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    1.11 - निर्माणों के पावन युग में - Nirmanon ke Paavan Yug Mein - Class 9 - Lokbharati

    • Sep 12
    • 9 min read

    Updated: Sep 13

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    पाठ का प्रकार: पद्य (कविता) पाठ का शीर्षक: निर्माणों के पावन युग में लेखक/कवि का नाम: अटल बिहारी वाजपेयी


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: प्रस्तुत कविता में कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी कहते हैं कि आज का युग निर्माण और विकास का पवित्र युग है। इस विकास की दौड़ में हमें चरित्र निर्माण को नहीं भूलना चाहिए। स्वार्थ की आँधी में हमें पूरी दुनिया के कल्याण की बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जीवन में आने वाले संघर्षों से घबराकर बीच राह में हार मान लेना साहस को स्वीकार नहीं है। हमें जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए नए-नए अनुसंधान करते रहना चाहिए। कवि कहते हैं कि नैतिकता के बिना शिक्षा अधूरी है और मानवीय प्रेम तथा परोपकार के बिना विज्ञान व्यर्थ है। अंततः, वे यह संदेश देते हैं कि हमें भौतिक उन्नति के साथ-साथ आत्मिक और चारित्रिक उन्नति (जीवन का उत्थान) पर भी ध्यान देना चाहिए।


    English: In this poem, the poet Atal Bihari Vajpayee says that today's era is a sacred one of creation and development. In this race for development, we must not forget to build our character. In the storm of selfishness, we should not ignore the welfare of the whole world. It is not acceptable for courage to give up midway when faced with life's struggles. We must continue to do new research to solve complex problems. The poet says that education is incomplete without morality, and science is useless without human love and benevolence. Ultimately, he gives the message that along with material progress, we must also focus on spiritual and character development (the upliftment of life).


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव संतुलित और समग्र विकास की अवधारणा को प्रस्तुत करना है। कवि इस बात पर जोर देते हैं कि भौतिक और वैज्ञानिक प्रगति ('निर्माण') तभी सार्थक है, जब वह मानवीय मूल्यों और चरित्र पर आधारित हो। वे चेतावनी देते हैं कि यदि विकास की प्रक्रिया में चरित्र, विश्व-कल्याण, नैतिकता, संस्कृति और मानवता को भुला दिया गया, तो यह प्रगति खोखली और विनाशकारी साबित होगी। कविता का मूल संदेश यह है कि मनुष्य को भौतिकता की अंधी दौड़ में अपनी आत्मा, अपने नैतिक मूल्यों और जीवन के वास्तविक उत्थान को नहीं खोना चाहिए।

    English: The central theme of this poem is to present the concept of balanced and holistic development. The poet emphasizes that material and scientific progress ('Nirman') is meaningful only when it is based on human values and character. He warns that if character, global welfare, morality, culture, and humanity are forgotten in the process of development, this progress will prove to be hollow and destructive. The core message of the poem is that in the blind race for materialism, man should not lose his soul, his moral values, and the true upliftment of life.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    पावन

    पवित्र, शुद्ध

    अपवित्र, अशुद्ध

    स्वार्थ

    खुदगर्जी, आत्महित

    परमार्थ, निस्वार्थ

    वसुधा

    पृथ्वी, धरती

    आकाश, गगन

    अगम

    दुर्गम, पहुँच से परे

    सुगम, सुलभ

    अनुसंधान

    खोज, शोध

    -

    नैतिक

    सदाचारी, नीतिगत

    अनैतिक

    कीर्ति

    यश, प्रसिद्धि

    अपयश, बदनामी

    सृजनहीन

    रचनात्मकता रहित

    सृजनशील, रचनात्मक

    भौतिकता

    सांसारिकता, पदार्थवाद

    आध्यात्मिकता

    उत्थान

    उन्नति, प्रगति

    पतन, अवनति


    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. माना अगम अगाध सिंधु है...नूतन अनुसंधान न भूलें !! परिचय: इन पंक्तियों में कवि जीवन के संघर्षों का सामना करने की प्रेरणा दे रहे हैं। सरल अर्थ: कवि मानते हैं कि यह संसार संघर्षों का एक अपार और अथाह सागर जैसा है, जिसे पार करना आसान नहीं है। लेकिन, इन संघर्षों से घबराकर बीच मझधार में डूब जाना या हार मान लेना सच्चे साहस को स्वीकार नहीं है। हमें जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए निरंतर नए-नए शोध और अनुसंधान करते रहना चाहिए और उसे कभी नहीं भूलना चाहिए।

    २. शील, विनय, आदर्श, श्रेष्ठता...संस्कृति का सम्मान न भूलें !! परिचय: कवि यहाँ शिक्षा के लिए नैतिक आधार के महत्व को स्पष्ट कर रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि जिस प्रकार तार के बिना वीणा में झंकार या संगीत उत्पन्न नहीं हो सकता, उसी प्रकार शील, विनय, आदर्श और श्रेष्ठता जैसे मानवीय गुणों के बिना जीवन अधूरा है। यदि शिक्षा में नैतिकता का आधार ही नहीं होगा, तो वह शिक्षा रूपी स्वर को कैसे साध सकेगी? अर्थात, नैतिक मूल्यों के बिना शिक्षा व्यर्थ है। हमें अपनी प्रसिद्धि और कीर्ति की चाँदनी में मग्न होकर अपनी संस्कृति और उसके सम्मान को कभी नहीं भूलना चाहिए।

    ३. आविष्कारों की कृतियों में...जीवन का उत्थान न भूलें !! परिचय: इन पंक्तियों में कवि विज्ञान और भौतिक प्रगति की सार्थकता बता रहे हैं। सरल अर्थ: कवि का मानना है कि हमारे नए-नए आविष्कारों और रचनाओं में यदि मनुष्य के लिए प्रेम और कल्याण की भावना नहीं है, तो वे निरर्थक हैं। ऐसा विज्ञान जिसमें रचनात्मकता और प्राणियों के उपकार का भाव न हो, वह व्यर्थ है। हमें सांसारिक और भौतिक उन्नति की दौड़ में अपने जीवन के वास्तविक उत्थान, यानी आत्मिक और चारित्रिक विकास, को कभी नहीं भूलना चाहिए।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: कवि के अनुसार, संघर्षों के बीच में हार मान लेना ही साहस है। उत्तर: गलत। कारण, कविता में कहा गया है, "किंतु डूबना मँझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है।"


    कथन २: कवि का मानना है कि शिक्षा नैतिक आधार के बिना भी सफल हो सकती है। उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है।"


    कथन ३: कवि के लिए प्राणी का उपकार किए बिना विज्ञान व्यर्थ है। उत्तर: सही। कारण, कविता में स्पष्ट लिखा है, "सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है प्राणी का उपकार नहीं है।"


    कथन ४: कवि केवल भौतिक उन्नति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कवि चेतावनी देते हैं, "भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूलें !!"


    कथन ५: कवि निर्माणों के इस युग में चरित्र निर्माण को भूल जाने की सलाह देते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कविता की पहली ही पंक्ति है, "निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !"


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: अटल बिहारी वाजपेयी रचना का प्रकार: कविता

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें !

    यह पंक्ति कविता का मूलमंत्र है। यह हमें याद दिलाती है कि बाहरी विकास से पहले आंतरिक विकास जरूरी है, जो आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

    सच्ची प्रगति चरित्र निर्माण से ही संभव है।

    किंतु डूबना मँझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है

    यह पंक्ति निराशा के क्षणों में साहस और दृढ़ता का संचार करती है। यह हमें सिखाती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, हार मानना विकल्प नहीं है।

    जीवन के संघर्षों का सामना साहस से करना चाहिए।

    शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है

    यह पंक्ति शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को रेखांकित करती है। यह ज्ञान और नैतिकता के बीच के गहरे संबंध को दर्शाती है, जो एक अच्छे समाज के लिए अनिवार्य है।

    नैतिकता के बिना शिक्षा अधूरी और दिशाहीन है।

    सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है प्राणी का उपकार नहीं है

    यह पंक्ति विज्ञान को मानवता से जोड़ती है। यह एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि विज्ञान का अंतिम लक्ष्य मानव और अन्य जीवों का कल्याण होना चाहिए, न कि विनाश।

    विज्ञान की सार्थकता मानवता की सेवा में है।

    भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूलें

    यह पंक्ति आज के भौतिकवादी समाज के लिए एक गहरी चेतावनी है। यह हमें याद दिलाती है कि धन-दौलत और सुविधाओं से बढ़कर आत्मिक शांति और चारित्रिक विकास है।

    भौतिक प्रगति के साथ-साथ आत्मिक उन्नति भी आवश्यक है।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'चरित्र निर्माण' से आप क्या समझते हैं? देश की प्रगति में इसका क्या महत्व है? उत्तर: 'चरित्र निर्माण' से मेरा तात्पर्य मानवीय मूल्यों, जैसे- ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, नैतिकता, अनुशासन और करुणा को अपने व्यवहार में उतारना है। यह केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि देश की प्रगति का भी आधार है। जब देश के नागरिक चरित्रवान होते हैं, तो समाज में भ्रष्टाचार, अपराध और स्वार्थ की भावना कम होती है। चरित्रवान नागरिक अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं, जिससे देश की हर व्यवस्था सुचारु रूप से चलती है। एक मजबूत चरित्र वाला समाज ही एक मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानवीय मूल्य, नैतिकता, ईमानदारी, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, भ्रष्टाचार-मुक्त समाज, राष्ट्र निर्माण।

    प्रश्न २: कवि ने विज्ञान को 'सृजनहीन' और 'व्यर्थ' क्यों कहा है यदि उसमें मानव का प्यार और उपकार न हो? उत्तर: कवि ने विज्ञान को 'सृजनहीन' और 'व्यर्थ' इसलिए कहा है क्योंकि विज्ञान का मूल उद्देश्य मानव जीवन को बेहतर बनाना और प्रकृति के रहस्यों को समझकर लोक-कल्याण करना है। यदि विज्ञान का उपयोग परमाणु बम बनाने, पर्यावरण को नष्ट करने या मानवता को नुकसान पहुँचाने के लिए किया जाए, तो वह अपनी रचनात्मक ('सृजन') प्रकृति खो देता है। ऐसा विज्ञान जिसमें मनुष्य के लिए प्रेम और अन्य प्राणियों के प्रति उपकार की भावना न हो, वह केवल विनाश का एक साधन बनकर रह जाता है। इसलिए, मानवता रहित विज्ञान कवि की दृष्टि में पूरी तरह व्यर्थ है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: लोक-कल्याण, मानवता, प्रेम, उपकार, विनाश, रचनात्मकता, पर्यावरण, उद्देश्य।

    प्रश्न ३: 'स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें' - इस पंक्ति की आज के समय में प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए। उत्तर: यह पंक्ति आज के वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत प्रासंगिक है। आज हर देश और व्यक्ति अपनी उन्नति और अपने हितों ('स्वार्थ साधना') को प्राथमिकता दे रहा है। इस अंधी दौड़ में हम पूरी पृथ्वी ('वसुधा') के कल्याण को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम हमें जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और राष्ट्रों के बीच बढ़ते तनाव के रूप में दिख रहा है। यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि हमारा अस्तित्व इस पृथ्वी से जुड़ा है और व्यक्तिगत या राष्ट्रीय हितों से ऊपर उठकर हमें সমগ্র मानवता और पर्यावरण के कल्याण के बारे में सोचना होगा। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रासंगिकता, वैश्विक परिदृश्य, स्वार्थ, विश्व-कल्याण, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, पर्यावरण, मानवता।

    प्रश्न ४: शिक्षा और नैतिक आधार का क्या संबंध है? क्या बिना नैतिकता के शिक्षा अधूरी है? उत्तर: शिक्षा और नैतिक आधार का गहरा संबंध है, वे एक-दूसरे के पूरक हैं। शिक्षा हमें ज्ञान और कौशल प्रदान करती है, जबकि नैतिकता हमें उस ज्ञान का सही उपयोग करना सिखाती है। बिना नैतिकता के शिक्षा अधूरी और खतरनाक भी हो सकती है। एक शिक्षित व्यक्ति यदि नैतिक रूप से भ्रष्ट है, तो वह अपने ज्ञान का उपयोग समाज को नुकसान पहुँचाने के लिए कर सकता है, जैसे- साइबर क्राइम, आर्थिक घोटाले आदि। नैतिकता के बिना व्यक्ति केवल एक ज्ञानी मशीन बन सकता है, एक संवेदनशील और जिम्मेदार इंसान नहीं। इसलिए, एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए शिक्षा का नैतिक आधार होना अनिवार्य है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: पूरक, ज्ञान, कौशल, सही उपयोग, जिम्मेदार इंसान, सामाजिक निर्माण, भ्रष्ट, संवेदनशील।


    प्रश्न ५: आज के भौतिकवादी युग में 'जीवन का उत्थान' कैसे किया जा सकता है? उत्तर: आज के भौतिकवादी युग में 'जीवन का उत्थान' करने के लिए हमें भौतिक सुख-सुविधाओं और आत्मिक शांति के बीच संतुलन बनाना होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम प्रगति छोड़ दें, बल्कि प्रगति के साथ-साथ मानवीय मूल्यों को भी अपनाएँ। इसके लिए हमें प्रकृति के साथ समय बिताना, कला और साहित्य से जुड़ना, निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करना और अपने पारिवारिक तथा सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाना चाहिए। ध्यान, योग और आत्म-चिंतन के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शांति को पा सकते हैं। जब हम पैसे और प्रसिद्धि से ऊपर उठकर संतोष और करुणा को महत्व देंगे, तभी जीवन का सच्चा उत्थान संभव होगा। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: संतुलन, आत्मिक शांति, मानवीय मूल्य, प्रकृति, कला, निःस्वार्थ सेवा, संबंध, संतोष।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: कवि के अनुसार निर्माणों के पावन युग में हमें कौन-सी बातें नहीं भूलनी चाहिए? उत्तर: कवि के अनुसार निर्माणों के पावन युग में हमें निम्नलिखित बातें नहीं भूलनी चाहिए:

    • हमें चरित्र निर्माण को नहीं भूलना चाहिए।

    • हमें स्वार्थ की आँधी में दुनिया के कल्याण को नहीं भूलना चाहिए।

    • हमें जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए नए अनुसंधान करना नहीं भूलना चाहिए।

    • हमें अपनी संस्कृति के सम्मान को नहीं भूलना चाहिए।

    • हमें भौतिक उन्नति में जीवन के वास्तविक उत्थान को नहीं भूलना चाहिए।


    प्रश्न २: कवि ने साहस को क्या स्वीकार नहीं है और क्यों? उत्तर: कवि के अनुसार, संघर्षों के सागर में बीच मझधार में डूब जाना यानी मुश्किलों से घबराकर हार मान लेना साहस को स्वीकार नहीं है।  ऐसा इसलिए क्योंकि सच्चा साहस परिस्थितियों का सामना करने में है, उनसे भागने या हार मानने में नहीं।


    प्रश्न ३: शिक्षा और विज्ञान के विषय में कवि के क्या विचार हैं? उत्तर: शिक्षा और विज्ञान के विषय में कवि के विचार इस प्रकार हैं:

    • शिक्षा: कवि का मानना है कि यदि शिक्षा का नैतिक आधार नहीं है, तो वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकती।  नैतिकता के बिना शिक्षा व्यर्थ है।

    • विज्ञान: कवि के अनुसार, यदि आविष्कारों में मानव का प्यार नहीं है और विज्ञान से प्राणियों का उपकार नहीं होता, तो ऐसा सृजनहीन विज्ञान व्यर्थ है।


    प्रश्न ४: कविता की पुनरावर्तित होने वाली पंक्तियाँ लिखिए और उनका अर्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कविता में पुनरावर्तित होने वाली पंक्तियाँ हैं: "निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ! स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें !!"

    अर्थ: इन पंक्तियों का अर्थ है कि आज के इस पवित्र विकास और नवनिर्माण के युग में, हमें सबसे महत्वपूर्ण बात यानी अपने चरित्र के निर्माण को नहीं भूलना चाहिए। साथ ही, जब हर कोई अपने निजी स्वार्थ को पूरा करने में लगा है, ऐसे समय में हमें पूरी पृथ्वी के कल्याण की भावना को भी नहीं त्यागना चाहिए।

    प्रश्न ५: कृति पूर्ण कीजिए: कवि के अनुसार इनमें यह होना जरूरी है:

    • आविष्कारों में -मानव का प्यार 

    • विज्ञान में -प्राणी का उपकार 


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