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    6. गिरिधर नागर - Giridhar Nagar - Class 10 - Lokbharati

    पाठ का प्रकार: पद्य (भक्ति पद)

    पाठ का शीर्षक: गिरिधर नागर

    लेखक/कवि का नाम: संत मीराबाई


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: संत मीराबाई द्वारा रचित इन पदों में उनकी श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम का वर्णन है.


    • पहले पद में, मीराबाई कहती हैं कि उनके स्वामी केवल गिरिधर गोपाल हैं, जिनके सिर पर मोर का मुकुट है. उन्होंने कृष्ण प्रेम के लिए कुल की मर्यादा और लोक-लाज सब कुछ छोड़ दिया है. वे अपनी भक्ति को दूध मथकर मक्खन निकालने की प्रक्रिया से तुलना करती हैं, जहाँ उन्होंने सार-तत्व (कृष्ण-प्रेम) को अपना लिया है और निस्सार (छाछ रूपी संसार) को छोड़ दिया है.


    • दूसरे पद में, वे श्रीकृष्ण को अपना एकमात्र सहारा और रक्षक बताती हैं. वे इस संसार को विकारों का सागर कहती हैं जिसमें उनकी जीवन-नौका टूटी हुई है और डूब रही है, और वे प्रभु से उसे बचाने की प्रार्थना करती हैं.


    • तीसरे पद में, मीराबाई एक आध्यात्मिक होली का वर्णन करती हैं. यह होली बिना किसी भौतिक वाद्य के, अनहद नाद के साथ बजती है. इसमें शील और संतोष रूपी केसर घोला गया है और प्रेम की पिचकारी है. इस होली में उन्होंने लोक-लाज को त्यागकर स्वयं को प्रभु के चरण कमलों में समर्पित कर दिया है.


    English: In these verses composed by Sant Meerabai, her singular devotion and love for Lord Krishna are described.


    • In the first verse, Meerabai states that her only lord is Giridhar Gopal, who wears a peacock feather crown. For Krishna's love, she has abandoned her family's honour and all societal norms. She compares her devotion to the process of churning butter from milk, where she has embraced the essence (Krishna's love) and left the worldly remnants (buttermilk).


    • In the second verse, she refers to Lord Krishna as her only support and protector. She calls this world an ocean of vices where her life-boat is broken and sinking, and she prays to the Lord to save her.


    • In the third verse, Meerabai describes a spiritual Holi. This Holi is played with the divine, unstruck sound (Anahad Naad) without any physical instruments. In this, the saffron of good conduct and contentment is mixed, and the water-gun sprays love. Playing this Holi, she has shed all societal shame and surrendered herself at the lotus feet of her Lord.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इन पदों का केंद्रीय भाव श्रीकृष्ण के प्रति मीराबाई का पूर्ण समर्पण और अनन्य प्रेम है. यह भक्ति 'माधुर्य भाव' (प्रभु को पति मानना) और 'दास्य भाव' (स्वयं को दासी मानना) से ओत-प्रोत है. मीराबाई ने भक्ति के मार्ग में आने वाली सामाजिक बाधाओं (लोक-लाज, कुल की कानि) को निडरता से चुनौती दी है. इन पदों में विरह की पीड़ा, उद्धार की प्रार्थना, और आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति जैसे भक्ति के विभिन्न रंग दिखाई देते हैं. मूल संदेश यह है कि सच्ची भक्ति सांसारिक मोह-माया और बंधनों से मुक्त होकर ही संभव है.


    English: The central theme of these verses is Meerabai's complete surrender and exclusive love for Lord Krishna. This devotion is filled with 'Madhurya Bhava' (considering the Lord as her husband) and 'Dasya Bhava' (considering herself a maid-servant). Meerabai has fearlessly challenged the social obstacles (societal shame, family honour) that come in the path of devotion. These verses display various shades of devotion like the pain of separation, prayers for salvation, and the experience of spiritual ecstasy. The core message is that true devotion is possible only by freeing oneself from worldly attachments and bonds.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    गिरिधर

    कृष्ण, गोपाल, मुरलीधर

    -

    कानि

    लाज, मर्यादा, शर्म

    निर्लज्जता, बेशर्मी

    बेलि

    लता, वल्लरी

    -

    प्रतिपाल

    रक्षक, पालक, स्वामी

    भक्षक, विनाशक

    चेरी

    दासी, सेविका, शिष्या

    स्वामिनी, मालकिन

    बिकार

    दोष, बुराई, भ्रष्टाचार

    निर्विकार, शुद्धता

    संतोख

    संतोष, तृप्ति, सब्र

    असंतोष, अतृप्ति

    कँवल

    कमल, पंकज, सरोज

    -

    पखावज

    मृदंग (एक प्रकार का ढोल)

    -

    अंबर

    आकाश, गगन, नभ

    धरती, अवनी


    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई... परिचय: इस पद में मीराबाई श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए उनके प्रति अपनी अनन्य भक्ति को व्यक्त कर रही हैं.


    सरल अर्थ: मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो सब कुछ गिरिधर गोपाल ही हैं, उनके सिवा मेरा कोई दूसरा नहीं है. जिनके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरे पति हैं. उनके लिए मैंने अपने कुल की मर्यादा भी छोड़ दी है, अब कोई मेरा क्या कर लेगा? मैंने संतों के पास बैठ-बैठकर लोक-लाज भी खो दी है. मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है. अब तो यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने वाला है. मैंने दूध की मथनी को बड़े प्रेम से बिलोया है और उसमें से मक्खन (सार) निकाल लिया है, अब बची हुई छाछ (निस्सार संसार) को कोई भी पिए, मुझे फर्क नहीं पड़ता. मैं भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ और संसार के लोगों को देखकर रोती हूँ. दासी मीरा कहती है, हे गिरिधर लाल! अब मेरा उद्धार करो.


    २. हरि बिन कूण गती मेरी... परिचय: इस पद में मीराबाई संसार-सागर में स्वयं को फँसा हुआ बताकर अपने रक्षक प्रभु श्रीकृष्ण से उद्धार की गुहार लगा रही हैं.


    सरल अर्थ: मीराबाई कहती हैं - हे हरि! आपके बिना मेरा कौन है और मेरी क्या गति होगी? आप ही मेरे पालनहार हैं और मैं आपकी दासी हूँ. मैं दिन-रात हर समय आपका ही नाम जपती रहती हूँ. मैं बार-बार आपको पुकारती हूँ क्योंकि मुझे आपकी ही तीव्र इच्छा है. मैं इस दोषपूर्ण संसार रूपी सागर के बीच में घिर गई हूँ. हे प्रभु! मेरी नाव फट गई है, आप पाल बाँधकर इसकी रक्षा कीजिए, मेरी यह नाव डूब रही है. यह विरहिणी (मीरा) अपने प्रिय (प्रभु) की राह देख रही है, मुझे अपने पास ही रखो. दासी मीरा राम नाम रट रही है और मैं आपकी ही शरण में हूँ.


    ३. फागुन के दिन चार होरी खेल मना रे... परिचय: इस पद में मीराबाई लौकिक होली के स्थान पर प्रेम और भक्ति की आध्यात्मिक होली खेलने का आह्वान कर रही हैं.


    सरल अर्थ: मीराबाई अपने मन से कहती हैं कि हे मन! फागुन के ये चार दिन (जीवन के कुछ दिन) हैं, तू होली खेल ले. यहाँ बिना करताल और पखावज के अनहद नाद की झंकार हो रही है. बिना किसी सुर के छत्तीस राग गाए जा रहे हैं और रोम-रोम में संगीत बज रहा है. मैंने शील और संतोष रूपी केसर को घोला है और प्रेम-प्रीति की पिचकारी भर ली है. भक्ति का गुलाल ऐसा उड़ा है कि पूरा आकाश लाल हो गया है और प्रेम के रंग की अपार वर्षा हो रही है. मैंने अपने हृदय के सारे दरवाजे खोल दिए हैं और लोक-लाज सब त्याग दी है. मीराबाई कहती हैं कि मेरे प्रभु गिरिधर नागर हैं और मैं उनके चरण-कमलों पर न्योछावर हूँ.


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: मीराबाई के अनुसार उनके पति के सिर पर स्वर्ण मुकुट है.

    उत्तर: गलत। कारण, मीराबाई कहती हैं, "जाके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोई".


    कथन २: मीराबाई ने अपने आँसुओं से प्रेम की बेल को सींचा है.

    उत्तर: सही। कारण, पद में लिखा है, "अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई".


    कथन ३: मीराबाई संसार के लोगों को देखकर अत्यंत प्रसन्न होती हैं.

    उत्तर: गलत। कारण, वे कहती हैं, "भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई".


    कथन ४: मीराबाई संसार रूपी सागर में अपनी नाव को पूरी तरह सुरक्षित पाती हैं.

    उत्तर: गलत। कारण, वे प्रभु से प्रार्थना करती हैं, "नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी".


    कथन ५: होली के पद में मीराबाई शील और संतोष के रंग का उपयोग करती हैं.

    उत्तर: सही। कारण, पंक्ति है, "सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे".


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: संत मीराबाई

    रचना का प्रकार: भक्ति पद

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    जाके सिर मोर मुकट, मेरो पति सोई।

    यह पंक्ति ईश्वर के प्रति भक्ति के 'माधुर्य भाव' का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें भक्त और भगवान का रिश्ता प्रेम की अनूठी ऊँचाई पर है।

    भक्ति व्यक्तिगत और गहरी अनुभूति है, जिसके स्वरूप को भक्त स्वयं परिभाषित करता है।

    अँसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम बेलि बोई।

    यहाँ प्रेम और भक्ति को एक बेल के रूप में और विरह के आँसुओं को उसके पोषण के जल के रूप में प्रस्तुत करना एक अत्यंत मार्मिक और सुंदर कल्पना है।

    सच्चा प्रेम और भक्ति त्याग और विरह की अग्नि में तपकर ही परिपक्व होते हैं।

    माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।

    यह पंक्ति एक सरल घरेलू रूपक के माध्यम से गहन आध्यात्मिक सत्य को उजागर करती है - सार को ग्रहण करो और निस्सार का त्याग करो।

    हमें सांसारिक मोह-माया को त्यागकर भक्ति और ज्ञान के सार-तत्व को अपनाना चाहिए।

    नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो बूड़त है बेरी।

    यह पंक्ति भक्त की पूर्ण असहायता और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास को दर्शाती है। यह एक शक्तिशाली शरणागति का भाव है।

    जब मानवीय प्रयास विफल हो जाते हैं, तब ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और समर्पण ही एकमात्र मार्ग है।

    सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे।

    यह एक लौकिक त्योहार को आध्यात्मिक रूप देने की अद्भुत कल्पना है, जो दिखाती है कि हर कर्म को भक्ति में बदला जा सकता है।

    जीवन के वास्तविक रंग भौतिक नहीं, बल्कि शील, संतोष और प्रेम जैसे गुण हैं।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'भगत देखि राजी हुई जगत देखि रोई' - इस पंक्ति में निहित भाव अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।


    उत्तर: इस पंक्ति का भाव यह है कि मीराबाई को जब ईश्वर के भक्त मिलते हैं, जो उन्हीं की तरह सांसारिक मोह-माया से दूर और प्रभु-प्रेम में लीन हैं, तो उन्हें देखकर मीरा का मन प्रसन्नता से भर जाता है। उन्हें आत्मीयता का अनुभव होता है। इसके विपरीत, जब वे सांसारिक लोगों को देखती हैं, जो धन, स्वार्थ और मोह-माया में उलझे हुए हैं और ईश्वर से विमुख हैं, तो उनकी दुर्दशा देखकर मीराबाई को दुःख होता है और वे रो पड़ती हैं।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आत्मीयता, सांसारिकता, मोह-माया, ईश्वरीय प्रेम, दुर्दशा, करुणा।


    प्रश्न २: मीराबाई की कृष्णभक्ति का स्वरूप कैसा है? पठित पदों के आधार पर लिखिए।


    उत्तर: पठित पदों के आधार पर मीराबाई की कृष्णभक्ति के कई स्वरूप दिखते हैं। उनकी भक्ति 'माधुर्य भाव' की है, जिसमें वे कृष्ण को अपना पति मानती हैं ("मेरो पति सोई"). साथ ही, उनमें 'दास्य भाव' भी है, जहाँ वे स्वयं को कृष्ण की दासी कहती हैं ("मैं रावरी चेरी"). उनकी भक्ति पूर्ण समर्पण वाली है, जिसके लिए वे कुल की मर्यादा और लोक-लाज भी त्याग देती हैं. वे एक निडर भक्त हैं जो संतों का संग करती हैं और संसार की परवाह नहीं करतीं. उनकी भक्ति में विरह की पीड़ा और उद्धार की पुकार भी शामिल है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: माधुर्य भाव, दास्य भाव, समर्पण, निर्भीकता, लोक-लाज का त्याग, विरह।


    प्रश्न ३: 'प्रेम-बेलि बोने' के लिए 'आँसुओं के जल' से सींचने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? अपने विचार लिखिए।


    उत्तर: मेरे विचार में, 'प्रेम-बेलि' को 'आँसुओं के जल' से सींचने का गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है। प्रेम, विशेषकर ईश्वरीय प्रेम का मार्ग सरल नहीं होता। इसमें प्रियतम से विरह (separation) का दुःख सहना पड़ता है। यह विरह में बहने वाले आँसू ही भक्त के प्रेम को और गहरा, सच्चा और मजबूत बनाते हैं। जैसे पानी के बिना बेल सूख जाती है, वैसे ही त्याग, पीड़ा और विरह के बिना प्रेम की भावना परिपक्व और फलदायी नहीं हो सकती। आँसू भक्त के समर्पण और उसकी तड़प का प्रतीक हैं, जो प्रेम-बेलि को पोषण देते हैं।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रतीक, विरह, त्याग, पीड़ा, समर्पण, परिपक्वता, तड़प, पोषण।


    प्रश्न ४: आज के संदर्भ में 'लोक लाज खोने' का क्या अर्थ हो सकता है?


    उत्तर: आज के संदर्भ में, 'लोक लाज खोने' का अर्थ है अपने सत्य, अपने सिद्धांतों या अपने लक्ष्य के लिए सामाजिक दबाव और "लोग क्या कहेंगे" की परवाह न करना। इसका अर्थ है, समाज द्वारा बनाए गए उन दकियानूसी नियमों या अपेक्षाओं को न मानना जो किसी व्यक्ति की प्रगति या सही मार्ग में बाधक बनें। जैसे एक कलाकार, वैज्ञानिक या समाज-सुधारक अपने जुनून के लिए दुनिया की आलोचना की परवाह नहीं करता, उसी तरह अपने सत्य के पथ पर अडिग रहना ही आज 'लोक लाज खोना' है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: सामाजिक दबाव, रूढ़िवादिता, सिद्धांत, लक्ष्य, जुनून, आलोचना, दृढ़ता।


    प्रश्न ५: संत मीराबाई के पद आज भी क्यों प्रासंगिक हैं?


    उत्तर: संत मीराबाई के पद आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि वे सच्चे प्रेम, पूर्ण समर्पण और निडरता का संदेश देते हैं। आज के भौतिकवादी युग में, जहाँ रिश्ते स्वार्थ पर आधारित होते हैं, मीरा का निस्वार्थ प्रेम एक आदर्श प्रस्तुत करता है। उनका अपने लक्ष्य (भक्ति) के प्रति दृढ़ रहना और सामाजिक बंधनों को चुनौती देना, आज भी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो लीक से हटकर कुछ करना चाहता है। उनके पद हमें सिखाते हैं कि सच्ची खुशी और शांति बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आंतरिक और आध्यात्मिक संतोष में है।


    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रासंगिकता, निस्वार्थ प्रेम, समर्पण, निडरता, प्रेरणा, आध्यात्मिक शांति, भौतिकवाद।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: प्रथम पद के आधार पर श्रीकृष्ण की वे विशेषताएँ लिखिए जिनका उल्लेख मीराबाई ने किया है।

    उत्तर: प्रथम पद में मीराबाई ने श्रीकृष्ण की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है:

    • वे 'गिरिधर' हैं, अर्थात उन्होंने पर्वत को धारण किया था।

    • वे 'गोपाल' हैं, अर्थात वे गायों के पालक हैं।

    • उनके सिर पर मोर का सुंदर मुकुट है.

    • वे भक्तों का उद्धार करने वाले हैं ('तारो अब मोही').


    प्रश्न २: मीराबाई ने अपनी भक्ति का वर्णन किस रूप में किया है? (दूध मथने के उदाहरण के आधार पर)।


    उत्तर: मीराबाई ने अपनी भक्ति की तुलना दूध मथने की क्रिया से की है. वे कहती हैं कि उन्होंने भक्ति रूपी दूध की मथनी को बड़े प्रेम से बिलोया है. इस प्रक्रिया में, उन्होंने माखन रूपी सार-तत्व, यानी कृष्ण-प्रेम को निकाल कर अपने पास रख लिया है. जो छाछ रूपी निस्सार सांसारिक वस्तुएँ बची हैं, उन्हें उन्होंने दूसरों के लिए छोड़ दिया है. इस प्रकार, उन्होंने ज्ञान और विवेक से भक्ति के वास्तविक मर्म को पा लिया है।


    प्रश्न ३: दूसरे पद में मीराबाई ने प्रभु से अपनी रक्षा के लिए क्या-क्या प्रार्थना की है?


    उत्तर: दूसरे पद में मीराबाई ने प्रभु से अपनी रक्षा के लिए यह प्रार्थना की है कि वे इस दोषपूर्ण संसार रूपी सागर में घिर गई हैं. उनकी जीवन-नौका फट गई है और डूब रही है. वे प्रभु से कहती हैं कि वे इस टूटी नाव में पाल बाँधकर उसे डूबने से बचा लें और इस भवसागर से पार लगा दें.


    प्रश्न ४: मीराबाई द्वारा वर्णित होली का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।


    उत्तर: मीराबाई द्वारा वर्णित होली पारंपरिक होली से भिन्न एक आध्यात्मिक होली है। इस होली में:


    • भौतिक वाद्य यंत्रों की जगह अनहद नाद की झंकार है.

    • साधारण संगीत की जगह बिना सुर के ही छत्तीस रागों का गायन होता है.

    • रंगों की जगह शील और संतोष रूपी केसर का प्रयोग होता है.

    • पानी की पिचकारी की जगह प्रेम और स्नेह की पिचकारी है.

    • इस होली में भक्त अपने हृदय के सब द्वार खोलकर और लोक-लाज त्यागकर प्रभु भक्ति में लीन हो जाता है.


    प्रश्न ५: 'कुल की कानि' का त्याग करने से मीराबाई का क्या तात्पर्य है?


    उत्तर: 'कुल की कानि' का त्याग करने से मीराबाई का तात्पर्य है कि उन्होंने कृष्ण-भक्ति के लिए अपने राजकुल की मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को छोड़ दिया है. उस समय राजघराने की स्त्रियों को मंदिरों में जाकर नाचना-गाना या संतों के साथ सत्संग करने की अनुमति नहीं थी. मीराबाई ने इन सभी सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को तोड़ दिया और अपने मन के अनुसार कृष्ण-भक्ति का मार्ग अपनाया, भले ही इसके लिए उन्हें अपने परिवार और समाज का विरोध सहना पड़ा.


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