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    2.3. श्रम साधना - Shram Sadhana - Class 10 - Lokbharati

    • Nov 21
    • 7 min read

    Updated: 2 days ago

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    पाठ का प्रकार: वैचारिक निबंध पाठ का शीर्षक: श्रम साधना लेखक का नाम: श्रीकृष्णदास जाजू


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: इस वैचारिक निबंध में लेखक श्रीकृष्णदास जाजू ने श्रम की महत्ता और आर्थिक असमानता पर प्रकाश डाला है। लेखक बताते हैं कि इतिहास में गुलामी और राजशाही प्रथाएँ मनुष्य के विवेक जागृत होने और संघर्ष के कारण समाप्त हुईं। इसी तरह, आर्थिक विषमता को भी समाप्त करना आवश्यक है। लेखक के अनुसार, संपत्ति केवल सोना-चाँदी नहीं है, बल्कि प्रकृति के संसाधनों और मनुष्य के शारीरिक श्रम से बनी उपयोगी वस्तुएँ हैं। समाज में शारीरिक श्रम करने वाले (मजदूर/किसान) गरीब हैं, जबकि केवल बौद्धिक कार्य करने वाले या व्यवस्थापक (व्यापारी/अधिकारी) अमीर हैं। यह स्थिति अनुचित है। लेखक महात्मा गांधी के विचारों का समर्थन करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक श्रम करना चाहिए ('शरीर श्रम' या Bread Labor)। हमें समाज का ऋणी होना चाहिए क्योंकि हमारी शिक्षा और योग्यता समाज के सहयोग से ही संभव हुई है। अंत में, लेखक 'ट्रस्टीशिप' (Trusteeship) और अहिंसा के माध्यम से आर्थिक समानता लाने का सुझाव देते हैं।

    English: In this ideological essay, author Shrikrishnadas Jaju highlights the importance of labor and the issue of economic inequality. The author explains that historically, slavery and monarchy ended due to the awakening of human conscience and struggle. Similarly, economic disparity must also end. According to the author, property is not just gold or silver, but useful items created by natural resources combined with human physical labor. In society, those who perform physical labor (laborers/farmers) are poor, while those who only perform intellectual work or management (merchants/officials) are rich. This situation is unjust. The author supports Mahatma Gandhi's view that everyone should perform physical labor ('Bread Labor'). We should be indebted to society because our education and skills are made possible only through society's cooperation. Finally, the author suggests achieving economic equality through 'Trusteeship' and non-violence.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस पाठ का केंद्रीय भाव 'श्रम की प्रतिष्ठा' (Dignity of Labor) स्थापित करना है। लेखक यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज में शारीरिक और बौद्धिक श्रम के बीच का भेदभाव समाप्त होना चाहिए। संपत्ति का निर्माण शारीरिक श्रम के बिना संभव नहीं है, इसलिए श्रमिक को उचित सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए।

    English: The central theme of this lesson is to establish the 'Dignity of Labor'. The author wants to convey the message that the discrimination between physical and intellectual labor in society should end. The creation of property is impossible without physical labor; therefore, the laborer deserves proper respect and rights.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    गुलामी

    दासता / परतंत्रता

    आजादी / स्वतंत्रता

    विवेक

    समझ / बुद्धि

    अविवेक / मूर्खता

    यातना

    कष्ट / पीड़ा

    सुख / आराम

    संपत्ति

    धन-दौलत / वित्त

    विपत्ति / दरिद्रता

    प्रत्यक्ष

    सामने / साक्षात

    अप्रत्यक्ष / परोक्ष

    मुनाफा

    लाभ / फायदा

    नुकसान / घाटा

    नगण्य

    तुच्छ / न के बराबर

    गण्य / बहुत अधिक

    कृतज्ञ

    उपकार मानने वाला

    कृतघ्न

    विषमता

    असमानता / भेद

    समानता / समता

    स्वार्थ

    अपना हित

    परमार्थ / निस्वार्थ


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: सोना-चाँदी या रुपया ही वास्तविक संपत्ति है। उत्तर: गलत। कारण, लेखक के अनुसार ये केवल माप-तौल के साधन हैं; वास्तविक संपत्ति वे चीजें हैं जो मनुष्य के उपयोग में आती हैं (अन्न, वस्त्र, मकान)।

    कथन २: संपत्ति के मुख्य दो साधन हैं - सृष्टि के द्रव्य और मनुष्य का शरीर श्रम। उत्तर: सही। कारण, पाठ में स्पष्ट किया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों पर जब मनुष्य श्रम करता है, तभी संपत्ति का निर्माण होता है।

    कथन ३: लेखक के अनुसार हमें समाज से अधिक लेना चाहिए और कम देना चाहिए। उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं कि न्याय और कर्तव्य यह है कि हम समाज को अधिक-से-अधिक दें और समाज से कम-से-कम लें।

    कथन ४: महात्मा गांधी ने दिन में चार घंटे शरीर श्रम और चार घंटे बौद्धिक कार्य का सुझाव दिया। उत्तर: सही। कारण, गांधीजी का सूत्र था कि पेट भरने के लिए हाथ-पैर (श्रम) और ज्ञान के लिए बुद्धि का उपयोग हो।

    कथन ५: बिना शरीर श्रम किए आजीविका की सामग्री का उपयोग करना हमारा न्यायोचित अधिकार है। उत्तर: गलत। कारण, लेखक मानते हैं कि बिना शरीर श्रम किए सामग्री का उपयोग करने का हमें कोई नैतिक अधिकार नहीं है क्योंकि हर वस्तु के पीछे किसी का श्रम होता है।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: "श्रम ही प्रतिष्ठा है" (Dignity of Labor) विषय पर अपने विचार लिखिए। उत्तर: 'श्रम ही प्रतिष्ठा है' का अर्थ है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। चाहे काम शारीरिक हो या मानसिक, दोनों का अपना महत्व है। समाज में अक्सर डॉक्टर या इंजीनियर को मजदूर या किसान से अधिक सम्मान दिया जाता है, जो कि गलत है। एक सफाई कर्मचारी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना एक अधिकारी, क्योंकि उसके बिना समाज में गंदगी फैल जाएगी। हमें यह समझना चाहिए कि श्रम से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। गांधीजी ने भी चरखा चलाकर श्रम की महत्ता समझाई थी। अतः हमें हर प्रकार के श्रम का आदर करना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: भेदभाव, शारीरिक बनाम मानसिक, राष्ट्र निर्माण, अनिवार्य योगदान, गांधीवादी विचार, स्वावलंबन, सम्मान।

    प्रश्न २: समाज के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारियाँ हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। उत्तर: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसकी प्रगति समाज पर निर्भर करती है। पाठ के अनुसार, हम जो शिक्षा और योग्यता प्राप्त करते हैं, उसमें हमारा निजी योगदान बहुत कम होता है, जबकि समाज (करदाताओं, दानदाताओं, पूर्वजों के ज्ञान) का योगदान अधिक होता है। इसलिए, हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी योग्यता का उपयोग केवल निजी स्वार्थ के लिए न करें, बल्कि समाज के कल्याण के लिए करें। हमें 'ट्रस्टी' की तरह व्यवहार करना चाहिए और समाज से जितना लेते हैं, उससे अधिक लौटाने का प्रयास करना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सामाजिक प्राणी, पारस्परिक निर्भरता, ऋण (Debt), योग्यता का उपयोग, निस्वार्थ सेवा, ट्रस्टीशिप, सामाजिक कल्याण।

    प्रश्न ३: आर्थिक विषमता (Economic Disparity) को कैसे दूर किया जा सकता है? उत्तर: आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए सबसे पहले मानसिक बदलाव की आवश्यकता है। समाज में शारीरिक श्रम को भी बौद्धिक श्रम के बराबर सम्मान और वेतन मिलना चाहिए। गांधीजी के 'ट्रस्टीशिप' सिद्धांत के अनुसार, अमीरों को अपनी अतिरिक्त संपत्ति का मालिक नहीं, बल्कि रखवाला (ट्रस्टी) समझना चाहिए और उसे गरीबों के हित में खर्च करना चाहिए। इसके अलावा, यदि हर व्यक्ति उत्पादन प्रक्रिया में भाग ले और अनिवार्य शारीरिक श्रम करे, तो धन का संचय कुछ ही हाथों में नहीं होगा और विषमता कम होगी। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानसिक बदलाव, समान वेतन, ट्रस्टीशिप सिद्धांत, धन का विकेंद्रीकरण, अनिवार्य श्रम, अहिंसक मार्ग, सहयोग।

    प्रश्न ४: "बिना श्रम के प्राप्त संपत्ति चोरी का माल है" - इस कथन की समीक्षा कीजिए। उत्तर: यह कथन पूर्णतः सत्य प्रतीत होता है। हम अपने दैनिक जीवन में जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं (जैसे भोजन, कपड़े), वे किसी न किसी के कठोर शारीरिक श्रम का परिणाम हैं। यदि हम स्वयं कोई शारीरिक श्रम नहीं करते और केवल पैसों के बल पर उन वस्तुओं का उपभोग करते हैं, तो यह एक प्रकार का शोषण है। नैतिक दृष्टि से, बिना पसीना बहाए सुख भोगना, दूसरों की मेहनत पर जीने जैसा है। इसलिए, अपनी आजीविका के लिए श्रम करना नैतिक कर्तव्य है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: उपभोग, कठोर श्रम, शोषण, नैतिक कर्तव्य, परजीवी (Parasite), स्वाभिमान, आजीविका।

    प्रश्न ५: आज के युवाओं में श्रम के प्रति घटते रुझान के क्या कारण हो सकते हैं? उत्तर: आज के युवाओं में शारीरिक श्रम के प्रति रुझान घटने का मुख्य कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था और सामाजिक मानसिकता है। बचपन से ही बच्चों को केवल 'व्हाइट कॉलर जॉब' (दफ्तरी नौकरी) के लिए प्रेरित किया जाता है। शारीरिक काम को 'छोटा' और 'कम दर्जे' का माना जाता है। तकनीक और मशीनों पर अत्यधिक निर्भरता ने भी युवाओं को आरामप्रस्त बना दिया है। इसके अलावा, 'जल्दी अमीर बनने' (Easy Money) की चाहत ने भी कड़ी मेहनत की आदत को कम कर दिया है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: शिक्षा व्यवस्था, व्हाइट कॉलर जॉब, सामाजिक प्रतिष्ठा, तकनीकी निर्भरता, आरामप्रस्त जीवनशैली, शॉर्टकट, मानसिकता।


    पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions)


    प्रश्न १: संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में लेखक के विचार स्पष्ट कीजिए। उत्तर:

    • संपत्ति के दो मुख्य साधन हैं: प्रकृति के संसाधन (सृष्टि के द्रव्य) और मनुष्य का शारीरिक श्रम।

    • केवल बौद्धिक श्रम से संपत्ति नहीं बन सकती; इसमें शारीरिक श्रम अनिवार्य है।

    • वर्तमान व्यवस्था में संपत्ति उन लोगों के पास इकट्ठी होती है जो व्यवस्थापक हैं, न कि जो निर्माता (मजदूर) हैं।

    • लेखक का मानना है कि संपत्ति पर समाज का अधिकार होना चाहिए, न कि केवल कुछ व्यक्तियों का।

    प्रश्न २: अंतर स्पष्ट कीजिए (तुलना कीजिए): श्रमजीवी और बुद्धिजीवी। उत्तर:

    • श्रमजीवी: वे लोग जो शारीरिक श्रम से आजीविका कमाते हैं (जैसे किसान, मजदूर, बढ़ई)। समाज में इनकी आमदनी कम है और इन्हें अक्सर कष्ट में जीवन बिताना पड़ता है।

    • बुद्धिजीवी: वे लोग जो मानसिक कार्य से आजीविका कमाते हैं (जैसे शिक्षक, डॉक्टर, वकील, व्यापारी)। समाज में इनका सम्मान अधिक है और ये अपेक्षाकृत आरामदायक जीवन जीते हैं।

    प्रश्न ३: गांधीजी ने आर्थिक और सामाजिक विषमता मिटाने के लिए क्या सूत्र बताया? उत्तर: गांधीजी ने विषमता मिटाने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया:

    • "पेट भरने के लिए हाथ-पैर और ज्ञान प्राप्त करने के लिए बुद्धि।"

    • प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 4 घंटे शारीरिक श्रम और 4 घंटे बौद्धिक कार्य करना चाहिए।

    • इससे सभी की बुनियादी जरूरतें पूरी होंगी और श्रम का सम्मान बढ़ेगा।

    प्रश्न ४: संजाल पूर्ण कीजिए: दान (Charity) के बारे में लेखक के विचार। उत्तर:

    • धनिकों के दान से विद्यालय और अस्पताल बनते हैं।

    • लेखक प्रश्न उठाते हैं कि यदि संपत्ति कुछ हाथों में इकट्ठी ही न हो, तो दान की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

    • यदि संपत्ति समाज में फैली रहे, तो लोग 'सहकार पद्धति' से संस्थाएँ चला सकते हैं।

    • इससे लाभ लेने वाले 'याचक' (भिखारी) नहीं, बल्कि सम्मानपूर्वक लाभ उठाने वाले बनेंगे।

    प्रश्न ५: लेखक के अनुसार 'कल्याणकारी राज्य' (Welfare State) का क्या अर्थ है? उत्तर: लेखक के अनुसार, पश्चिमी देशों (जैसे अमेरिका) में 'कल्याणकारी राज्य' का अर्थ है:

    • जिनके पास संपत्ति इकट्ठी हुई है, उन पर भारी टैक्स (कर) लगाना।

    • इस टैक्स के पैसे से गरीबों, बेरोजगारों और दुर्बलों को मदद देना।

    • लेखक भारत में इसे पूरी तरह सफल नहीं मानते क्योंकि यहाँ आत्मनिर्भरता और श्रम के प्रति सम्मान जगाना अधिक आवश्यक है।

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