2.4. छापा - Chhapa - Class 10 - Lokbharati
- Nov 19
- 10 min read
Updated: Nov 20

पाठ का प्रकार: पद्य (हास्य-व्यंग्य कविता)
पाठ का शीर्षक: छापा
लेखक/कवि का नाम: ओमप्रकाश 'आदित्य'
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी:
'छापा' एक हास्य-व्यंग्य कविता है। इसमें कवि एक आम आदमी और गरीब लेखक की आर्थिक स्थिति को आयकर विभाग के छापे के माध्यम से दर्शाते हैं। जब अधिकारी कवि के घर छापा मारकर "सोना", "स्वर्ण", "अर्थ", "चाँदी" और "मुद्रा" माँगते हैं, तो कवि अपनी गरीबी के कारण इन शब्दों का शाब्दिक अर्थ न लेकर व्यंग्यात्मक अर्थ बताते हैं। वे 'सोना' का अर्थ 'नींद', 'स्वर्ण' का 'सुवर्ण' (अक्षर), 'अर्थ' का 'मतलब' और 'चाँदी' का 'बालों की सफेदी' बताते हैं। अधिकारियों को तलाशी में फटे तकिये, खाली कनस्तर और बच्चों की खाली गुल्लक ही मिलती है। यह गरीबी देखकर अधिकारियों का गुस्सा करुणा में बदल जाता है और वे वापस जाने लगते हैं। तब कवि उन पर अंतिम व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आप अमीरों से धन निकलवाते हैं, पर मेरे जैसे गरीब के घर बैठने के लिए एक तख्त ही डलवा दीजिए।
English:
'Chhapa' (The Raid) is a satirical poem. In this, the poet highlights the financial condition of a common man and a poor writer through an income tax raid. When officials raid the poet's house demanding "Sona" (gold), "Swarna" (gold), "Arth" (money), "Chandi" (silver), and "Mudra" (currency), the poet, due to his poverty, provides sarcastic answers instead of literal ones. He interprets 'Sona' as 'sleep', 'Swarna' as 'golden words', 'Arth' as 'meaning', and 'Chandi' as 'silver hair'. In their search, the officials only find torn pillows, empty tins, and an empty piggy bank. Seeing this poverty, the officers' anger turns to pity, and they start to leave. The poet then makes a final satirical remark, asking them that since they take from the rich, they should at least provide a basic cot (Takht) for a poor man like him to sit on.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी:
यह एक हास्य-व्यंग्य कविता है। इस कविता का केंद्रीय भाव एक आम और ईमानदार आदमी की आर्थिक तंगी को दिखाना है। कवि ने आयकर विभाग के छापे जैसी गंभीर घटना को हास्य का रूप दिया है। वे 'सोना', 'चाँदी', 'अर्थ' जैसे शब्दों के दोहरे अर्थों का प्रयोग करके व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि यह दर्शाते हैं कि भ्रष्ट और अमीर लोगों को छोड़कर, व्यवस्था कभी-कभी निर्दोष और गरीब लोगों को भी परेशान करती है।
English:
This is a satirical poem. The central theme is to showcase the financial distress of a common and honest man. The poet has turned a serious event like an income tax raid into humor. By using the double meanings of words like 'Sona' (gold/sleep), 'Chandi' (silver/silver hair), and 'Arth' (money/meaning), he presents sharp satire on the system. Through this poem, the poet illustrates that the system, while overlooking the corrupt and wealthy, sometimes ends up harassing the innocent and poor.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
रोष | गुस्सा | प्रसन्नता, हर्ष |
अर्जित | कमाया हुआ | गँवाया हुआ |
अर्थ | पैसा, धन | अनर्थ |
कनस्तर | टीन का पीपा | - |
तख्त | लकड़ी की बड़ी चौकी | - |
स्वर्ण | सोना | लौह |
अनधिकृत | अवैध | अधिकृत |
मुद्रा | सिक्का, हावभाव | - |
अरण्यकांड | वीरान दृश्य, सन्नाटा | चहल-पहल |
उद्भ्रांत | हैरान, चकित | शांत |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. मेरे घर छापा पड़ा... कई रात से नहीं सोया हूँ
परिचय: कवि अपने घर पर पड़े एक बहुत बड़े छापे का वर्णन शुरू करते हैं।
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि मेरे घर पर एक बहुत बड़ा छापा पड़ा। वे (अधिकारी) घर में घुसे और पूछा- "सोना कहाँ है?" कवि ने जवाब दिया, "मेरी आँखों में है, क्योंकि मैं कई रातों से ठीक से 'सोया' नहीं हूँ।"
२. वे रोष में आकर... उन्हें कैसे दे दूँ।
परिचय: अधिकारी कवि के शाब्दिक व्यंग्य को न समझकर, गुस्से में 'स्वर्ण' (सोना) माँगते हैं।
सरल अर्थ: अधिकारी गुस्से में आकर बोले- "स्वर्ण (सोना) दो!" कवि ने भी जोश में आकर कहा- "सुवर्ण (अच्छे अक्षर/शब्द) तो मैंने अपनी कविताओं में बिखेरे हैं, उन्हें मैं आपको कैसे दे सकता हूँ?"
३. वे झुंझलाकर बोले... ढूँढ़ लो
परिचय: अधिकारी झुंझलाकर कवि को समझाते हैं कि उन्हें अवैध धन चाहिए।
सरल अर्थ: अधिकारी चिढ़कर बोले- "तुम समझे नहीं, हमें तुम्हारा अवैध रूप से कमाया हुआ 'अर्थ' (धन) चाहिए।" कवि ने मुस्कुराकर जवाब दिया- "'अर्थ' (मतलब/meaning) तो मेरी नई कविताओं में है, अगर तुम्हें मिल जाए तो ढूँढ़ लो।"
४. वे कड़ककर बोले... आ रही है धीरे-धीरे
परिचय: अधिकारी अब 'चाँदी' के बारे में पूछते हैं, जिस पर कवि एक और व्यंग्य करते हैं।
सरल अर्थ: वे और सख्ती से बोले- "चाँदी कहाँ है?" कवि ने भी भड़ककर जवाब दिया- "चाँदी (सफेद बाल) तो मेरे बालों में धीरे-धीरे आ रही है।"
५. वे उद्भ्रांत होकर बोले... करूँगा तैयार
परिचय: हैरान होकर अधिकारी 'नोट' के बारे में पूछते हैं।
सरल अर्थ: वे चकित और हैरान होकर बोले- "यह बताओ तुम्हारे 'नोट' (रुपये) कहाँ हैं?" कवि ने जवाब दिया- "'नोट' (Notes) तो मैं परीक्षा से एक महीने पहले तैयार करूँगा।"
६. वे गरजकर बोले... देख लीजिए,
परिचय: अधिकारी अंत में 'मुद्रा' (करेंसी) माँगते हैं।
सरल अर्थ: वे गरजकर बोले- "हमारा मतलब आपकी 'मुद्रा' (Currency) से है!" कवि ने काँपते हुए (विनम्रता से) कहा- "'मुद्राएँ' (भाव-भंगिमाएँ/Expressions) तो आप मेरे मुख पर देख लीजिए।"
७. वे खड़े होकर... एक ही तत्त्व खाली...
परिचय: कवि के व्यंग्य से थककर अधिकारी स्वयं तलाशी लेना शुरू करते हैं।
सरल अर्थ: अधिकारी कुछ देर खड़े होकर सोचने लगे, फिर वे कवि के सोने के कमरे (शयन कक्ष) में घुस गए। उन्होंने फटे हुए तकिये की रूई को नोचा, टूटी अलमारी खोली, रसोई के खाली पीपों को ढूँढ़ा और बच्चों की गुल्लक (Piggy bank) तक देख डाली, पर उन्हें सब में एक ही चीज मिली- 'खालीपन'।
८. कनस्तरों को... मुरझा गया
परिचय: घर में पूरी तलाशी लेने के बाद अधिकारियों की प्रतिक्रिया का वर्णन है।
सरल अर्थ: उन्होंने कनस्तरों और मटकों को भी ढूँढ़ा, पर सब में उन्हें 'शून्य-ब्रह्मांड' (कुछ नहीं) मिला। मेरे घर में ऐसा 'अरण्यकांड' (वीरान दृश्य) देखकर उनका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया।
९. और उनके बीस... वापिस जाने लगे
परिचय: कवि की गरीबी देखकर अधिकारियों के मन में करुणा आ जाती है।
सरल अर्थ: उनके गुस्सैल (रौद्र) हृदय में, गुस्से की जगह करुण रस (दया) भर गया। वे बोले- "हमें क्षमा कीजिए, किसी ने हमें गलत सूचना दे दी थी।" वे अपनी असफलता पर मन ही मन पछताने लगे और सिर झुकाकर वापस जाने लगे।
१०. मैंने उन्हें रोककर... क्यों नहीं जाते
परिचय: कवि अधिकारियों पर अंतिम व्यंग्य करते हुए उन्हें रोकते हैं।
सरल अर्थ: मैंने उन्हें रोककर कहा- "ठहरिए! सिर धुनकर (पछताकर) मत जाइए, मेरी एक बात सुनिए। अगर मेरे घर में अधिक धन होता तो आप उसे ले जाते। अब जब मेरे घर में बिल्कुल धन नहीं है, तो आप मुझे कुछ देकर क्यों नहीं जाते?"
११. जिनके घर में... एक तख्त तो डलवा दीजिए ।
परिचय: कवि व्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए उनसे एक तख्त की माँग करते हैं।
सरल अर्थ: (कवि कहते हैं) "जिन लोगों के घर में सोने-चाँदी के पलंग और सोफे हैं, आप उन्हें (जब्त करके) निकलवा लेते हैं। बहुत अच्छी बात है, निकलवा लीजिए। पर जिनके घर में बैठने के लिए कुछ भी नहीं है, उनके यहाँ कम-से-कम एक लकड़ी की चौकी (तख्त) तो डलवा दीजिए।"
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: छापा मारने वाले कवि के घर सोना ढूँढ़ने आए थे।
उत्तर: सही। कारण: उन्होंने घुसते ही पूछा, "सोना कहाँ है?"
कथन २: कवि ने 'अर्थ' का मतलब 'पैसा' बताया।
उत्तर: गलत। कारण: कवि ने 'अर्थ' का मतलब "मेरी नई कविताओं में है" बताया।
कथन ३: कवि के बालों में 'चाँदी' आ रही थी।
उत्तर: सही। कारण: कवि ने भड़ककर बोला, "मेरे बालों में आ रही है धीरे-धीरे"।
कथन ४: अधिकारियों को कवि की रसोई में कनस्तरों और मटकों में बहुत सामान मिला।
उत्तर: गलत। कारण: "कनस्तरों को, मटकों को ढूँढ़ा सब में मिला शून्य-ब्रह्मांड"।
कथन ५: अंत में कवि ने अधिकारियों से एक तख्त माँगा।
उत्तर: सही। कारण: कवि ने कहा, "उनके यहाँ कम-से-कम एक तख्त तो डलवा दीजिए"।
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: ओमप्रकाश 'आदित्य'
रचना का प्रकार: हास्य-व्यंग्य कविता
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
वे रोष में आकर बोले-स्वर्ण दो स्वर्ण ! मैं जोश में आकर कहा-सुवर्ण मैंने अपने काव्य में बिखेरे हैं | यह पंक्ति कवि की चतुराई और हाजिर-जवाबी को दर्शाती है, जहाँ वह 'स्वर्ण' (धातु) को 'सुवर्ण' (अक्षर) से जोड़ता है। | एक कवि के लिए उसकी कविता ही असली धन है। |
मैं मुसकाकर बोला, अर्थ मेरी नई कविताओं में है तुम्हें मिल जाए तो ढूँढ़ लो | यह व्यंग्य बहुत गहरा है, जहाँ 'अर्थ' (धन) को 'अर्थ' (meaning) से बदला गया है। | भौतिक धन के बजाय, ज्ञान और विचारों का 'अर्थ' अधिक मूल्यवान है। |
देखकर मेरे घर में ऐसा अरण्यकांड उनका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया | यह पंक्ति गरीबी का बहुत सजीव चित्रण करती है और अधिकारियों की हताशा को दिखाती है। | ईमानदारी और गरीबी अक्सर साथ-साथ चलती हैं। |
और उनके बीस सूची हृदय में रौद्र की जगह करुण रस समा गया | यह पंक्ति दिखाती है कि अत्यधिक गरीबी देखकर कठोर अधिकारियों का दिल भी पिघल (करुण) गया। | सच्ची गरीबी और ईमानदारी कठोरतम हृदय में भी दया उत्पन्न कर सकती है। |
पर जिनके घर में बैठने को कुछ भी नहीं उनके यहाँ कम-से-कम एक तख्त तो डलवा दीजिए । | यह कविता का सबसे तीखा व्यंग्य है, जो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। | व्यवस्था को केवल अमीरों से लेना ही नहीं, बल्कि गरीबों को कुछ देना भी चाहिए। |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: कवि द्वारा सोना, चाँदी और अर्थ के दिए गए जवाबों का व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कवि ने इन शब्दों के दोहरे अर्थों का प्रयोग किया है। अधिकारियों के लिए 'सोना' धातु था, कवि के लिए 'सोना' नींद थी। 'स्वर्ण' उनके लिए धन था, कवि के लिए 'सुवर्ण' (अच्छे अक्षर) थे। 'अर्थ' उनके लिए पैसा था, कवि के लिए उनकी कविताओं का 'अर्थ' (meaning) था। यह व्यंग्य दर्शाता है कि एक गरीब कवि के पास भौतिक धन नहीं, बल्कि केवल शाब्दिक और वैचारिक संपदा ही होती है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: दोहरा अर्थ, व्यंग्य, भौतिक संपदा, शाब्दिक संपदा, कवि की गरीबी।
प्रश्न २: "उनका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया" - यह पंक्ति क्या दर्शाती है?
उत्तर: यह पंक्ति दर्शाती है कि छापा मारने वाले अधिकारी कवि के घर पर बड़ी मात्रा में काला धन मिलने की उम्मीद में बहुत उत्साह और खुशी ("खिला हुआ चेहरा") के साथ आए थे। लेकिन जब उन्होंने रसोई की खाली पीपियों, टूटी अलमारी और कनस्तरों में 'शून्य-ब्रह्मांड' देखा, तो उनकी सारी उम्मीदें टूट गईं और वे निराश ("मुरझा गया") हो गए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: निराशा, हताशा, उम्मीद, काला धन, गरीबी, तलाशी।
प्रश्न ३: यदि छापा मारने वाले अधिकारियों की जगह आप होते, तो कवि की गरीबी देखकर क्या करते?
उत्तर: यदि मैं उन अधिकारियों की जगह होता, तो कवि की गरीबी और उनकी हाजिर-जवाबी देखकर मुझे भी अपनी गलती का एहसास होता। मैं सबसे पहले उनसे गलत सूचना के लिए क्षमा माँगता। एक ईमानदार लेखक और आम आदमी की ऐसी दयनीय स्थिति देखकर मैं शर्मिंदा महसूस करता और शायद कवि के अंतिम व्यंग्य ("एक तख्त तो डलवा दीजिए") पर गंभीरता से विचार करता कि हमारी व्यवस्था को ईमानदार लोगों की भी मदद करनी चाहिए।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: क्षमा माँगना, शर्मिंदगी, ईमानदार, व्यवस्था, मदद, गरीबी।
प्रश्न ४: कविता में 'रौद्र की जगह करुण रस समा गया' का क्या आशय है?
उत्तर: इसका आशय है कि छापा मारने वाले अधिकारी जब घर में घुसे थे, तब वे 'रौद्र रस' (क्रोध, गुस्सा) में थे। वे कवि को एक अपराधी मानकर उससे सख्ती से बात कर रहे थे। लेकिन, जब उन्होंने घर की तलाशी ली और कवि की वास्तविक गरीबी (फटे तकिये, खाली कनस्तर) को अपनी आँखों से देखा, तो उनका क्रोध शांत हो गया और उसके स्थान पर 'करुण रस' (दया, सहानुभूति) ने ले ली। वे समझ गए कि यह व्यक्ति अपराधी नहीं, बल्कि अभावग्रस्त है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: रौद्र रस, करुण रस, क्रोध, दया, सहानुभूति, गरीबी, अभावग्रस्त।
प्रश्न ५: कवि ने अंत में अधिकारियों से 'तख्त' डलवाने की माँग क्यों की?
उत्तर: यह कवि का सबसे तीखा व्यंग्य था। उनका कहना था कि आप (अधिकारी) एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा हैं जो अमीरों (जिनके घर सोने-चाँदी के पलंग हैं) से उनका अतिरिक्त धन निकलवा लेती है। यह अच्छी बात है। लेकिन आपकी व्यवस्था का एक काम यह भी होना चाहिए कि जो बेहद गरीब है (जिसके घर बैठने को कुछ भी नहीं), उसे आप कुछ बुनियादी सुविधा (जैसे एक तख्त) प्रदान करें। यह एक ही समय में हास्यास्पद और गंभीर माँग है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: व्यंग्य, व्यवस्था पर कटाक्ष, अमीर-गरीब, बुनियादी सुविधा, सामाजिक न्याय।
पिछली बोर्ड परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न (Previous Years' Board Questions)
प्रश्न १: छापा मारने वाले क्यों झुंझला पड़े?
उत्तर: छापा मारने वाले इसलिए झुंझला पड़े क्योंकि वे कवि से "अनधिकृत रूप से अर्जित अर्थ" (पैसा) माँग रहे थे, लेकिन कवि व्यंग्यपूर्वक उन्हें अपनी "नई कविताओं में अर्थ" (meaning) ढूँढ़ने के लिए कह रहे थे।
प्रश्न २: अधिकारियों ने कवि के घर में किन-किन स्थानों पर तलाशी ली?
उत्तर: अधिकारियों ने तलाशी लेते हुए:
शयन कक्ष में फटे हुए तकिये की रूई नोची।
टूटी अलमारी को खोला।
रसोई की खाली पीपियों को टटोला।
बच्चों की गुल्लक तक देख डाली।
कनस्तरों और मटकों को ढूँढ़ा।
प्रश्न ३: कवि ने 'सोना', 'स्वर्ण', 'चाँदी', 'अर्थ', 'नोट' और 'मुद्रा' के क्या-क्या अर्थ बताए?
उत्तर: कवि ने इन शब्दों के निम्नलिखित अर्थ बताए:
सोना: आँखों में नींद होना (कई रात से नहीं सोया)।
स्वर्ण (सुवर्ण): काव्य में बिखेरे गए अच्छे अक्षर/शब्द।
चाँदी: बालों में आ रही सफेदी।
अर्थ: नई कविताओं का मतलब (meaning)।
नोट: परीक्षा के लिए तैयार किए जाने वाले नोट्स।
मुद्रा: चेहरे के हाव-भाव (expressions)।
प्रश्न ४: छापा मारने वालों का चेहरा क्यों मुरझा गया?
उत्तर: छापा मारने वाले कवि के घर में बहुत सारा काला धन मिलने की उम्मीद से आए थे, लेकिन जब उन्होंने कनस्तरों, मटकों, अलमारी और गुल्लक तक की तलाशी ली और उन्हें "सब में मिला एक ही तत्त्व खाली", तो वे निराश हो गए। घर में ऐसा "अरण्यकांड" (वीरान दृश्य) देखकर उनकी सारी उम्मीदें टूट गईं और उनका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया।
प्रश्न ५: कवि ने अधिकारियों को रोककर अंत में क्या व्यंग्य किया?
उत्तर: कवि ने अधिकारियों को रोककर यह व्यंग्य किया कि यदि उनके घर में अधिक धन होता तो वे ले जाते, लेकिन अब जब उनके घर में बिल्कुल धन नहीं है, तो उन्हें कुछ देकर जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आप अमीरों के घर से पलंग-सोफे निकलवा लेते हैं, यह अच्छी बात है, पर जिनके घर बैठने को कुछ भी नहीं है, उनके यहाँ कम-से-कम एक "तख्त" (लकड़ी की चौकी) तो डलवा दीजिए।
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