1.7. खुला आकाश - Khula Aakash - Class 10 - Lokbharati
- Sep 3
- 8 min read
Updated: Nov 19

पाठ का प्रकार: गद्य (डायरी)
पाठ का शीर्षक: खुला आकाश
लेखक/कवि का नाम: कुँवर नारायण
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: "खुला आकाश" कुँवर नारायण की डायरी के अंशों का संग्रह है, जिसमें वे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चिंतन करते हैं. इन अंशों में, लेखक अपनी 'अंदर की दुनिया' को बाहरी दुनिया से अधिक विशाल बताते हैं, जहाँ सच्ची आज़ादी संभव है. वे शहरी जीवन की घुटन का वर्णन करते हैं, जहाँ 'मकान पर मकान' लदे हैं और प्रकृति का कोई स्थान नहीं है. लेखक आत्म-चिंतन के महत्व पर जोर देते हैं और कहते हैं कि हमें दूसरों से बहस करने के बजाय स्वयं से संवाद करना चाहिए. वे सादगी और खुलेपन से जीने को प्राथमिकता देते हैं और दिखावे को 'चारित्रिक बेईमानी' कहते हैं. अंत में, वे आधुनिक जीवन की 'चीजों की गुलामी' पर व्यंग्य करते हैं, जहाँ मनुष्य अपने ही बनाए साधनों (जैसे कंप्यूटर और कार) का गुलाम बन गया है.
English: "Khula Aakash" is a collection of diary excerpts by Kunwar Narayan, in which he reflects on various aspects of life. In these entries, the author describes our 'inner world' as much larger than the outer world, where true freedom is possible. He portrays the suffocation of urban life, where houses are piled 'house upon house,' leaving no room for nature. The author emphasizes the importance of self-reflection, stating that we should have a dialogue with ourselves instead of arguing with others. He prefers to live with simplicity and openness, calling pretentiousness a "character-based dishonesty". Finally, he satirizes the 'slavery of things' in modern life, where humans have become slaves to the very tools (like computers and cars) they created.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस पाठ का केंद्रीय भाव आधुनिक जीवन की जटिलताओं, विडंबनाओं और मानवीय स्वभाव पर एक गहरा आत्म-चिंतन है. लेखक डायरी के माध्यम से शहरी जीवन के अलगाव, दिखावे की संस्कृति और भौतिकवाद पर टिप्पणी करते हैं. पाठ का मूल संदेश यह है कि सच्ची स्वतंत्रता और सार्थकता बाहरी दुनिया में नहीं, बल्कि हमारी अपनी 'भीतरी दुनिया' को समृद्ध बनाने, स्वयं को जानने और एक सरल, ईमानदार जीवन जीने में निहित है. लेखक हमें बाहरी विवादों से हटकर 'स्वयं से संवाद' करने और वस्तुओं का स्वामी बनने, न कि उनका गुलाम बनने के लिए प्रेरित करते हैं.
English: The central theme of this lesson is a deep self-reflection on the complexities, ironies, and nature of modern life and humanity. Through his diary, the author comments on the alienation of urban life, the culture of pretence, and materialism. The core message of the text is that true freedom and meaning lie not in the external world, but in enriching our own 'inner world,' knowing ourselves, and living a simple, honest life. The author inspires us to move away from external conflicts towards a 'dialogue with the self' and to be masters of our possessions, not their slaves.
पात्रों का चरित्र-चित्रण (Bilingual Character Sketch)
लेखक (कुँवर नारायण) / Author (Kunwar Narayan):
हिन्दी: लेखक एक गहरे विचारक, संवेदनशील और आत्म-विश्लेषक व्यक्ति हैं. वे शहरी जीवन की कृत्रिमता और घुटन से त्रस्त हैं और एक सरल व ईमानदार जीवन को महत्व देते हैं. उनमें प्रकृति के प्रति गहरा लगाव है, जो उनके मुहल्ले में हरियाली के अभाव से स्पष्ट होता है. वे एक स्पष्टवादी व्यक्ति हैं जो सामाजिक दिखावे को 'चारित्रिक बेईमानी' कहने से नहीं हिचकिचाते. वे आधुनिक भौतिकवाद के आलोचक हैं और मानते हैं कि सच्ची स्वतंत्रता आंतरिक होती है.
English: The author is a deep thinker, sensitive, and self-analytical individual. He is troubled by the artificiality and suffocation of urban life and values a simple and honest existence. He has a deep affection for nature, which is evident from his distress over the lack of greenery in his neighbourhood. He is an outspoken person who does not hesitate to call social pretence "character-based dishonesty". He is a critic of modern materialism and believes that true freedom is internal.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
गुंजाइश | संभावना, अवकाश | असंभवता |
निर्जीव | बेजान, प्राणहीन | सजीव, जीवित |
दंभ | अहंकार, घमंड, अभिमान | विनम्रता, नम्रता |
हस्तक्षेप | दखलंदाज़ी, बाधा | अहस्तक्षेप, तटस्थता |
धूर्त | चालाक, कपटी, मक्कार | भोला, सीधा-सादा |
चैतन्य | सचेत, जागृत, सजीव | अचेतन, जड़ |
अविभाज्य | अखंड, अभिन्न | विभाज्य, खंडनीय |
प्रवृत्ति | स्वभाव, आदत, मिज़ाज | निवृत्ति |
सँकरी | तंग, पतली | चौड़ी, विस्तृत |
बहस | वाद-विवाद, तर्क-वितर्क | संवाद, सहमति |
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: लेखक के अनुसार, बाहर की दुनिया अंदर की दुनिया से कहीं ज्यादा बड़ी है।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक कहते हैं, "हमारे अंदर की दुनिया बाहर की दुनिया से कहीं ज्यादा बड़ी है।"
कथन २: लेखक जिस गली में रहते हैं, वहाँ बहुत सारे पेड़ और खुला आसमान है।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक बताते हैं कि "उस गली में पेड़ भी नहीं हैं" और "आसमान भी है लेकिन दिखाई नहीं देता।"
कथन ३: लेखक को लुका-छिपाकर और बातों को रचा-बसाकर जीना पसंद है।
उत्तर: गलत। कारण, लेखक स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ऐसा जीना उन्हें "सख्त नापसंद है।"
कथन ४: लेखक का मानना है कि हमें दूसरों से नहीं, बल्कि अपने आप से बहस करनी चाहिए।
उत्तर: सही। कारण, पाठ में लिखा है, "बहस दूसरों से नहीं, अपने से करनी चाहिए।"
कथन ५: लेखक के अनुसार, वे कंप्यूटर और मोटर जैसी चीजों की गुलामी में हैं।
उत्तर: सही। कारण, लेखक कहते हैं, "आज-कल उसकी (कंप्यूटर की) गुलामी में हूँ" और "उसकी (मोटर की) सेवा में भी हूँ।"
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'हमारे अंदर की दुनिया बाहर की दुनिया से कहीं ज्यादा बड़ी है' - इस कथन से आप क्या समझते हैं? उत्तर: इस कथन का अर्थ है कि हमारी कल्पनाओं, विचारों, भावनाओं और सपनों का संसार भौतिक दुनिया की सीमाओं से कहीं अधिक विस्तृत और स्वतंत्र है। बाहरी दुनिया नियमों, दूरियों और सीमाओं से बंधी है, लेकिन हमारे मन की दुनिया में हम कहीं भी जा सकते हैं, कुछ भी सोच सकते हैं और असीम रचनात्मकता का अनुभव कर सकते हैं। सच्ची स्वतंत्रता और समृद्धि इसी भीतरी दुनिया को विकसित करने में है, जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: कल्पना, विचार, भावनाएँ, आंतरिक स्वतंत्रता, रचनात्मकता, आत्म-चिंतन, असीम।
प्रश्न २: 'चीजों की गुलामी' इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक आज की जीवन-शैली पर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: 'चीजों की गुलामी' के माध्यम से लेखक आज की उपभोक्तावादी जीवन-शैली पर गहरा कटाक्ष कर रहे हैं। वे कहना चाहते हैं कि जिन चीजों (जैसे कंप्यूटर, कार, मोबाइल) को हमने अपनी सुविधा के लिए बनाया था, आज हम उन्हीं के दास बन गए हैं। हमारा समय, ऊर्जा और पैसा उन्हीं की सेवा और रखरखाव में खर्च हो रहा है। पहले मनुष्य मनुष्यों के गुलाम होते थे, पर आज मनुष्य निर्जीव वस्तुओं का गुलाम बन गया है। गुलामी की प्रवृत्ति वही है, बस तरीके बदल गए हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: उपभोक्तावाद, भौतिकवाद, दासता, व्यंग्य, जीवन-शैली, आधुनिकता, पराधीनता।
प्रश्न ३: 'अपने से बहस' करने के क्या लाभ हो सकते हैं? पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पाठ के अनुसार, 'अपने से बहस' करने से 'सच्चाई हाथ लगती है'. इसका लाभ यह है कि जब हम स्वयं के विचारों, विश्वासों और कार्यों पर प्रश्न उठाते हैं, तो हमें अपनी कमियों और पूर्वाग्रहों का पता चलता है। यह आत्म-विश्लेषण हमें एक बेहतर और ईमानदार इंसान बनने में मदद करता है। दूसरों से बहस करने पर अक्सर अहंकार का टकराव होता है और झगड़ा होता है, लेकिन स्वयं से बहस करने पर आत्म-सुधार और स्पष्टता का मार्ग खुलता है।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: आत्म-विश्लेषण, आत्म-सुधार, सच्चाई, ईमानदारी, स्पष्टता, पूर्वाग्रह, अहंकार।
प्रश्न ४: शहरी जीवन में हरियाली और खुले आसमान के अभाव का मानव मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? 'मकान पर मकान' अंश के आधार पर लिखिए।
उत्तर: 'मकान पर मकान' अंश के आधार पर, हरियाली और खुले आसमान के अभाव का मानव मन पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे घुटन, कैद और निराशा की भावना उत्पन्न होती है। लेखक को अपना मुहल्ला एक ऐसी भीड़ लगता है जिससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है. प्रकृति से यह दूरी मनुष्य को भी अस्वाभाविक बना देती है, जैसे तारों पर बैठी चिड़ियाँ भी लेखक को प्लास्टिक के खिलौने लगती हैं. यह वातावरण मनुष्य की सहजता और रचनात्मकता को खत्म कर देता है और वह बस वहां से बाहर निकलने के लिए छटपटाता रहता है.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: घुटन, कैद, निराशा, अलगाव, अस्वाभाविकता, प्रकृति से दूरी, मानसिक स्वास्थ्य।
प्रश्न ५: 'जो हम शौक से करना चाहते हैं, उसके लिए रास्ते निकाल लेते हैं' - इस विचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह विचार मानव स्वभाव की एक सच्चाई को दर्शाता है। इसका अर्थ है कि जिस काम में हमारी सच्ची रुचि और लगन होती है, उसे पूरा करने के लिए हम किसी भी बाधा को पार कर लेते हैं और कोई न कोई तरीका ढूँढ़ ही लेते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी को क्रिकेट खेलने का शौक है, तो वह पढ़ाई के व्यस्त समय में से भी खेलने के लिए वक्त निकाल लेगा और छोटी-सी जगह को भी मैदान बना लेगा। इसके विपरीत, जिस काम (जैसे-पढ़ाई) में उसकी रुचि नहीं है, उसके लिए वह 'समय नहीं है' या 'जगह नहीं है' जैसे बहाने बनाएगा। हमारी प्राथमिकताएँ ही हमारे रास्ते निर्धारित करती हैं।
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: रुचि, लगन, प्राथमिकता, बाधा, संकल्प, बहाने, इच्छा-शक्ति।
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: लेखक ने अपने मुहल्ले का वर्णन किन शब्दों में किया है?
उत्तर: लेखक ने अपने मुहल्ले का वर्णन एक सँकरी और तंग गली के रूप में किया है, जहाँ मकान पर मकान लदे हुए हैं.
वहाँ आसमान दिखाई नहीं देता और न ही पेड़ लगाने की कोई गुंजाइश है.
घर से बाहर झाँकने पर केवल दूसरे मकान और एक गंदी गली दिखाई देती है.
चिड़ियाँ तो दिखती हैं, पर वे तारों पर बैठी हुई प्लास्टिक के खिलौनों जैसी लगती हैं.
लेखक इस हरियाली रहित मुहल्ले से बाहर निकलने की भारी कोशिश में हैं.
प्रश्न २: 'जानें खुद को' अंश के आधार पर आत्मचिंतन के लाभ लिखिए।
उत्तर: 'जानें खुद को' अंश के आधार पर आत्मचिंतन के दो प्रमुख लाभ हैं:
पहला, हम स्वयं को जान पाते हैं कि हम वास्तव में क्या हैं, जबकि हम दूसरों के बारे में सब कुछ जानने का घमंड रखते हैं.
दूसरा, हमारे हस्तक्षेप से दूसरों की रक्षा होती है। जब हम दूसरों के जीवन में दखल देना बंद कर देते हैं, तो वे अपने बारे में संतुलित ढंग से सोच पाते हैं और सक्रिय हो पाते हैं.
प्रश्न ३: लेखक ने 'चारित्रिक बेईमानी' किसे कहा है और क्यों?
उत्तर: लेखक ने चीजों को लुका-छिपाकर और बातों व व्यवहार को बनावटी ढंग से प्रस्तुत करके जीने को 'चारित्रिक बेईमानी' कहा है. लोग अक्सर इसे 'व्यवहार कुशलता' का नाम देते हैं, लेकिन लेखक के अनुसार, ऐसा करने के पीछे आत्मविश्वास की कमी होती है। लोग इस डर से अपनी असलियत छिपाते हैं कि कहीं दूसरे उसे जान न जाएँ.
प्रश्न ४: दिल्ली में रहने की तुलना लेखक ने किससे की है और क्यों?
उत्तर: लेखक ने दिल्ली शहर की तुलना एक बहुत बड़ी, सवारियों से खचाखच भरी और हर वक्त चलती रहने वाली बस से की है. उन्होंने दिल्ली में रहने की तुलना बस के पायदान पर किसी तरह दो पाँव टिकाकर उम्र भर लटके रहने से की है. ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि दिल्ली में जीवन बहुत भीड़-भाड़ वाला और संघर्षपूर्ण है, जहाँ लोग बस किसी तरह अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए लटके रहते हैं और अंत में उसी भीड़ में खो जाते हैं.
प्रश्न ५: लेखक ने मनुष्यों के स्वभाव की तुलना किन-किन पशुओं से की है और इस पर क्या चिंता व्यक्त की है? उत्तर: लेखक ने कुछ मनुष्यों के हिंसक और क्रूर स्वभाव की तुलना बाघ, भेड़िये, लकड़बग्घे, साँप, तेंदुए, बिच्छू और गोजर जैसे पशुओं से की है. वहीं, कुछ मनुष्यों के शांत और सीधे स्वभाव की तुलना गाय, बकरी, भेड़ और तितली जैसे प्राणियों से की है. लेखक इस बात पर चिंता व्यक्त करते हैं कि ऐसा क्यों नहीं होता कि जैसे सारे बाघ केवल बाघ होते हैं, उसी तरह सारे मनुष्य केवल मनुष्य होते और कुछ नहीं.
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