2.10 - अपराजेय - Aparajey - Class 9 - Lokbharati
- Sep 19
- 9 min read
Updated: Sep 30

पाठ का प्रकार: गद्य (वर्णनात्मक कहानी) पाठ का शीर्षक: अपराजेय लेखक/कवि का नाम: कमल कुमार
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: 'अपराजेय' एक प्रेरणास्पद कहानी है जो अमरनाथ नामक एक व्यक्ति के अदम्य साहस और जिजीविषा को दर्शाती है। एक भयानक राजमार्ग दुर्घटना के बाद, अमरनाथ का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। संक्रमण के कारण डॉक्टर को पहले उनकी एक टाँग काटनी पड़ती है, लेकिन अमरनाथ इस पर शोक मनाने के बजाय इसे स्वीकार कर चित्रकला में अपनी अधूरी रुचि को पूरा करने लगते हैं। जब बीमारी फिर से बढ़ती है और उनकी दाहिनी बाँह भी काटनी पड़ती है, तब भी वे हार नहीं मानते और शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर देते हैं। अंत में, जब बीमारी उनकी आवाज भी छीन लेती है, तो वे महान संगीतज्ञों को सुनकर और प्रकृति की सूक्ष्म ध्वनियों का आनंद लेकर जीवन का एक नया अर्थ खोज लेते हैं। हर शारीरिक क्षति के बावजूद, उनकी आत्मा और जीने की इच्छा 'अपराजेय' यानी अजेय बनी रहती है। वे मानते हैं कि जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।
English: 'Aparajey' is an inspirational story that showcases the indomitable courage and will to live of a man named Amarnath. After a terrible highway accident, Amarnath's life changes completely. Due to infection, the doctor has to first amputate his leg, but instead of mourning, Amarnath accepts it and begins to pursue his unfulfilled interest in painting. When the illness relapses and his right arm also has to be amputated, he still does not give up and starts learning classical music. Finally, when the illness takes away his voice as well, he discovers a new meaning in life by listening to great musicians and enjoying the subtle sounds of nature. Despite every physical loss, his spirit and desire to live remain 'Aparajey,' meaning unconquerable. He believes that the development of life lies in effort (purusharth), not in self-pity.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस कहानी का केंद्रीय भाव मनुष्य की अदम्य जिजीविषा और सकारात्मक दृष्टिकोण की शक्ति को उजागर करना है। लेखिका ने अमरनाथ के चरित्र के माध्यम से यह संदेश दिया है कि मनुष्य का अस्तित्व उसके शरीर से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा और चेतना से है। शारीरिक अपंगता या परिस्थितियाँ कितनी भी भयावह क्यों न हों, यदि व्यक्ति की आत्मा अपराजेय है, तो वह हर क्षति को एक नए अवसर में बदल सकता है। कहानी हमें सिखाती है कि जीवन की सार्थकता परिस्थितियों के सामने हार मानने में नहीं, बल्कि उनका सामना करने, उन्हें सहर्ष स्वीकार करने और पुरुषार्थ (प्रयत्न) में लगे रहने में है। यह आत्महीनता पर पुरुषार्थ की और निराशा पर आशा की विजय की कहानी है।
English: The central theme of this story is to highlight the power of the indomitable human will to live and a positive attitude. Through the character of Amarnath, the author conveys the message that a person's existence is defined not by their body, but by their spirit and consciousness. No matter how horrific the physical disability or circumstances, if a person's spirit is unconquerable, they can turn every loss into a new opportunity. The story teaches us that the meaning of life lies not in surrendering to circumstances, but in facing them, accepting them willingly, and remaining engaged in effort (purusharth). It is a story of the victory of effort over self-pity and hope over despair.
पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)
अमरनाथ:
हिन्दी:
अदम्य साहसी: वे अपनी टाँग, बाँह और आवाज खोने जैसी भयानक त्रासदियों का सामना असाधारण साहस और मुस्कान के साथ करते हैं।
सकारात्मक दृष्टिकोण: वे हर क्षति को अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत के रूप में देखते हैं। टाँग कटने पर चित्रकला, बाँह कटने पर संगीत और आवाज जाने पर श्रवण में आनंद खोजते हैं।
कला प्रेमी: उनके मन में चित्रकला और संगीत के प्रति गहरा प्रेम है, जो उन्हें कठिन समय में जीने की शक्ति देता है।
दार्शनिक और पुरुषार्थी: वे जीवन को एक संघर्ष के रूप में देखते हैं और मानते हैं कि जीवन का विकास आत्महीनता (self-pity) में नहीं, बल्कि पुरुषार्थ (effort) में है।
जीवट: वे बार-बार मृत्यु को चुनौती देते हैं और हर बार एक नए रूप में जीवन को जीना शुरू कर देते हैं।
English:
Indomitably Courageous: He faces horrific tragedies like losing his leg, arm, and voice with extraordinary courage and a smile.
Positive Attitude: He sees every loss not as an end, but as a new beginning. He discovers joy in painting after losing his leg, in music after losing his arm, and in listening after losing his voice.
Art Lover: He has a deep love for painting and music, which gives him the strength to live in difficult times.
Philosophical and Diligent: He views life as a struggle and believes that the development of life lies in effort (purusharth), not in self-pity (atmhinata).
Resilient: He repeatedly challenges death and starts living life in a new way each time.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
अकुलाहट | व्याकुलता, बेचैनी | शांति, सुकून |
त्वरा | शीघ्रता, तेजी | विलंब, देरी |
आश्वासन | दिलासा, भरोसा | भय, आशंका |
रक्तस्राव | खून का बहना | - |
घुमक्कड़ी | घूमना-फिरना, पर्यटन | स्थिरता |
परिदृश्य | दृश्य, नजारा | - |
निर्जीव | बेजान, प्राणहीन | सजीव, जीवंत |
रियाज | अभ्यास, साधना | - |
पुरुषार्थ | परिश्रम, उद्यम | आलस्य, अकर्मण्यता |
आत्महीनता | आत्म-दया, खुद को हीन समझना | स्वाभिमान, आत्मविश्वास |
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: अपनी टाँग कटने की बात सुनकर अमरनाथ फूट-फूटकर रोने लगे।
उत्तर: गलत। कारण, टाँग कटने की बात सुनकर "अमरनाथ ने अपने परिवार के लोगों की तरफ, फिर डॉक्टर की तरफ देखा था और हँसे थे।"
कथन २: अपनी बाँह कटने के बाद अमरनाथ ने चित्रकारी करना शुरू कर दिया।
उत्तर: गलत। कारण, उन्होंने चित्रकारी अपनी टाँग कटने के बाद शुरू की थी; बाँह कटने के बाद उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया।
कथन ३: अमरनाथ की बीमारी तीसरी बार लौटने पर उनकी आवाज चली गई थी।
उत्तर: सही। कारण, पाठ में लिखा है, "वे सप्ताह भर बाद लौट आए थे। उनकी आवाज जा चुकी थी।"
कथन ४: अमरनाथ ईश्वर को एक दयालु सत्ता मानते थे।
उत्तर: गलत। कारण, वे सोचते थे, "ईश्वर क्रूर रोमन शहंशाह कालिगुला बन गया है। अपनी इच्छा से वह मेरे अंगों को कटवाता जा रहा है।"
कथन ५: अमरनाथ का मानना था कि जीवन का विकास आत्महीनता में है। उत्तर: गलत। कारण, वे जानते थे, "जीवन का विकास पुरुषार्थ में है, आत्महीनता में नहीं।"
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'परिस्थिति के सामने हार न मानकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में ही जीवन की सार्थकता है', इस कथन को अमरनाथ के जीवन के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह कथन अमरनाथ के जीवन का मूल मंत्र है। उन्होंने अपने जीवन में आई हर भयावह परिस्थिति के सामने हार नहीं मानी। जब उनकी टाँग कटी, तो वे रोने के बजाय हँसे और चित्रकला को अपना लिया। जब बाँह कटी, तो उन्होंने संगीत को अपना साथी बना लिया। और जब आवाज चली गई, तो उन्होंने सुनने के आनंद को खोज लिया। उन्होंने हर बार अपनी परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार किया और उसमें से जीवन जीने का एक नया रास्ता निकाला। उन्होंने यह सिद्ध किया कि जीवन बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि हमारी आंतरिक इच्छाशक्ति से सार्थक बनता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सार्थकता, सहर्ष स्वीकार, हार न मानना, इच्छाशक्ति, सकारात्मक दृष्टिकोण, नया अवसर, आंतरिक शक्ति।
प्रश्न २: 'कला की साधना जीवन के दुखमय क्षणों को भुला देती है', इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: यह कथन बिल्कुल सत्य है। कला में एक अद्भुत शक्ति होती है जो हमें हमारे दुखों और पीड़ाओं से ऊपर उठा देती है। अमरनाथ के जीवन में कला ने एक मरहम का काम किया। जब दुर्घटना ने उनसे चलने की क्षमता छीनी, तो चित्रकला के रंगों ने उनके जीवन में रंग भर दिए। जब उनकी बाँह कट गई, तो संगीत के सुरों ने उनकी आत्मा को सहारा दिया। कला की साधना में व्यक्ति इतना डूब जाता है कि उसे अपनी शारीरिक पीड़ा और सीमाओं का एहसास ही नहीं रहता। वह एक नई दुनिया का सृजन करता है, जहाँ आनंद और शांति होती है। इस प्रकार, कला दुखमय क्षणों में जीने का एक सुंदर माध्यम बन जाती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: कला, साधना, मरहम, दुख, पीड़ा, सृजन, आनंद, जीने का माध्यम, शक्ति।
प्रश्न ३: अमरनाथ जब कहते हैं, 'मैं जीवन का व्याकरण बना रहा हूँ', तो इसका क्या आशय है?
उत्तर: जब अमरनाथ कहते हैं, 'मैं जीवन का व्याकरण बना रहा हूँ', तो इसका आशय है कि वे अपने जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं और उसके लिए नए नियम बना रहे हैं। जिस तरह व्याकरण किसी भाषा को व्यवस्थित और अर्थपूर्ण बनाता है, उसी तरह अमरनाथ भी अपनी शारीरिक सीमाओं के बावजूद, चित्रकला और बागवानी के माध्यम से अपने जीवन को व्यवस्थित, सुंदर और अर्थपूर्ण बना रहे हैं। वे यह दर्शा रहे हैं कि जीवन केवल चलना-फिरना नहीं है, बल्कि उसमें सृजन, सौंदर्य और प्रकृति से जुड़ाव भी शामिल है। वे अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जी रहे हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: जीवन का व्याकरण, नए नियम, व्यवस्थित, अर्थपूर्ण, सृजन, सौंदर्य, अपनी शर्तों पर जीना।
प्रश्न ४: कहानी का शीर्षक 'अपराजेय' क्यों सार्थक है?
उत्तर: कहानी का शीर्षक 'अपराजेय' (Unconquerable) पूरी तरह से सार्थक है क्योंकि यह कहानी के मुख्य पात्र अमरनाथ के चरित्र का सार है। 'अपराजेय' का अर्थ है जिसे हराया न जा सके। हालांकि बीमारी और दुर्घटना बार-बार अमरनाथ के शरीर के अंगों को हरा देती है—पहले उनकी टाँग, फिर बाँह और अंत में आवाज—लेकिन वे अमरनाथ की आत्मा, उनकी जिजीविषा (जीने की इच्छा) और उनके साहस को कभी नहीं हरा पाते। हर शारीरिक हार के बाद उनकी आत्मा और भी मजबूत होकर एक नया रास्ता खोज लेती है। उनका शरीर भले ही पराजित होता रहा, पर उनकी चेतना हमेशा अपराजेय रही।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अपराजेय, अजेय, आत्मा, जिजीविषा, साहस, चेतना, सार्थक शीर्षक, चारित्रिक सार।
प्रश्न ५: आवाज खोने के बाद अमरनाथ प्रकृति से और गहराई से कैसे जुड़ गए? उत्तर: आवाज खोने के बाद अमरनाथ की सुनने की शक्ति और भी तीव्र हो गई और वे प्रकृति से और भी गहराई से जुड़ गए। जब वे बोल नहीं सकते थे, तो उन्होंने सुनना शुरू किया। वे बाहरी दुनिया के शोर से कटकर प्रकृति की सूक्ष्म ध्वनियों को सुनने लगे, जैसे पक्षियों का कलरव, सूखे पत्तों के झरने की आवाज, कलियों के चटखने की आवाजें और धीमी हवा की सरसराहट। उनका ध्यान बाहरी अभिव्यक्ति से हटकर आंतरिक अनुभूति पर केंद्रित हो गया। इस मौन ने उन्हें प्रकृति के उस संगीत से जोड़ दिया जिसे सामान्यतः हम सुन नहीं पाते। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: गहरी जुड़ाव, सूक्ष्म ध्वनियाँ, सुनना, आंतरिक अनुभूति, मौन, प्रकृति का संगीत, संवेदनशीलता।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: डॉक्टर को अमरनाथ की टाँग क्यों काटनी पड़ी?
उत्तर: राजमार्ग पर हुई दुर्घटना में अमरनाथ की टाँग बुरी तरह कुचली गई थी। बिना देखभाल के चार घंटे तक वहाँ पड़े रहने के कारण उनकी टाँग में जहर फैल गया था। शरीर के बाकी हिस्सों में जहर फैलने के खतरे को रोकने के लिए डॉक्टर को उनकी टाँग काटनी पड़ी।
प्रश्न २: जब डॉक्टर ने अमरनाथ को उनकी टाँग और फिर बाँह काटने की बात बताई, तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी? उत्तर:
टाँग काटने पर: जब डॉक्टर ने टाँग काटने की बात बताई, तो अमरनाथ अपने परिवार और डॉक्टर की तरफ देखकर हँसे और बोले, "टाँग ही काटनी है तो काट दो। साठ साल तक इन टाँगों के साथ जिया हूँ...जीने के लिए सिर्फ टाँगें थोड़ी ही हैं।"
बाँह काटने पर: जब बाँह काटने की बात आई, तब भी वे वैसी ही हँसी हँसे थे और कहा था, "आखिर मैं बाँह तो नहीं हूँ न!"
प्रश्न ३: अपने शरीर का एक-एक अंग खोने के बाद अमरनाथ ने कौन-सी नई गतिविधियाँ शुरू कीं? उत्तर:
टाँग कटने के बाद: उन्होंने चित्रकला (painting) शुरू की और अपने घर के आसपास बागवानी (gardening) भी करवाई।
बाँह कटने के बाद: उन्होंने शास्त्रीय गायन (classical singing) सीखना शुरू कर दिया।
आवाज जाने के बाद: उन्होंने महान संगीतज्ञों के कैसेट और डिस्क सुनना और प्रकृति की सूक्ष्म ध्वनियों का आनंद लेना शुरू कर दिया।
प्रश्न ४: अपने जीवन के संघर्ष के बारे में अमरनाथ का अंतिम दर्शन क्या था?
उत्तर: अपने जीवन के संघर्ष के बारे में अमरनाथ का अंतिम दर्शन यह था कि ईश्वर एक क्रूर रोमन शहंशाह 'कालिगुला' की तरह है जो एक-एक करके उनके अंगों को कटवा रहा है। वे मानते थे कि उन्हें इस क्रूरता के विरुद्ध एक शांत संघर्ष करना है क्योंकि जीवन का विकास पुरुषार्थ (प्रयत्न) में है, न कि आत्महीनता (आत्म-दया) में। उनकी अपराजेय आस्था उन्हें मृत्यु के सामने भी निर्भय बना देगी।
प्रश्न ५: पाठ में प्रयुक्त वाक्य पढ़कर व्यक्ति में निहित भाव लिखिए: उत्तर:
१. 'टाँग ही काटनी है तो काट दो।': साहस, स्वीकृति और सकारात्मकता का भाव।
२. 'मैं जानता हूँ कि, जीवन का विकास पुरुषार्थ में हैं, आत्महीनता में नहीं।': आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय और पुरुषार्थ का भाव।
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