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    2.1. बरषहिं जलद - Barashahi Jalad - Class 10 - Lokbharati

    • Nov 19
    • 9 min read

    Updated: Nov 21

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    पाठ का प्रकार: पद्य

    पाठ का शीर्षक: बरषहिं जलद

    लेखक/कवि का नाम: गोस्वामी तुलसीदास


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी:

    प्रस्तुत पद्यांश गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' महाकाव्य के किष्किंधा कांड से लिया गया है। इसमें कवि ने वर्षा ऋतु का बहुत ही सुंदर और मार्मिक वर्णन किया है। भगवान राम, लक्ष्मण से वर्षा ऋतु के परिवर्तनों के बारे में बात कर रहे हैं और सीता जी के वियोग में अपनी व्याकुलता व्यक्त कर रहे हैं। तुलसीदास जी ने प्रकृति की घटनाओं (जैसे बिजली का चमकना, बादलों का गरजना, बारिश का होना) की तुलना मानवीय गुणों और अवगुणों (जैसे दुष्टों की मित्रता, संतों की सहनशीलता, ज्ञान पाकर विनम्र होना) से की है।

    English:

    This excerpt is taken from the 'Kishkindha Kand' of the epic 'Ramcharitmanas' written by Goswami Tulsidas. In this, the poet has given a beautiful and poignant description of the rainy season. Lord Rama is talking to Laxman about the changes in the rainy season and expressing his restlessness due to the separation from Sita. Tulsidas Ji has compared natural phenomena (like lightning flashing, clouds thundering, raining) with human virtues and vices (like the friendship of the wicked, the tolerance of saints, and becoming humble after attaining knowledge).



    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी:

    इस कविता का केंद्रीय भाव यह है कि प्रकृति हमें जीवन की महत्वपूर्ण नैतिक सीख देती है। कवि ने वर्षा ऋतु के माध्यम से समाज में सज्जन और दुर्जन व्यक्तियों के व्यवहार को दर्शाया है। जैसे भारी वर्षा सहकर भी पर्वत अचल रहते हैं, वैसे ही संत दुष्टों के वचन सहते हैं; और जैसे ज्ञान पाकर विद्वान विनम्र हो जाते हैं, वैसे ही बादल पृथ्वी के पास आकर झुक जाते हैं।

    English:

    The central theme of this poem is that nature teaches us important moral lessons of life. Through the rainy season, the poet has depicted the behavior of good and wicked people in society. Just as mountains remain immovable even after bearing heavy rain, saints bear the words of the wicked; and just as scholars become humble after attaining knowledge, clouds bow down when they come close to the earth.



    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    घोरा

    भयंकर (Frightening)

    सौम्य (Gentle)

    डरपत

    डरना (Fear)

    निडर (Fearless)

    खल

    दुष्ट (Wicked)

    सज्जन (Gentle/Good person)

    थिर

    स्थिर (Stable)

    चंचल/अस्थिर (Unstable)

    बुध

    विद्वान (Scholar)

    मूर्ख (Fool)

    तोराई

    तोड़कर (Breaking)

    जोड़कर (Joining)

    तिमिर/तम

    अँधेरा (Darkness)

    प्रकाश (Light)

    उद्यम

    उद्योग/परिश्रम (Industry/Hard work)

    आलस्य (Laziness)

    कोप/क्रोध

    गुस्सा (Anger)

    शांत (Calm/Peace)

    सद्गुन

    अच्छे गुण (Virtue)

    दुर्गुण (Vice)

    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. घन घमंड नभ गरजत घोरा... जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ।।

    परिचय: इन पंक्तियों में राम बादलों की गर्जना और बिजली की अस्थिरता का वर्णन कर रहे हैं।

    सरल अर्थ: आकाश में बादल घमंड से भरकर भयंकर गर्जना कर रहे हैं। सीता जी के बिना मेरा मन डर रहा है। बिजली बादलों में ऐसे चमक रही है जैसे दुष्ट व्यक्ति की प्रीति (मित्रता) स्थिर नहीं रहती। बादल पृथ्वी के नजदीक आकर ऐसे बरस रहे हैं, जैसे विद्वान व्यक्ति विद्या पाकर विनम्र हो (झुक) जाते हैं।

    २. बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे... जिमि सद्गुन सज्जन पहिं आवा ।।

    परिचय: यहाँ पर्वतों की सहनशीलता और छोटी नदियों के उफान की तुलना मानवीय स्वभाव से की गई है।

    सरल अर्थ: पर्वत वर्षा की बूंदों के प्रहार को वैसे ही सह रहे हैं, जैसे संत दुष्टों के कटु वचनों को सहते हैं। छोटी नदियाँ किनारों को तोड़कर ऐसे बह चली हैं, जैसे थोड़े से धन को पाकर दुष्ट लोग इतराने लगते हैं (घमंड करते हैं)। पृथ्वी पर गिरते ही पानी गंदा (मटमैला) हो गया है, मानो पवित्र जीव को माया लिपट गई हो। तालाबों में जल सिमट-सिमट कर ऐसे भर रहा है, जैसे सज्जन व्यक्ति के पास सद्गुण अपने आप चले आते हैं।

    ३. सरिता जल जलनिधि महुँ जाई... लुप्त होहिं सदग्रंथ ।।

    परिचय: यहाँ नदी के समुद्र में मिलने और हरी घास से रास्तों के लुप्त होने का वर्णन है।

    सरल अर्थ: नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव ईश्वर (हरि) को पाकर अचल (मोक्ष प्राप्त) हो जाता है। पृथ्वी घास से हरी-भरी हो गई है जिससे रास्ते समझ नहीं आ रहे हैं; यह दृश्य वैसा ही है जैसे पाखंडी मत के प्रचार से सद्ग्रंथ लुप्त हो जाते हैं।

    ४. दादुर धुनि चहुँ दिसा सुहाई... उपकारी कै संपति जैसी ।।

    परिचय: इन पंक्तियों में मेंढकों की आवाज और वृक्षों की दशा की तुलना की गई है।

    सरल अर्थ: चारों दिशाओं में मेंढकों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लग रही है, मानो विद्यार्थियों का समूह वेद पाठ कर रहा हो। अनेक वृक्षों में नए पत्ते आ गए हैं, वे ऐसे सुशोभित हो रहे हैं जैसे साधक का मन ज्ञान (विवेक) प्राप्त होने पर खिल उठता है। मदार और जवासा के पौधे बिना पत्तों के हो गए हैं, जैसे अच्छे राज में दुष्टों का उद्यम (धंधा) चला जाता है। धूल खोजने पर भी नहीं मिल रही है, जैसे क्रोध धर्म को दूर कर देता है। पृथ्वी अन्न से परिपूर्ण होकर ऐसी शोभा दे रही है, जैसे उपकारी पुरुष की संपत्ति होती है।

    ५. निसि तम घन खद्योत बिराजा... जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्याना ।।

    परिचय: यहाँ रात के अँधेरे, जुगनुओं और चक्रवाक पक्षी के माध्यम से समाज की स्थिति बताई गई है।

    सरल अर्थ: रात के घने अँधेरे में जुगनू ऐसे चमक रहे हैं, मानो दंभियों (घमंडियों) का समाज जुटा हो। चतुर किसान खेतों से घास-फूस (निराई) निकाल रहे हैं, जैसे विद्वान लोग मोह, मद और मान का त्याग कर देते हैं। चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं, जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं। यह पृथ्वी अनेक तरह के जीवों से भरी हुई ऐसी शोभा दे रही है, जैसे अच्छे राजा (सुराज्य) को पाकर प्रजा की वृद्धि होती है। जहाँ-तहाँ पथिक (यात्री) थककर ऐसे ठहरे हुए हैं, जैसे ज्ञान उत्पन्न होने पर इन्द्रियां शिथिल (शांत) हो जाती हैं।

    ६. कबहुँ प्रबल बह मारुत... कुल सद्धर्म नसाहिं ।।

    परिचय: यहाँ तेज हवा द्वारा बादलों के बिखरने की तुलना कुपुत्र से की गई है।

    सरल अर्थ: कभी वायु बहुत तेज गति से बहने लगती है, जिससे बादल जहाँ-तहाँ गायब हो जाते हैं। यह दृश्य वैसा ही है जैसे कुपुत्र (कपूत) के पैदा होने से कुल के उत्तम धर्म (मर्यादा) नष्ट हो जाते हैं।

    ७. कबहुँ दिवस महँ निबिड़ तम... पाइ कुसंग-सुसंग ।।

    परिचय: यहाँ दिन-रात के खेल की तुलना कुसंगति और सत्संगति से की गई है।

    सरल अर्थ: कभी बादलों के कारण दिन में घोर अँधेरा छा जाता है और कभी सूर्य प्रकट हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे कुसंगति पाकर ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंगति पाकर ज्ञान उत्पन्न हो जाता है।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: दुष्ट व्यक्ति की मित्रता (प्रीति) हमेशा स्थिर रहती है।

    उत्तर: गलत। कारण: गोस्वामी जी कहते हैं कि बिजली की चमक की तरह "खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं" अर्थात दुष्ट की प्रीति स्थिर नहीं होती।

    कथन २: थोड़ा सा धन पाकर दुष्ट लोग घमंड करने लगते हैं।

    उत्तर: सही। कारण: जैसे छोटी नदी किनारों को तोड़कर बहती है, "जस थोरेहुँ धन खल इतराई" अर्थात थोड़े धन पर खल (दुष्ट) इतराने लगते हैं।

    कथन ३: ज्ञान पाने के बाद विद्वान व्यक्ति और अधिक अकड़ जाते हैं।

    उत्तर: गलत। कारण: पद्यांश के अनुसार, "जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ" अर्थात विद्वान विद्या पाकर विनम्र होकर झुक जाते हैं।

    कथन ४: अच्छे राजा के राज में दुष्टों का उद्योग फलता-फूलता है।

    उत्तर: गलत। कारण: तुलसीदास जी लिखते हैं "जस सुराज खल उद्यम गयऊ" अर्थात सुराज्य में दुष्टों का उद्यम नष्ट हो जाता है, जैसे मदार के पत्ते झड़ जाते हैं।

    कथन ५: कुपुत्र के पैदा होने से कुल का धर्म नष्ट हो जाता है।

    उत्तर: सही। कारण: दोहे में कहा गया है "जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं" अर्थात कपूत के उत्पन्न होने से कुल के सद्धर्म नष्ट हो जाते हैं।


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: गोस्वामी तुलसीदास

    रचना का प्रकार: महाकाव्य अंश (चौपाई और दोहा)

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ ।।

    मुझे यह पंक्ति पसंद है क्योंकि इसमें विद्या और विनम्रता का बहुत सुंदर संबंध बताया गया है।

    असली विद्वान वही है जो ज्ञान पाकर अहंकारी नहीं, बल्कि विनम्र बनता है।

    बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे ।।

    यह पंक्ति संतों की सहनशक्ति का बहुत सटीक उदाहरण देती है जो मुझे प्रेरित करती है।

    हमें संतों की तरह धैर्यवान बनना चाहिए और नकारात्मक बातों का प्रभाव अपने ऊपर नहीं पड़ने देना चाहिए।

    क्षुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई ।।

    यह पंक्ति बहुत व्यावहारिक है और आज के समाज में दिखावे की प्रवृत्ति पर सटीक व्यंग्य करती है।

    कम उपलब्धि या थोड़े धन पर घमंड नहीं करना चाहिए, यह ओछेपन की निशानी है।

    जिमि पाखंड बिबाद तें, लुप्त होहिं सदग्रंथ ।।

    यह पंक्ति पाखंड और सत्य के संघर्ष को बहुत गहराई से दर्शाती है।

    हमें पाखंड और झूठे तर्कों से बचकर रहना चाहिए क्योंकि वे सच्चाई और अच्छे विचारों को छिपा देते हैं।

    बिनसइ-उपजइ ग्यान जिमि, पाइ कुसंग-सुसंग ।।

    यह पंक्ति संगति के महत्व को बहुत ही सरल उदाहरण (अंधकार और प्रकाश) से समझाती है।

    हमें हमेशा अच्छी संगति (सुसंग) में रहना चाहिए क्योंकि बुरी संगति हमारे विवेक और ज्ञान को नष्ट कर देती है।

    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'सत्संगति' का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? अपने विचार लिखिए।

    उत्तर: सत्संगति का अर्थ है - अच्छे और गुणी लोगों का साथ। सत्संगति हमारे जीवन को सही दिशा देती है। जैसे इस पाठ में बताया गया है कि सुसंगति पाकर ज्ञान उत्पन्न होता है। अच्छे लोगों के साथ रहने से हमारे अंदर सकारात्मक विचार, परोपकार की भावना और विनम्रता आती है। यह हमारे चरित्र निर्माण में सहायक होती है और हमें बुराइयों से दूर रखती है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: चरित्र निर्माण, सकारात्मक विचार, दिशा, सुसंग, ज्ञान की वृद्धि।

    प्रश्न २: 'परोपकार' विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

    उत्तर: परोपकार मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म है। प्रकृति हमें सदैव परोपकार की सीख देती है। जैसे वृक्ष धूप सहकर हमें छाया देते हैं और नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीतीं। तुलसीदास जी ने भी कहा है "उपकारी कै संपति जैसी" अर्थात उपकारी की संपत्ति दूसरों के हित के लिए होती है। दूसरों की निस्वार्थ भाव से मदद करने से जो आत्मसंतुष्टि मिलती है, वह किसी और चीज में नहीं है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: निस्वार्थ सेवा, आत्मसंतुष्टि, मानव धर्म, प्रकृति की सीख, सहायता।

    प्रश्न ३: 'विनम्रता' एक श्रेष्ठ गुण है, इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

    उत्तर: विनम्रता मनुष्य का आभूषण है। पाठ में बताया गया है कि जैसे बादल जल के भार से झुक जाते हैं और विद्वान विद्या पाकर विनम्र हो जाते हैं, वैसे ही हमें भी अपनी उपलब्धियों पर घमंड नहीं करना चाहिए। विनम्र व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता है। अहंकारी व्यक्ति ज्ञान और धन पाकर भी दूसरों की नज़रों में गिर जाता है, जबकि विनम्रता शत्रु को भी मित्र बना सकती है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आभूषण, सम्मान, अहंकार का त्याग, मृदु व्यवहार, विद्वान की पहचान।

    प्रश्न ४: 'सादा जीवन उच्च विचार' की प्रासंगिकता समझाइए।

    उत्तर: यह उक्ति संतों के स्वभाव पर बिलकुल सटीक बैठती है। पाठ में संतों की तुलना पर्वतों से की गई है जो सब कुछ सहकर भी अडिग रहते हैं। सादा जीवन जीने वाला व्यक्ति बाहरी दिखावे (जैसे छोटी नदी का उफान) से दूर रहता है। उसका ध्यान भौतिक सुखों के बजाय मानसिक शांति और ज्ञान प्राप्ति पर होता है। आज के दौर में मानसिक तनाव से बचने के लिए यह जीवन शैली बहुत आवश्यक है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: बाहरी दिखावा, मानसिक शांति, सादगी, संतोष, संतों का स्वभाव।

    प्रश्न ५: वर्षा ऋतु में प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

    उत्तर: वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप पूरी तरह बदल जाता है। आकाश में काले बादल छा जाते हैं और बिजली चमकने लगती है। सूखी धरती हरी-भरी हो जाती है, जिससे रास्ते छिप जाते हैं। तालाब और नदियाँ जल से भर जाती हैं। मेंढक, मोर और अन्य जीव प्रसन्न होकर आवाजें निकालते हैं। पेड़-पौधे नए पत्तों से लद जाते हैं। वातावरण में शीतलता आ जाती है और धूल-मिट्टी बैठ जाती है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: हरियाली, शीतलता, जल-स्रोत, काले बादल, नवजीवन।


    पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions)


    प्रश्न १: जोड़ियाँ मिलाइए:

    उत्तर:

    • दमकती बिजली - दुष्ट की मित्रता

    • नव पल्लव से भरा वृक्ष - साधक के मन का विवेक

    • उपकारी की संपत्ति - ससि संपन्न पृथ्वी

    • भूमि की (सहनशीलता) - संतों की

    प्रश्न २: पद्यांश में आए प्राकृतिक जल स्रोतों के नाम लिखिए।

    उत्तर:

    • नदी (सरिता)

    • तालाब (तलावा)

    • समुद्र (जलनिधि)

    प्रश्न ३: तालिका पूर्ण कीजिए:

    उत्तर:

    • बटु समुदाय (जैसे): मेंढकों की ध्वनि (दादुर धुनि)

    • सज्जनों के सद्गुण (जैसे): तालाब में सिमटता जल

    प्रश्न ४: निम्न अर्थ को स्पष्ट करने वाली पंक्तियाँ लिखिए:

    उत्तर:

    • संतों की सहनशीलता: "बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे ।।"

    • कपूत के कारण कुल की हानि: "जिमि कपूत के उपजे, कुल सद्धर्म नसाहिं ।।"

    प्रश्न ५: पद्यांश में प्रयुक्त निम्न शब्दों के अर्थ/शब्द लिखिए:

    उत्तर:

    • बादल: जलद / घन

    • उपग्रह: (यहाँ पृथ्वी के उपग्रह 'चंद्रमा' के लिए 'ससि' शब्द प्रयोग हुआ है। पाठ में 'ससि संपन्न' का अर्थ फसलों से युक्त पृथ्वी है)।



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