1.8. गजल - Gazal - Class 10 - Lokbharati
- Sep 9
- 11 min read
Updated: Nov 19

पाठ का प्रकार: पद्य (गजल)
पाठ का शीर्षक: गजल
लेखक/कवि का नाम: माणिक वर्मा
सारांश (Bilingual Summary)
हिन्दी: माणिक वर्मा द्वारा रचित इस गजल में जीवन को सार्थक और प्रभावशाली ढंग से जीने की प्रेरणा दी गई है. कवि कहते हैं कि बाहरी सुंदरता या ऊँचे पद पर दिखने की बजाय, समाज के लिए नींव के पत्थर की तरह उपयोगी बनना अधिक महत्वपूर्ण है. व्यक्ति को जो भी कार्य करना चाहिए, वह पूरी लगन से करना चाहिए ताकि उसका प्रभाव दूर तक दिखे, जैसे मील का पत्थर. इस गजल में सच्ची इंसानियत , कठोर परिस्थितियों में भी अपनी अच्छाई बनाए रखने , और दूसरों के दुःख को समझने के लिए स्वयं कष्ट सहने (सहानुभूति) जैसे मूल्यों पर बल दिया गया है. कवि निराशा के क्षणों में आशा की किरण बनने , मर्यादा में रहकर मूल्यवान बनने , और कमजोरों की रक्षा करने का संदेश देते हैं. अंततः, कवि हर इंसान में ईश्वर का रूप देखने की प्रार्थना करते हैं.
English: This ghazal, composed by Manik Verma, inspires one to live life in a meaningful and impactful way. The poet suggests that instead of focusing on external beauty or appearing in high positions, it is more important to be useful to society like a foundation stone. Whatever task a person undertakes, it should be done with such dedication that its impact is far-reaching, like a milestone. This ghazal emphasizes values like true humanity , maintaining one's goodness even in harsh situations , and empathy—experiencing hardship oneself to understand the pain of others. The poet conveys the message of becoming a ray of hope in moments of despair , becoming valuable by living within dignity , and protecting the weak. Finally, the poet prays to see the divine in every human being.
केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)
हिन्दी: इस गजल का केंद्रीय भाव है कि व्यक्ति की सच्ची पहचान उसके रूप-रंग से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से होती है. कवि माणिक वर्मा मनुष्य को दिखावे की दुनिया से दूर रहकर एक सार्थक, मानवीय और परोपकारी जीवन जीने के लिए प्रेरित करते हैं. गजल का मूल संदेश है कि सफलता का अर्थ केवल शिखर पर पहुँचना नहीं, बल्कि नींव को मजबूत करना, दूसरों के लिए मील का पत्थर बनना, और कठिन समय में रोशनी दिखाना है. यह रचना मानवता, विनम्रता, सहानुभूति और दृढ़ संकल्प जैसे शाश्वत जीवन-मूल्यों को अपनाने पर जोर देती है.
English: The central theme of this ghazal is that a person's true identity is defined by their actions, not their appearance. The poet, Manik Verma, inspires people to live a meaningful, humane, and altruistic life, away from the world of superficiality. The core message of the ghazal is that success does not just mean reaching the peak, but strengthening the foundation, becoming a milestone for others, and showing light in difficult times. This composition emphasizes the adoption of eternal life values such as humanity, humility, empathy, and determination.
शब्दार्थ (Glossary)
शब्द (Word) | पर्यायवाची शब्द (Synonym) | विलोम शब्द (Antonym) |
स्वर्णिम | सुनहरा, स्वर्ण, कंचन | श्याम, काला, मलिन |
शिखर | चोटी, शृंग, तुंग | नींव, तलहटी, आधार |
नींव | आधार, बुनियाद, जड़ | शिखर, चोटी, कलश |
गर्द | धूल, रज, मिट्टी | स्वच्छता, निर्मलत |
आईना | दर्पण, शीशा, मुकुर | - |
जुगनू | खद्योत, पटबीजना | - |
धुंध | कोहरा, कुहासा | स्पष्टता, प्रकाश, उजाला |
मर्यादा | मान, प्रतिष्ठा, सीमा | अमर्यादा, अपमान |
नाजुक | कोमल, सुकुमार, मृदु | कठोर, सख़्त, पुरुष |
अक्सर | प्रायः, बहुधा, अधिकतर | कभी-कभी, यदा-कदा |
पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)
१. आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो, शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो ।
परिचय: इस शेर में कवि बाहरी दिखावे के बजाय ठोस और महत्वपूर्ण कार्य करने पर बल दे रहे हैं.
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि तुम सोने के चमकते शिखर बनकर लोगों के आकर्षण का केंद्र बनो. यदि सच में कुछ बनकर दिखना चाहते हो, तो नींव के पत्थर बनो, जिसे कोई नहीं देखता पर जो पूरी इमारत का बोझ उठाता है. अर्थात, प्रसिद्धि पाए बिना चुपचाप समाज के लिए महत्वपूर्ण काम करो.
२. चल पड़ी तो गर्द बनकर आस्मानों पर लिखो, और अगर बैठो कहीं तो मील का पत्थर दिखो ।
परिचय: यहाँ कवि मनुष्य को हर हाल में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि यदि तुम अपने लक्ष्य की ओर चल पड़े हो तो धूल बनकर आसमान पर छा जाओ, अर्थात ऐसी सफलता प्राप्त करो जो सबको दिखाई दे. और यदि तुम कहीं बैठो, तो एक मील के पत्थर की तरह बनो, जो खुद कहीं नहीं जाता पर दूसरों को सही रास्ता दिखाता है.
३. सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं, आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो ।
परिचय: इस शेर में कवि मनुष्य को सच्ची इंसानियत अपनाने का संदेश दे रहे हैं.
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि केवल सुंदर दिखने या लोगों की नजरों में आने का कोई अर्थ नहीं है. यदि तुम सच में इंसान हो, तो अपने अंदर मानवता के गुण लाओ और एक अच्छे इंसान बनकर दिखाओ.
४. जिंदगी की शक्ल जिसमें टूटकर बिखरे नहीं, पत्थरों के शहर में वो आईना बनकर दिखो ।
परिचय: यहाँ कवि कठोर और संवेदनहीन दुनिया में भी अपनी पहचान बनाए रखने की प्रेरणा दे रहे हैं.
सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि इस पत्थरों के शहर, यानी कठोर और हृदयहीन लोगों की दुनिया में, तुम एक ऐसा आईना बनो जो कभी टूटकर बिखरता नहीं. अर्थात, मुश्किल परिस्थितियों में भी बिना टूटे और घबराए दृढ़ता से खड़े रहो.
५. आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन, जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो ।
परिचय: इस शेर के माध्यम से कवि सहानुभूति और परानुभूति का महत्व समझा रहे हैं.
सरल अर्थ: तुम्हें हर एक व्यक्ति के दिल का दर्द और पीड़ा तभी महसूस होगी, जब तुम खुद उस दर्द से गुजरो. ठीक उसी तरह जैसे मोमबत्ती का धागा खुद जलकर मोम के दर्द को समझता है.
६. एक जुगनू ने कहा मैं भी तुम्हारे साथ हूँ, वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो ।
परिचय: यहाँ कवि मुश्किल समय में छोटी-सी मदद के महत्व को और स्वयं आशा की किरण बनने का संदेश दे रहे हैं.
सरल अर्थ: जब समय रूपी धुंध में रास्ता न दिख रहा हो, तब एक छोटे से जुगनू ने भी साथ देने की बात कही. कवि कहते हैं कि ऐसे कठिन और निराशा भरे समय में तुम दूसरों के लिए प्रकाश की किरण बनो और उन्हें रास्ता दिखाओ.
७. एक मर्यादा बनी है हम सभी के वास्ते, गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो ।
परिचय: इस शेर में कवि मर्यादित आचरण के भीतर रहकर मूल्यवान बनने की सीख दे रहे हैं.
सरल अर्थ: हम सभी के लिए एक सामाजिक मर्यादा और आचरण की सीमा बनी हुई है. यदि तुम्हें मोती की तरह मूल्यवान बनना है, तो तुम्हें सीप के अंदर ही रहना होगा. अर्थात, अपनी मर्यादाओं में रहकर ही तुम सम्मान और मूल्य प्राप्त कर सकते हो.
८. डर जाए फूल बनने से कोई नाजुक कली, तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो ।
परिचय: कवि इस शेर में कमजोरों और भयभीत लोगों के प्रति सहानुभूति और संरक्षण का भाव रखने को कह रहे हैं.
सरल अर्थ: यदि कोई कोमल कली फूल बनने से डर रही हो, तो ऐसे में तुम अपनी सुंदरता दिखाने वाले खिले हुए फूल मत बनो, बल्कि उस कली को हिम्मत देने वाले तितली के टूटे पंख बनो. अर्थात, सफल होकर कमजोरों को डराने के बजाय, उनके रक्षक और प्रेरणास्रोत बनो.
९. कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में, मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो ।
परिचय: यह गजल का अंतिम शेर है, जिसमें कवि की सामाजिक भावना आध्यात्मिकता में बदल जाती है.
सरल अर्थ: कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मुझे इस भीड़ में कोई एक ऐसा चेहरा तो दिखाओ कि मैं जिसे भी देखूँ, उसी में मुझे तुम ही नजर आओ. अर्थात, मुझे हर इंसान में तुम्हारा ही रूप दिखाई दे.
सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)
कथन १: कवि लोगों को स्वर्णिम शिखर बनकर दिखने की सलाह देते हैं।
उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं कि यदि दिखने का शौक है तो "नींव के अंदर दिखो".
कथन २: कवि के अनुसार, सिर्फ सुंदर दिखना ही इंसान की सार्थकता है।
उत्तर: गलत। कारण, कवि का मानना है, "सिर्फ देखने के लिए दिखना कोई दिखना नहीं, आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो".
कथन ३: दूसरों के दिल का दर्द महसूस करने के लिए मोम के धागे की तरह जलना पड़ता है।
उत्तर: सही। कारण, कवि कहते हैं, "आपको महसूस होगी तब हरइक दिल की जलन, जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो".
कथन ४: कवि मूल्यवान बनने के लिए सीप के अंदर मोती की तरह दिखने को कहते हैं।
उत्तर: सही। कारण, पंक्ति है, "गर तुम्हें बनना है मोती सीप के अंदर दिखो".
कथन ५: कवि चाहते हैं कि उन्हें भीड़ में हर चेहरे में ईश्वर दिखाई दें।
उत्तर: सही। कारण, कवि प्रार्थना करते हैं, "मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो".
पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)
रचनाकार का नाम: माणिक वर्मा
रचना का प्रकार: गजल
पसंदीदा पंक्ति | पसंदीदा होने का कारण | रचना से प्राप्त संदेश |
शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो । | यह पंक्ति सफलता की पारंपरिक परिभाषा को चुनौती देती है और गुमनाम नायकों के महत्व को स्थापित करती है. | सच्ची महानता दिखावे में नहीं, बल्कि चुपचाप ठोस और महत्वपूर्ण योगदान देने में है. |
आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो । | यह एक सरल लेकिन बहुत गहरी बात है, जो हमें हमारी मूल पहचान, यानी 'मानवता' की याद दिलाती है. | बाहरी उपलब्धियों से बढ़कर, एक अच्छा और सच्चा इंसान बनना अधिक महत्वपूर्ण है. |
जब किसी धागे-सा जलकर मोम के भीतर दिखो । | यह सहानुभूति (Empathy) की सबसे सुंदर और मार्मिक परिभाषा है, जो बताती है कि दर्द को समझे बिना दया अधूरी है. | दूसरों की पीड़ा को समझने के लिए हमें संवेदनशील होना और स्वयं त्याग करना सीखना चाहिए. |
तुम ना खिलते फूल पर तितली के टूटे पर दिखो । | यह पंक्ति करुणा और संरक्षण के भाव को एक अत्यंत कोमल बिंब के माध्यम से प्रस्तुत करती है. | अपनी सफलता का प्रदर्शन करने के बजाय, कमजोर और भयभीत लोगों का सहारा बनना सच्ची ताकत है. |
मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो । | यह पंक्ति गजल को सामाजिक धरातल से उठाकर आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करती है और 'सर्वेश्वरवाद' का दर्शन देती है. | हमें हर जीव में ईश्वर का अंश देखना चाहिए और सभी के प्रति समान सम्मान और प्रेम का भाव रखना चाहिए. |
स्वमत (Personal Opinion)
प्रश्न १: 'शौक दिखने का है तो फिर नींव के अंदर दिखो' - इस पंक्ति का आपके जीवन-दर्शन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: यह पंक्ति मेरे जीवन-दर्शन को गहराई से प्रभावित करती है. यह मुझे सिखाती है कि सच्ची सफलता और सम्मान बाहरी दिखावे या प्रसिद्धि में नहीं, बल्कि मूक, foundational योगदान में निहित है. आज की दुनिया में जहाँ हर कोई 'शिखर' पर दिखना चाहता है, यह पंक्ति मुझे 'नींव का पत्थर' बनने के लिए प्रेरित करती है—अर्थात, पर्दे के पीछे रहकर मजबूती से अपना काम करना, भले ही उसका श्रेय न मिले. यह मुझे विनम्रता और वास्तविक कर्म के महत्व की याद दिलाती है.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: विनम्रता, कर्मयोग, निस्वार्थ सेवा, योगदान, दिखावा, वास्तविक मूल्य.
प्रश्न २: कवि 'पत्थरों के शहर में आईना बनकर' दिखने के लिए क्यों कहते हैं? इसका क्या आशय है?
उत्तर: 'पत्थरों का शहर' से कवि का आशय एक संवेदनहीन, कठोर और स्वार्थी समाज से है. ऐसे समाज में, कवि 'आईना बनकर' दिखने के लिए कहते हैं. आईने का काम सच्चाई दिखाना होता है, वह कभी झूठ नहीं बोलता और किसी भी परिस्थिति में अपना मूल स्वरूप नहीं खोता. कवि चाहते हैं कि हम भी इस कठोर दुनिया में अपनी सच्चाई, अच्छाई और मानवीय मूल्यों को न छोड़ें और दृढ़ता से उनका पालन करें, ताकि दुनिया को उसकी असलियत का अहसास करा सकें.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: संवेदनहीन समाज, सच्चाई, दृढ़ता, मानवीय मूल्य, आत्म-निरीक्षण, यथार्थ.
प्रश्न ३: 'आदमी हो तुम अगर तो आदमी बनकर दिखो' - 'आदमी बनने' से कवि का क्या तात्पर्य हो सकता है? उत्तर: 'आदमी बनने' से कवि का तात्पर्य सिर्फ जैविक रूप से मनुष्य होना नहीं, बल्कि मानवीय गुणों को अपनाना है. इसका अर्थ है दया, करुणा, ईमानदारी, परोपकार, और सहानुभूति जैसे मूल्यों को अपने आचरण में लाना. कवि कहना चाहते हैं कि हमारी असली पहचान हमारे कर्मों और हमारे चरित्र से बनती है. एक सफल इंजीनियर या डॉक्टर होने से पहले, एक अच्छा 'आदमी' होना जरूरी है जो दूसरों के दुःख-दर्द को समझे और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाए.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मानवता, मानवीय गुण, करुणा, सहानुभूति, चरित्र, सदाचार, जिम्मेदारी.
प्रश्न ४: गजल में प्रस्तुत 'तितली के टूटे पर' का बिंब आपको क्या सोचने पर विवश करता है?
उत्तर: 'तितली के टूटे पर' का बिंब मुझे करुणा और आत्म-बलिदान के बारे में सोचने पर विवश करता है. एक तितली के टूटे पंख उसकी सुंदरता और उड़ान के अंत का प्रतीक हैं, फिर भी कवि उसी को बनने के लिए कह रहे हैं. इसका अर्थ है कि हमें अपनी सुंदरता या सफलता का प्रदर्शन करने के बजाय, किसी कमजोर (कली) की रक्षा और प्रेरणा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहना चाहिए. यह हमें सिखाता है कि सच्ची सुंदरता दूसरों की रक्षा करने में है, न कि आत्म-प्रदर्शन में.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: करुणा, आत्म-बलिदान, संरक्षण, प्रेरणा, निस्वार्थता, संवेदनशीलता.
प्रश्न ५: आज के दिखावे के युग में, यह गजल कितनी प्रासंगिक है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर: आज के सोशल मीडिया और दिखावे के युग में, यह गजल पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है. आज जहाँ लोग अपने बाहरी रूप-रंग, पद और संपत्ति का प्रदर्शन करने में लगे हैं, यह गजल हमें हमारे आंतरिक मूल्यों और कर्मों की ओर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाती है. 'नींव के अंदर दिखो', 'आदमी बनकर दिखो' जैसी पंक्तियाँ आज के युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक की तरह हैं. यह हमें सिखाती है कि असली पहचान और स्थायी सम्मान अच्छे कर्मों से मिलता है, न कि 'लाइक्स' और 'फॉलोअर्स' से.
उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रासंगिकता, दिखावा, सोशल मीडिया, आंतरिक मूल्य, कर्म, चरित्र, स्थायी सम्मान.
संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)
प्रश्न १: कवि के अनुसार व्यक्ति को समाज में किस प्रकार अपनी पहचान बनानी चाहिए? (नींव और मील के पत्थर के प्रतीकों के आधार पर)
उत्तर: कवि के अनुसार व्यक्ति को समाज में अपनी पहचान दिखावे से नहीं, बल्कि उपयोगी कार्यों से बनानी चाहिए:
नींव का पत्थर बनकर: व्यक्ति को प्रसिद्धि की इच्छा रखे बिना समाज के लिए आधारभूत और महत्वपूर्ण कार्य करने चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे नींव का पत्थर दिखाई नहीं देता पर पूरी इमारत को संभालता है.
मील का पत्थर बनकर: व्यक्ति को ऐसा बनना चाहिए जो दूसरों के लिए एक आदर्श हो और उन्हें सही मार्ग दिखाए, जैसे मील का पत्थर यात्रियों का मार्गदर्शन करता है.
प्रश्न २: 'मोम और धागे' का उदाहरण देकर कवि क्या समझाना चाहते हैं?
उत्तर: 'मोम और धागे' का उदाहरण देकर कवि यह समझाना चाहते हैं कि दूसरों के दुःख और पीड़ा को सही मायने में समझने के लिए स्वयं उस पीड़ा से गुजरना आवश्यक है. जैसे मोमबत्ती का धागा स्वयं जलता है और मोम के पिघलने के दर्द को महसूस करता है, उसी प्रकार मनुष्य भी जब स्वयं कष्ट सहता है, तभी उसे दूसरों के कष्टों का वास्तविक अनुभव होता है. यह सहानुभूति और परानुभूति का एक गहरा संदेश है.
प्रश्न ३: कवि ने मोती और सीप का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है?
उत्तर: कवि ने मोती और सीप का उदाहरण मर्यादा और मूल्य के संदर्भ में दिया है. वे कहते हैं कि जिस प्रकार एक मोती सीप के अंदर रहकर ही सुरक्षित और मूल्यवान बनता है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपनी सामाजिक और नैतिक मर्यादाओं के भीतर रहकर ही सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है. मर्यादा का पालन करना व्यक्ति के मूल्य को बढ़ाता है.
प्रश्न ४: 'रोशनी बनकर दिखो' - इस पंक्ति द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर: 'रोशनी बनकर दिखो' - इस पंक्ति द्वारा कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि जब जीवन में निराशा, संदेह या कठिनाई रूपी धुंध छा जाए, तो हमें दूसरों के लिए आशा और मार्गदर्शन का स्रोत बनना चाहिए. जैसे अंधेरे में एक छोटा-सा जुगनू भी रास्ता दिखाने के लिए महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार हमें भी मुश्किल समय में दूसरों को सहारा देना चाहिए और उनके जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाना चाहिए.
प्रश्न ५: प्रस्तुत गजल की अंतिम दो पंक्तियों (अंतिम शेर) का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गजल की अंतिम दो पंक्तियाँ हैं: "कोई ऐसी शक्ल तो मुझको दिखे इस भीड़ में, मैं जिसे देखूँ उसी में तुम मुझे अक्सर दिखो". इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी दृष्टि ऐसी हो जाए कि उन्हें इस दुनिया की भीड़ में हर इंसान में ईश्वर का ही रूप दिखाई दे. यह एक उदात्त आध्यात्मिक भावना है, जो 'वसुधैव कुटुंबकम्' और सर्वेश्वरवाद के दर्शन को दर्शाती है. कवि किसी एक व्यक्ति में नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति में अपने आराध्य को देखना चाहते हैं.
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