे के नीचे उस किसान का आह्वान (बुलावा) करना चाहता हूँ।
३. विश्व का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है,
किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है,
आज उससे कर मिला, नव सृष्टि का निर्माण कर लूँ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि किसान के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना को दर्शाते हैं।
सरल अर्थ: मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जो पूरे विश्व का पालन-पोषण करके उसे अमर बना रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि वह किसान अपने ही पाले हुए लोगों (समाज) के पैरों तले कुचला जा रहा है। मैं आज उस किसान से हाथ मिलाकर एक नई दुनिया (नव सृष्टि) का निर्माण करना चाहता हूँ।
४. क्षीण निज बलहीन तन को, पत्तियों से पालता जो,
ऊसरों को खून से निज, उर्वरा कर डालता जो,
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि किसान के संघर्ष और उसकी शक्ति का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जो अपने कमजोर और बलहीन शरीर को (अभाव में) पत्तियों से पालता है, और बंजर (ऊसर) जमीनों को अपने खून-पसीने से सींचकर उपजाऊ (उर्वरा) बना देता है। मैं आज सभी देवी-देवताओं और राक्षसों (सुर-असुर) को छोड़कर केवल उस किसान का ध्यान करना चाहता हूँ।
५. यंत्रवत जीवित बना है, माँगते अधिकार सारे,
रो रही पीड़ित मनुजता, आज अपनी जीत हारे,
जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का निर्माण कर लूँ ।
उस कृषक का गान कर लूँ ।।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि किसान की वर्तमान दयनीय दशा का वर्णन करते हैं।
सरल अर्थ: मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जो आज एक मशीन (यंत्रवत) की तरह बस जीवित है, जबकि बाकी सब अपने अधिकार माँग रहे हैं। मानवता आज अपनी जीत पर भी हारी हुई सी रो रही है। मैं चाहता हूँ कि उसी किसान द्वारा जोड़े गए कण-कण से उसके लिए एक नए घर (नीड़) का निर्माण करूँ।
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: किसान के हाथ में क्रोध की तलवार है।
उत्तर: गलत। कारण, कविता में कहा गया है, "हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है"।
कथन २: किसान के जीवन में हमेशा मधुमास (वसंत) रहता है।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है"।
कथन ३: किसान विश्व का पालक होकर भी अपने पालितों द्वारा कुचला जा रहा है।
उत्तर: सही। कारण, पंक्ति है, "किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है"।
कथन ४: किसान अपने कमजोर तन को अच्छे भोजन से पालता है।
उत्तर: गलत। कारण, वह "क्षीण निज बलहीन तन को, पत्तियों से पालता जो"।
कथन ५: कवि किसान के लिए एक नए नीड़ का निर्माण करना चाहते हैं।
उत्तर: सही। कारण, कवि कहते हैं, "जोड़कर कण-कण उसी के, नीड़ का निर्माण कर लूँ"।
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: दिनेश भारद्वाज
रचना का प्रकार: गीत
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
हाथ में संतोष की तलवार ले जो उड़ रहा है | यह पंक्ति किसान के स्वाभिमानी और संतुष्ट स्वभाव को दर्शाती है, जो उसकी सबसे बड़ी ताकत है। | हमें परिस्थितियों की परवाह किए बिना संतोष को अपनाना चाहिए। |
विश्व का पालक बन जो, अमर उसको कर रहा है | यह पंक्ति किसान के महत्व को "विश्व का पालक" कहकर उजागर करती है, जो बिल्कुल सत्य है। | किसान का महत्व विश्व में सर्वोच्च है क्योंकि वह अन्नदाता है। |
किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है | यह पंक्ति समाज के दोहरे चरित्र और विडंबना को दर्शाती है, जो दिल को छू जाती है। | हमें उनका सम्मान करना चाहिए जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, न कि उनका शोषण करना चाहिए। |
ऊसरों को खून से निज, उर्वरा कर डालता जो | यह पंक्ति किसान के कठोर परिश्रम और उसकी सृजन शक्ति को दर्शाती है। | मेहनत से बंजर भूमि को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। |
छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ | यह पंक्ति किसान को देवताओं से भी ऊँचा स्थान देती है, जो उसकी महानता को सिद्ध करता है। | अन्नदाता किसान का स्थान देवताओं से भी पहले और ऊँचा होना चाहिए। |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: "जगत में मधुमास, उसपर सदा पतझर रहा है" - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति का आशय किसान के जीवन की विडंबना से है। "जगत में मधुमास" का अर्थ है कि दुनिया के बाकी लोग वसंत का आनंद ले रहे हैं, वे उत्सव और संपन्नता में जी रहे हैं। लेकिन "उसपर सदा पतझर" का अर्थ है कि जिस किसान के श्रम से यह संपन्नता आई है, उसका अपना जीवन हमेशा अभाव, गरीबी और सूखेपन (पतझड़) में ही बीतता है। उसकी मेहनत का फल उसे स्वयं कभी नहीं मिलता।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: विडंबना, संपन्नता, अभाव, गरीबी, शोषण, मेहनत का फल।
प्रश्न २: किसान को "विश्व का पालक" कहना कहाँ तक उचित है?
उत्तर: किसान को "विश्व का पालक" कहना पूरी तरह से उचित है। 'पालक' का अर्थ है पालन-पोषण करने वाला। किसान अपने खेतों में दिन-रात मेहनत करके अनाज, फल और सब्जियाँ उगाता है। उसी अनाज से विश्व के सभी मनुष्यों का पेट भरता है। यदि किसान खेती करना बंद कर दे, तो पूरी दुनिया भुखमरी का शिकार हो जाएगी। इसलिए, किसान ही सही अर्थों में संपूर्ण विश्व का पालक और अन्नदाता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अन्नदाता, पालक, पालन-पोषण, अनाज, भुखमरी, जीवन-आधार।
प्रश्न ३: "किंतु अपने पालितों के, पद दलित हो मर रहा है" - समाज की इस विडंबना पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: यह समाज की सबसे बड़ी और कड़वी सच्चाई है। जो किसान ("पालक") पूरी दुनिया का पेट भरता है, वही दुनिया ("पालित") उस किसान को सम्मान और सही मूल्य नहीं देती। बिचौलिये, व्यापारी और कभी-कभी सरकार की नीतियाँ उसी किसान का शोषण करती हैं। उसे अपनी फसल का सही दाम नहीं मिलता, वह कर्ज में डूब जाता है और अंततः उन्हीं लोगों द्वारा कुचला (पद दलित) जाता है, जिनका उसने पालन-पोषण किया। यह हमारे समाज की कृतघ्नता को दर्शाता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: विडंबना, कड़वी सच्चाई, शोषण, कृतघ्नता, कर्ज, अन्नदाता का अपमान।
प्रश्न ४: "छोड़ सारे सुर-असुर, मैं आज उसका ध्यान कर लूँ" - कवि ने किसान को देवताओं से भी ऊँचा स्थान क्यों दिया है?
उत्तर: कवि ने किसान को देवताओं (सुर) और राक्षसों (असुर) से भी ऊँचा स्थान इसलिए दिया है क्योंकि देवता और राक्षस कल्पना में हैं, लेकिन किसान एक साक्षात सच्चाई है। देवता हमें आशीर्वाद देते हैं, लेकिन किसान हमें 'अन्न' देता है, जो जीवन का प्रत्यक्ष आधार है। किसान में सृजन की शक्ति है; वह बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर जीवन देता है। यह सृजनशीलता उसे किसी भी दैवीय शक्ति से अधिक महान और पूजनीय बनाती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: साक्षात ईश्वर, अन्नदाता, सृजन शक्ति, प्रत्यक्ष, महान, पूजनीय।
प्रश्न ५: आज के युग में किसान की स्थिति को "यंत्रवत जीवित" कहना कितना प्रासंगिक है?
उत्तर: आज के युग में यह कथन काफी हद तक प्रासंगिक है। "यंत्रवत जीवित" का अर्थ है एक मशीन की तरह बिना भावनाओं या अधिकारों के बस काम करते रहना। आज का किसान भी मौसम की मार, कर्ज के बोझ और बाजार के शोषण के बीच पिस रहा है। वह सुबह से शाम तक मशीन की तरह खेत में लगा रहता है, लेकिन उसके अपने जीवन में कोई खुशी या आर्थिक स्वतंत्रता नहीं है। वह केवल जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहा है, वास्तविक जीवन नहीं जी रहा।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रासंगिक, मशीन की तरह, कर्ज का बोझ, शोषण, आर्थिक स्वतंत्रता, संघर्ष।
पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions)
प्रश्न १: कवि कृषक का गान क्यों करना चाहते हैं?
उत्तर: कवि कृषक का गान इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि किसान ही संपूर्ण विश्व का पालक है। वह संतोष को अपनी ढाल बनाकर, गरीबी में भी स्वाभिमान से जीता है। वह अपना खून-पसीना बहाकर बंजर जमीन को उपजाऊ बनाता है और दुनिया का पेट भरता है। इसके बावजूद, वह स्वयं शोषित और कुचला जा रहा है। कवि किसान के इसी परिश्रम, त्याग और महत्व को सम्मान देने के लिए उसका गान करना चाहते हैं।
प्रश्न २: कवि ने किसान के जीवन की किन विडंबनाओं (contradictions) का वर्णन किया है?
उत्तर: कवि ने किसान के जीवन की निम्नलिखित विडंबनाओं का वर्णन किया है:
वसंत बनाम पतझड़: दुनिया किसान की मेहनत से 'मधुमास' (वसंत) का आनंद लेती है, लेकिन किसान के अपने जीवन में 'सदा पतझर' रहता है।
पालक बनाम पालित: किसान 'विश्व का पालक' है, लेकिन वह अपने ही 'पालितों' (जिनका वह पेट भरता है) द्वारा 'पद दलित' (कुचला) जा रहा है।
श्रम बनाम रस: किसान अपना 'श्रम रक्त' (खून-पसीना) बहाता है, और जगत उस श्रम को चूसकर अपने लिए 'मधुरस' (मिठास) बनाता है।
प्रश्न ३: कविता की प्रथम चार पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
उत्तर: कविता की प्रथम चार पंक्तियों का भावार्थ है:
कवि कहते हैं कि मैं उस किसान का गान करना चाहता हूँ, जो संतोष को ही अपनी तलवार मानकर जी रहा है। यह एक विडंबना है कि भले ही दुनिया में वसंत ऋतु छाई हो, लेकिन उस किसान के जीवन में हमेशा पतझड़ (अभाव) ही रहता है। वह अपनी गरीबी (दीनता) को ही अपना अभिमान समझता है। कवि कहते हैं कि मैं आज ऐसे महान और स्वाभिमानी किसान पर गर्व करना चाहता हूँ और उसका गुणगान करना चाहता हूँ।
प्रश्न ४: "यंत्रवत जीवित बना है" - पंक्ति से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: "यंत्रवत जीवित बना है" पंक्ति से कवि का तात्पर्य है कि किसान का जीवन एक मशीन के समान हो गया है। जैसे एक मशीन बिना रुके, बिना अपनी भावनाओं की परवाह किए, केवल काम करती रहती है, वैसे ही किसान भी सुबह से शाम तक खेतों में केवल काम कर रहा है। उसके अपने जीवन में कोई उमंग, खुशी या अधिकार नहीं बचे हैं। वह केवल जिंदा रहने की एक प्रक्रिया पूरी कर रहा है, वास्तविक जीवन नहीं जी रहा।
प्रश्न ५: कवि किसान के लिए क्या-क्या करना चाहते हैं?
उत्तर: कवि किसान के लिए निम्नलिखित कार्य करना चाहते हैं:
वे किसान पर मान (गर्व) करना चाहते हैं।
वे मानवता के ध्वज तले किसान का आह्वान करना चाहते हैं।
वे किसान से हाथ मिलाकर एक नई सृष्टि (दुनिया) का निर्माण करना चाहते हैं।
वे सभी देवी-देवताओं को छोड़कर सिर्फ किसान का ध्यान करना चाहते हैं।
वे किसान के ही कण-कण को जोड़कर उसके लिए एक नए घर (नीड़) का निर्माण करना चाहते हैं।
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