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    2.4 - सिंधु का जल - Sindhu ka Jal - Class 9 - Lokbharati

    • Sep 13
    • 10 min read
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    पाठ का प्रकार: पद्य (नई कविता) पाठ का शीर्षक: सिंधु का जल लेखक/कवि का नाम: अशोक चक्रधर


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: प्रस्तुत कविता में सिंधु नदी अपनी आत्मकथा सुना रही है। वह स्वयं को जीवन और सतत गतिशीलता का प्रतीक बताती है। वह कहती है कि उसी के किनारों पर विश्व की महान सभ्यताओं और संस्कृतियों का जन्म हुआ। सिंधु नदी का जल किसी के साथ भेदभाव नहीं करता; वह बिना किसी की जाति, धर्म या मजहब पूछे सब को समान रूप से अपनी सेवा प्रदान करता है। वह दोस्त और दुश्मन, दोनों की प्यास बुझाता है। लेकिन, जब उसी के घाटों पर इंसानी हिंसा और युद्ध होते हैं, खून-खराबा होता है, तो वह बहुत दुखी हो जाती है। वह युद्ध में घायल हुए सभी शूरवीरों के घाव धोती है और विधवाओं की आँखों में आँसू बनकर बहती है। अंत में, नदी अपनी विशालता और समग्रता को व्यक्त करते हुए कहती है कि 'मैं सिंधु में बिंदु हूँ और बिंदु में सिंधु हूँ', अर्थात मैं एक बूँद में समाई हूँ और मुझमें पूरा सागर समाया है।

    English: In this poem, the Indus River narrates its autobiography. It describes itself as a symbol of life and constant dynamism. It states that great world civilizations and cultures were born on its banks. The water of the Indus does not discriminate against anyone; it serves everyone equally without asking for their caste, creed, or religion. It quenches the thirst of both friend and foe. However, it becomes very sad when human violence and wars take place on its banks, leading to bloodshed. It washes the wounds of all the brave warriors injured in battle and flows as tears in the eyes of widows. In the end, the river expresses its vastness and totality by saying, "I am a drop in the Indus, and the Indus is in a drop," meaning I am contained in a single drop, and the entire ocean is contained within me.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव प्रकृति के माध्यम से मानवीय गुणों जैसे सर्वधर्म समभाव, समानता, इंसानियत और परोपकार को दर्शाना है। कवि ने सिंधु नदी के मानवीकरण द्वारा यह संदेश दिया है कि प्रकृति किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करती। वह सभी को जीवन देती है और सभी का दुख-दर्द महसूस करती है। कविता यह भी दर्शाती है कि मनुष्य द्वारा निर्मित भेद-भाव और हिंसा किस प्रकार प्रकृति को भी पीड़ा पहुँचाती है। इसका मूल उद्देश्य पाठकों को नदी की निष्पक्षता और उदारता से सीख लेकर आपसी बैर भुलाकर इंसानियत के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है।

    English: The central theme of this poem is to showcase human virtues like secularism, equality, humanity, and benevolence through nature. By personifying the Indus River, the poet conveys the message that nature does not discriminate on any basis. It gives life to all and feels the pain of all. The poem also shows how man-made discrimination and violence cause pain even to nature. Its core purpose is to inspire readers to learn from the river's impartiality and generosity, forget mutual enmity, and walk on the path of humanity.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    प्रवाहमान

    गतिशील, बहता हुआ

    स्थिर, रुका हुआ

    पावन

    पवित्र, शुद्ध

    अपावन, अशुद्ध

    मर्म

    सार, रहस्य

    बाहरी, सतही

    मंद

    धीमी, मंथर

    तीव्र, तेज

    अचल

    स्थिर, दृढ़

    चंचल, अस्थिर

    मजहब

    धर्म, पंथ

    अधर्म

    दुश्मन

    शत्रु, वैरी

    मित्र, दोस्त

    लहू

    रक्त, खून

    -

    रणबांकुरे

    वीर योद्धा, शूरवीर

    कायर, डरपोक

    इंदु

    चंद्रमा, चाँद

    सूर्य, रवि



    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. सतत प्रवाहमान!...पावन जल हूँ। परिचय: इन पंक्तियों में सिंधु नदी अपना परिचय दे रही है। सरल अर्थ: सिंधु नदी कहती है कि मैं निरंतर बहती रहती हूँ और यही मेरे जीवित होने की पहचान है। मैं एक गीली हलचल की तरह हूँ और मेरे स्वर में कल-कल की ध्वनि है। मैं जल हूँ। मैं वही सिंधु हूँ जिसके किनारे पर धरती की आरंभिक सभ्यताओं का जन्म हुआ। मेरे ही तटों पर संस्कृतियों ने साँस ली और इंसानियत के महान कार्य हुए। मेरी गति कभी धीमी नहीं पड़ी। मैं गति में तो चंचल हूँ, पर अपनी भावना (सबका कल्याण करने) में हमेशा स्थिर हूँ। मैं सिंधु नदी का पवित्र जल हूँ।

    २. मैं नहाने वाले से...दोस्त है या दुश्मन। परिचय: यहाँ सिंधु नदी अपनी निष्पक्षता और समानता के भाव को व्यक्त कर रही है। सरल अर्थ: नदी कहती है कि मैं मुझमें नहाने वाले किसी भी व्यक्ति से उसकी जाति, उसका मजहब या धर्म नहीं पूछती। मैं तो बस जीवन के सार को जानती हूँ। मेरी लहरें जो अचानक उछलती हैं, वे हमेशा जीवन की ओर ही आगे बढ़ने के लिए उत्साहित रहती हैं। मैं किसी की प्यास बुझाने से पहले यह कभी नहीं पूछती कि वह मेरा दोस्त है या दुश्मन।

    ३. मैल हटाने से पहले...आता है लहू परिचय: इन पंक्तियों में नदी अपनी समदर्शी भावना को जारी रखते हुए इंसानी हिंसा पर दुख प्रकट करती है। सरल अर्थ: नदी कहती है कि मैं किसी के शरीर का मैल साफ करने से पहले यह नहीं पूछती कि वह मुस्लिम है या हिंदू। मैं तो सबकी हूँ, आओ और जी भरकर मुझे पियो। छोटी-छोटी सांस्कृतिक नदियाँ दौड़कर मुझमें आकर मिल जाती हैं और विभिन्न सभ्यताएँ मुझमें समाकर घुल-मिल जाती हैं। लेकिन मैं क्या बताऊँ और कैसे कहूँ कि कभी-कभी मुझमें बहकर इंसानों का खून भी आता है।

    ४. जब मेरे घाटों पर...मैं ही तो रोता हूँ। परिचय: यहाँ नदी अपने तट पर होने वाले युद्धों और उसके परिणामों पर अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही है। सरल अर्थ: नदी दुख से कहती है कि जब मेरे घाटों पर तलवारें खनकती हैं, घोड़ों के पैरों की टापें गूँजती हैं, तोपें गरजती हैं और धमाके होते हैं, तब सुंदर और वीर योद्धा शहीद हो जाते हैं। मैं कभी यह नहीं पूछती कि वे शहीद कहाँ के थे। मैं यह नहीं देखती कि वे यहाँ के हैं या वहाँ के। मैं तो सभी के घाव समान रूप से धोती हूँ। मैं ही विधवाओं की आँखों में आँसू बनकर रोता हूँ, अर्थात मैं सबकी पीड़ा में शामिल होती हूँ।

    ५. ऐसे बहूँ या वैसे...झिलमिलाता इंदु हूँ। परिचय: इन अंतिम पंक्तियों में नदी अपने विशाल और दार्शनिक स्वरूप को प्रकट कर रही है। सरल अर्थ: नदी मनुष्यों से पूछती है कि मैं चाहे जैसे भी बहूँ, पर प्यारे मनुष्यों, मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि मेरा असली स्वरूप क्या है। मैं सिंधु (सागर) में एक बिंदु (बूँद) के समान हूँ और एक बिंदु में पूरे सिंधु के समान हूँ (अर्थात मैं सूक्ष्म भी हूँ और विराट भी)। मैं अपनी लहराती हुई परछाइयों में झिलमिलाते हुए चंद्रमा के समान हूँ।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: सिंधु नदी प्यास बुझाने से पहले व्यक्ति का धर्म पूछती है। उत्तर: गलत। कारण, कविता में कहा गया है, "मैं नहाने वाले से नहीं पूछता उसकी जात, उनका मजहब, उनका धर्म।"

    कथन २: सभ्यताओं और संस्कृतियों का जन्म सिंधु नदी के किनारे पर हुआ। उत्तर: सही। कारण, कवि कहते हैं, "मेरे ही किनारे पर संस्कृतियों ने साँस ली।"

    कथन ३: नदी अपने घाटों पर होने वाले युद्धों से बहुत प्रसन्न होती है। उत्तर: गलत। कारण, नदी कहती है कि वह शहीदों के घाव धोती है और विधवा की आँखों में आँसू बनकर रोती है, जो उसके दुख को दर्शाता है।

    कथन ४: सिंधु नदी केवल अपनी तरफ के सैनिकों के घाव धोती है। उत्तर: गलत। कारण, नदी कहती है, "मैं नहीं देखता कि वे यहाँ के हैं कि वहाँ के। मैं तो सबके घाव धोता हूँ।"

    कथन ५: नदी स्वयं को एक बूँद और सागर, दोनों मानती है। उत्तर: सही। कारण, कविता की पंक्ति है, "मैं सिंधु में बिंदु हूँ, बिंदु में सिंधु हूँ।"



    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: अशोक चक्रधर रचना का प्रकार: नई कविता

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    मैं नहाने वाले से नहीं पूछता उसकी जात

    यह पंक्ति धर्मनिरपेक्षता और समानता का एक शक्तिशाली संदेश देती है। यह सिखाती है कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती।

    हमें जाति और धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए।

    प्यास बुझाने से पहले मैं नहीं पूछता दोस्त है या दुश्मन।

    यह पंक्ति मानवता का सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत करती है। यह हमें सिखाती है कि जरूरत के समय हमें शत्रु की भी मदद करनी चाहिए।

    इंसानियत किसी भी रिश्ते या दुश्मनी से बड़ी है।

    मैं तो सबके घाव धोता हूँ

    यह पंक्ति नदी की करुणा और परोपकार की भावना को दर्शाती है। युद्ध की विभीषिका में भी वह बिना किसी पक्षपात के सेवा करती है।

    हमें दुख और पीड़ा में पड़े हर व्यक्ति की मदद करनी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो।

    विधवा की आँखों में आँसू बनकर मैं ही तो रोता हूँ।

    यह पंक्ति नदी के मानवीकरण का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह दर्शाती है कि प्रकृति भी इंसानों के दुख में दुखी होती है और उनकी पीड़ा को महसूस करती है।

    हमें दूसरों के दुख के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

    मैं सिंधु में बिंदु हूँ, बिंदु में सिंधु हूँ।

    यह एक गहरी दार्शनिक पंक्ति है जो व्यक्ति और ब्रह्मांड के संबंध को दर्शाती है। यह हमें अपनी विशाल क्षमता और सार्वभौमिक एकता का एहसास कराती है।

    प्रत्येक व्यक्ति में अनंत संभावनाएं छिपी हैं और हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।



    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'जल ही जीवन है' - कविता इस कथन की पुष्टि कैसे करती है? उत्तर: यह कविता 'जल ही जीवन है' कथन की पूरी तरह से पुष्टि करती है। कविता की शुरुआत में ही नदी स्वयं को "सतत प्रवाहमान! जीवन की पहचान!" कहती है। वह बताती है कि उसी के किनारे सभ्यताओं ने साँस ली, जो जल के बिना संभव नहीं था। वह बिना किसी भेदभाव के सभी की प्यास बुझाती है, जो जीवन के लिए पहली आवश्यकता है। वह मैल हटाकर स्वच्छता देती है और यहाँ तक कि युद्ध में घायल सैनिकों के घाव धोकर भी जीवन बचाने का ही कार्य करती है। इस प्रकार, कविता में जल को जीवन के हर पहलू से जोड़कर उसके महत्व को दर्शाया गया है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: जीवन की पहचान, सभ्यता, प्यास, स्वच्छता, घाव धोना, आवश्यकता, महत्व।

    प्रश्न २: सिंधु नदी के माध्यम से कवि सर्वधर्म समभाव का संदेश कैसे देते हैं? उत्तर: कवि सिंधु नदी के माध्यम से सर्वधर्म समभाव का बहुत ही प्रभावशाली संदेश देते हैं। नदी कहती है कि वह कभी किसी से उसकी "जात, मजहब या धर्म" नहीं पूछती। वह यह भी नहीं पूछती कि कोई "मुस्लिम है या हिंदुअन"। वह सभी को समान रूप से अपना जल देती है और सभी का मैल साफ करती है। जिस तरह नदी के लिए सभी इंसान बराबर हैं, उसी तरह हमें भी धर्म और जाति के बंधनों से ऊपर उठकर सभी मनुष्यों को एक समान समझना चाहिए और सबके साथ समान व्यवहार करना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सर्वधर्म समभाव, समानता, भेदभाव रहित, जाति, मजहब, इंसानियत, समान व्यवहार।

    प्रश्न ३: "जब मेरे घाटों पर खनकती हैं तलवारें" - इन पंक्तियों में कवि ने किस समस्या की ओर संकेत किया है? उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने मानव समाज की सबसे बड़ी और दुखद समस्या - युद्ध और हिंसा - की ओर संकेत किया है। नदी, जो जीवन और संस्कृति का स्रोत है, उसी के घाटों पर मनुष्य एक-दूसरे का लहू बहाता है। 'खनकती तलवारें', 'गूँजती टापें' और 'गरजती तोपें' युद्ध के भयानक दृश्य को प्रस्तुत करती हैं। यह इस विरोधाभास को दर्शाता है कि जिस प्रकृति ने हमें जीवन दिया है, उसी के आँगन में हम एक-दूसरे के जीवन के प्यासे हो जाते हैं। यह मानवता के पतन की ओर एक गहरा संकेत है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: युद्ध, हिंसा, लहू, मानवता का पतन, विरोधाभास, विनाश, सामाजिक समस्या।


    प्रश्न ४: कविता में वर्णित नदी के मानवीय गुणों पर प्रकाश डालिए। उत्तर: कविता में नदी को एक जीवित, संवेदनशील और विचारशील সত্তা के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसमें कई महान मानवीय गुण हैं। वह उदार और निष्पक्ष है, जो बिना किसी भेदभाव के सबकी सेवा करती है। वह दयालु और करुणामयी है, जो शहीदों के घाव धोती है और विधवाओं के दुख में रोती है। वह गतिशील और जीवन से भरपूर है, जिसकी लहरें हमेशा जिंदगी की ओर मचलती हैं। उसमें समग्रता और विशालता का भाव है, जहाँ वह छोटी-छोटी सांस्कृतिक नदियों को अपने में समाहित कर लेती है। ये सभी गुण उसे एक आदर्श मानव चरित्र का प्रतीक बनाते हैं। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानवीय गुण, उदारता, निष्पक्षता, करुणा, संवेदनशीलता, गतिशीलता, समग्रता।

    प्रश्न ५: 'मैं सिंधु में बिंदु हूँ, बिंदु में सिंधु हूँ' - इस पंक्ति का आपके लिए क्या अर्थ है? उत्तर: इस पंक्ति का मेरे लिए एक गहरा दार्शनिक अर्थ है। इसका मतलब है कि एक विशाल সত্তা (सिंधु) का अस्तित्व उसके सबसे छोटे अंश (बिंदु) में भी निहित होता है, और वह छोटा अंश भी उस विशाल সত্তা का ही प्रतिनिधित्व करता है। यह व्यक्ति और समाज या आत्मा और परमात्मा के संबंध जैसा है। एक अकेला व्यक्ति भी पूरे समाज की शक्ति और चेतना को अपने अंदर समेटे हुए है, और समाज भी हर एक व्यक्ति से ही बनता है। यह हमें हमारी व्यक्तिगत क्षमता और सार्वभौमिक एकता, दोनों का एहसास कराती है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: दार्शनिक अर्थ, अंश और पूर्ण, व्यक्ति और समाज, आत्मा और परमात्मा, एकता, व्यक्तिगत क्षमता।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: कविता के अनुसार सिंधु नदी का जल क्या-क्या नहीं पूछता? उत्तर: कविता के अनुसार, सिंधु नदी का जल निम्नलिखित बातें नहीं पूछता:

    • नहाने वाले से उसकी जात, मजहब या धर्म नहीं पूछता।

    • प्यास बुझाने से पहले यह नहीं पूछता कि कोई दोस्त है या दुश्मन

    • मैल हटाने से पहले यह नहीं पूछता कि कोई मुस्लिम है या हिंदुअन

    • शहीद होने वाले रणबाँकुरों से यह नहीं पूछता कि वे कहाँ के थे

    प्रश्न २: नदी अपने तट पर होने वाले युद्धों पर अपनी प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त करती है? उत्तर: नदी अपने तट पर होने वाले युद्धों पर दुख और करुणा के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। वह कहती है कि उसके पानी में लहू बहकर आता है। वह किसी भी पक्ष के वीरों में भेद नहीं करती और "सबके घाव धोती है"। इतना ही नहीं, वह युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवाओं के दुख में शामिल होती है और उनकी "आँखों में आँसू बनकर... रोता हूँ" कहती है।

    प्रश्न ३: "छोटी-छोटी सांस्कृतिक नदियाँ दौड़ी-दौड़ी आती हैं, मुझमें सभ्यताएँ समाती हैं" - इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर: इन पंक्तियों का आशय है कि सिंधु नदी एक विशाल और समग्र संस्कृति की प्रतीक है। जिस प्रकार अनेक छोटी नदियाँ आकर विशाल सागर में मिल जाती हैं, उसी प्रकार अनेक छोटी-छोटी क्षेत्रीय संस्कृतियाँ और सभ्यताएँ सिंधु घाटी की महान संस्कृति में आकर समाहित हो गईं और एक विशाल, विविध और समृद्ध भारतीय संस्कृति का निर्माण हुआ। यह पंक्तियाँ भारत की 'अनेकता में एकता' की भावना को दर्शाती हैं।

    प्रश्न ४: आकृति पूर्ण कीजिए: पावन जल स्नान करने वालों से नहीं पूछता उत्तर:

    • उनकी जात

    • उनका मजहब

    • उनका धर्म

    प्रश्न ५: कविता में प्रयुक्त लय निर्माण करने वाले शब्द लिखिए। उत्तर: कविता में प्रयुक्त लय निर्माण करने वाले शब्द हैं:

    • कल-कल

    • उछलती - मचलती

    • दुश्मन - हिंदुअन

    • खनकती - गूँजती


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