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    9. - वरदान माँगूँगा नहीं - Vardan Mangunga Nahi - Class 9 - Lokbharati

    • Sep 11
    • 9 min read

    Updated: Sep 12

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    पाठ का प्रकार: पद्य (प्रेरणागीत) पाठ का शीर्षक: वरदान माँगूँगा नहीं लेखक/कवि का नाम: शिवमंगल सिंह 'सुमन'


    सारांश (Bilingual Summary)


    हिन्दी: 'वरदान माँगूँगा नहीं' एक प्रेरणादायक कविता है जिसमें कवि शिवमंगल सिंह 'सुमन' ने आत्मसम्मान, साहस और आत्मनिर्भरता का भाव व्यक्त किया है। कवि यह घोषणा करते हैं कि वे किसी भी परिस्थिति में कोई वरदान या कृपा की भीख नहीं माँगेंगे। वे जीवन को एक 'महासंग्राम' के रूप में देखते हैं, जहाँ हार केवल एक छोटा-सा विराम है, अंत नहीं। वे सुखद यादों या अपने उजड़े हुए जीवन को संवारने के लिए भी दुनिया की दौलत नहीं चाहते। कवि हार और जीत दोनों में निर्भय हैं और संघर्ष के रास्ते पर जो भी मिले, उसे सहजता से स्वीकार करते हैं। अंत में, वे कहते हैं कि कोई उनकी लघुता को न छुए और अपनी महानता अपने पास रखे; वे अपनी पीड़ा को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।

    English: 'Vardan Mangunga Nahi' is an inspirational poem in which the poet Shivmangal Singh 'Suman' expresses feelings of self-respect, courage, and self-reliance. The poet declares that he will not ask for any boons or beg for mercy under any circumstances. He views life as a 'great battle' (mahasangram), where defeat is merely a short pause, not the end. He does not desire the world's wealth even to preserve pleasant memories or to rebuild his ruined life. The poet is fearless in both defeat and victory and readily accepts whatever comes his way on the path of struggle. In the end, he asks not to be patronized for his 'smallness' and tells the 'great' to keep their greatness to themselves; he will not let his own pain go in vain.


    केंद्रीय भाव (Bilingual Theme / Central Idea)


    हिन्दी: इस कविता का केंद्रीय भाव मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने और स्वाभिमान के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देना है। कवि यह संदेश देते हैं कि जीवन संघर्षों से भरा है, लेकिन हमें किसी भी चुनौती से डरना नहीं चाहिए। हार से निराश होने के बजाय उसे एक ठहराव मानकर फिर से आगे बढ़ना चाहिए। किसी से दया की भीख माँगना या कृपा पर निर्भर रहना आत्मसम्मान के विरुद्ध है। सच्ची मानवता अपनी लड़ाई खुद लड़ने, हर परिणाम को समभाव से स्वीकार करने और अपनी पीड़ा को ही अपनी ताकत बनाने में है।

    English: The central theme of this poem is to inspire individuals to become self-reliant and live with self-respect. The poet conveys the message that life is full of struggles, but we should not be afraid of any challenge. Instead of getting disheartened by defeat, one should consider it a pause and move forward again. Begging for mercy or depending on favors is against one's self-respect. True humanity lies in fighting one's own battles, accepting every outcome with equanimity, and turning one's own pain into strength.


    शब्दार्थ (Glossary)


    शब्द (Word)

    पर्यायवाची शब्द (Synonym)

    विलोम शब्द (Antonym)

    वरदान

    आशीष, कृपा

    अभिशाप, श्राप

    विराम

    ठहराव, विश्राम

    गति, निरंतरता

    संग्राम

    युद्ध, लड़ाई

    शांति, संधि

    स्मृति

    याद, स्मरण

    विस्मृति, भूल

    खंडहर

    भग्नावशेष, ধ্বংসাবশেষ

    महल, भवन

    किंचित

    थोड़ा भी, जरा भी

    बहुत, अत्यधिक

    भयभीत

    डरा हुआ, आतंकित

    निर्भय, निडर

    पथ

    मार्ग, रास्ता

    गंतव्य, मंजिल

    लघुता

    छोटापन, हीनता

    महानता, बड़प्पन

    वेदना

    पीड़ा, व्यथा

    सुख, आनंद


    पंक्तियों का सरल अर्थ लिखें (Simple Meaning of Lines)


    १. यह हार एक विराम है... वरदान माँगूँगा नहीं।। परिचय: इन पंक्तियों में कवि जीवन के संघर्ष और हार के प्रति अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि जीवन में मिलने वाली हार कोई अंत नहीं, बल्कि एक छोटा-सा ठहराव है। असली जीवन तो एक महान युद्ध के समान है, जिसमें संघर्ष चलता रहता है। मैं भले ही तिल-तिल करके मिट जाऊँ, लेकिन किसी से दया की भीख कभी नहीं माँगूंगा। मैं कोई वरदान नहीं माँगूँगा।

    २. स्मृति सुखद प्रहरों के लिए... वरदान माँगूँगा नहीं।। परिचय: यहाँ कवि अपने स्वाभिमान को सांसारिक संपत्ति से ऊपर रखते हुए अपनी भावना व्यक्त कर रहे हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि मैं अपने जीवन के सुखद पलों की यादों को सहेजने के लिए या अपने उजड़ चुके जीवन (खंडहरों) को फिर से बसाने के लिए भी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊँगा। यह बात जान लो कि मैं इसके लिए दुनिया की धन-संपत्ति भी नहीं चाहूँगा। मैं कोई वरदान नहीं माँगूँगा।

    ३. क्या हार में क्या जीत में... वरदान माँगूँगा नहीं।। परिचय: इन पंक्तियों में कवि संघर्ष के प्रति अपनी निर्भयता और समभाव को प्रकट करते हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि मेरे लिए हार या जीत कोई विशेष महत्व नहीं रखती। मैं इन दोनों ही परिस्थितियों में जरा भी डरा हुआ नहीं हूँ। संघर्ष के मार्ग पर चलते हुए मुझे जो कुछ भी मिलेगा, चाहे वह सुख हो या दुख, वह सब मुझे स्वीकार है। मैं कोई वरदान नहीं माँगूँगा।

    ४. लघुता न अब मेरी छुओ... वरदान माँगूँगा नहीं।। परिचय: इन अंतिम पंक्तियों में कवि अपने आत्मसम्मान को सर्वोच्च रखते हुए अपनी पीड़ा को भी अपनी शक्ति बताते हैं। सरल अर्थ: कवि कहते हैं कि अब मेरे छोटा होने का एहसास मुझे मत कराओ (यानी मुझ पर तरस मत खाओ)। तुम महान हो, तो बने रहो। मैं अपने हृदय की पीड़ा को व्यर्थ में त्याग कर तुम्हारा अहसान नहीं लूँगा, क्योंकि यही पीड़ा मेरी ताकत है। मैं कोई वरदान नहीं माँगूँगा।


    सही या गलत (कारण सहित) (True or False with Reason)


    कथन १: कवि हार को जीवन का अंत मानते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "यह हार एक विराम है"।

    कथन २: कवि अपने खंडहरों के लिए विश्व की सारी संपत्ति चाहते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कवि कहते हैं, "यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं"।

    कथन ३: कवि संघर्ष के पथ पर मिलने वाली किसी भी परिस्थिति से भयभीत नहीं हैं। उत्तर: सही। कारण, कविता में पंक्ति है, "क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं"।

    कथन ४: कवि तिल-तिल मिटने के बजाय दया की भीख लेना बेहतर समझते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कवि स्पष्ट कहते हैं, "तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं"।

    कथन ५: कवि अपनी हृदय की वेदना को व्यर्थ में त्याग देना चाहते हैं। उत्तर: गलत। कारण, कविता की अंतिम पंक्ति है, "अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं"।


    पद विश्लेषण (Poetry Appreciation)


    रचनाकार का नाम: शिवमंगल सिंह 'सुमन' रचना का प्रकार: प्रेरणागीत (Inspirational Song)

    पसंदीदा पंक्ति

    पसंदीदा होने का कारण

    रचना से प्राप्त संदेश

    यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है

    यह पंक्ति हार के प्रति एक बहुत ही सकारात्मक और शक्तिशाली दृष्टिकोण देती है। यह निराशा को हटाकर संघर्ष जारी रखने की प्रेरणा देती है।

    जीवन में असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए, वे केवल अस्थायी रुकावटें हैं।

    तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं

    यह पंक्ति कवि के अटूट स्वाभिमान को दर्शाती है। यह सिखाती है कि किसी भी कीमत पर अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करना चाहिए।

    स्वाभिमान मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी है, जिसे किसी भी परिस्थिति में बनाए रखना चाहिए।

    किंचित नहीं भयभीत मैं

    यह छोटी सी पंक्ति कवि की अदम्य साहस और निडरता को व्यक्त करती है। यह दिखाती है कि मन में डर न हो तो कोई भी परिस्थिति कठिन नहीं लगती।

    हमें निडर होकर जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए।

    संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही

    यह पंक्ति जीवन के सुख-दुख को समभाव से स्वीकार करने की गीता-जैसी शिक्षा देती है। यह हमें हर हाल में स्थिर रहना सिखाती है।

    जीवन में आने वाले हर उतार-चढ़ाव को सहजता से स्वीकार करना चाहिए।

    लघुता न अब मेरी छुओ, तुम हो महान बने रहो

    यह पंक्ति स्वाभिमान की पराकाष्ठा है। कवि किसी की महानता के नीचे दबकर कृपा पाना नहीं चाहते, बल्कि अपनी स्थिति में रहकर ही संघर्ष करना चाहते हैं।

    किसी की कृपा पर जीने से बेहतर है स्वाभिमान के साथ अपनी लड़ाई खुद लड़ना।


    स्वमत (Personal Opinion)


    प्रश्न १: 'संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही' - इस पंक्ति का आपके जीवन में क्या महत्व है? उत्तर: यह पंक्ति मेरे जीवन के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत की तरह है। इसका अर्थ है कि जीवन में संघर्ष के दौरान मिलने वाले सुख और दुख, दोनों को समान भाव से स्वीकार करना। यह मुझे सिखाती है कि सफलता मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए और असफलता मिलने पर निराश नहीं होना चाहिए। हर अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाता है। इस भाव को अपनाने से मन में शांति और स्थिरता बनी रहती है, जिससे हम बिना घबराए लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकते हैं। यह पंक्ति मुझे हर परिस्थिति में सकारात्मक बने रहने की शक्ति देती है।

    उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: मार्गदर्शक सिद्धांत, समभाव, सफलता-असफलता, सकारात्मकता, मानसिक स्थिरता, अनुभव, सीखना।

    प्रश्न २: कवि 'दया की भीख' क्यों नहीं लेना चाहते? इससे उनके किस गुण का पता चलता है? उत्तर: कवि 'दया की भीख' इसलिए नहीं लेना चाहते क्योंकि यह उनके स्वाभिमान और आत्म-सम्मान के विरुद्ध है। दया या भीख पर मिला हुआ जीवन उन्हें पराधीनता का अनुभव कराएगा। वे अपने बल पर जीना चाहते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें तिल-तिल करके मिटना ही क्यों न पड़े। इससे कवि के अत्यंत स्वाभिमानी, साहसी और आत्मनिर्भर होने के गुण का पता चलता है। वे किसी का अहसान लेकर जीने के बजाय संघर्ष करके मरना बेहतर समझते हैं। उनका मानना है कि असली जीवन अपने पुरुषार्थ से जिया जाता है, दूसरों की कृपा से नहीं। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: स्वाभिमान, आत्म-सम्मान, आत्मनिर्भरता, पुरुषार्थ, पराधीनता, अहसान, साहस।

    प्रश्न ३: 'लघुता' और 'महानता' के बारे में कवि के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कविता में 'महानता' का अर्थ है शक्ति, सामर्थ्य और देने की क्षमता, जो शायद ईश्वर या किसी शक्तिशाली सत्ता का प्रतीक है। वहीं, 'लघुता' का अर्थ है सामान्य मनुष्य की स्थिति, जो कमजोर और जरूरतमंद प्रतीत होती है। कवि कहते हैं कि हे महान सत्ता, तुम अपनी महानता अपने पास रखो और मेरी लघुता को छूकर (यानी मुझ पर तरस खाकर) मुझे और छोटा महसूस मत कराओ। कवि अपनी 'लघुता' में ही स्वाभिमानी हैं। वे अपनी पीड़ा और संघर्ष को अपनी पहचान मानते हैं और किसी की महानता की छाया में उसे खोना नहीं चाहते। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: शक्ति, सामर्थ्य, सामान्य मनुष्य, स्वाभिमान, तरस, कृपा, पहचान, संघर्ष।

    प्रश्न ४: जीवन को 'महान संग्राम' कहना कहाँ तक उचित है? उत्तर: जीवन को 'महान संग्राम' कहना पूरी तरह से उचित है। जन्म से लेकर मृत्यु तक, मनुष्य को हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। यह संघर्ष कभी अपनी जरूरतों के लिए, कभी अपने सपनों के लिए, कभी समाज की कुरीतियों के खिलाफ, तो कभी स्वयं अपनी कमजोरियों के खिलाफ होता है। इसमें हार-जीत, सुख-दुख, आशा-निराशा के कई मोड़ आते हैं। जिस प्रकार एक योद्धा संग्राम में लड़ता है, उसी प्रकार मनुष्य भी जीवन की चुनौतियों से लड़ता है। इसलिए, जीवन को एक महान युद्ध की संज्ञा देना इसके संघर्षपूर्ण और अनवरत चलने वाले स्वरूप को सटीक रूप से व्यक्त करता है। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: संघर्ष, चुनौतियाँ, हार-जीत, सुख-दुख, युद्ध, योद्धा, अनवरत, सटीक।

    प्रश्न ५: इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है? उत्तर: इस कविता से मुझे हर परिस्थिति में आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बने रहने की प्रेरणा मिलती है। यह कविता सिखाती है कि हमें जीवन के संघर्षों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उनका निडरता से सामना करना चाहिए। हमें किसी की दया या सहारे की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी ताकत पर विश्वास करना चाहिए। हार जीवन का एक हिस्सा है, अंत नहीं। हमें हार से सीखकर और मजबूत होकर आगे बढ़ना चाहिए। सबसे बड़ी प्रेरणा यह मिलती है कि हमें अपनी पीड़ा और कमजोरियों को भी अपनी शक्ति बनाना चाहिए और किसी भी हाल में अपना आत्म-सम्मान नहीं खोना चाहिए। उत्तर लिखने के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण शब्द: प्रेरणा, आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान, निडरता, संघर्ष, आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान, शक्ति।


    संभावित परीक्षा प्रश्न (Probable Exam Questions)


    प्रश्न १: कविता की पंक्तियाँ पूर्ण कीजिए: (क) क्या हार में ............... भयभीत मैं। (ख) यह हार एक ............... महासंग्राम है। उत्तर: (क) क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। (ख) यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है।

    प्रश्न २: कवि के अनुसार हार और जीत के प्रति मनुष्य का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए? उत्तर: कवि के अनुसार, मनुष्य को हार और जीत, दोनों ही परिस्थितियों में समान भाव रखना चाहिए। उसे न तो हार से डरना चाहिए और न ही जीत पर अहंकार करना चाहिए। कवि कहते हैं, "क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं"। इसका अर्थ है कि संघर्ष के मार्ग पर ये दोनों ही स्वाभाविक परिणाम हैं और हमें इन्हें सहजता से स्वीकार कर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

    प्रश्न ३: कवि किन-किन चीजों के लिए 'वरदान' नहीं माँगेंगे? उत्तर: कवि निम्नलिखित चीजों के लिए 'वरदान' नहीं माँगेंगे:

    • जीवन के महासंग्राम में हारने पर वे दया की भीख नहीं माँगेंगे।

    • सुखद पलों की यादों को सहेजने के लिए वे वरदान नहीं माँगेंगे।

    • अपने उजड़े हुए जीवन (खंडहरों) को संवारने के लिए वे विश्व की संपत्ति रूपी वरदान नहीं माँगेंगे।

    प्रश्न ४: 'यह हार एक विराम है, जीवन महासंग्राम है' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर: इस पंक्ति का आशय यह है कि जीवन में मिलने वाली असफलता या हार अंतिम नहीं होती, वह केवल एक अस्थायी ठहराव या विश्राम की तरह है। जीवन तो एक महान युद्ध के समान है जो निरंतर चलता रहता है। जैसे युद्ध में सैनिक थककर कुछ देर रुकता है और फिर से लड़ने लगता है, वैसे ही हमें भी हार से निराश न होकर उसे एक अनुभव मानकर अपने जीवन के संघर्ष को जारी रखना चाहिए।

    प्रश्न ५: कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: इस कविता का केंद्रीय भाव मनुष्य को स्वाभिमान, साहस और आत्मनिर्भरता के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है। कवि यह संदेश देते हैं कि जीवन एक निरंतर चलने वाला संघर्ष है। हमें इसमें आने वाली हार-जीत से घबराए बिना, किसी से दया की अपेक्षा किए बिना, अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी चाहिए। अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखना ही मनुष्य की सबसे बड़ी जीत है।



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