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    2.9. जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ - Jab Tak Zinda Rahun, Likhta Rahun - Class 10 - Lokbharati

    • 18 minutes ago
    • 7 min read

    पाठ का प्रकार: गद्य (साक्षात्कार)

    पाठ का शीर्षक: जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ

    लेखक का नाम: विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी:

    यह पाठ एक साक्षात्कार (Interview) है, जिसमें लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर जी से उनके जीवन और लेखन यात्रा के बारे में बातचीत की है।

    नागर जी बताते हैं कि उनका लेखन यात्रा पढ़ने से शुरू हुई। पितामह (दादाजी) द्वारा मंगवाई गई 'सरस्वती' और 'गृहलक्ष्मी' पत्रिकाओं ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। १९२८-२९ में साइमन कमीशन के विरोध के दौरान लाठीचार्ज की घटना ने उन्हें अपनी पहली कविता 'कब लौं कहौं लाठी खाय' लिखने के लिए प्रेरित किया।

    साक्षात्कार में वे अपने पिता के सामाजिक गुणों, प्रेमचंद और शरतचंद्र जैसे लेखकों के प्रभाव, और गांधीजी व नेहरूजी से अपनी मुलाकातों के बारे में बताते हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों के लिए पूरे भारत का भ्रमण किया और समाज के विभिन्न वर्गों का गहरा अध्ययन किया। अंत में, वे कहते हैं कि जब तक वे जीवित हैं, तब तक लिखते रहना चाहते हैं।

    English:

    This lesson is an interview in which the author Vishwanath Prasad Tiwari converses with the famous litterateur Amritlal Nagar about his life and writing journey.

    Nagar Ji reveals that his writing journey began with reading. Magazines like 'Saraswati' and 'Grihalakshmi', subscribed to by his grandfather, inspired him to read. During the protest against the Simon Commission in 1928-29, the incident of a lathi charge inspired him to write his first poem, 'Kab Laun Kahon Lathi Khay'.

    In the interview, he talks about his father's social qualities, the influence of writers like Premchand and Saratchandra, and his meetings with Gandhiji and Nehruji. He traveled across India for his novels and deeply studied various sections of society. Finally, he expresses his desire to continue writing as long as he lives.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी:

    इस पाठ का केंद्रीय भाव एक लेखक की 'सृजन यात्रा' और 'सामाजिक प्रतिबद्धता' है। यह साक्षात्कार हमें बताता है कि एक लेखक का व्यक्तित्व उसके परिवेश, समाज, और अनुभवों से कैसे बनता है। नागर जी का जीवन यह संदेश देता है कि लेखन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को समझने और सुधारने का एक माध्यम है। उनकी "जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ" की भावना उनकी कर्मठता और साहित्य के प्रति समर्पण को दर्शाती है।

    English:

    The central theme of this lesson is a writer's 'creative journey' and 'social commitment'. This interview shows us how a writer's personality is shaped by their environment, society, and experiences. Nagar Ji's life conveys the message that writing is not just entertainment, but a medium to understand and improve society. His sentiment "Jab tak zinda rahun, likhta rahun" (As long as I live, may I keep writing) reflects his diligence and dedication to literature.


    पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)


    अमृतलाल नागर (Amritlal Nagar):

    हिन्दी:

    • अध्ययनशील: बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था; बंकिमचंद्र, प्रेमचंद, शरतचंद्र आदि को खूब पढ़ा।

    • संवेदनशील और जागरूक: साइमन कमीशन के लाठीचार्ज जैसी राजनीतिक घटनाओं और गरीबों के दुख-दर्द से गहरे प्रभावित हुए।

    • सामाजिक: पिता की तरह वे भी सामाजिक कार्यों में रुचि रखते थे और सफाई कर्मियों की बस्तियों में जाकर उनका जीवन समझा।

    • स्पष्टवादी: वे अपनी मान्यताओं और विचारों को स्पष्ट रूप से रखते थे, जैसे अंधविश्वास (चमत्कार) पर उनका अपना तार्किक दृष्टिकोण था।

    • कर्मठ: पत्नी की मृत्यु के बाद भी उन्होंने लेखन को ही अपने जीवन का सहारा बनाया और अंतिम समय तक सक्रिय रहे।

    English:

    • Studious: Had a great passion for reading since childhood; read extensively works of Bankimchandra, Premchand, Saratchandra, etc.

    • Sensitive and Aware: Deeply affected by political events like the Simon Commission lathi charge and the suffering of the poor.

    • Social: Like his father, he was interested in social work and visited sanitation workers' settlements to understand their lives.

    • Outspoken: He expressed his beliefs clearly, for instance, his logical perspective on superstitions (miracles).

    • Diligent: Even after his wife's death, he made writing his life's support and remained active until the end.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    पितामह

    दादा / बाबा

    -

    बहिष्कार

    त्याग / निकाल देना

    स्वीकार / अपनाना

    अपशकुन

    बुरा शगुन / अमंगल

    शगुन / शुभ

    प्रायश्चित

    पछतावा / पश्चाताप

    -

    आजानुबाहु

    जिसके हाथ घुटनों तक लंबे हों

    -

    भ्रमण

    घूमना / यात्रा

    -

    निर्मल

    स्वच्छ / साफ

    मलिन / गंदा

    जन्मांध

    जन्म से अंधा

    -

    संकलन

    संग्रह / इकट्ठा करना

    वितरण / बिखराव

    मनोविज्ञान

    मन का विज्ञान

    -

    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: नागर जी की पहली कहानी 'महाकाल' थी।

    उत्तर: गलत। कारण, उनकी पहली कहानी 'अपशकुन' थी (जो १९३३ में छपी), जबकि 'महाकाल' उनका पहला उपन्यास था।

    कथन २: नागर जी के पिता ने उन्हें आंदोलनों में भाग लेने से रोका।

    उत्तर: सही। कारण, साक्षात्कार में नागर जी कहते हैं, "पिता जी ने आंदोलनों में भाग लेने से रोका"।

    कथन ३: नागर जी ने कभी भी भारत भ्रमण नहीं किया।

    उत्तर: गलत। कारण, उन्होंने "पूरे अखंड भारतवर्ष का" पेशावर से कन्याकुमारी तक भ्रमण किया।

    कथन ४: नागर जी के लेखन के आदर्श केवल प्रेमचंद थे।

    उत्तर: गलत। कारण, जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "नहीं, कोई आदर्श नहीं। केवल आनंद था पढ़ने का"।

    कथन ५: नागर जी को 'रामचरितमानस' जबरदस्ती याद करवाया गया था।

    उत्तर: सही। कारण, वे बताते हैं कि "बाबा, शाम को नित्य प्रति 'रामचरितमानस' मुझसे पढ़वाकर सुनते थे। श्लोक जबरदस्ती याद करवाते थे"।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: "वाचन (Reading) ज्ञान और आनंद प्राप्ति का साधन है" - इस विषय पर अपने विचार लिखिए।

    उत्तर: वाचन, यानी पढ़ना, मनुष्य के मानसिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। जैसा कि अमृतलाल नागर जी ने कहा, "लिखने से पहले तो मैंने पढ़ना शुरू किया था"। पढ़ने से न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है, बल्कि यह हमें आनंद भी देता है। किताबें हमें घर बैठे दुनिया की सैर कराती हैं और विभिन्न संस्कृतियों से परिचित कराती हैं। अच्छा साहित्य हमारे चरित्र का निर्माण करता है और हमें संवेदनशील बनाता है। आज के इंटरनेट युग में भी किताबों का महत्व कम नहीं हुआ है। वाचन एक ऐसा मित्र है जो कभी धोखा नहीं देता।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानसिक विकास, ज्ञान वृद्धि, आनंद, चरित्र निर्माण, संवेदनशील, सच्चा मित्र, प्रेरणा स्रोत।

    प्रश्न २: एक लेखक के लिए 'भ्रमण' (Traveling) क्यों आवश्यक है?

    उत्तर: एक लेखक केवल कल्पना के आधार पर यथार्थ (Reality) नहीं लिख सकता। उसे समाज की वास्तविकता जानने के लिए लोगों के बीच जाना पड़ता है। नागर जी ने अपने उपन्यासों के लिए पूरे भारत का भ्रमण किया। भ्रमण करने से लेखक को विभिन्न प्रकार के चरित्र (Characters) देखने को मिलते हैं और वह उनके मनोविज्ञान को समझ पाता है। इससे उसके लेखन में गहराई और स्वाभाविकता आती है। 'फील्ड वर्क' के बिना लिखा गया साहित्य अक्सर सतही होता है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: यथार्थ, समाज की वास्तविकता, चरित्र चित्रण, मनोविज्ञान, गहराई, स्वाभाविकता, फील्ड वर्क, अनुभव।

    प्रश्न ३: "साहित्य समाज का दर्पण है" - स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर: साहित्य अपने समय के समाज का सच्चा प्रतिबिंब होता है। नागर जी ने बताया कि उनके लेखन में गरीबों के प्रति करुणा उनके समाज से ही उभरी थी। जिस समय वे लिख रहे थे, उस समय के आंदोलन, सामाजिक कुरीतियाँ और स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव उनके साहित्य पर पड़ा। 'नाच्यो बहुत गोपाल' जैसे उपन्यास में सफाई कर्मियों के जीवन का चित्रण इसी बात का प्रमाण है। साहित्यकार समाज की अच्छाइयों और बुराइयों दोनों को अपनी रचनाओं में स्थान देता है, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ उस समय के समाज को समझ सकें।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सच्चा प्रतिबिंब, करुणा, सामाजिक कुरीतियाँ, स्वतंत्रता संग्राम, चित्रण, प्रमाण, दस्तावेज, मार्गदर्शन।

    प्रश्न ४: क्या आप मानते हैं कि 'प्रतिभा' (Talent) जन्मजात होती है या अभ्यास से निखरती है?

    उत्तर: मेरा मानना है कि प्रतिभा जन्मजात हो सकती है, लेकिन उसे निखारने के लिए अभ्यास (Practice) अनिवार्य है। नागर जी ने बचपन से ही पढ़ना शुरू किया और धीरे-धीरे लेखन की ओर बढ़े। उनकी पहली कविता एक घटना (लाठीचार्ज) से प्रेरित होकर फूटी, लेकिन बाद में निरंतर अभ्यास और भ्रमण से वे एक महान लेखक बने। अभ्यास के बिना प्रतिभा कुंठित हो जाती है। जैसे हीरे को चमकने के लिए तराशना पड़ता है, वैसे ही प्रतिभा को कड़ी मेहनत और निरंतर प्रयास से ही निखारा जा सकता है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: जन्मजात, अभ्यास, अनिवार्य, निरंतर प्रयास, तराशना, कड़ी मेहनत, निखार, सफलता।

    प्रश्न ५: "जब तक जिंदा रहूँ, लिखता रहूँ" - यह पंक्ति नागर जी के किस जीवन मूल्य को दर्शाती है?

    उत्तर: यह पंक्ति नागर जी की 'जीजीविषा' (Will to live) और 'कर्मठता' को दर्शाती है। पत्नी की मृत्यु के बाद वे टूट सकते थे, लेकिन उन्होंने लेखन को ही अपने जीने का सहारा बनाया। यह दिखाता है कि एक कलाकार के लिए उसकी कला ही उसका जीवन है। वे अंतिम सांस तक समाज को अपने विचारों से समृद्ध करना चाहते थे। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, हमें अपने कर्म पथ से विचलित नहीं होना चाहिए और निरंतर सक्रिय रहना चाहिए।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: जीजीविषा, कर्मठता, सहारा, कला के प्रति समर्पण, सक्रियता, कर्म पथ, प्रेरणादायक, जीवन मूल्य।


    पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions)


    प्रश्न १: संजाल पूर्ण कीजिए: नागर जी के समकालीन साहित्यकार।

    उत्तर:

    • प्रेमचंद

    • शरतचंद्र

    • जगन्नाथदास रत्नाकर

    • किशोरी लाल गोस्वामी

      (अन्य: गोपाल राय गहमरी, लक्ष्मीधर वाजपेयी)

    प्रश्न २: उत्तर लिखिए: नागर जी का पहला उपन्यास।

    उत्तर: नागर जी का पहला उपन्यास 'महाकाल' है, जो १९४४ में लिखा गया और १९४६ में छपा। (बाद में यह 'भूख' नाम से प्रकाशित हुआ)।

    प्रश्न ३: उचित जोड़ियाँ मिलाइए:

    उत्तर:

    1. देसी और विलायती - प्रभात कुमार मुखोपाध्याय

    2. अपशकुन - अमृतलाल नागर (पहली कहानी)

    3. आनंदमठ - बंकिमचंद्र चटर्जी

    4. रामचरितमानस - तुलसीदास

    प्रश्न ४: एक शब्द में उत्तर लिखिए: नागर जी के प्रिय विदेशी लेखक।

    उत्तर: टॉल्स्टॉय और चेखव।

    प्रश्न ५: कारण लिखिए: नागर जी ने अपने पिता के किस गुण से प्रभावित होने की बात कही?

    उत्तर: नागर जी अपने पिता के उस अद्भुत गुण से प्रभावित थे जिसके कारण वे किसी के भी दुख-दर्द में तुरंत पहुँचते थे।


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