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    1.4 - किताबें - Kitabein - Class 9 - Lokbharati

    • Sep 2
    • 11 min read

    Updated: Sep 12

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    पाठ का प्रकार:  पद्य

    पाठ का शीर्षक:  किताबें

    लेखक/कवि का नाम : गुलजार

    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: 'किताबें' कविता में कवि गुलजार ने आधुनिक युग में कंप्यूटर और इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण किताबों की उपेक्षा पर चिंता व्यक्त की है । वे कहते हैं कि अब किताबें अलमारियों में बंद रहती हैं और महीनों तक उनसे मुलाकात नहीं होती, क्योंकि शामें अब कंप्यूटर के पर्दे पर बीत जाती हैं । इस दूरी के कारण किताबें बेचैन रहने लगी हैं । कवि को इस बात का दुख है कि जिन मूल्यों और रिश्तों की बातें किताबें करती थीं, वे अब घरों में दिखाई नहीं देते । किताबों से जो व्यक्तिगत संपर्क था, वह टूट गया है । कवि उन पुराने दिनों को याद करते हैं जब किताबों को सीने पर रखकर या गोद में लेकर पढ़ा जाता था और किताबों में रखे सूखे फूल और पत्र मिल जाते थे, जो अब शायद कभी नहीं मिलेंगे ।


    English: In the poem 'Kitabein', the poet Gulzar expresses his concern over the neglect of books due to the growing influence of computers and the internet in the modern era. He says that books now remain locked in cupboards and there are no meetings with them for months, as evenings are now spent on computer screens. Due to this distance, books have become restless. The poet is saddened that the values and relationships that books spoke of are no longer visible in homes. The personal connection that existed with books has been severed. The poet reminisces about the old days when books were read by keeping them on the chest or in the lap, and one would find dried flowers and letters inside them, which will probably not be found anymore.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव कंप्यूटर के आगमन के बाद किताबों और मनुष्यों के बीच बढ़ती दूरी से उत्पन्न दर्द को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करना है । कवि सिर्फ किताबें पढ़ने की आदत छूटने की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे उस भावनात्मक और बौद्धिक रिश्ते के टूटने का दुख व्यक्त कर रहे हैं, जो किताबों से जुड़ा था। यह कविता किताबों के माध्यम से मानवीय मूल्यों, रिश्तों और संवेदनाओं के क्षरण पर एक गहरा चिंतन है। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि प्रौद्योगिकी की प्रगति हमें ज्ञान तो दे सकती है, लेकिन वह स्नेह, आत्मीयता और संबंधों की गर्माहट नहीं दे सकती जो किताबों की दुनिया में निहित थी ।


    English: The central theme of this poem is to poignantly present the pain arising from the growing distance between books and humans after the advent of computers. The poet is not just talking about the loss of the reading habit, but is expressing sorrow over the breaking of the emotional and intellectual relationship that was tied to books. This poem is a deep reflection on the erosion of human values, relationships, and sensitivities through the medium of books. The poet wants to convey the message that technological advancement can give us knowledge, but it cannot provide the affection, intimacy, and warmth of relationships that were inherent in the world of books.


    शब्दार्थ (Glossary)

    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    हसरत

    कामना, इच्छा


    निराशा, हताशा

    सोहबत

    संगत, साथ


    अलगाव, जुदाई

    कदरें

    मूल्य, मायने


    अवमूल्यन, अनादर

    जायका

    स्वाद, लज्जत


    बेस्वाद, फीकापन

    राब्ता

    संपर्क, संबंध


    विच्छेद, असंबंध

    इल्म

    ज्ञान, विद्या


    अज्ञान, मूर्खता

    अल्फाज

    शब्द


    मौन, खामोशी

    जबीं

    माथा, ललाट


    -

    सफा

    पन्ना, पृष्ठ


    -

    उधड़े

    खुले हुए, बिखरे हुए


    जुड़े हुए, सिले हुए


    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. किताबें झाँकती हैं... जो रिश्ते वो सुनाती थीं। 


    परिचय: इन पंक्तियों में कवि किताबों की वर्तमान दयनीय स्थिति का वर्णन कर रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि किताबें बंद अलमारी के शीशों से बड़ी उम्मीद भरी नजरों से देखती हैं । अब महीनों गुजर जाते हैं पर उनसे मुलाकात नहीं होती । वे शामें जो कभी उनकी संगत में बीता करती थीं, अब अक्सर कंप्यूटर के पर्दे पर गुजर जाती हैं । इस वजह से किताबें बहुत बेचैन रहती हैं और उन्हें अब नींद में चलने की आदत सी हो गई है । वे मूल्य और रिश्ते जिनकी बातें वे सुनाती थीं, अब घर में कहीं नजर नहीं आते ।


    २. वह सारे उधड़े-उधड़े हैं... कोई मानी नहीं उगते ... 


    परिचय: कवि यहाँ बता रहे हैं कि किताबों से दूरी के कारण शब्दों और रिश्तों के अर्थ कैसे बिखर गए हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि किताबों द्वारा बताए गए वे सभी रिश्ते अब उधड़े और बिखरे हुए हैं । अब अगर कोई किताब का एक पन्ना पलटता है तो एक सिसकी सी निकलती है, अर्थात दुख होता है । कई शब्दों के अर्थ गिर चुके हैं, वे निरर्थक हो गए हैं । वे सारे शब्द अब बिना पत्तों वाले सूखे ठूंठ जैसे लगते हैं, जिन पर अब कोई नए अर्थ नहीं उगते ।


    ३. जुबां पर जो जायका... कट गया है 


    परिचय: इन पंक्तियों में कवि किताब के पन्ने पलटने के अनुभव की तुलना कंप्यूटर पर 'क्लिक' करने से करते हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि किताब का पन्ना पलटते समय जीभ पर जो एक स्वाद आता था, वह अब नहीं मिलता । अब तो बस उँगली से 'क्लिक' करने भर से पलक झपकते ही पन्ना बदल जाता है । हालाँकि कंप्यूटर के पर्दे पर बहुत कुछ परत-दर-परत खुलता जाता है, लेकिन किताबों से जो हमारा व्यक्तिगत और आत्मीय संपर्क था, वह अब खत्म हो गया है ।


    ४. कभी सीने पे रख के... वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी 


    परिचय: कवि किताबों के साथ अपने पुराने घनिष्ठ संबंधों को याद करते हैं। सरल अर्थ: कवि पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि कभी हम किताबों को सीने पर रखकर लेट जाते थे, तो कभी उन्हें अपनी गोद में ले लेते थे । कभी अपने घुटनों को रिहल (किताब रखने का स्टैंड) का आकार देकर, आधा झुककर सजदे की तरह उसे पढ़ते थे और माथे से छूते थे । कवि कहते हैं कि वह सारा ज्ञान तो भविष्य में भी मिलता रहेगा ।


    ५. मगर वो जो किताबों में... वो शायद अब नहीं होंगे !! 


    परिचय: इन अंतिम पंक्तियों में कवि उन चीजों के खो जाने का अफसोस करते हैं जो सिर्फ किताबों से ही संभव थीं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि ज्ञान तो भविष्य में भी मिलेगा, लेकिन उन सूखी पंखुड़ियों और सुगंधित पत्रों का क्या होगा, जो किताबों में मिला करते थे? किताबों के गिरने और उठाने के बहाने जो नए रिश्ते बन जाया करते थे, उनका क्या होगा? कवि दुख के साथ कहते हैं कि शायद वे चीजें और वैसे रिश्ते अब भविष्य में कभी नहीं होंगे ।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: कवि की शामें अब भी किताबों की सोहबत में कटती हैं। उत्तर: गलत। कारण, कविता में कहा गया है कि जो शामें उनकी (किताबों की) सोहबत में कटा करती थीं, अब अक्सर 'कंप्यूटर के पर्दों पर' गुजर जाती हैं ।


    कथन २: कवि के अनुसार, किताबों द्वारा सिखाई गई कदरें अब भी घरों में नजर आती हैं। उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "वो कदरें अब नजर आती नहीं घर में" ।


    कथन ३: कवि को अब उँगली से 'क्लिक' करना, पन्ना पलटने जैसा ही आनंद देता है। उत्तर: गलत। कारण, कवि पन्ना पलटने के 'जायके' और 'क्लिक' करने से 'झपकी गुजरने' में अंतर बताते हुए कहते हैं कि किताबों से जाती राब्ता (व्यक्तिगत संपर्क) कट गया है ।


    कथन ४: कवि को लगता है कि भविष्य में ज्ञान मिलना तो जारी रहेगा, पर किताबों से जुड़े भावनात्मक संबंध खत्म हो जाएँगे। उत्तर: सही। कारण, कवि कहते हैं "वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी", लेकिन फिर सवाल करते हैं कि सूखे फूलों और रिश्तों का क्या होगा, और कहते हैं "वो शायद अब नहीं होंगे !!" ।


    कथन ५: किताबों से दूरी के कारण वे बहुत बेचैन हैं और उन्हें नींद में चलने की आदत हो गई है। उत्तर: सही। कारण, कविता में सीधी पंक्तियाँ हैं, "बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें, उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है" ।


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: गुलजार


    रचना का प्रकार: नई कविता


    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    गुजर जाती हैं 'कंप्यूटर के पर्दों पर'


    यह पंक्ति आज के डिजिटल युग की सच्चाई को एक ही वाक्य में बयां कर देती है। यह दिखाती है कि कैसे तकनीक ने हमारी आदतों को बदल दिया है।

    हमें प्रौद्योगिकी और परंपरा (किताबें) के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

    जो रिश्ते वो सुनाती थीं।


    यह पंक्ति बहुत गहरी है क्योंकि यह किताबों को सिर्फ ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि रिश्तों और संस्कारों का निर्माता बताती है, जिनका आज अभाव है।

    किताबें हमें केवल जानकारी नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला और रिश्ते निभाना भी सिखाती हैं।

    किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है


    'जाती राब्ता' (व्यक्तिगत संपर्क) शब्द का प्रयोग बहुत प्रभावी है। यह दिखाता है कि हमने सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि एक गहरा, निजी रिश्ता खो दिया है।

    भौतिक वस्तुओं के साथ भी हमारा एक भावनात्मक संबंध हो सकता है, जिसे हमें सहेजना चाहिए।

    बिना पत्तों के सूखे-टुंड लगते हैं वो सब अल्फाज


    यह उपमा बहुत मार्मिक है। यह दर्शाती है कि बिना भावनाओं और संदर्भ के शब्द कैसे निर्जीव और अर्थहीन हो जाते हैं।

    शब्दों में जान भावनाओं और मानवीय स्पर्श से आती है, केवल सूचना से नहीं।

    किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे


    यह पंक्ति एक बहुत ही मासूम और खूबसूरत सामाजिक पहलू को दर्शाती है जो किताबों की दुनिया से जुड़ा था। यह उस दौर की याद दिलाती है जब संयोग से रिश्ते बनते थे।

    जीवन की छोटी-छोटी और अनियोजित घटनाएँ भी खूबसूरत रिश्तों को जन्म दे सकती हैं।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'ग्रंथ हमारे गुरु' इस विषय पर अपने विचार लिखिए। उत्तर: यह कथन पूर्णतया सत्य है कि 'ग्रंथ हमारे गुरु' हैं। जिस प्रकार एक गुरु हमें ज्ञान देता है, सही-गलत का भेद सिखाता है और जीवन का मार्ग दिखाता है, उसी प्रकार ग्रंथ या किताबें भी निःस्वार्थ भाव से यह सब करती हैं। किताबें हमें इतिहास, विज्ञान, कला और संस्कृति का ज्ञान देती हैं। वे महान विचारकों के अनुभव और चिंतन को हम तक पहुँचाती हैं। जब भी हम किसी दुविधा में होते हैं, तो एक अच्छी किताब एक सच्चे मित्र और गुरु की तरह हमारा मार्गदर्शन कर सकती है। वे हमारी कल्पना शक्ति को बढ़ाती हैं और हमें एक बेहतर इंसान बनाती हैं। इसलिए, ग्रंथों को गुरु का दर्जा देना सर्वथा उचित है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: ज्ञान का स्रोत, निःस्वार्थ शिक्षक, मार्गदर्शक, अनुभव, चिंतन, कल्पना शक्ति, सच्चा मित्र, बेहतर इंसान।

    प्रश्न २: कंप्यूटर पर पढ़ना और किताब से पढ़ने में आपको क्या अंतर महसूस होता है? उत्तर: मेरे विचार में, कंप्यूटर पर पढ़ना और किताब से पढ़ना, दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। कंप्यूटर पर पढ़ना सूचना-केंद्रित होता है; हम तेजी से जानकारी प्राप्त करते हैं, लेकिन ध्यान अक्सर भटकता है। स्क्रीन की रोशनी आँखों पर जोर डालती है। इसके विपरीत, किताब से पढ़ना एक गहरा और आत्म-केंद्रित अनुभव है। हम पन्नों को छू सकते हैं, उनकी गंध महसूस कर सकते हैं और बिना किसी डिजिटल रुकावट के सामग्री में डूब सकते हैं। किताब से एक भावनात्मक जुड़ाव बनता है, जिसे 'जाती राब्ता' कहा गया है । किताब पढ़ते समय कल्पना अधिक उड़ान भरती है, जबकि कंप्यूटर पर पढ़ते समय ध्यान अक्सर हाइपरलिंक्स और नोटिफिकेशन से भंग होता है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सूचना-केंद्रित, आत्म-केंद्रित, भावनात्मक जुड़ाव, ध्यान भटकना, डिजिटल रुकावट, कल्पना, गहरा अनुभव।

    प्रश्न ३: लोगों में फिर से किताबें पढ़ने की आदत कैसे विकसित की जा सकती है? उत्तर: लोगों में किताबें पढ़ने की आदत को फिर से विकसित करने के लिए कई स्तरों पर प्रयास करने होंगे। सबसे पहले, परिवारों में माता-पिता को स्वयं पढ़कर बच्चों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। स्कूलों में पुस्तकालय की अवधि को केवल एक औपचारिकता न मानकर, उसे रोचक गतिविधियों से जोड़ा जाना चाहिए। 'बुक क्लब' और 'रीडिंग चैलेंज' जैसे सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। 'पुस्तकांचे गाव- भिलार' जैसी पहलों को प्रोत्साहित करना चाहिए । इसके अलावा, किताबों की दुकानों को आकर्षक बनाना और मोबाइल लाइब्रेरी के माध्यम से किताबों को लोगों के दरवाजे तक पहुँचाना भी इस दिशा में एक प्रभावी कदम हो सकता है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: पारिवारिक माहौल, रोचक गतिविधियाँ, बुक क्लब, सामुदायिक कार्यक्रम, मोबाइल लाइब्रेरी, प्रोत्साहन, उदाहरण प्रस्तुत करना।

    प्रश्न ४: कविता में कवि ने किताबों के गिरने-उठाने के बहाने रिश्ते बनने की बात कही है। क्या आज के डिजिटल युग में ऐसे सहज संयोग संभव हैं? उत्तर: कविता में वर्णित किताबों के गिरने-उठाने से रिश्ते बनने का दृश्य एक सहज और मानवीय संपर्क को दर्शाता है । आज के डिजिटल युग में, जहाँ लोग अक्सर अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन में व्यस्त रहते हैं, ऐसे सहज संयोगों की संभावना बहुत कम हो गई है। आज रिश्ते ऑनलाइन 'फ्रेंड रिक्वेस्ट' भेजने और स्वीकार करने तक सीमित हो गए हैं, जिसमें वह मासूमियत और अनियोजित सुंदरता नहीं होती। हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि नए तरह के संयोग संभव नहीं हैं, जैसे किसी साझा ऑनलाइन रुचि समूह में किसी से जुड़ना। फिर भी, कविता में वर्णित भौतिक दुनिया का वह आकस्मिक और प्यारा संपर्क आज दुर्लभ होता जा रहा है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सहज संयोग, मानवीय संपर्क, डिजिटल युग, ऑनलाइन रिश्ते, भौतिक दुनिया, मासूमियत, आकस्मिकता, दुर्लभ।

    प्रश्न ५: किताबों से दूर होने पर हम किन मूल्यों (कदरों) को खोते जा रहे हैं? उत्तर: किताबों से दूर होने पर हम कई महत्वपूर्ण मूल्यों को खोते जा रहे हैं, जिनकी ओर कवि ने 'वो कदरें अब नजर आती नहीं घर में' कहकर संकेत किया है । हम धैर्य खो रहे हैं, क्योंकि किताबें हमें एकाग्रता और धैर्य सिखाती हैं। हम गहरी सोच और चिंतन की क्षमता खो रहे हैं, क्योंकि इंटरनेट हमें तुरंत और सतही जानकारी देता है। हम सहानुभूति खो रहे हैं, क्योंकि कहानियाँ और पात्र हमें दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में मदद करते हैं। किताबों द्वारा सिखाए जाने वाले पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते, जिनकी बात कवि करते हैं, वे भी कमजोर पड़ रहे हैं क्योंकि हमारा संवाद अब डिजिटल माध्यमों तक सिमट गया है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: धैर्य, एकाग्रता, गहरी सोच, सहानुभूति, चिंतन, पारिवारिक मूल्य, सामाजिक रिश्ते, सतही ज्ञान।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: कविता के आधार पर किताबों की वर्तमान स्थिति का वर्णन कीजिए। उत्तर: कविता के अनुसार, किताबों की वर्तमान स्थिति बहुत दयनीय है:

    • वे बंद अलमारियों के शीशों से हसरत भरी नजरों से झाँकती हैं ।


    • महीनों तक मनुष्य से उनकी मुलाकात नहीं होती ।


    • वे बहुत बेचैन रहती हैं और उन्हें नींद में चलने की आदत हो गई है ।


    • उनके शब्द अर्थहीन और सूखे ठूंठ जैसे हो गए हैं ।


    • मनुष्य से उनका व्यक्तिगत और भावनात्मक संपर्क (जाती राब्ता) टूट गया है ।


    प्रश्न २: कंप्यूटर के उपयोग के कारण पुस्तक-पठन में आए बदलावों को लिखिए। उत्तर: कंप्यूटर के उपयोग से पुस्तक-पठन में कई बदलाव आए हैं। पहले जिन शामों को लोग किताबों की संगत में बिताते थे, वे शामें अब कंप्यूटर के पर्दे पर गुजरने लगी हैं । किताब के पन्ने पलटने का जो एक tactile (स्पर्शीय) और आनंददायक अनुभव था, उसकी जगह अब उँगली से किए जाने वाले एक निर्जीव 'क्लिक' ने ले ली है । कंप्यूटर के कारण किताबों से मनुष्य का व्यक्तिगत और आत्मीय रिश्ता (राब्ता) कट गया है, भले ही पर्दे पर बहुत सारी जानकारी परत-दर-परत खुलती चली जाती हो ।


    प्रश्न ३: कवि द्वारा वर्णित किताबों से जुड़ी पुरानी यादें कौन-कौन सी हैं? उत्तर: कवि ने किताबों से जुड़ी निम्नलिखित पुरानी यादों का वर्णन किया है:

    • किताबों को सीने पर रखकर लेटना ।


    • किताबों को गोद में लेकर पढ़ना ।


    • घुटनों को रिहल की तरह बनाकर, उस पर किताब रखकर आधा झुककर पढ़ना और उसे माथे से छूना ।


    • किताबों के अंदर सूखे हुए फूल और महकते हुए पत्र (रुक्के) मिलना ।


    • किताबों के गिरने और उठाने के बहाने नए-नए रिश्ते बनना ।


    प्रश्न ४: 'बिना पत्तों के सूखे-टुंड लगते हैं वो सब अल्फाज' - इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर: इस पंक्ति का आशय है कि किताबों से दूर हो जाने के कारण अब उनके शब्द भी निर्जीव और अर्थहीन लगने लगे हैं । जिस प्रकार बिना पत्तों का एक सूखा ठूंठ (टुंड) बेजान और बदसूरत लगता है, उसी प्रकार वे शब्द भी अब भावनाहीन और प्राणहीन हो गए हैं। उन पर अब कोई नए अर्थ या कल्पनाएँ नहीं उगतीं । यह पंक्ति दर्शाती है कि शब्दों का सच्चा अर्थ केवल पाठक के भावनात्मक जुड़ाव और कल्पना से ही जीवंत होता है, और यह जुड़ाव अब टूट चुका है।


    प्रश्न ५: कविता की प्रथम पाँच पंक्तियों का भावार्थ लिखिए। उत्तर: कविता की प्रथम पाँच पंक्तियों का भावार्थ है: कवि कहते हैं कि आज के डिजिटल युग में किताबें बंद अलमारियों में कैद हो गई हैं। वे अलमारी के शीशों के पीछे से बड़ी उम्मीद और लालसा भरी नजरों से बाहर की ओर देखती हैं । अब महीनों बीत जाते हैं, लेकिन पाठकों से उनकी मुलाकात तक नहीं हो पाती है । वे शामें जो कभी किताबों को पढ़ने और उनकी संगत में बिताई जाती थीं, अब वे भी नहीं रहीं ।





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