1.1. भारत महिमा - Bharat Mahima - Class 10 - Lokbharati
- Aug 12
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Updated: Nov 19

पहली इकाई, कविता १: भारत महिमा
पाठ का प्रकार: पद्य (कविता)
पाठ का शीर्षक: भारत महिमा
लेखक/कवि का नाम: जयशंकर प्रसाद
Bilingual Summary (सारांश)
हिन्दी:
"भारत महिमा" कविता में कवि जयशंकर प्रसाद जी ने भारत के गौरवशाली अतीत का सजीव चित्रण किया है। वे कहते हैं कि भारत भूमि पर ही ज्ञान का सबसे पहला उदय हुआ और यहीं से यह पूरे विश्व में फैला। भारत ने कभी भी शस्त्रों के बल पर दूसरे देशों को नहीं जीता, बल्कि धर्म और प्रेम का संदेश फैलाया। यूनानियों को दया का और चीन को धर्म का ज्ञान भारत से ही मिला। कवि के अनुसार, हम भारतीय इसी भूमि के मूल निवासी हैं और हमारे पूर्वज चरित्रवान, शक्तिशाली, विनम्र और दानी थे। अंत में, कवि देशवासियों को अपने देश पर गर्व करने और उसके लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित करते हैं।
English:
In the poem "Bharat Mahima," poet Jaishankar Prasad vividly portrays the glorious past of India. He states that India is the land where knowledge first dawned and then spread to the rest of the world. India never conquered other nations with weapons but instead spread the message of 'dharma' (righteousness) and love. It was India that gave the gift of compassion to the Greeks and the vision of 'dharma' to China. According to the poet, we Indians are the original inhabitants of this land and our ancestors were virtuous, powerful, humble, and generous. In the end, the poet inspires his countrymen to be proud of their nation and be ready to sacrifice everything for it.
Bilingual Theme / Central Idea (केंद्रीय भाव)
हिन्दी:
इस कविता का केंद्रीय भाव भारत के शानदार अतीत का गुणगान करना और देशवासियों के मन में देश-प्रेम और गर्व की भावना को जगाना है। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपनी महान संस्कृति और विरासत पर गर्व करते हुए, देश की रक्षा और प्रगति के लिए हमेशा अपना सर्वस्व न्योछावर करने हेतु तत्पर रहना चाहिए।
English:
The central idea of this poem is to glorify India's magnificent past and to awaken feelings of patriotism and pride in the hearts of its citizens. The poet wants to convey the message that we should be proud of our great culture and heritage and always be prepared to sacrifice our all for the defense and progress of the nation.
पाठ के महत्वपूर्ण बिंदु (पुनरावलोकन के लिए):
भारत ज्ञान का प्रथम प्रकाश-पुंज है, जिसने संपूर्ण विश्व को ज्ञान का आलोक प्रदान किया।
भारत की विजय सदैव लोहे (शस्त्र) पर नहीं, बल्कि धर्म पर आधारित रही है।
भारतीयों ने कभी किसी का कुछ नहीं छीना; वे इसी भूमि की संतान हैं और कहीं बाहर से नहीं आए हैं।
दान, अतिथि-सत्कार, सत्य और अपनी प्रतिज्ञा पर टिके रहना भारतीयों के चरित्र की विशेषताएँ रही हैं।
कवि वर्तमान पीढ़ी से अपने महान पूर्वजों के समान साहस, ज्ञान और शक्ति को बनाए रखने का आह्वान करते हैं।
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
आलोक | प्रकाश | तम, अंधकार |
व्योम | आकाश | धरती, पृथ्वी |
विजय | जीत | पराजय, हार |
दान | भेंट | आदान, ग्रहण |
विपन्न | निर्धन | संपन्न, अमीर |
सत्य | सच | असत्य, झूठ |
नम्रता | विनम्रता, शालीनता | घमंड, अभिमान |
शक्ति | बल, ताकत | दुर्बलता, कमजोरी |
हर्ष | आनंद, खुशी | शोक, विषाद |
संचय | एकत्र करना, संग्रह | त्याग, व्यय |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें
१. हिमालय के आँगन में उसे, किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक हार।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि ने भारत की मनोरम सुबह और प्राकृतिक सुंदरता का अलंकारिक वर्णन किया है। सरल अर्थ: भारत देश हिमालय के आँगन के समान है। प्रतिदिन सुबह सूर्य अपनी किरणों का उपहार देकर भारत का अभिनंदन करता है। ओस की बूँदों पर जब सुबह की किरणें चमकती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे उषा ने भारत को हीरों का हार पहना दिया हो।
२. जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि भारत की ज्ञान परंपरा और विश्व में उसके योगदान पर प्रकाश डाल रहे हैं।
सरल अर्थ: सबसे पहले ज्ञान का उदय भारत में ही हुआ, यानी सबसे पहले हम भारतीय जागे। फिर हमने उस ज्ञान के प्रकाश को पूरे विश्व में फैलाया, जिससे दुनिया का अज्ञान रूपी अंधकार (व्योमतम) नष्ट हो गया और संपूर्ण संसार (अखिल संसृति) शोक-रहित हो गया।
३. विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम संगीत।
परिचय: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारत को संगीत की जननी बताते हुए उसके सांस्कृतिक योगदान का वर्णन किया है।
सरल अर्थ: ज्ञान की देवी माँ सरस्वती ने इसी पवित्र भूमि पर प्रेम के साथ अपने कमल समान कोमल हाथों में वीणा उठाई। उनकी वीणा की झंकार से सप्तसिंधु प्रदेश में संगीत के सातों स्वर गूँज उठे, जिससे मधुर सामवेद के संगीत का निर्माण हुआ।
४. विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम।
परिचय: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बताते हैं कि भारत ने शस्त्र-बल पर नहीं, बल्कि धर्म और दया के आधार पर विश्व में अपनी श्रेष्ठता स्थापित की है।
सरल अर्थ: भारत ने कभी भी शस्त्रों या हथियारों (लोहे) के बल पर दूसरे देशों पर विजय प्राप्त नहीं की। इस धरती पर हमेशा धर्म की विजय का बोलबाला रहा है। यहाँ गौतम बुद्ध और महावीर जैसे सम्राट हुए जिन्होंने अपना विशाल साम्राज्य त्यागकर भिक्षु का रूप धारण किया और घर-घर घूमकर लोगों को दया और प्रेम का संदेश दिया।
५. 'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि भारत द्वारा विश्व के अन्य देशों को दी गई सांस्कृतिक और नैतिक देन का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: भारत ने हमेशा विश्व को शांति और मानवता का संदेश दिया है। हमने यूनानियों (यवन) को दया और करुणा का भाव सिखाया और चीन को बौद्ध धर्म का ज्ञान दिया। इसी प्रकार, हमने स्वर्ण भूमि (बर्मा) को बौद्ध धर्म के त्रिरत्न दिए और सिंहल (श्रीलंका) को पंचशील के सिद्धांत प्रदान किए।
६. किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करते हैं कि भारतवासी इसी भूमि के मूल निवासी हैं और उन्होंने कभी किसी का अधिकार नहीं छीना है।
सरल अर्थ: कवि गर्व से कहते हैं कि हम भारतवासियों ने कभी किसी का कुछ भी छीनने की कोशिश नहीं की। हमें प्रकृति ने हर वस्तु उदारतापूर्वक प्रदान की है। भारत भूमि सदा से हमारी मातृभूमि रही है; हम इसी भूमि की संतान हैं और किसी अन्य स्थान से आकर यहाँ नहीं बसे हैं।
७. चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि प्राचीन भारत के लोगों के चरित्र और उनके स्वभाव की महान विशेषताओं का वर्णन कर रहे हैं।
सरल अर्थ: हमारे पूर्वजों का चरित्र पवित्र (पूत) था। उनकी भुजाओं में भरपूर शक्ति थी, फिर भी वे सदैव विनम्रता से भरे रहते थे। उन्हें अपनी संस्कृति के गौरव पर गर्व था, लेकिन उनका हृदय इतना विशाल था कि वे किसी को भी दुखी या निर्धन (विपन्न) नहीं देख सकते थे और सबकी मदद करते थे।
८. हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि भारतीयों के नैतिक मूल्यों और उनके व्यवहार की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं।
सरल अर्थ: हम भारतीयों ने कभी धन का संग्रह अपने लिए नहीं किया, बल्कि दान देने के लिए किया। हम अतिथियों को हमेशा देवता के समान मानते थे। हमारी वाणी में सत्य, हृदय में तेज और हमारी प्रतिज्ञा पर अटल रहने की आदत (टेव) थी।
९. वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान।
परिचय: इन पंक्तियों में कवि वर्तमान पीढ़ी को उनके गौरवशाली अतीत से जोड़ते हुए उनके भीतर आत्मविश्वास जगा रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि हम आज भी उन्हीं महान पूर्वजों की संतान हैं। हमारी धमनियों में आज भी वही रक्त बह रहा है, हम उसी महान देश के वासी हैं। हमारे अंदर आज भी वही साहस, ज्ञान, शांति और शक्ति विद्यमान है, क्योंकि हम उन्हीं दिव्य आर्यों की संतान हैं।
१०. जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।
परिचय: कविता की इन अंतिम पंक्तियों में कवि देशवासियों को देश-प्रेम और बलिदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि जब तक हम जिएँ, केवल अपने देश के लिए जिएँ। हमें इसी बात का अभिमान और हर्ष होना चाहिए। यदि आवश्यकता पड़े तो हम अपने प्यारे भारतवर्ष के लिए अपना सब कुछ बलिदान (निछावर) कर दें।
स्वमत (Personal Opinion):
प्रश्न १: 'हमारे संचय में था दान' - इस पंक्ति द्वारा कवि भारतीयों की किस विशेषता पर प्रकाश डालना चाहते हैं?
उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि धन और संपत्ति का संग्रह करना भारतीयों का स्वभाव कभी नहीं रहा, बल्कि वे दान देने के लिए संग्रह करते थे। परोपकार और त्याग की भावना उनके चरित्र का अभिन्न अंग थी। वे अतिथि को देवता के समान मानते थे और उनकी सेवा में अपना सर्वस्व लगा देते थे। यह पंक्ति भारतीयों की उदारता, त्याग और अतिथि-सत्कार की महान परंपरा को दर्शाती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: दान, संचय, त्याग, परोपकार, उदारता, अतिथि-सत्कार, संस्कृति।
प्रश्न २: 'वही हम दिव्य आर्य संतान' कहकर कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर: इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि हम आज भी उन्हीं महान पूर्वजों की संतान हैं। हमारी धमनियों में आज भी वही रक्त बह रहा है, हम उसी महान देश के वासी हैं, और हमारे अंदर वही साहस और ज्ञान विद्यमान है। कवि हमें याद दिलाते हैं कि हमें अपने गौरवशाली अतीत को भूलना नहीं चाहिए और अपने पूर्वजों के दिखाए मार्ग पर चलकर देश को एक बार फिर से महान बनाना चाहिए। यह पंक्ति हमें हमारी विरासत से जोड़कर एकता और आत्मविश्वास का संदेश देती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: पूर्वज, आर्य संतान, साहस, ज्ञान, विरासत, गौरव, आत्मविश्वास।
प्रश्न ३: 'चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न' - पंक्ति में वर्णित भारतीय विशेषताओं को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति में कवि ने प्राचीन भारतीयों के चरित्र की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताई हैं। पहली, उनका चरित्र पवित्र और दोष रहित था ('चरित थे पूत')। दूसरी, वे शारीरिक रूप से अत्यंत बलवान और शक्तिशाली थे ('भुजा में शक्ति')। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि अपार शक्ति होते हुए भी उनमें घमंड नहीं था, बल्कि वे विनम्रता से परिपूर्ण थे ('नम्रता रही सदा संपन्न')। यह शक्ति और विनम्रता का अद्भुत संतुलन उनके महान चरित्र को दर्शाता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: पवित्र चरित्र, शक्ति, बल, विनम्रता, संतुलन, महानता।
प्रश्न ४: कविता के आधार पर भारत की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन कीजिए।
उत्तर: कविता के अनुसार, भारत देश हिमालय के आँगन में स्थित है, जो उसे एक सुरक्षित और सुंदर घर प्रदान करता है। प्रतिदिन सुबह सूर्य अपनी पहली किरणों का उपहार भारत को ही देता है। जब ये किरणें ओस की बूंदों पर पड़ती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे उषा ने भारत को हीरों का हार पहना दिया हो। इसके अलावा, यहाँ सप्तसिंधु जैसी नदियाँ हैं, जिनके किनारे संगीत का जन्म हुआ। इस प्रकार, भारत पर्वतों और नदियों से सुशोभित एक प्राकृतिक रूप से समृद्ध और सुंदर देश है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: हिमालय, आँगन, उपहार, हीरक हार, उषा, सप्तसिंधु, प्रकृति।
प्रश्न ५: भारत द्वारा विश्व को दी गई देन को कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कविता के अनुसार, भारत ने विश्व को कई अनमोल उपहार दिए हैं। भारत ने ही सबसे पहले विश्व को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित किया। हमने यूनानियों को दया का पाठ पढ़ाया और चीन को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया। भारत ने ही बर्मा (स्वर्ण भूमि) को बौद्ध धर्म के त्रिरत्न और श्रीलंका (सिंहल) को पंचशील के सिद्धांत दिए। इसके अतिरिक्त, भारत ने ही विश्व को संगीत दिया, जहाँ सामवेद के मधुर गीत गूँजे। इस प्रकार, भारत ने विश्व को ज्ञान, धर्म, दया और संगीत जैसी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर प्रदान की है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: ज्ञान, आलोक, दया, धर्म, त्रिरत्न, पंचशील, संगीत।
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: जयशंकर प्रसाद
रचना का प्रकार: प्रस्तुत कविता में कवि ने अपने देश के गौरवशाली अतीत का सजीव वर्णन किया है।
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
हिमालय के आँगन में उसे, किरणों का दे उपहार। | प्रकृति का इतना सजीव और सुंदर मानवीकरण मन को मोह लेता है। यह भारत के प्राकृतिक सौंदर्य को अद्भुत ढंग से प्रस्तुत करता है। | हमें अपने देश के प्राकृतिक सौंदर्य पर गर्व करना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए। |
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि। | यह पंक्ति पढ़कर गर्व होता है कि हमारा देश केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं, बल्कि दया और धर्म जैसे अमूल्य मानवीय गुणों का दान करता रहा है। | भारत ने हमेशा विश्व को मानवता, दया और धर्म का मार्ग दिखाया है। |
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव। | यह पंक्ति भारतीय संस्कृति की 'लेने' की नहीं, बल्कि 'देने' की महान परंपरा को दर्शाती है। यह सिखाती है कि सच्ची महानता त्याग और सेवा में है। | हमें संग्रह की प्रवृत्ति को त्यागकर दान और अतिथि-सत्कार जैसे गुणों को अपनाना चाहिए। |
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न। | शक्ति और नम्रता जैसे दो विरोधी गुणों का एक साथ होना एक आदर्श चरित्र को दर्शाता है, जो प्रेरणादायक है। | हमें शक्तिशाली होने के साथ-साथ विनम्र बने रहना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए। |
जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष। | देश-प्रेम की इससे अधिक सीधी, सरल और शक्तिशाली अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। यह सीधे हृदय में उतरकर कर्तव्य-बोध कराती है। | हमें अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना रखनी चाहिए तथा आवश्यकता पड़ने पर सर्वस्व बलिदान करने को तैयार रहना चाहिए। |
पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions):
प्रश्न १: 'भारत महिमा' कविता के आधार पर भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: 'भारत महिमा' कविता के आधार पर भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
भारत ने सदैव विश्व में ज्ञान का प्रसार किया है.
यहाँ की विजय शस्त्र-बल पर नहीं, बल्कि धर्म और प्रेम पर आधारित रही है.
दानशीलता और अतिथि को देवता मानने की परंपरा यहाँ की विशेषता है.
यहाँ के लोग वचन में सत्य, हृदय में तेज और अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहते हैं.
शक्तिशाली होते हुए भी विनम्र रहना और चरित्र की पवित्रता भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.
प्रश्न २: कवि ने भारतवासियों के लिए क्या आह्वान किया है?
उत्तर: कविता में कवि ने भारतवासियों के लिए निम्नलिखित आह्वान किए हैं:
कवि आह्वान करते हैं कि हम अपने देश के लिए ही जिएँ और उस पर अभिमान करें.
हमें याद रखना चाहिए कि हम उन्हीं दिव्य आर्यों की संतान हैं जिनमें असीम साहस और ज्ञान था.
हमें अपने पूर्वजों के महान गुणों को जीवित रखना चाहिए.
आवश्यकता पड़ने पर हमें अपने प्यारे भारतवर्ष के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने को हमेशा तैयार रहना चाहिए.
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