top of page

    2.6 - निसर्ग वैभव - Nisarg Vaibhav - Class 9 - Lokbharati

    • Sep 13
    • 11 min read

    Updated: Sep 14

    ree

    पाठ का प्रकार: पद्य (कविता) पाठ का शीर्षक: निसर्ग वैभव लेखक/कवि का नाम: सुमित्रानंदन पंत

    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: प्रस्तुत कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत प्रकृति की असीम सुंदरता का वर्णन करते हैं । वे पर्वतीय प्रदेश के वैभव को चित्रित करते हैं, जहाँ झरनों, घाटियों, धूप-छाँह, फूलों, तितलियों और पक्षियों का मनमोहक दृश्य है। प्रकृति का यह शांत और सुंदर रूप देखकर कवि के मन में ईश्वर का स्मरण हो आता है । इसके बाद कविता एक दार्शनिक मोड़ लेती है। कवि इस सुंदर और शांत जड़ प्रकृति की तुलना इंसान के अशांत और संघर्षपूर्ण जीवन से करते हैं । वे प्रश्न करते हैं कि जब निर्जीव दुनिया इतनी सुंदर है, तो ईश्वर का प्रतिनिधि मनुष्य क्यों दुखी और अभिशप्त जीवन जीता है? अंत में, वे स्वयं ही उत्तर देते हैं कि मनुष्य अपने छोटे से अहंकार में सीमित हो गया है, जिसके कारण उसका मन सार्वभौमिक चेतना से कट गया है और यही उसके दुखों का मूल कारण है ।


    English: In this poem, the poet Sumitranandan Pant describes the infinite beauty of nature. He paints a picture of the grandeur of a mountainous region, with enchanting scenes of waterfalls, valleys, sun and shade, flowers, butterflies, and birds. Seeing this serene and beautiful form of nature reminds the poet of God. After this, the poem takes a philosophical turn. The poet contrasts this beautiful and calm inanimate nature with the restless and conflict-ridden life of humans. He questions why man, the representative of God, lives a sad and cursed life when the inanimate world is so beautiful. In the end, he himself provides the answer: man has become confined within his petty ego, causing his mind to be severed from the universal consciousness, which is the root cause of his sorrows.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव प्रकृति के वैभव और शांति की तुलना में मानव जीवन के संघर्ष और अशांति का चित्रण करना है। कवि प्रकृति को ईश्वर की सुंदर रचना के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसमें एक सामंजस्य है । कविता का गहरा संदेश यह है कि मनुष्य के दुखों का कारण उसका स्वयं का अहंकार (अहंता) है । इस अहंकार ने उसे प्रकृति और उस सार्वभौमिक चेतना (विश्व चेतना) से अलग कर दिया है, जिसका प्रकृति एक अभिन्न अंग है । कवि मनुष्य को आत्म-विश्लेषण करने और अपनी चेतना का विस्तार करके प्रकृति के साथ पुनः जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि वह भी शांति और आनंद का अनुभव कर सके।


    English: The central theme of this poem is to portray the conflict and restlessness of human life in comparison to the grandeur and peace of nature. The poet presents nature as a beautiful creation of God, in which there is harmony. The deeper message of the poem is that the cause of human suffering is his own ego (Ahanta). This ego has separated him from nature and the universal consciousness (Vishwa Chetna) of which nature is an integral part. The poet inspires man to self-analyze and expand his consciousness to reconnect with nature so that he too can experience peace and joy.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    गिरि-शिखर

    पर्वत की चोटी, श्रृंग

    घाटी, तलहटी

    निःस्वर

    शब्दरहित, मौन

    सस्वर, कोलाहलपूर्ण

    पुलकित

    रोमांचित, प्रसन्न

    दुखी, उदास

    श्लक्ष्ण

    मधुर, कोमल

    कर्कश, कठोर

    मुकुल

    कली, कोंपल

    खिला फूल

    दुरारोह

    जिस पर चढ़ना कठिन हो

    सुगम

    समीरण

    हवा, वायु

    -

    वैचित्र्य

    अनोखापन, विलक्षणता

    समानता, एकरूपता

    विषण्ण

    दुखी, उदास

    प्रसन्न, हर्षित

    अहंता

    अहंकार, घमंड

    विनम्रता, निरहंकार


    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. कितनी सुंदरता बिखरी...अहरह वन-भू मर्मर ! परिचय: इन पंक्तियों में कवि प्रकृति के कण-कण में बिखरी सुंदरता का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे ईश्वर! तुमने इस प्राकृतिक जगत में कितनी सुंदरता बिखेर दी है । पर्वत की चोटियों से झरने टपक रहे हैं और घाटियों में धूप और छाँह चुपचाप लिपटी हुई-सी लौट रही हैं । हवा के स्पर्श से घास के तिनके रोमांचित हो उठे हैं और जंगल की भूमि पर एक सीमाहीन मधुर संगीत स्रोत की तरह हर दिन पत्तों की मर्मर ध्वनि बहती रहती है ।


    २. फूलों की ज्वालाएँ...रुक-रुक गाती वन प्रिय कोयल ! परिचय: कवि यहाँ प्रकृति के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के मनमोहक दृश्य का चित्रण कर रहे हैं। सरल अर्थ: खिले हुए फूल आग की लपटों के समान लगते हैं, पर वे आँखों को शीतलता प्रदान करते हैं । भौरों का समूह कलियों रूपी अधरों का मधु पीकर गुंजन कर रहा है । तितलियाँ उड़ रही हैं और दूर कहीं पत्तों की छाया में वन की प्रिय कोयल रुक-रुक कर गा रही है ।


    ३. लेटी नीली छायाएँ...कर संध्यावंदन ! परिचय: इन पंक्तियों में कवि पर्वतीय प्रदेश में सुबह और शाम के दृश्य का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: सूर्य की हल्की किरणों से गुँथी हुई नीली छायाएँ पर्वत की ढलानों पर लेटी हुई हैं, जो दुर्गम और स्थिर तरंगों के समान प्रतीत होती हैं । सुबह की पहली किरणें सबसे पहले सोने के मस्तक वाले पर्वतों का अभिनंदन करती हैं और शाम भी इसी निर्जन स्थान में संध्या-वंदना करके छिपकर सो जाती है ।


    ४. अपलक तारापथ शशिमुख का...भरा पर्वत जीवन में ! परिचय: कवि यहाँ रात के समय पर्वतों के सौंदर्य और वहाँ के जीवन के अनोखेपन का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: तारों से भरा आकाश चंद्रमा के मुख के लिए एक दर्पण बन जाता है, जिसे वह बिना पलक झपकाए देखता रहता है । सुगंधित हवा इन्हीं पर्वतों के कंधों पर सोती और जागती है । यह तुरंत प्रकट होने वाली सौंदर्य की राशि मन में सम्मोहन भर देती है। पर्वतों के जीवन में कितना आश्चर्यजनक अनोखापन भरा हुआ है!


    ५. खग चखते फल...ईश्वर इस क्षण में ! परिचय: यहाँ कवि प्रकृति में जीवन के सहज आनंद को देखकर अपनी भावना व्यक्त कर रहे हैं। सरल अर्थ: पक्षी फलों को चख रहे हैं, गिलहरियाँ नई कोपलों को कुतर रही हैं । इस पन्ने (रत्न) जैसे हरे-भरे आँगन में सभी जंगली पशु प्रसन्न लग रहे हैं । कवि कहते हैं कि ऐसे मनमोहक और आनंदित वातावरण में यदि मुझे इस क्षण ईश्वर की याद आ जाती है, तो यह बहुत स्वाभाविक है ।


    ६. जड़ जग इतना सुंदर जब...उसका जीवन ? परिचय: इन पंक्तियों में कवि प्रकृति की सुंदरता की तुलना मानव जीवन के दुख से करते हुए एक दार्शनिक प्रश्न उठाते हैं। सरल अर्थ: कवि प्रश्न करते हैं कि जब यह निर्जीव (जड़) दुनिया इतनी सुंदर है, तो फिर क्या कारण है कि चेतन (मनुष्य) की दुनिया में जीवन और मन में हमेशा दुख और संघर्ष बना रहता है? मनुष्य को अपनी प्रकृति का फिर से नया विश्लेषण और संश्लेषण करना चाहिए । क्या कारण है कि मनुष्य, जो ईश्वर का प्रतिनिधि है, उसका जीवन एक अभिशाप जैसा बन गया है?


    ७. लगता, अपनी क्षुद्र अहंता ही में...मानव मन निश्चित ! परिचय: अंतिम पंक्तियों में कवि मानव के दुखों के कारण का विश्लेषण करते हैं। सरल अर्थ: कवि को लगता है कि मनुष्य अपने छोटे से अहंकार में ही सीमित और केंद्रित हो गया है । इसी कारण, निश्चित रूप से मनुष्य का मन उस सार्वभौमिक विश्व चेतना से कटकर अलग हो गया है ।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: कवि को प्राकृतिक जगत कुरूप और अस्त-व्यस्त लगता है। उत्तर: गलत। कारण, कवि पहली ही पंक्ति में कहते हैं, "कितनी सुंदरता बिखरी प्राकृतिक जगत में, ईश्वर" ।


    कथन २: कवि के अनुसार, उषा की पहली किरणें घाटियों का अभिनंदन करती हैं। उत्तर: गलत। कारण, कविता में कहा गया है, "स्वर्ण-भाल गिरी सर्वप्रथम करती ऊषा अभिनंदन", अर्थात सुबह सबसे पहले पर्वतों का अभिनंदन करती है।


    कथन ३: कवि का मानना है कि चेतन जगत (मनुष्य) आनंद और शांति से भरा है। उत्तर: गलत। कारण, कवि प्रश्न करते हैं कि चेतन जगत में "क्यों रहता अहरह जो विषण्ण जीवन मन का संघर्षण?" ।


    कथन ४: कविता के अनुसार जंगल के सभी पशु प्रसन्न दिखाई देते हैं। उत्तर: सही। कारण, कवि कहते हैं, "वन-पशु सब लगते प्रसन्न" ।


    कथन ५: कवि के अनुसार मनुष्य के दुखों का कारण उसका अहंकार है। उत्तर: सही। कारण, कवि निष्कर्ष निकालते हैं, "लगता, अपनी क्षुद्र अहंता ही में सीमित, केंद्रित...छिन्न हो गया विश्व चेतना से मानव मन निश्चित!" ।


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: सुमित्रानंदन पंत रचना का प्रकार: कविता (छायावादी कविता)

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    अनिल स्पर्श से पुलकित तृण दल

    यह पंक्ति प्रकृति के मानवीकरण का सुंदर उदाहरण है। हवा के स्पर्श से घास का रोमांचित होना एक बहुत ही कोमल और सजीव कल्पना है।

    प्रकृति निर्जीव नहीं है, उसमें भी भावनाएँ और जीवन है।

    फूलों की ज्वालाएँ आँखें करतीं शीतल

    यह विरोधाभास अलंकार का अद्भुत प्रयोग है। 'ज्वाला' जो जलाती है, यहाँ 'शीतल' कर रही है। यह कवि की असाधारण कल्पना शक्ति को दर्शाता है।

    प्रकृति में विरोधी तत्व भी एक साथ सामंजस्य में रहते हैं।

    जड़ जग इतना सुंदर जब चेतन जग में क्या कारण रहता अहरह जो विषण्ण जीवन मन का संघर्षण ?

    यह पंक्ति कविता के दार्शनिक हृदय को प्रस्तुत करती है। यह एक गहरा और प्रासंगिक प्रश्न है जो हर विचारशील व्यक्ति को सोचने पर मजबूर करता है।

    हमें प्रकृति की सुंदरता और शांति की तुलना में अपने जीवन के दुखों के कारणों पर विचार करना चाहिए।

    ईश्वर का प्रतिनिधि नर, अभिशापित हो उसका जीवन ?

    यह पंक्ति मनुष्य के अस्तित्व पर एक मार्मिक टिप्पणी है। यह हमें हमारे उच्च उद्देश्य और हमारी वर्तमान दयनीय स्थिति के बीच के अंतर को दिखाती है।

    मनुष्य को अपने प्रतिनिधि के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।

    छिन्न हो गया विश्व चेतना से मानव मन निश्चित !

    यह पंक्ति मानव की सभी समस्याओं का सार एक वाक्य में बता देती है। यह अहंकार और अलगाव के दुष्परिणामों पर एक सटीक निदान है।

    अहंकार हमें सार्वभौमिक सत्य और आनंद से दूर ले जाता है।

    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: कवि ने जड़ जग और चेतन जग की जो तुलना की है, क्या आप उससे सहमत हैं? उत्तर: हाँ, मैं कवि द्वारा की गई जड़ और चेतन जग की तुलना से पूरी तरह सहमत हूँ। प्रकृति (जड़ जग) में एक अद्भुत संतुलन और सामंजस्य है। ऋतुएँ समय पर आती हैं, फूल खिलते हैं, नदियाँ बहती हैं—सब कुछ एक नियम में बँधा हुआ और शांत है। इसके विपरीत, मनुष्य (चेतन जग) अपनी बुद्धि और चेतना के बावजूद ईर्ष्या, क्रोध, लोभ और संघर्षों से घिरा रहता है। हमारे समाज में अशांति और दुख व्याप्त है। कवि का यह अवलोकन बिल्कुल सटीक है कि मनुष्य अपनी चेतना का सही उपयोग न करके स्वयं के लिए दुख उत्पन्न कर रहा है, जबकि प्रकृति चुपचाप अपना सौंदर्य बिखेर रही है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सहमत, तुलना, संतुलन, सामंजस्य, अशांति, संघर्ष, अहंकार, चेतना का दुरुपयोग।

    प्रश्न २: कवि के अनुसार मनुष्य के दुखों का कारण 'क्षुद्र अहंता' है। इसे दूर करने के क्या उपाय हो सकते हैं? उत्तर: कवि के अनुसार मनुष्य के दुखों का कारण उसका छोटा-सा अहंकार है । इसे दूर करने के लिए व्यक्ति को 'स्व' से ऊपर उठकर 'सर्व' के बारे में सोचना होगा। प्रकृति से जुड़ना इसका एक बड़ा उपाय है; जब हम विशाल पर्वतों और अनंत आकाश को देखते हैं, तो हमारा अहंकार स्वयं ही छोटा लगने लगता है। निःस्वार्थ सेवा, ध्यान और आध्यात्मिकता के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि हम सब उस एक ही 'विश्व चेतना' के अंश हैं। जब व्यक्ति में यह भाव आ जाता है कि 'मैं कुछ नहीं, सब कुछ ईश्वर है', तो उसका अहंकार समाप्त हो जाता है और वह दुखों से मुक्त हो जाता है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: अहंकार, निःस्वार्थ सेवा, प्रकृति से जुड़ाव, आध्यात्मिकता, विश्व चेतना, आत्म-विस्तार, समर्पण।

    प्रश्न ३: 'प्रकृति सबसे अच्छी शिक्षक है।' इस कविता के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिए। उत्तर: यह कविता इस कथन को पूरी तरह से सिद्ध करती है कि प्रकृति सबसे अच्छी शिक्षक है। कविता में प्रकृति हमें सौंदर्य, सामंजस्य और निस्वार्थता का पाठ पढ़ाती है। फूल बिना किसी अपेक्षा के अपनी सुंदरता और सुगंध बिखेरते हैं। हवा बिना भेदभाव के सबको स्पर्श करती है। जानवर और पक्षी प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए प्रसन्न रहते हैं । प्रकृति के इस harmonious ecosystem को देखकर कवि को यह ज्ञान मिलता है कि मनुष्य का अहंकार ही उसके दुखों का कारण है । इस प्रकार, प्रकृति हमें निःस्वार्थ कर्म करने, अहंकार त्यागने और ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एक होकर जीने की अमूल्य शिक्षा देती है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: शिक्षक, सामंजस्य, निःस्वार्थता, अहंकार त्याग, ब्रह्मांडीय चेतना, सीखना, प्रेरणा।

    प्रश्न ४: कवि ने मनुष्य को 'ईश्वर का प्रतिनिधि' क्यों कहा है? उत्तर: कवि ने मनुष्य को 'ईश्वर का प्रतिनिधि' इसलिए कहा है क्योंकि सभी प्राणियों में मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसके पास चेतना, बुद्धि, विवेक और सोचने-समझने की शक्ति है । ईश्वर ने उसे इस दुनिया में अच्छाई, प्रेम, करुणा और रचनात्मकता फैलाने के लिए भेजा है, जो ईश्वरीय गुण हैं। मनुष्य की जिम्मेदारी है कि वह ईश्वर की इस सुंदर रचना की देखभाल करे और यहाँ शांति और सद्भाव बनाए रखे। लेकिन कवि दुख व्यक्त करते हैं कि मनुष्य अपने इस महान उद्देश्य को भूलकर अहंकार और संघर्ष में जी रहा है, जिससे उसका जीवन 'अभिशापित' हो गया है ।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रतिनिधि, चेतना, बुद्धि, विवेक, प्रेम, करुणा, रचनात्मकता, जिम्मेदारी, उद्देश्य।

    प्रश्न ५: कविता में आए प्राकृतिक सौंदर्य के घटकों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। उत्तर: कविता में प्राकृतिक सौंदर्य के अनेक घटकों का सुंदर वर्णन है। कवि ने पर्वत की चोटियों से गिरते झरनों, धूप-छाँह से लिपटी घाटियों और हवा से रोमांचित होती घास का जिक्र किया है । आग की लपटों जैसे दिखने वाले शीतल फूल, कलियों का रस पीते भौंरे, उड़ती तितलियाँ और गाती कोयल प्रकृति के जीवंत रूप को दर्शाते हैं । सुबह द्वारा पर्वतों का अभिनंदन और शाम का वहीं आकर सो जाना, प्रकृति के दैनिक चक्र का काव्यात्मक चित्रण है । ये सभी घटक मिलकर एक अद्भुत और शांत वातावरण का निर्माण करते हैं।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: पर्वत, झरने, घाटी, फूल, तितली, कोयल, सुबह-शाम, जीवंत, शांत वातावरण।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: कविता में आए प्राकृतिक सौंदर्य के किन्हीं चार घटकों का उल्लेख कीजिए। उत्तर: कविता में आए प्राकृतिक सौंदर्य के चार घटक निम्नलिखित हैं:

    • पर्वत की चोटियों से गिरते झरने

    • धूप और छाँह से लिपटी हुई घाटियाँ

    • आग की ज्वालाओं के समान दिखने वाले शीतल फूल

    • पत्तों की छाया में रुक-रुक कर गाती हुई कोयल


    प्रश्न २: प्रकृति का सुंदर रूप देखकर कवि के मन में कौन-सा दार्शनिक प्रश्न उठता है? उत्तर: प्रकृति का सुंदर और शांत रूप देखकर कवि के मन में यह दार्शनिक प्रश्न उठता है कि जब यह निर्जीव (

    जड़) दुनिया इतनी सुंदर और सामंजस्यपूर्ण है, तो फिर चेतन मनुष्य का जीवन हमेशा दुख और संघर्ष से क्यों भरा रहता है?


    प्रश्न ३: कवि के अनुसार मनुष्य के दुखी और अभिशप्त जीवन का क्या कारण है? उत्तर: कवि के अनुसार, मनुष्य के दुखी और अभिशप्त जीवन का कारण उसका अपने छोटे-से अहंकार (

    क्षुद्र अहंता) में सीमित और केंद्रित हो जाना है । इस अहंकार के कारण मनुष्य का मन सार्वभौमिक विश्व चेतना से कट गया है ।


    प्रश्न ४: पर्वतीय प्रदेश में उषा (सुबह) और साँझ (शाम) का आगमन कैसे होता है? उत्तर: कविता के अनुसार, पर्वतीय प्रदेश में उषा की पहली किरणें सबसे पहले सोने के मस्तक वाले पर्वतों का अभिनंदन करती हैं (

    स्वर्ण-भाल गिरी सर्वप्रथम करती ऊषा अभिनंदन) । वहीं, साँझ भी उसी निर्जन स्थान में संध्या-वंदना करके छिपकर सो जाती है ।


    प्रश्न ५: प्रवाह तख्ता पूर्ण कीजिए (पंक्तियों को उचित क्रमानुसार लिखकर): (१) अनिल स्पर्श से पुलकित तृणदल, (२) निश्चल तरंग-सी स्तंभित ! (३) परिचित मरकत आँगन में ! (४) अभिशापित हो उसका जीवन ? उत्तर: प्रवाह तख्ता: १. अनिल स्पर्श से पुलकित तृणदल

    २. निश्चल तरंग-सी स्तंभित !  

    ३. परिचित मरकत आँगन में !  

    ४. अभिशापित हो उसका जीवन ?  

    About BhashaLab


    BhashaLab is a dynamic platform dedicated to the exploration and mastery of languages - operating both online and offline. Aligned with the National Education Policy (NEP) 2020 and the National Credit Framework (NCrF), we offer language education that emphasizes measurable learning outcomes and recognized, transferable credits.


    We offer:

    1. NEP alligned offline language courses for degree colleges - English, Sanskrit, Marathi and Hindi

    2. NEP alligned offline language courses for schools - English, Sanskrit, Marathi and Hindi

    3. Std VIII, IX and X - English and Sanskrit Curriculum Tuitions - All boards

    4. International English Olympiad Tuitions - All classes

    5. Basic and Advanced English Grammar - Offline and Online - Class 3 and above

    6. English Communication Skills for working professionals, adults and students - Offline and Online


    Contact: +91 86577 20901, +91 97021 12044


    Found any mistakes or suggestions? Click here to send us your feedback!


     
     
     

    Comments


    bottom of page