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    1.6 - परिश्रम ही पूजा - Parishram hi Pooja - Class 7 - Sugambharati 1

    • Oct 16
    • 8 min read

    Updated: Oct 28

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    पाठ का प्रकार: गद्य

    पाठ का शीर्षक: परिश्रम ही पूजा

    लेखक/कवि का नाम: ज्ञात नहीं


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी:

    यह निबंध 'परिश्रम ही सफलता की कुंजी है' के सिद्धांत पर केंद्रित है। लेखक बताते हैं कि परिश्रम ही पूजा है और बड़े-बड़े कर्मयोगियों ने कर्म को ही पूजा माना है। पाठ के अनुसार, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है जो उसे पतन की ओर ले जाता है। इस विचार को संत कबीर के उदाहरण से समझाया गया है, जो संत होने के साथ-साथ अपने हाथ से कपड़ा भी बुनते थे। परिश्रम करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास होता है क्योंकि उसे पता होता है कि परिश्रम का फल मीठा होता है, भले ही उसमें देर लगे। इस बात को भारत के प्रथम राष्ट्रपति, राजेंद्र प्रसाद के बचपन की एक घटना से सिद्ध किया गया है, जहाँ उनके परिश्रम पर अटूट विश्वास ने परीक्षा परिणाम की गलती को सुधरवाया। अंत में, व्याकरण के आचार्य कैयट और उनकी पत्नी का उदाहरण दिया गया है, जिन्होंने मिलकर परिश्रम किया और एक महान ग्रंथ की रचना संभव की।

    English:

    This essay focuses on the principle that 'hard work is the key to success'. The author states that hard work itself is worship and that great 'Karmyogis' have considered action as worship. According to the text, laziness is a person's greatest enemy, leading them towards downfall. This idea is explained with the example of Sant Kabir, who, despite being a saint, also used to weave cloth with his own hands. A hardworking person possesses self-confidence because they know that the fruit of labor is sweet, even if it is delayed. This is proven through an incident from the childhood of India's first President, Dr. Rajendra Prasad, where his unwavering faith in his hard work corrected an error in the examination results. Finally, the example of the grammarian Acharya Kaiyat and his wife is given, who worked hard together to make the creation of a great treatise possible.



    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी:

    इस पाठ का केंद्रीय भाव परिश्रम के महत्व को स्थापित करना और पाठकों को अधिक परिश्रम करने के लिए प्रेरित करना है। लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि आलस्य मनुष्य के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है, जबकि परिश्रम सफलता, आत्मविश्वास और सम्मान का स्रोत है। पाठ में दिए गए महान व्यक्तियों के प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि चाहे शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक परिश्रम हो, वह कभी भी व्यर्थ नहीं जाता और अंततः सफलता की ओर ले जाता है।

    English:

    The central theme of this lesson is to establish the importance of hard work and to motivate readers to work harder. The author aims to convey the message that laziness is the biggest curse for mankind, whereas hard work is the source of success, self-confidence, and respect. Through the inspiring anecdotes of great personalities mentioned in the text, it is shown that whether the labor is physical, mental, or intellectual, it never goes in vain and ultimately leads to success.


    पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)


    बालक राजेंद्र प्रसाद:

    हिन्दी: वे एक परिश्रमी और आत्मविश्वासी छात्र थे। जब प्रधानाचार्य ने उन्हें अनुत्तीर्ण घोषित किया, तो उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि ऐसा नहीं हो सकता। जुर्माना लगाए जाने के बावजूद वे अपनी बात पर अडिग रहे। उनका आत्मविश्वास उनके कठिन परिश्रम से उपजा था। English: He was a hardworking and self-confident student. When the principal declared him as failed, he firmly asserted that it was not possible. Despite being fined, he stood his ground. His confidence stemmed from his diligent hard work.

    आचार्य कैयट:

    हिन्दी: वे एक अत्यंत परिश्रमी और समर्पित वैयाकरण (व्याकरण के जानकार) थे। वे दिनभर आजीविका के लिए परिश्रम करते और रात को जागकर व्याकरण लिखते थे। वे अपने काम को बहुत महत्व देते थे और मानते थे कि परिश्रम से ही जीवन में सब कुछ साध्य होता है। English: He was an extremely hardworking and dedicated grammarian. He would work during the day for his livelihood and stay awake at night to write grammar. He valued his work greatly and believed that everything in life is achievable through hard work.

    कैयट की पत्नी:

    हिन्दी: वे भी घोर परिश्रमी, समझदार और अपने पति की सहायक थीं। जब उन्होंने देखा कि पति के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है, तो उन्होंने घर का खर्च चलाने की चिंता खुद लेने का आग्रह किया। उन्होंने कुश की रस्सियाँ बनाकर बेचने की योजना बनाई ताकि उनके पति को अपने महत्वपूर्ण कार्य के लिए अधिक समय मिल सके।

    English: She was also extremely hardworking, sensible, and supportive of her husband. When she noticed that her husband's health was being affected, she insisted on taking over the worry of running the household. She planned to make ropes from Kush grass and sell them so that her husband could get more time for his important work.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    परिश्रम

    श्रम

    आलस्य

    सफलता

    कामयाबी

    असफलता

    शत्रु

    रिपु

    मित्र

    उत्तीर्ण

    सफल

    अनुत्तीर्ण

    आत्मविश्वास

    आत्मबल

    आत्मसंदेह

    स्वीकार

    मंजूर

    अस्वीकार

    निस्संदेह

    बेशक

    संदिग्ध

    दंड

    सजा

    पुरस्कार

    राय

    सलाह

    असहमति

    निष्फल

    व्यर्थ

    सफल

    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: आलस्य को मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र बताया गया है।

    उत्तर: गलत। कारण, पाठ में कहा गया है- 'आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः', अर्थात आलस्य शरीर में बसने वाला हमारा सबसे बड़ा शत्रु है।

    कथन २: प्रधानाचार्य ने राजेंद्र प्रसाद को जान-बूझकर अनुत्तीर्ण किया था।

    उत्तर: गलत। कारण, विद्यालय के बाबू ने क्षमा माँगते हुए बताया कि टाइप होने में राजेंद्र प्रसाद का नाम छूट गया था।

    कथन ३: संत कबीर केवल ईश्वर की भक्ति करते थे।

    उत्तर: गलत। कारण, वे केवल भक्त या संत ही नहीं थे, वे अपने हाथ से कपड़ा भी बुनते थे और परिश्रम को ही पूजा मानते थे।

    कथन ४: आचार्य कैयट की पत्नी ने उन्हें व्याकरण लिखना छोड़ने को कहा।

    उत्तर: गलत। कारण, उन्होंने घर का खर्च चलाने की चिंता खुद लेकर पति को व्याकरण की रचना के लिए अधिक समय निकालने में मदद की।

    कथन ५: लेखक के अनुसार परिश्रम का फल मिलने में देर हो सकती है।

    उत्तर: सही। कारण, पाठ में स्पष्ट लिखा है, "फल मिलने में देर हो सकती है परंतु परिश्रम निष्फल नहीं हो सकता"।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'परिश्रम ही पूजा है' - इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?

    उत्तर:मैं इस विचार से पूरी तरह सहमत हूँ। जिस प्रकार पूजा में हम ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को एकाग्रता से व्यक्त करते हैं, उसी प्रकार परिश्रम में हम अपने लक्ष्य के प्रति अपना पूरा समर्पण और एकाग्रता लगाते हैं। कर्मयोगियों ने कर्म को पूजा माना है। अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करना किसी भी पूजा से कम नहीं है, क्योंकि यही परिश्रम व्यक्ति और समाज की प्रगति का आधार बनता है।

    प्रश्न २: विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का क्या महत्व है? राजेंद्र प्रसाद के प्रसंग से बताइए।

    उत्तर:विद्यार्थी जीवन भविष्य की नींव होता है और परिश्रम ही इस नींव का सबसे मजबूत पत्थर है। जो विद्यार्थी परिश्रम करने का अभ्यास बचपन से डाल लेता है, वह सफलता की राह पर आगे बढ़ता है। राजेंद्र प्रसाद के प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि परिश्रमी विद्यार्थी में आत्मविश्वास होता है। उन्हें अपने परिश्रम पर इतना विश्वास था कि वे प्रधानाचार्य के निर्णय के विरुद्ध भी खड़े हुए। अंत में उनके परिश्रम की ही जीत हुई और यह साबित हुआ कि वे कक्षा में सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र थे।

    प्रश्न ३: आलस्य को सबसे बड़ा शत्रु क्यों कहा गया है?

    उत्तर:आलस्य को सबसे बड़ा शत्रु इसलिए कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति के शरीर में ही रहकर उसे अंदर से कमजोर करता है। यह व्यक्ति को अकर्मण्य बनाता है और उसे पतन की ओर धकेलता है। आलसी व्यक्ति अवसरों को खो देता है और दुखों का शिकार हो जाता है। परिश्रम जहाँ सफलता और आत्मविश्वास देता है, वहीं आलस्य व्यक्ति की सारी क्षमताओं को नष्ट कर देता है, इसीलिए यह शरीर में बसने वाला 'महारिपु' है।

    प्रश्न ४: शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक परिश्रम में क्या अंतर है?

    उत्तर:पाठ के अनुसार परिश्रम केवल शारीरिक नहीं होता, बल्कि मानसिक और बौद्धिक भी होता है। शारीरिक परिश्रम में शरीर के अंगों का उपयोग होता है, जैसे- मजदूरी करना या कपड़ा बुनना। मानसिक परिश्रम में मन और चिंतन का उपयोग होता है, जैसे किसी समस्या का हल सोचना। बौद्धिक परिश्रम में ज्ञान और बुद्धि का गहरा उपयोग होता है, जैसे आचार्य कैयट द्वारा व्याकरण की रचना करना। तीनों ही अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं और राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक हैं।

    प्रश्न ५: आचार्य कैयट और उनकी पत्नी के जीवन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

    उत्तर:आचार्य कैयट और उनकी पत्नी के जीवन से हमें कठिन परिश्रम, समर्पण और आपसी सहयोग की प्रेरणा मिलती है। आचार्य कैयट ने ज्ञान के क्षेत्र में परिश्रम का उच्चतम उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी पत्नी ने यह दर्शाया कि पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कैसे एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए। उन्होंने घर चलाने के लिए स्वयं परिश्रम करने का मार्ग चुना ताकि उनके पति राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर सकें। उनका जीवन बताता है कि परिश्रम से सब कुछ साध्य होता है।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: राजेंद्र प्रसाद ने प्रधानाचार्य की बात का विरोध क्यों किया? इसका क्या परिणाम हुआ?

    उत्तर:राजेंद्र प्रसाद ने प्रधानाचार्य की बात का विरोध इसलिए किया क्योंकि उन्हें अपने परिश्रम पर पूरा विश्वास था और वे जानते थे कि वे अनुत्तीर्ण नहीं हो सकते। इस विरोध का परिणाम यह हुआ कि रिकॉर्ड को दोबारा जाँचा गया। विद्यालय के बाबू ने आकर बताया कि टाइपिंग में गलती होने के कारण राजेंद्र प्रसाद का नाम सूची में छूट गया था। वास्तव में, उन्होंने परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए थे।

    प्रश्न २: लेखक ने आलस्य के क्या दुष्परिणाम बताए हैं?

    उत्तर:लेखक ने आलस्य के निम्नलिखित दुष्परिणाम बताए हैं:

    • आलस्य की आदत व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है।

    • यह व्यक्ति को दुखों की मार का शिकार बना देती है, जिससे कोई बचा नहीं सकता।

    • लेखक ने इसे शरीर में ही बसने वाला मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु ('महारिपु') कहा है।

    प्रश्न ३: आचार्य कैयट कौन थे? उनकी पत्नी ने उनकी सहायता कैसे की?

    उत्तर:आचार्य कैयट व्याकरण के एक महान जानकार (वैयाकरण) थे जो एक महत्वपूर्ण व्याकरण ग्रंथ की रचना कर रहे थे। उनकी पत्नी ने उनकी सहायता करने के लिए घर का खर्च चलाने की चिंता स्वयं ले ली। उन्होंने आश्रम की सीमा पर उगे कुश घास से रस्सियाँ बनाकर उन्हें साप्ताहिक बाजार में बेचने की योजना बनाई, ताकि आचार्य कैयट को व्याकरण लिखने के लिए अधिक समय मिल सके।

    प्रश्न ४: 'परिश्रम का फल मीठा होता है।' पाठ में दिए गए उदाहरणों द्वारा इस कथन को सिद्ध कीजिए।

    उत्तर:पाठ में इस कथन को दो मुख्य उदाहरणों से सिद्ध किया गया है। पहला उदाहरण राजेंद्र प्रसाद का है, जिन्होंने कठिन परिश्रम से पढ़ाई की थी। जब उनका परिणाम घोषित नहीं हुआ, तो उनके आत्मविश्वास और दृढ़ता के कारण गलती सुधारी गई और पता चला कि उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किए हैं। दूसरा उदाहरण आचार्य कैयट का है, जिन्होंने दिन-रात परिश्रम करके एक अद्भुत व्याकरण ग्रंथ की रचना की, जो आगे चलकर विद्यार्थियों के लिए पथ प्रदर्शक बना।

    प्रश्न ५: संत कबीर के उदाहरण से लेखक क्या समझाना चाहते हैं?

    उत्तर:संत कबीर के उदाहरण से लेखक यह समझाना चाहते हैं कि कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा संत या ज्ञानी क्यों न हो, उसे परिश्रम का महत्व समझना चाहिए। संत कबीर केवल भक्त या संत ही नहीं थे, बल्कि वे अपने हाथों से कपड़ा बुनकर परिश्रम करते थे। वे परिश्रम को ही पूजा मानते थे। इस उदाहरण से लेखक यह संदेश देते हैं कि शारीरिक श्रम करना छोटा काम नहीं है और कर्म को पूजा मानना ही जीवन का सार है।


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